पंचधेनुदान
सब प्रकार के अभ्युदयों की प्राप्ति तथा सद्गति के लिये पाँच प्रकार की गौओं के दान का विधान है। इसे ही पंचधेनुदान कहते हैं।
पंचधेनु दान
Pancha Dhenu Daan
पाँच गौओं (पंचधेनु) के नाम इस
प्रकार हैं- (१) ऋणापनोदधेनु, (२)
पापापनोदधेनु, (३) उत्क्रान्तिधेनु, (४)
वैतरणीधेनु तथा (५) मोक्षधेनु।
पंचधेनुदान का उद्देश्य इस प्रकार
है—
जन्म लेने के साथ ही मनुष्य पर तीन
ऋण लग जाते हैं- १. देव ऋण, २. पितृ ऋण तथा ३.
मनुष्य-ऋण। इनके अतिरिक्त मनुष्य आवश्यकतानुसार अन्य ऋण भी ले लेता है। इन सभी
ऋणों से लगे पाप को नष्ट करने के लिये और भगवान् की प्रसन्नता के लिये 'ऋणापनोदधेनु' का दान दिया जाता है। इसी तरह
ज्ञात-अज्ञात पापों से छुटकारा पाने के लिये एवं भगवान् की प्रसन्नता के लिये 'पापापनोदधेनु' का दान दिया जाता है। अन्तिम समय में
प्राणोत्सर्ग में अत्यधिक कष्ट की अनुभूति होती है। सुखपूर्वक प्राणोत्सर्ग के
लिये 'उत्क्रान्तिधेनु' का दान
दिया जाता है। इसी प्रकार यममार्ग में स्थित घोर वैतरणी नदी को पार करने के लिये 'वैतरणीधेनु' का दान दिया जाता है और
मोक्षप्राप्ति के लिये 'मोक्षधेनु' का दान दिया जाता है।
पंचधेनुदान विधि:
पंचधेनु का दान निष्क्रयरूप में
करना हो तो 'सर्वोपचारार्थे
गन्धाक्षतपुष्पाणि समर्पयामि, गणेशाम्बिकाभ्यां नमः'
- ऐसा कहकर गणेशाम्बिका पूजन के अनन्तर संकल्पमात्र से कर देना
चाहिये।
मरणासन्न व्यक्ति के लिये समयाभाव के
कारण पंचधेनुनिष्क्रयद्रव्यदान का एक संयुक्त संकल्प भी यहाँ दिया जा रहा है ।
अन्तिम काल की शीघ्रता में इस संकल्प के द्वारा भी पंचधेनुदान सम्पन्न हो सकता है।
दान के संकल्प में ही प्रतिज्ञा एवं वरण- संकल्प भी सम्मिलित है,
अतः 'सर्वोपचारार्थे गन्धाक्षतपुष्पाणि
समर्पयामि' कहकर ब्राह्मण-पूजन करने के अनन्तर निम्न
संकल्प करे-
पंचधेनुदान के निष्क्रय का
संकल्प
हाथ में कुश,
अक्षत, जल तथा कुछ निष्क्रय द्रव्य लेकर बोले-
ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः अद्य
यथोक्तगुणविशिष्टतिथ्यादौ....गोत्रः.... शर्मा/ वर्मा/गुप्तोऽहम् [यदि
प्रतिनिधि करे तो ‘अहम्' के
स्थान पर.... गोत्रस्य (....गोत्रायाः) प्रतिनिधिभूतोऽहं तदुद्देश्येन -इतना
कहे ] ऐहिकामुष्मिकानेक जन्मार्जितसमस्तपापक्षयपूर्वकदेवर्षिपितृमनुष्यादिऋणापनोदनार्थं
ज्ञाताज्ञातमनोवाक्कायकृत- सकलपापक्षयार्थं प्राणप्रयाणकाले ससुखं
प्राणोत्क्रमणार्थं यममार्गस्थितां महाघोरां शतयोजनविस्तीर्णां वैतरणीं सुखेन
संतरणार्थं भगवत्प्रसादात् मोक्षप्राप्तये श्रीमहाविष्णुप्रीत्यर्थं
प्रतिज्ञापूर्वकं ऋणापनोदधेनु- पापापनोदधेनूत्क्रान्तिधेनु वैतरणीधेनु मोक्षधेनूनां
रुद्रदैवतानां निष्क्रयभूतं द्रव्यं वृताय पूजिताय गोत्राय ब्राह्मणाय भवते सम्प्रददे
(सम्प्रददामि)। कहकर संकल्पजल तथा द्रव्य ब्राह्मण को दे दे।
सांगता-संकल्प
—
ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः अद्य यथोक्तगुणविशिष्टतिध्यादौ....
गोत्रः.... शर्मा/ वर्मा/गुप्तोऽहम् [यदि प्रतिनिधि करे
तो 'अहम्' के स्थान पर....
गोत्रस्य (....गोत्रायाः ) प्रतिनिधिभूतोऽहं तदुद्देश्येन—इतना कहे] कृतस्य पूर्वोक्तपञ्चधेनुनिष्क्रयभूतदानाख्यकर्मणः
प्रतिष्ठासांगतासंसिद्ध्यर्थं दक्षिणाद्रव्यं भवते सम्प्रददे (सम्प्रददामि )।
कहकर द्रव्य दे दे।
विष्णुस्मरण-
यस्य स्मृत्या च नामोक्त्या
तपोयज्ञक्रियादिषु ।
न्यूनं सम्पूर्णतां याति सद्यो
वन्दे तमच्युतम् ॥
ॐ विष्णवे नमः । ॐ विष्णवे नमः । ॐ
विष्णवे नमः ।
पंचधेनुदान का पृथक्-पृथक् विधान
इन पाँचों गोदानों में 'ॐ गवे नमः' इस मन्त्र द्वारा
गन्ध, अक्षत, पुष्प तथा पुष्पमाला आदि
उपचारों से संक्षेप में गोपूजन कर ले तथा निम्नलिखित मन्त्र से गोप्रार्थना
करे-
नमो गोभ्यः श्रीमतीभ्यः सौरभेयीभ्य
एव च ।
नमो ब्रह्मसुताभ्यश्च पवित्राभ्यो
नमो नमः ॥
गावो ममाग्रतः सन्तु गावो मे सन्तु
पृष्ठतः।
गावो मे सर्वतः सन्तु गवां मध्ये
वसाम्यहम् ॥
पाँचों गोदानों का दानसंकल्प यहाँ अलग-अलग
लिखा जा रहा है। इन्हीं संकल्पों में प्रतिज्ञा, वरण तथा सांगता-संकल्प भी सम्मिलित हैं। 'सर्वोपचारार्थे
गन्धाक्षतपुष्पाणि समर्पयामि' कहकर गणेशाम्बिका पूजन तथा
ब्राह्मण का पूजन कर ले। वरण और सांगता के लिये हाथ में त्रिकुश, अक्षत, जल के साथ कुछ द्रव्य भी रख ले।
( १ ) ऋणापनोदधेनु-दान
दान-संकल्प
—
ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः नमः पुराणपुरुषोत्तमाय ॐ तत्सत्
अद्वैतस्य अचिन्त्यशक्तेर्महाविष्णोराज्ञया जगत्सृष्टिकर्मणि प्रवर्तमानस्य
परार्धद्वयजीविनो ब्रह्मणो द्वितीयपराधे श्रीश्वेत- वाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरे
अष्टाविंशतितमे कलियुगे कलिप्रथमचरणे भूर्लोके जम्बूद्वीपे भारतवर्षे भरतखण्डे
आर्यावर्तैकदेशान्तर्गते प्रजापतिक्षेत्रे.... स्थाने (काशी
में करना हो तो अविमुक्तवाराणसीक्षेत्रे गौरीमुखे त्रिकण्टकविराजिते महाश्मशाने
आनन्दवने भगवत्या उत्तरवाहिन्या भागीरथ्या गङ्गाया वामभागे) .... संवत्सरे ....अयने....'ऋतौ....'मासे....पक्षे.... तिथौ.... वासरे एवं
ग्रहगुणगणविशेषणविशिष्टायां शुभपुण्यतिथौ.... गोत्रः ....शर्मा/वर्मा/गुप्तोऽहम् [
यदि प्रतिनिधि करे तो '
अहम्' के स्थान पर....
गोत्रस्य (.... गोत्रायाः) प्रतिनिधिभूतोऽहं तदुद्देश्येन - इतना कहे ]
ऐहिकामुष्मिकानेकजन्मार्जित देवर्षिपितृमनुष्यादि समस्त ऋणापनोदनार्थं
श्रीविष्णुप्रीतये प्रतिज्ञापूर्वकम् इमां सांगतासहितां रुद्रदैवताम्
ऋणापनोदधेनुम्/ऋणापनोदधेनुनिष्क्रयद्रव्यं वृताय पूजिताय....गोत्राय....शर्मणे
ब्राह्मणाय भवते सम्प्रददे (सम्प्रददामि ) । ऐसा कहकर नीचे लिखे श्लोक को
बोलते हुए ब्राह्मण के हाथ में संकल्पजल, गोपुच्छ
अथवा गोनिष्क्रय-द्रव्य दे दे।
ऐहिकामुष्मिकं यच्च सप्तजन्मार्जितं
त्वृणम् ।
तत्सर्वं शुद्धिमायातु गामेतां ददतो
मम ॥
ब्राह्मण बोले- 'ॐ स्वस्ति ।'
(२) पापापनोदधेनु –
दान दान- संकल्प
—
ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः अद्य यथोक्तगुणविशिष्टतिथ्यादौ....
गोत्र: ....शर्मा / वर्मा/गुप्तोऽहम् [यदि
प्रतिनिधि करे तो 'अहम्' के
स्थान पर.... गोत्रस्य (....गोत्रायाः) प्रतिनिधिभूतोऽहं तदुद्देश्येन - इतना
कहे ] ज्ञाताज्ञातमनोवाक्कायकृतपापानां संक्षयार्थं श्रीपरमेश्वरप्रीतये
प्रतिज्ञापूर्वकम् इमां सांगतासहितां रुद्रदैवतां
पापापनोदधेनुम्/पापापनोदधेनुनिष्क्रयद्रव्यं वृताय पूजिताय....गोत्राय....शर्माणे
ब्राह्मणाय भवते सम्प्रददे (सम्प्रददामि)। ऐसा कहकर नीचे लिखे श्लोक को बोलते
हुए ब्राह्मण के हाथ में संकल्पजल, गोपुच्छ
अथवा गोनिष्क्रय-द्रव्य दे दे-
आजन्मोपार्जितं पापं
मनोवाक्कायसम्भवम् ।
तत्सर्वं नाशमायातु गोप्रदानेन केशव
॥
ब्राह्मण बोले- 'ॐ स्वस्ति ।'
(३) उत्क्रान्तिधेनु-दान
दान - संकल्प
—
ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः अद्य यथोक्तगुणविशिष्टतिथ्यादौ....गोत्र:
....शर्मा/ वर्मा/गुप्तोऽहम् [यदि प्रतिनिधि करे तो 'अहम्' के स्थान पर.... गोत्रस्य (....गोत्रायाः)
प्रतिनिधिभूतोऽहं तदुद्देश्येन - इतना कहे] सुखेन प्राणोत्क्रमणार्थं
श्रीपरमेश्वरप्रीतये प्रतिज्ञापूर्वकम् इमां सांगतासहितां रुद्रदैवताम्
उत्क्रान्तिधेनुम्/उत्क्रान्तिधेनुनिष्क्रयद्रव्यं वृताय पूजिताय.... गोत्राय....शर्मणे
ब्राह्मणाय भवते सम्प्रददे (सम्प्रददामि )।
ऐसा कहकर संकल्पजल,
गोपुच्छ अथवा गोनिष्क्रय-द्रव्य ब्राह्मण को दे दे।
ब्राह्मण बोले-'ॐ स्वस्ति ।'
(४)
वैतरणीधेनु-
दान दान-संकल्प
- ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः अद्य यथोक्तगुणविशिष्टतिथ्यादौ.... गोत्रः.... शर्मा/
वर्मा/गुप्तोऽहम् [यदि प्रतिनिधि करे तो 'अहम्' के स्थान पर....गोत्रस्य
(....गोत्रायाः) प्रतिनिधिभूतोऽहं तदुद्देश्येन - इतना कहे] यममार्गे
स्थितां महाघोरां वैतरणीं सुखेन संतरणकामनया श्रीपरमेश्वरप्रीतये
प्रतिज्ञापूर्वकम् इमां सांगतासहितां रुद्रदैवतां
वैतरणीधेनुम्/वैतरणीधेनुनिष्क्रयद्रव्यं वृताय पूजिताय.... गोत्राय....शर्मणे
ब्राह्मणाय भवते सम्प्रददे (सम्प्रददामि )।
ऐसा कहकर संकल्प जल,
गोपुच्छ या गोनिष्क्रय-द्रव्य निम्नलिखित श्लोक बोलते हुए ब्राह्मण को
दे दे-
यमद्वारे महाघोरा या सा वैतरणी नदी
।
तर्तुकामो ददाम्येनां तुभ्यं
वैतरणीञ्च गाम् ॥
ब्राह्मण बोले- 'ॐ स्वस्ति ।'
(५) मोक्षधेनु –
दान दान - संकल्प
—
ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः अद्य यथोक्तगुणविशिष्टतिथ्यादौ....
गोत्रः.... शर्मा / वर्मा/गुप्तोऽहम् [यदि
प्रतिनिधि करे तो 'अहम्' के
स्थान पर.... गोत्रस्य (....गोत्रायाः) प्रतिनिधिभूतोऽहं तदुद्देश्येन - इतना
कहे] भगवत्प्रसादान्मोक्षप्राप्तये प्रतिज्ञापूर्वकम् इमां सांगतासहितां
रुद्रदैवतां मोक्षधेनुम् / मोक्षधेनुनिष्क्रयद्रव्यं वृताय पूजिताय.... गोत्राय....शर्मणे
ब्राह्मणाय भवते सम्प्रददे (सम्प्रददामि ) ।
ऐसा कहकर नीचे लिखे श्लोक को बोलते
हुए ब्राह्मण के हाथ में संकल्प जल, गोपुच्छ
अथवा गोनिष्क्रय-द्रव्य दे दे-
मोक्षं देहि हृषीकेश मोक्षं देहि
जनार्दन ।
मोक्षधेनुप्रदानेन मुकुन्दः
प्रीयतां मम ॥
ब्राह्मण बोले—'ॐ स्वस्ति । '
वैतरणीधेनुदान की विधि
यहाँ वैतरणीधेनुदान विधि विशेष रूप
से दिया जा रहा है-
वैतरणी नदी-
गरुडपुराणादि शास्त्रों में वर्णन
आया है कि जीव मृत्यु के अनन्तर यातनामय देह प्राप्तकर यमदूतों द्वारा यमलोक में
ले जाया जाता है। यमलोक का मार्ग अति भयावह तथा कष्टकर है। पापी जीव बड़े कष्ट से
वहाँ जाता है। वह हा पुत्र ! हा पौत्र ! - इस प्रकार पुत्र-पौत्रों को पुकारते हुए,
हाय-हाय इस प्रकार विलाप करते हुए पश्चात्ताप की ज्वाला से जलता
रहता है। उस समय वह विचार करता है कि महान् पुण्य के सम्बन्ध से मनुष्य जन्म
प्राप्त होता है, उसे पाकर मैंने धर्माचरण नहीं किया,
दान नहीं दिया, तपस्या नहीं की, भगवान् का भजन नहीं किया, उसी का फल आज मुझे मिल
रहा है, जीव की आत्मा उससे कहती है- हे जीव ! तुमने जीवन में
सत्पुरुषों की सेवा नहीं की, कभी दूसरे का उपकार नहीं किया,
गौओं और ब्राह्मणों की सेवा नहीं की, वेदों और
शास्त्रों के वचनों को प्रमाण नहीं माना, मनमाना आचरण किया,
इसलिये तुमने जो दुष्कर्म किया, उसी का फल अब
भोगो। इस प्रकार अत्यन्त दुखी हुए जीव को आगे यममार्ग में घोर वैतरणी नदी मिलती है
। वह देखने पर ही अत्यन्त दुःखदायिनी तथा भय उत्पन्न करनेवाली है, वह सौ योजन चौड़ी है। पीब, मवाद तथा मांस एवं रक्त से
भरी है। उसके तट पर हड्डियों का ढेर लगा रहता है, उसमें
भयंकर हिंसक जीव-जन्तु रहते हैं। वज्र के समान तीक्ष्ण चोंचवाले बड़े-बड़े गधों
एवं कौओं से वह घिरी रहती है। उसके प्रवाह में गिरे हुए पापी रोते- चिल्लाते रहते
हैं, पर उस समय उनकी सहायता करनेवाला कोई नहीं रहता है।
शास्त्रों ने यह विधान किया है कि
यदि प्राणी वैतरणी गौ का दान कर लेता है तो वह गौ उसे वहाँ मिलती है और जीव उसकी
पूँछ पकड़कर आसानी से भयंकर वैतरणी नदी को पार कर लेता है। वैतरणी गोदान में
गोमाता से इसी प्रकार की प्रार्थना की गयी है कि-
धेनुके मां प्रतीक्षस्व यमद्वारमहापथे
।
उत्तारणार्थं देवेशि वैतरण्यै
नमोऽस्तु ते ॥
हे गोमाता ! यमद्वार के महापथ में
वैतरणी नदी को पार करने के लिये आप वहाँ पर मुझे मिलना,
आपको नमस्कार है।
वैतरणीधेनुदान-
वैतरणीधेनुदान की विशेष प्रक्रिया
है। *
वैतरणी-गोदान की विधि
वैतरणी नदीका निर्माण-
गोदान विधि करके गोपुच्छोदकतर्पण
करने के अनन्तर रुई के पहाड़ पर कलश स्थापित करे-
रुई के पहाड़ पर कलश
स्थापन
दक्षिण दिशा में रुई का पहाड़
बनाये। एक पात्र में तिल रखकर रुई के पर्वत पर रख दे। इसी पर कलश की स्थापना करनी
है।
कलश पर रोरी से स्वस्तिक का चिह्न
बनाकर उसके गले में तीन धागोंवाली मौली लपेटे और कलश को एक ओर रख ले। इसके बाद रुई
के पहाड़ पर जो तिल भरा पात्र रखा है, उस
पात्र का कलश स्थापन-पूजन विधान से करें।
अब कलश पर यम की पूजा
स्थापित कलश पर यम की स्वर्णमयी
प्रतिमा की स्थापना कर पूजन करना चाहिये। समीप में लौहदण्ड भी स्थापित करे। कलश पर
मूर्ति-स्थापन के पहले अग्न्युत्तारण और प्राण-प्रतिष्ठा कर लेना आवश्यक होता है।
संकल्प
–
आचमन और प्राणायाम कर त्रिकुश,
जल, अक्षत और द्रव्य लेकर संकल्प करे- ॐ अद्य पूर्वोच्चारितग्रहगणगुणविशेषणविशिष्टायां
शुभपुण्यतिथौ.... गोत्र: .... शर्मा / वर्मा/गुप्तोऽहम् (यदि प्रतिनिधि करे तो
'अहं' के बाद.... गोत्रस्य....
शर्मणः/वर्मणः/गुप्तस्योद्देश्येन क्रियमाण - ऐसा कहे) सवत्सवैतरणीगवीदानकर्मणि
श्रुतिस्मृतिपुराणोक्तफलप्राप्त्यर्थं श्रीयमदेवप्रीतिद्वारा सकलाभीष्टसिद्ध्यर्थं
च अग्न्युत्तारणपूर्वकं यमप्रतिमायां प्राणप्रतिष्ठां करिष्ये ( करिष्यामि) ।
इस तरह संकल्प कर जल गिरा दे।
अग्न्युत्तारण-
इसके बाद किसी पात्र में यम की प्रतिमा को रखकर उसे घृत से अभ्यक्त (लेपित) कर दे,
उसके ऊपर निम्न मन्त्रों को पढ़ता हुआ जलधारा से स्नान कराये—
ॐ समुद्रस्य त्वाऽवकयाग्ने परि
व्ययामसि ।
पावको अस्मभ्यंٿ शिवो भव ॥
हिमस्य त्वा जरायुणाऽग्ने परि
व्ययामसि ।
पावको अस्मभ्यंٿ शिवो भव ॥
उप ज्मन्नुप वेतसेऽव तर नदीष्वा ।
अग्ने पित्तमपामसि मण्डूकि ताभिरा
गहि ।
सेमं नो यज्ञं पावकवर्णٿ शिवं कृधि ॥
अपामिदं न्ययनٿ समुद्रस्य निवेशनम् ।
अन्यस्ते अस्मत्तपन्तु हेतयः पावको
अस्मभ्यःٿ
शिवो भव ॥
अग्ने पावक रोचिषा मन्द्रया देव
जिह्वया ।
आ देवान् वक्षि यक्षि च ॥
स नः पावक दीदिवोऽग्ने देवाँ२ इहा
वह ।
उप यज्ञٿ हविश्च नः ॥
पावकया यश्चितयन्त्या कृपा क्षामन्
रुरुच उषसो न भानुना ।
तूर्वन् न यामन्नेतशस्य नू रण आ यो
घृणे न ततृषाणो अजरः ॥
नमस्ते हरसे शोचिषे नमस्ते
अस्त्वर्चिषे ।
अन्याँस्ते अस्मत्तपन्तु हेतयः
पावको असम्भ्यٿ
शिवो भव ॥
नृषदे वेडप्सुषदे वेड् बर्हिषदे
वेड् वनसदे वेट् स्वर्विदे वेट् ॥
ये देवा देवानां यज्ञिया यज्ञियाना ٿ संवत्सरीणमुप भागमासते ।
अहुतादो हविषो यज्ञे अस्मिन्त्स्वयं
पिबन्तु मधुनो घृतस्य ॥
ये देवा देवेष्वधि देवत्वमायन् ये
ब्रह्मणः पुर एतारो अस्य ।
येभ्यो न ऋते पवते धाम किञ्चन न ते
दिवो न पृथिव्या अधि स्नुषु ॥
प्राणदा अपानदा व्यानदा वर्चोदा वरिवोदाः
।
अन्याँस्ते अस्मत्तपन्तु हेतयः
पावको असम्भ्यٿ
शिवो भव ॥
प्राणप्रतिष्ठा
विनियोग
—
इसके बाद हाथ में जल लेकर विनियोग करे-
ॐ अस्य श्रीप्राणप्रतिष्ठामन्त्रस्य
ब्रह्मविष्णुमहेश्वरा ऋषय ऋग्यजुः सामानि छन्दांसि क्रियामयवपुः प्राणाख्या देवता
आँ बीजं ह्रीं शक्तिः क्रौं कीलकं अस्यां नूतनमूर्ती प्राणप्रतिष्ठापने विनियोगः ।
विनियोग पढ़कर हाथ का जल गिरा दे।
इसके बाद मूर्ति का दाहिने हाथ से
स्पर्श कर प्राणप्रतिष्ठा करे ।
ॐ आँ ह्रीं क्रौं यँ रँ लँ वँ शँ षँ
सँ हँ लँ क्षँ हँ सः सोऽहम् अस्या यमदेवप्रतिमायाः प्राणा इह प्राणाः ।
ॐ ॐ ह्रीं क्रौं यँ र तँ वँ शँ षँ
सँ हँ लँ क्षँ हँ सः सोऽहम् अस्या यमदेवप्रतिमायाः जीव इह स्थितः ।
ॐ आँ ह्रीं क्रौं यँ रँ लँ वँ शं षँ
सँ हँ लँ क्षँ हँ सः सोऽहम् अस्या यमदेवप्रतिमायाः सर्वेन्द्रियाणि
वाङ्मनस्त्वक्चक्षुः श्रोत्रजिह्वाघ्राणपाणिपादपायूपस्थानि अस्यां मूर्तावागत्य
सुखं चिरं तिष्ठन्तु स्वाहा।
इस तरह पढ़कर फूल लेकर निम्न मन्त्र
पढ़कर प्राणप्रतिष्ठा कर फूल चढ़ा दे-
ॐ मनो जूतिर्जुषतामाज्यस्य
बृहस्पतिर्यज्ञमिमं तनोत्वरिष्टं यज्ञःٿ समिमं दधातु । विश्वे देवास इह मादयन्तामो३म्प्रतिष्ठ ॥
षोडश संस्कार
—
यमदेवता की मूर्ति का पुनः स्पर्श कर सोलह बार 'ॐकार' का मन्द स्वर से जप करे। इसके बाद हाथ में
जल, अक्षत लेकर-
ॐ अनेन अस्या यमदेवप्रतिमाया
गर्भाधानादयः षोडशसंस्काराः सम्पद्यन्ताम् ।
ऐसा पढ़कर जल गिरा दे।
पूजन प्राणप्रतिष्ठा कर लेने के बाद
निम्न रीति से यमदेवता का पूजन करे-
यमदेवता का पूजन
आवाहन –
हाथ में फूल लेकर निम्न मन्त्र पढ़ते हुए प्रतिमा में यम का आवाहन
करे-
ॐ यमाय त्वाऽङ्गिरस्वते पितृमते
स्वाहा ।
स्वाहा घर्माय स्वाहा घर्मः पित्रे
॥
ॐ भूर्भुवः स्वः सवाहनं सायुधं
साङ्गं सपरिवारं सशक्तिकं यममावाहयामि स्थापयामि पूजयामि ।
ऐसा कहकर फूल को प्रतिमा पर चढ़ा
दे।
इसके बाद वरुण और यमदेवता की एक साथ
पूजा करे।
मन्त्र इस प्रकार है-
'वरुणादिदेवतासहिताय
साङ्गाय सायुधाय सलौहदण्डाय समहिषवाहनाय सपरिवाराय यमाय नमः ।'
इसी मन्त्र से निम्न रीति से पाद्य,
अर्घ, आरती आदि षोडशोपचार पूजन करें। विस्तृत मंत्र के लिए
डी.पी.कर्मकाण्ड का अवलोकन करे।
अब वैतरणी-गोदान की विधि गोदान-संकल्प
अनुसार करे।
प्रार्थना
—
इसके बाद ब्राह्मण की प्रार्थना करे-
विष्णुरूप द्विजश्रेष्ठ भूदेव
पङ्क्तिपावन ।
सदक्षिणा मया दत्ता तुभ्यं वैतरणी
तु गौः ॥
इसके बाद दान लेनेवाला ब्राह्मण
बोले- 'ॐ स्वस्ति।'
ॐ कोऽदात् कस्मा अदात् कामोऽदात्
कामायादात् ।
कामो दाता कामः प्रतिग्रहीता
कामैतत्ते ॥
इसके बाद निम्नलिखित गोमतीविद्या
अथवा गोसुक्त का पाठ करे।
प्रदक्षिणा
– घर के सभी लोग मिलकर गोग्रहीता ब्राह्मणसहित सवत्सा गो की चार अथवा एक
प्रदक्षिणा करें।
गाय के कान में मन्त्र जप
–
निम्न मन्त्र गाय के कान में
सुनाये-
'ॐ ह्रीं नमो भगवत्यै
ब्रह्ममात्रे विष्णुभगिन्यै रुद्रदेवतायै सर्वपापप्रमोचिन्यै ।'
वैतरणी-तरण
- इसके बाद यजमान वैतरणी गौ की पूँछ पकड़कर पहले से निर्मित नदी को पार करे। समय
तथा स्थान के अनुरूप गड्ढा खोदकर अथवा मिट्टी की बाड़ बनाकर उसमें पानी भरकर
वैतरणी नदी का आकार बनाना चाहिये। इक्षुदण्ड (गन्ने) -के टुकड़े काटकर नाव बनानी
चाहिये और उसमें हेममय यज्ञपुरुष, कपास तथा
लोहदण्ड रखना चाहिये। नदी पश्चिम से पूर्व की ओर बहनेवाली होनी चाहिये और पार
करनेवाला उत्तर से दक्षिण की ओर जाय, आगे गाय होनी चाहिये,
उसकी पूँछ में मौली (कलावा) –से नाव बँधी होनी चाहिये और गाय की
पूँछ तथा नाव को पकड़े हुए पार करनेवाले को उसके पीछे होना चाहिये ।
इस समय निम्नलिखित मन्त्र पढ़े-
धेनुके मां प्रतीक्षस्व
यमद्वारमहापथे ।
उत्तारणार्थं देवेशि वैतरण्यै
नमोऽस्तु ते॥
प्रार्थना
- हाथ जोड़कर भगवान्से प्रार्थना करे-
प्रमादात् ...... समर्पये तत् ॥
ॐ विष्णवे नमः । ॐ साम्बसदाशिवाय
नमः ।
इति: वैतरणी-गोदान पंचधेनुदान ॥
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