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गया तथा ब्रह्मकपाली में श्राद्ध

गया तथा ब्रह्मकपाली में श्राद्ध

पितरों की मुक्ति के लिए बद्रीनाथ धाम में स्थित ब्रह्मकपाल और गया(बिहार)में श्राद्ध पिंडदान किया जाता है।

गया तथा ब्रह्मकपाली में श्राद्ध

गया श्राद्ध तथा बदरीनारायण में ब्रह्मकपाली- श्राद्ध पर विचार

गया में श्राद्ध करने की अत्यधिक महिमा है। शास्त्रों में लिखा है-

जीवतो वाक्यकरणात् क्षयाहे भूरिभोजनात् ।

गयायां पिण्डदानाच्च त्रिभिर्युत्रस्य पुत्रता ॥(श्रीमद्देवीभागवत ६ । ४ । १५)

जीवनपर्यन्त माता-पिता की आज्ञा का पालन करने, श्राद्ध में खूब भोजन कराने और गयातीर्थ में पितरों का पिण्डदान अथवा गया में श्राद्ध करनेवाले पुत्र का पुत्रत्व सार्थक है।

'गयाभिगमनं कर्तुं यः शक्तो नाभिगच्छति ।

शोचन्ति पितरस्तस्य वृथा तेषां परिश्रमः ॥

तस्मात्सर्वप्रयत्नेन ब्राह्मणस्तु विशेषतः ।

प्रदद्याद् विधिवत् पिण्डान् गयां गत्वा समाहितः॥'

जो गया जाने में समर्थ होते हुए भी नहीं जाता है, उसके पितर सोचते हैं कि उनका सम्पूर्ण परिश्रम निरर्थक है। अतः मनुष्य को पूरे प्रयत्न के साथ गया जाकर सावधानीपूर्वक विधि-विधान से पिण्डदान करना चाहिये।'

इन वचनों के अनुसार पितृऋण से मुक्तिहेतु गया श्राद्ध करने की अनिवार्यता के कारण और उसके न करने से पाप लगने के कारण जीवित समर्थ पुरुष को गया में पिण्डदान तथा श्राद्ध अवश्य करना चाहिये।

( कुछ लोगों में यह भ्रमात्मक प्रचार है कि गया श्राद्ध के बाद वार्षिक श्राद्ध आदि करने की आवश्यकता नहीं है, परंतु यह विचार पूर्णरूप से गलत है। गयाश्राद्ध तो नित्यश्राद्ध है, इसे एक बार से अधिक भी गया जाकर किया जा सकता है। गयाश्राद्ध करने के बाद भी घर में वार्षिक क्षयाह श्राद्ध तथा पितृपक्ष के श्राद्ध आदि सभी श्राद्ध करने चाहिये, छोड़ने की आवश्यकता नहीं है।)

प्राचीन काल में जहाँ ब्रह्मा का शिरः कपाल गिरा था, वहाँ बदरीक्षेत्र में पिण्डदान करने का विशेष महत्त्व है। सनत्कुमारसंहिता में यह वचन आया है

'शिरःकपालं यत्रैतत्पपात ब्रह्मण: पुरा ।

तत्रैव बदरीक्षेत्रे पिण्डं दातुं प्रभुःपुमान् ॥

मोहाद् गयायां दद्याद्यः स पितृन् पातयेत् स्वकान् ।

लभते च ततः शापं नारदैतन्मयोदितम् ॥'

'प्राचीन काल में जहाँ ब्रह्मा का शिरः कपाल गिरा था, वहीं बदरीक्षेत्र में जो पुरुष पिण्डदान करने में समर्थ हुआ, यदि वह मोह के वशीभूत होकर गया में पिण्डदान करता है तो वह अपने पितरों का अधःपतन करा देता है और उनसे शापित होता है अर्थात् पितर उसका अनिष्ट चिन्तन करते हैं। हे नारद! मैंने आपसे यह कह दिया।'

इस वचन के अनुसार बदरीक्षेत्र में ब्रह्मकपाली में पिण्डदान करने के बाद गया में पिण्डदान करने का निषेध प्रतीत होता है। यद्यपि इस सम्बन्ध में विद्वानों में मतभेद है। कुछ विद्वान् गयाश्राद्ध को नित्य मानते हुए इस वचन को निषेध परक नहीं मानते हैं तथा उनका यह मत है कि बदरीश्राद्ध की प्रशंसा ज्ञापित करने के लिये ही यहाँ गयाश्राद्ध की निन्दा है, न कि इसका तात्पर्य गया श्राद्ध से निवृत्ति का है। उनके अनुसार उपर्युक्त वचन में 'प्रभुः पुमान्' पद का तात्पर्य यह है कि बदरीक्षेत्र में स्थित ब्रह्मकपाली में श्राद्ध करने का सामर्थ्य होने पर भी यदि कोई व्यक्ति मोहवशात् गया में ही अपने पितरों का श्राद्ध करके संतुष्ट हो जाय तो उसके पितृगणों का अधःपतन हो जाता है तथा उसे उनके शाप का भागी होना पड़ता है। इस प्रकार सामर्थ्य रहते हुए गया श्राद्ध के उपरान्त ब्रह्मकपाली में श्राद्ध अवश्य करना चाहिये ।

परंतु कई विद्वद्गण इस तर्क से सहमत नहीं हैं। उनका मानना है कि 'शिरःकपालम्०' इत्यादि वचन स्पष्टरूप से निषेध-वचन हैं। उनके अनुसार 'प्रभुः पुमान्' पद का तात्पर्य यह है कि बदरीक्षेत्र में स्थित ब्रह्मकपाली में श्राद्ध करने में समर्थ हुआ व्यक्ति अर्थात् जिसने वहाँ श्राद्ध सम्पन्न कर लिया, वह बाद में मोहवशात् यदि गया में पिण्डदान करता है तो उसके पितृगण अधःपतन को प्राप्त होते हैं एवं श्राद्ध करनेवाला शाप का भागी होता है। उनके मत से सिद्धान्तरूप में कृत्य या अकृत्य के विचार से रहित होना ही अविवेक अर्थात् मोह है। इस प्रकार बदरीक्षेत्र में पिण्डदान के बाद मोहवशात् अर्थात् कृत्याकृत्य विचार शून्य होने के कारण जो गया में पिण्डदान करे, वह अपने पितरों को अधोगति प्रदान करा दे। ऐसा करने से पिण्डदान करनेवाला पितरों से शाप प्राप्त करता है। अतः विधि के अनुसार गया में पिण्डदान करने का विशेष महत्त्व होने पर भी 'शिरः कपालम्०' इस वचन के अनुसार बदरीक्षेत्र में ब्रह्मकपाली में श्राद्ध करने के अनन्तर गया में तथा अन्य स्थानों पर भी पिण्डदान करने का स्पष्टतः निषेध है। विधिवाक्य से निषेध वचन बलवान् होता है'निषेधाश्च बलीयांसः'। इस मत से भी निषेध केवल पिण्डदान का ही है। पितृपक्ष में क्षयाहतिथि तथा अन्य पर्वों पर ब्राह्मण भोजन आदि के द्वारा पिण्डरहित श्राद्ध तथा तर्पण आदि का निषेध नहीं है। यह करते रहना चाहिये । उपर्युक्त सभी बातों पर विचार करनेपर-

- मुख्य पक्ष यही है कि पूर्व में गया में पिण्डदानादि श्राद्ध सम्पन्न करने के बाद ही बदरीक्षेत्र में ब्रह्मकपाली में श्राद्ध करना चाहिये।

श्राद्ध प्रकरण में आगे पढ़ें...... श्राद्ध में प्रयोजनीय एवं प्रशस्त

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