श्राद्ध संकल्प

श्राद्ध संकल्प

विभिन्न श्राद्ध में संकल्प नीचे वर्णित है-

श्राद्ध संकल्प

श्राद्ध संकल्प

वार्षिकतिथि पर ब्राह्मणभोजनात्मक सांकल्पिकश्राद्ध में किया जानेवाला संकल्प पूर्व में श्राद्ध भाग 2 दिया गया है।

तत्पश्चात् (पंचबलि) ब्राह्मण-भोजन के लिये थाली अथवा पत्तल में सोपस्कर अन्न परोस ले और अन्नपात्र का स्पर्श करते हुए अपसव्य दक्षिणाभिमुख होकर मोटक-तिल-जल लेकर पितृतीर्थ से निम्न संकल्प करे-

अन्नदान का संकल्प - 

ॐ अद्य.... गोत्राय पित्रे.... शर्मणे/वर्मणे/गुप्ताय साङ्कल्पिक श्राद्धे सोपस्करं परिविष्टं परिवेक्ष्यमाणञ्च ब्राह्मणभोजनतृप्तिपर्यन्तम् इदमन्नं ते नमः 

ऐसा कहकर संकल्प का जल पितृतीर्थ से नीचे छोड़ दे।

सव्य पूर्वाभिमुख होकर आशीर्वाद के लिये निम्नलिखित प्रार्थना करे-

ॐ गोत्रं नो वर्धतां दातारो नोऽभिवर्धन्ताम् ।

वेदाः सन्ततिरेव च ।

श्रद्धा च नो मा व्यगमद् बहुदेयं च नोऽस्तु ।

अन्नं च नो बहु भवेदतिथींश्च लभेमहि ।

याचितारश्च नः सन्तु मा च याचिष्म कञ्चन ।

एताः सत्या आशिषः सन्तु ॥

फिर हाथ में त्रिकुश, तिल, जल लेकर दक्षिणादान का संकल्प इस प्रकार करे-

कृतैतच्छ्राद्धप्रतिष्ठार्थं दक्षिणाद्रव्यं यथानामगोत्राय ब्राह्मणाय दातुमहमुत्सृज्ये ।

तदनन्तर निम्न प्रार्थना करे-

क्रियाहीनं विधिहीनं च यद्भवेत् ।

अच्छिद्रमस्तु तत्सर्वं पित्रादीनां प्रसादतः॥

प्रमादात् कुर्वतां कर्म प्रच्यवेताध्वरेषु यत् ।

स्मरणादेव तद्विष्णोः सम्पूर्णं स्यादिति श्रुतिः ॥

इसके अनन्तर एक अथवा तीन ब्राह्मणों का पादप्रक्षालन कर आसन पर बिठाकर उन्हें भोजन कराये । तदनन्तर तिलक कर ताम्बूल तथा दक्षिणा प्रदान करे और ब्राह्मणदेव की चार परिक्रमा कर प्रणाम करे एवं अन्त में 'शेषान्नं किं कर्तव्यम्' (बचे हुए अन्नका क्या किया जाय ?) इस प्रकार ब्राह्मण से पूछे ।

ब्राह्मण उत्तर में कहे'इष्टैः सह भोक्तव्यम्' (अपने इष्टजनों के साथ भोजन करें।)

वार्षिकतिथि पर आमान्नदानात्मक सांकल्पिक श्राद्ध

निम्नलिखित विधि के अनुसार संकल्प करके सूखे अन्न, घृत, चीनी, नमक आदि षड्रस वस्तुओं को दक्षिणासहित श्राद्धभोजन के निमित्त किसी ब्राह्मण को दे देना चाहिये

आमान्नदान का प्रतिज्ञा संकल्प – हाथ में त्रिकुश, तिल, जल लेकर निम्न संकल्प करे-

ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः नमः पुराणपुरुषोत्तमाय ॐ तत्सत् अद्वैतस्य अचिन्त्यशक्तेर्महाविष्णोराज्ञया जगत्सृष्टिकर्मणि प्रवृत्तस्य परार्धद्वयजीविनो ब्रह्मणो द्वितीयपरार्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे कलियुगे कलिप्रथमचरणे बौद्धावतारे भूर्लोके जम्बूद्वीपे भारतवर्षे भरतखण्डे आर्यावर्तैकदेशान्तर्गते प्रजापतिक्षेत्रे......स्थाने (काशी में करना हो तो अविमुक्तवाराणसीक्षेत्रे गौरीमुखे त्रिकण्टकविराजि महाश्मशाने आनन्दवने भगवत्या भागीरथ्या गङ्गायाः पश्चिमे भागे)...... संवत्सरे.... अयने ...... ऋतौ..... मासे...... पक्षे.......तिथौ..... वासरे ......योगे....... राशिस्थिते सूर्ये ...... राशिस्थिते देवगुरौ ..... राशिस्थिते चन्द्रे शेषेषु भौमादिग्रहेषु यथायथं राशिस्थितेषु सत्सु एवं ग्रहगुणगणविशेषणविशिष्टायां शुभपुण्यतिथौ..... गोत्र: ...... शर्मा/वर्मा/गुप्तोऽहम् अस्मत्पितुः क्षुधापिपासानिवृत्तिपूर्वकमक्षयतृप्तिसम्पादनार्थं सोपस्करम् आमान्नदानात्मकं साङ्कल्पिकश्राद्धं करिष्ये । 

हाथ का संकल्प-जल छोड़े।

आमान्नदान का संकल्प - अपसव्य दक्षिणाभिमुख होकर हाथ में मोटक, तिल, जल लेकर आमान्नदान का निम्न संकल्प करे-

ॐ अद्य .....गोत्राय .....पित्रे ....शर्मणे / वर्मणे / गुप्ताय साङ्कल्पिकश्राद्धे ब्राह्मणभोजनतृप्तिपर्याप्तम् इदमन्नं ते नमः कहकर संकल्प जल आमान्न सामग्री पर छोड़ दे और आमान्न ब्राह्मण को प्रदान करे तथा दक्षिणा भी दे।

समस्त पितरों का ब्राह्मणभोजनात्मक सांकल्पिक श्राद्ध

जो लोग पितृपक्ष में पिता की तिथि पर, पर्वों पर अथवा तीर्थ आदि में पिण्डदानात्मक पार्वण श्राद्ध के स्थान पर अपने समस्त पितरों का संकल्प द्वारा श्राद्ध कर ब्राह्मण भोजन कराना चाहें, वे निम्नलिखित प्रतिज्ञा संकल्प कर आगे का कार्य करें-

प्रतिज्ञासंकल्प हाथ में त्रिकुश, तिल, जल लेकर निम्न प्रतिज्ञा संकल्प करे-

ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः नमः परमात्मने पुरुषोत्तमाय ॐ तत्सत् अद्यैतस्य विष्णोराज्ञया जगत्सृष्टिकर्मणि प्रवर्तमानस्य ब्रह्मणो द्वितीयपरार्द्ध श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे कलियुगे तत्प्रथमचरणे जम्बूद्वीपे भारतवर्षे भरतखण्डे.... क्षेत्रे (यदि काशी हो तो अविमुक्तवाराणसीक्षेत्रे गौरीमुखे त्रिकण्टकविराजिते महाश्मशाने भगवत्या उत्तरवाहिन्या भागीरथ्या वामभागे) बौद्धावतारे.... संवत्सरे उत्तरायणे / दक्षिणायने ......ऋतौ..... मासे....पक्षे.... तिथौ..... वासरे.... गोत्र: शर्मा/वर्मा/गुप्तोऽहम्.... गोत्राणाम् अस्मत् पितृ- पितामहप्रपितामहानां सपत्नीकानां..... शर्मणां / वर्मणां / गुप्तानां द्वितीयगोत्राणाम् अस्मन्मातामहप्रमातामह- वृद्धप्रमातामहानां सपत्नीकानां..... शर्मणां / वर्मणां / गुप्तानां नानानामगोत्राणां ताताम्बात्रितयमित्यादिशास्त्र- बोधितावशिष्टसम्बन्धीबान्धवानां ये चाऽस्मत्तोऽभिवाञ्छन्ति तेषां च क्षुत्पिपासानिवृत्तिपूर्वकमक्षयतृप्ति- सम्पादनार्थं ब्राह्मणभोजनात्मकं साङ्कल्पिक श्राद्धं पञ्चबलिकर्म च करिष्ये । 

हाथ का जल आदि छोड़ दे।

पञ्चबलिकर्म पूर्व के अनुसार कर ले।

तत्पश्चात् ब्राह्मणभोजन के निमित्त बने हुए सोपस्कर अन्नदान का अपसव्य दक्षिणाभिमुख हो मोटक- तिल - जल लेकर निम्न संकल्प करे-

अन्नदान का संकल्प ॐ अद्य.... गोत्रेभ्यः शर्मभ्यः/वर्मभ्यः/गुप्तेभ्यः पितृपितामहप्रपितामहेभ्यः सपत्नीकेभ्यः द्वितीयगोत्रेभ्यः मातामहप्रमातामहवृद्धप्रमातामहेभ्यः सपत्नीकेभ्यः नानानामगोत्रेभ्यः ताताम्बात्रितय- मित्यादिशास्त्रबोधितावशिष्टसम्बन्धिभ्यः ये चाऽस्मत्तोऽभिवाञ्छन्ति तेभ्यश्च ब्राह्मणभोजनात्मकसाङ्कल्पिकश्राद्धे सोपस्करं परिविष्टं परिवेक्ष्यमाणं च ब्राह्मणभोजनतृप्तिपर्यन्तम् इदमन्नं * भवद्भ्यो नमः 

- ऐसा कहकर संकल्प का जल नीचे छोड़ दे।

* (क) जो लोग ब्राह्मण भोजन न कराकर आमान्न से ही श्राद्ध करना चाहें, वे 'ब्राह्मणभोजनतृप्तिपर्यन्तम् इदमन्नम्' के स्थान पर 'ब्राह्मणभोजनतृप्तिपर्याप्तं सोपस्करमामान्नम्' बोलें।

(ख) आमान्न के श्राद्ध में पंचबलिकर्म की आवश्यकता नहीं है।

आगे की प्रक्रिया में आशीर्वादग्रहण, दक्षिणादान तथा प्रार्थना आदि कृत्य पृ०- १३ के अनुसार करने चाहिये ।

यदि आमान्न-दान भी सम्भव न हो तथा कोई सुपात्र ब्राह्मण न प्राप्त हो तो कम-से-कम गोग्रास निकालकर गौ को इस निमित्त खिला देना चाहिये ।

स्त्री, अनुपनीत द्विज तथा द्विजेतरों के द्वारा श्राद्ध करने की व्यवस्था

स्त्रियों तथा अनुपनीत द्विज जिन्होंने यज्ञोपवीत (जनेऊ) नहीं लिया एवं द्विजेतर उनके लिये भी शास्त्रानुसार श्राद्ध की जो प्रक्रिया यहाँ लिखी गयी है, उन्हें केवल निम्नलिखित बातों पर ध्यान देने की आवश्यकता है

(१) संकल्प में प्रणव ('') - के स्थान पर 'नमः' का उच्चारण करना चाहिये ।

(२) संकल्प में अपने नाम- गोत्र' के आगे 'शर्मा/ वर्मा/गुप्तोऽहम्' की जगह 'दासोऽहम्' बोलना चाहिये* तथा गोत्र में 'कश्यप गोत्र' कहना चाहिये। स्त्री करे तो 'अमुकी देवी' कहे।

*शर्मेति ब्राह्मणस्योक्तं वर्मेति क्षत्रसंश्रयम् ।

गुप्तदासात्मकं नाम प्रशस्तं वैश्यशूद्रयोः ॥ (विष्णुपुराण ३।१०।९ )

(३) जहाँ वैदिक मन्त्र हैं, उनका उच्चारण नहीं करना चाहिये। उनके स्थान पर नाम – मन्त्रों को बोलकर प्रक्रिया पूरी कर लेनी चाहिये ।*

* जो क्रिया की जा रही है, उसका उच्चारण करना ही नाम-मन्त्र है।

(४) जहाँ वैकल्पिक पौराणिक मन्त्र न हों, वहाँ अमन्त्रक सभी क्रियाएँ होंगी अर्थात् बिना मन्त्र बोले श्राद्ध की सम्पूर्ण क्रिया सम्पन्न होगी ।*

* स्त्रीशूद्राणां श्राद्धं मन्त्रवज्यं तूष्णीं भवति ।

स्त्रीणाममन्त्रकं श्राद्धं तथा शूद्रासुतस्य च ।

प्राद्विजाश्च व्रतादेशात्ते च कुर्युस्तथैव तत् ॥

(इति हेमाद्रिमरीचिवचनात्) (निर्णयसिन्धु तृतीयपरिच्छेद)

(५) पक्वान्न की जगह आमान्न से श्राद्ध करना चाहिये। पिण्डदान आदि का कार्य भी आमान्न – जौ के आटे अथवा चावल आदि से करने की विधि है तथा ब्राह्मण भोजन में भी आमान्न (सीधा) ब्राह्मण को दे देने से यह प्रक्रिया पूरी हो जाती है।*

*(क) आपद्यनग्नौ तीर्थे च चन्द्रसूर्यग्रहे तथा ।

आमश्राद्धं द्विजैः कार्यं शूद्रेण तु सदैव हि ॥ (श्राद्धविवेक)

(ख) अपत्नीकः प्रवासी च यस्य भार्या रजस्वला ।

आमश्राद्धं द्विजैः कार्यं शूद्रेण तु सदैव हि ॥ (श्राद्धविवेक)

शास्त्रानुसार इस प्रक्रिया से श्राद्ध के फल में कोई न्यूनता नहीं है।

श्राद्ध प्रकरण में आगे पढ़ें...... अशौच-विचार

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