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कर्मकाण्ड

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यंत्र मंत्र

यंत्र मंत्र

मंत्र अर्थात् एक विशेष ध्वनि अथवा शब्द। यंत्र अर्थात् एक चित्र या चक्र। मंत्र को जाप या ध्यान के रूप में उपयोग किया जाता है, तथा यंत्र जो विशेष मंत्र या उपासना के लिए बनाया जाता है और इसे ध्यान और उपासना के दौरान इस्तेमाल किया जाता है।

यंत्र मंत्र

यंत्र मंत्र

यंत्रों का केन्द्र बिन्दु 'सूर्य' है और इसका मूल शक्ति भी है। कर्म साधना पथ पर निर्दिष्ट स्थान पर पहुंचने के लिए शक्ति की अनिवार्यता असंदिग्ध है। इस सर्वव्यापी शक्ति के विभिन्न रूप हैं और 'महाकारण' में यह 'नाद' रूप में एवं 'कारण' में बिन्दु रूप से विद्यमान रहती है। 'सूक्ष्म' में जाने पर यह आनन्दप्रद शब्द रूप में प्रकटित है। उच्चारण रूप में 'शब्द' (1) परा (2) पश्यन्ती (3) वैखरी और (4) मध्यमा, इन चार रूपों में प्रस्फुटित होता है।

शब्द में ही विविध शक्तियों का समावेश है और कई शब्दों के संयोजित मेल से एक विशिष्ट शक्ति की आभा प्राप्त होती है। इस प्रकार के संघटित शब्दसमूह को ही मंत्र कहते हैं।

प्रत्येक मंत्र का एक 'प्रणेता' एवं एक 'देवता' होता है। साथ ही प्रत्येक मंत्र की एक 'अधिष्ठात्री शक्ति' भी होती है। इस 'अधिष्ठात्री शक्ति' के बार-बार स्मरण से जो तेज प्राप्त होता है, उसी तेज के सहारे मंत्र से सम्बन्धित देवता को जाग्रत किया जाता है एवं मानस चक्षुओं के सामने उसे साकार किया जाता है। तत्पश्चात् उस मंत्र एवं देवता को यंत्रबद्ध किया जाता है। यह एक कठिन श्रमसाध्य कार्य है, पर सच्चा साधक इस कंटकाकीर्ण पथ को भी पार कर लेता है।

यंत्रों की पूजा का भी एक विशेष प्रकार है और सिद्धि लाभ करने में कई विघ्न-बाधाओं का सामना करना पड़ता है। फलस्वरूप भगवान शिव ने कई यंत्रों व मंत्रों का कीलन कर दिया है अर्थात् कील ठोककर गुह्य बना दिया है। जो कीलित नहीं हैं, वे ही आजकल प्रचलित हैं। योग्य गुरु के सान्निध्य में रहकर कीलित यंत्र या मंत्र का भी उत्कीलन कर उसे सिद्ध किया जा सकता है।

यंत्र मंत्र

यंत्र-मंत्र साधना से पूर्व निम्न तथ्यों को ध्यान में रखना परमावश्यक है-

1. यंत्र

2. यंत्र ऋषि

3. देवता

4. बीज शब्द या मंत्र

5. शक्ति

6. कीलक

7. प्रयोजन

8. न्यास (क) अङ्ग न्यास (ख) हृदयादिन्यास

9. दिक्बन्ध

10. मंत्र जप

11. ध्यान

12. पूजा

13. महिमा

14. सिद्धि

यंत्र मंत्र

इसके अतिरिक्त प्रत्येक तंत्र-मंत्र में निम्न तत्त्व भी ध्यान में रखने चाहिए-

1. ऋषि- प्रत्येक मंत्र का एक ऋषि होता है। जिसने उसकी रचना की है।

2. छन्द - प्रत्येक मंत्र विशेष छन्दमय होता है।

3. देवता - प्रत्येक मंत्र का एक देवता होता है।

4. बीज- बीज वह है, जिससे मंत्र का उदय हो ।

5. शक्ति- शक्ति वह है, जो साधक को निर्दिष्ट ध्येय तक पहुंचाने में उसे बल प्रदान करे।

6. कीलक- कीलक वह कहलाता है, जो इस शक्ति को लक्ष्य तक पहुंचाने में साधक को दृढ़ रखे।

7. प्रयोजन- जिस कार्य के लिए यह किया जाता है।

यंत्र मंत्र विशेष

करन्यासों के अंत में 'नमः' शब्द आता है। हृदयादिन्यास के अंत में 'नमः' शब्द ही आता है, पर सिर के सम्बन्ध में 'स्वाहा', शिखा के सम्बन्ध में 'वषट्', कवच के सम्बन्ध में 'हुम्', नेत्र के सम्बन्ध में 'वौषट्' और अस्त्र के सम्बन्ध में 'फट्' शब्द आता है। ये सब गुप्त रहस्यपूर्ण शब्द हैं, जो इन कार्यों के लिए विशेष रूप से नियुक्त हैं। इन सब मुद्रा चेष्टाओं का रहस्य है, कि सम्बन्धित साधना के दौरान शरीर को सब ओर से मंत्रमय सुरक्षित कर देना, जिससे कि लक्ष्य तक पहुंचा जा सके।

यंत्र मंत्र

किसी भी तंत्र-मंत्र साधना में समय का विचार आवश्यक है। कितनी ही कठोर साधना की जाय, यदि उसकी शुद्धि की ओर ध्यान न दिया जाय, तो सारा प्रयत्न निरर्थक-सा हो जाता है।

मास

यंत्र-मंत्र सिद्ध करने के लिए वैसाख, कार्तिक, आश्विन और माघ शुभ महीने माने गये हैं। यों अत्यावश्यक होने पर किसी भी महीने में इसका प्रयोग किया जा सकता है, पर 'आषाढ़ शुक्ला एकादशी से आश्विन कृष्णा अमावस्या' तक का समय सर्वथा वर्जित है।

तिथियां

शुक्ल पक्ष की द्वितीया, पंचमी, सप्तमी, अष्टमी, दशमी एवं पूर्णमासी विशेष शुभ तिथियां मानी गई हैं।

वार

रवि, बुध, गुरु एवं शुक्र श्रेष्ठ वार हैं।

नक्षत्र

कृतिका, रोहिणी, पुनर्वसु, हस्त, तीनों उत्तरा, अनुराधा एवं श्रवण नक्षत्र शुभ हैं।

लग्न

स्थिर लग्न - वृष, सिंह, वृश्चिक, कुम्भ ।

स्थान

तीर्थ भूमि, गंगा-यमुना संगम, नदी तीर, पर्वत-गुफायें, एकान्त देव मंदिर शुभ हैं, पर ये सुलभ न हों, तो घर का एकान्त कमरा उपयोग में लिया जा सकता है।

यंत्र मंत्र

पूजन से पूर्व कुछ तथ्यों की जानकारी साधक को कर लेनी चाहिए-

सामग्री एकत्र कर स्वयं धुले हुए वस्त्र पहिनें। धोबी के धुले कपड़े न पहिनें, बल्कि घर के धुले हों।

अन्न शुद्ध हो, अपनी पत्नी के द्वारा पकाया गया हो या निकट सम्बन्धी के द्वारा पकाया गया हो।

प्याज, लहसुन आदि तामसी भोजन, शराब आदि का त्याग।

किसी दूसरे की कमाई का भोजन न हो। अशुद्ध स्थान पर न तो पकाया जाय, न भोजन किया जाय।

कुत्ते, बिल्ली, चाण्डाल आदि के स्पर्श से निमित्त दोष लगता है, इस ओर ध्यान रखना चाहिए।

रूखा, बासी और अशुद्ध भोजन न किया जाय ।

जितना आवश्यक हो, उससे कम ही भोजन किया जाय।

कांसे के बर्तन में भोजन न करें।

स्त्री संसर्ग, स्त्री चर्चा त्याज्य हो (साधना के दिनों में ) ।

क्षौर कर्म न करें।

संध्या, गायत्री स्मरण निश्चित हो ।

नग्नावस्था में, बिना स्नान के अपवित्र हाथ से, सिर पर कपड़ा रखकर भी जप करना निषिद्ध है।

जप के समय माला पूरी हुए बिना बातचीत नहीं करनी चाहिए।

छींक, अपृश्य, अपानवायु होने पर हाथ धोने तथा कानों को जल से स्पर्श करें।

आलस्य, जम्हाई, छींक, नींद, थूकना, डरना, अपवित्र वस्त्र, बातचीत, क्रोध आदि जप काल में वर्जित है।

पहले दिन जितना जप किया जाय, रोज उतना ही जप करें, इसे घटाना बढ़ाना उचित नहीं ।

जप काल में शौच जाने पर पुनः स्नान कर जप में बैठें।

यंत्र मंत्र जप काल के नियम

जपकाल में निम्न नियमों का भी पालन किया जाना चाहिए-

1. भूमि शयन

2. ब्रह्मचर्य

3. नित्य स्नान

4. मौन

5. नित्य दान

6. गुरु सेवा

7. पापकर्म परित्याग

8. नित्य पूजा

9. देवतार्चन

10. इष्टदेव व गुरु में श्रद्धा

11. जप निष्ठा

12. पवित्रता

पूजन कार्य प्रारम्भ करने से पूर्व मंत्र उच्चारण करें, पर मंत्र उच्चारण से पूर्व मुख शुद्धि जरूरी है। अशुद्ध जिह्वा से जपा हुआ मंत्र निष्फल होता है।

मल शोधन

मल तीन प्रकार के होते हैं, इन तीनों प्रकार के मलों का त्याग करें-

1. भोजन का मल

2. असत्य कथन का मल

3. कलह का मल

मुख शोधन

इस मल निवृत्ति एवं मुख शोधन के लिए जिस देवता का मंत्र हो, उससे सम्बन्धित मुख शोधन मंत्र का दस बार उच्चारण किया जाना चाहिए। मंत्र निम्न हैं-

दुर्गा- ऐं ऐं ऐं

बगलामुखी- ऐं ह्रीं ऐं

मातंगी- ॐ ऐं ॐ

लक्ष्मी- श्रीं

त्रिपुरसुन्दरी- श्रीं ॐ श्रीं ॐ श्रीं ॐ

धनदा- ॐ धूं ॐ

गणेश- ॐ गं

विष्णु- ॐ हृं

पंचांगुली- ऐं ह्रीं ऐं ह्रीं ऐं ह्रीं

इसके अतिरिक्त अन्य देवताओं की साधना में दस बार ॐ का ही उच्चारण करना चाहिए।

यह कार्य मुख शोधन कहलाता है।

प्राण योग तथा दीपनी

प्राणयोग

ह्रीं (मूलमंत्र )

इसका सात बार उच्चारण करने से मंत्र प्राणमय हो जाता है।

दीपनी

दीपनी (मंत्र) का सात बार उच्चारण करना चाहिए।

मंत्र सिद्धि

मंत्र सिद्धि के लिए सात उपाय हैं-

1. भ्रामण

2. रोधन

3. वश्य

4. पीड़न

5. पोषण

6. शोषण

7. दाहन

अलग-अलग मंत्रों के लिए अलग-अलग उपाय निर्धारित हैं।

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