काल ज्ञान मंत्र
यह काल ज्ञान मंत्र वराहमिहिर
द्वारा रचित है। इस मंत्र को सिद्ध कर लेने से किसी का भी भूत, भविष्य व वर्तमान चलचित्र की भांति दिखाई देने लग जाता है। सवा लक्ष जपने
पर यह मंत्र पूर्ण सिद्धि हो जाता है। अथवा किसी विशेष कामना से केवल एक सौ आठ मंत्र
का भी अनुष्ठान किया जा सकता है।
कालज्ञान मंत्र
Kaal gyan mantra
काल ज्ञान मंत्र साधना
ॐ नमो भगवते ब्रह्मानन्दपदः
गोलोकादि असंख्य ब्रह्माण्ड भुवन नाथाय शशांक शंख गोक्षीर कर्पूर धवल गात्राय,
नीलांभोधि जलद पटलाधिव्यक्तस्वरूपाय व्याधिकर्म निर्मूलोच्छेदन कराय,
जाति जरामरण विनाशाय, संसारकान्तारोन्मूलनाय,
अचिन्त्य बल पराक्रमाय, अति प्रतिमाह चक्राय,
त्रैलोक्याधीश्वराय, शब्दैके
त्रैलोक्याधिनरिवल भुवन कारकाय, सर्वसत्व हिताय, निज भक्ताय, अभीष्ट फल प्रदाय, भक्त्याधीनाय सुरासुरेन्द्रादि
मुकुटकोटि धृष्टपाद पीठाय, अनन्त युग
नाथाय, देवाधिदेवाय, धर्मचक्राधीश्वराय,
सर्व विद्या परमेश्वराय, कुविद्याविघ्न प्रदाय
।
तत्पादपंकजाश्रयानि यवनी देवी सासन
देवते त्रिभुवन संक्षोभनी, त्रैलोक्य
शिवापहारकारिणी श्री अद्भुत जातवेदा श्री महालक्ष्मी देवी (अमुकस्य)
स्थावर जंगम कृत्रिम विषमुख संहारिणी सर्वाभिचार कर्मापहारिणी परविद्याछेदनी
परमंत्र प्रनाशिनी अष्ट महानाग कुलोच्चाटनी कालदंष्ट्र मृत कोत्यापिनी (अमुकस्य)
सर्वरोग प्रमोचनी, ब्रह्माविष्णुरुद्रेन्द्र
चन्द्रादित्यादिग्रह नक्षत्रोत्पात मरण भय पीड़ा मर्दिनी त्रैलोक्य विश्वलोक वशंकर,
भुविलोक हितंकरि महाभैरवि भैरव शस्त्रोपधारिणि रौद्रे, रौद्ररूप धारी प्रसिद्धे, सिद्ध विद्याधर यक्ष
राक्षस गरुड़ गंधर्व किन्नर किं पुरुषदैत्योरगेन्द्र पूजिते ज्वालापात कराल
दिगंतराले महावृषभ वाहिनी, खेटक कृपाण त्रिशूल शक्ति चक्रपाश
शरासन शिव विराजमान षोडशार्द्ध भुजे ।
एहि एहि लं ज्वाला मालिनी ह्रीं
ह्रीं ब्रुं ह्रां ह्रीं ह्रं ह्रौं ह्र: देवान् आकर्षय आकर्षय,
नाग ग्रहान् आकर्षय आकर्षय, यक्ष ग्रहान्
आकर्षय आकर्षय, गंधर्व ग्रहान् आकर्षय आकर्षय, ब्रह्म ग्रहान् आकर्षय आकर्षय, राक्षस ग्रहान् आकर्षय
आकर्षय, भूतग्रहान् आकर्षय आकर्षय, दिव्यतर
ग्रहान् आकर्षय आकर्षय, चतुराशि जैन्य मार्ग ग्रहान् आकर्षय
आकर्षय, चतुर्विंशति जिनग्रहान् आकर्षय आकर्षय, सर्व जटिल ग्रहान् आकर्षय आकर्षय, अखिल मुंडित
ग्रहान् आकर्षय आकर्षय, जंगम ग्रहान् आकर्षय आकर्षय, सर्व दुर्गेशादि विद्याग्रहान् आकर्षय आकर्षय, सर्व
नाग निग्रह वासी ग्रहान् आकर्षय आकर्षय।
सर्व जलाशय वासी ग्रहान् आकर्षय
आकर्षय, सर्व स्थल वासी ग्रहान् आकर्षय
आकर्षय, सर्वान्तरिक्षवासी ग्रहान् आकर्षय आकर्षय, सर्व श्मशान वासी ग्रहान् आकर्षय आकर्षय, सर्व पव
वासी ग्रहान् आकर्षय आकर्षय, सर्व धर्म शापादि गो शाप
ग्रहान् आकर्षय आकर्षय, सर्व गिरिगुहा दुर्गवासी ग्रहान्
आकर्षय आकर्षय, श्रापित ग्रहान् आकर्षय आकर्षय, सर्व दुष्ट ग्रहान् आकर्षय आकर्षय, सर्व नाथपंथी
ग्रहान् आकर्षय आकर्षय, सर्व भूवासी प्रेत ग्रहान् आकर्षय
आकर्षय, वक्र पिंड ग्रहान् आकर्षय आकर्षय, कट कट कंपय कंपय शीर्षं चालय, शीर्षं चालय, गात्रं चालय गात्रं चालय बाहुं चालय बाहुं चालय पादं चालय पादं चालय,
कर पल्लवान चालय कर पल्लवान चालय सर्वांगं चालय सर्वांगं चालय लोलय
लोलय धुन धुन कंपय कंपय शीघ्रं भव तारय तारय ग्रहि ग्रहि ग्राह्य ग्राह्य अक्षय
अक्षय आवेशय आवेशय ।
ज्वलूं ज्वलूं ज्वालामालिनीं ह्रां
क्कीं ब्लूं द्रां द्रां ज्वल ज्वल र र र र र र र प्रज्वल प्रज्वल धग धग धूमाक्ष
करणी ज्वल विशोषय विशोषय देव ग्रहान् दह दह नाग ग्रहान् दह दह यक्ष ग्रहान् दह दह
गंधर्व ग्रहान् दह दह ब्रह्म ग्रहान् दह दह राक्षस ग्रहान् दह दह भूत ग्रहान् दह
दह दिव्यन्तर ग्रहान् दह दह चतुराशि जैन्य मार्ग ग्रहान् दह दह चतुर्विंश जिन
ग्रहान् दह दह सर्व जटिल ग्रहान् दह दह अखिल मुंडित ग्रहान् दह दह सर्व जंगम
ग्रहान् दह दह सर्व दुर्गेशादि विद्या ग्रहान् दह दह सर्व नाग निग्रह वासी ग्रहान्
दह दह सर्व स्थलवासी ग्रहान् दह दह सर्वान्तरिक्ष वासी ग्रहान् दह दह श्मशान वासी
ग्रहान् दह दह ।
सर्व पवनाहार्त ग्रहान् दह दह सर्व
धर्म शापादि गोशापवासी ग्रहान् दह दह सर्व गिरिगुहा दुर्ग वासी ग्रहान् दह दह
श्रापित ग्रहान् दह दह सर्व नाथ पंथी ग्रहान् दह दह सर्व भूवासी प्रेत ग्रहान् दह
दह (अमुक गृहे) असद्गति ग्रहान् दह
दह वक्रपिण्ड ग्रहान् दह दह सर्वदुष्ट ग्रहान् दह दह शतकोटि योजने दोषदायी ग्रहान्
दह दह सहस्रकोटि योजने दोषदायी ग्रहान् दह दह आसमुद्रात् पृथ्वी मध्ये देवभूत
पिशाचादि (अमुकस्य) परिकृत दोषान् तस्य दोषान् दह दह शत्रुकृताभिचार दोषान्
दह दह घे घे स्फोटय स्फोटय मारय मारय धगि धगि धागत मुखे ज्वालामालिनी ह्रां ह्रीं
हृं ह्रैं ह्रौं ह्रः सर्व ग्रहाणां हृदये दह दह पच पच छिन्दी छिन्दी भिन्दी
भिन्दी दह दह हा हा स्फुट स्फुट घे घे।
क्ष्म्लुं क्षां क्षीं क्षुं क्षें
क्षौं क्षः स्तंभय स्तंभय। भ्भ्लुं भ्रां भ्रीं भ्रुं भ्रें भ्रौं भ्रः बाडय बाडय
। म्म्लुं म्रां म्रीं म्रुं म्रें म्रौं म्रः नैत्रं स्फोटय स्फोटय दर्शय दर्शय ।
य्म्लुं यां यीं युं यें यौं यः प्रेषय प्रेषय । घ्म्लुं घ्रां घ्रीं घ्रुं घ्रें घ्रौं
घ्रः जठरं भेदय भेदय । ग्म्लुं ग्रां ग्रीं ग्रुं ग्रें ग्रौं ग्रः मुखं बंधय बंधय
। ख्म्लुं खां खीं खुं खें खौं खः ग्रीवां भंजय भंजय । छप्लुं छ्रां छ्रीं छूं छ्रें
छ्रौं छ्रः अस्त्रान् भेदय भेदय । ढप्लुं ढ्रां ढ्रीं ढ्रुं ढ्रें ढ्रौं ढ्रः
महाविद्युत्पाषाणा स्त्रैहन स्त्रैहन । व्म्प्रुं व्रां व्रीं व्रुं व्रें व्रौं
व्रः समुद्रे मज्जय मज्जय । द्म्प्रुं द्रां द्रीं द्रुं द्रें द्रौं द्रः सर्व
डाकिनी सुन्दरीं मर्दय मर्दय सर्व योगिनीं सर्वज्जय सवर्ज्जय।
सर्व शत्रूं ग्रासय ग्रासय ख ख ख ख
ख ख ख खादय खादय सर्व दैत्यान् विध्वंसय विध्वंसय सर्व मृत्युं नाशय नाशय
सर्वोपद्रवान् स्तंभय स्तंभय जः जः जः जः जः जः जः ज्वरान् दह दह पच पच घुमु घुमु
घुरु घुरु खरु खरु खंग रावण सुविद्यायां घातय घातय अखिल रुजान् दोषोदयान् कृत
कार्येणाभिचारोत्थान (अमुकस्य) देहे
स्थितान् अधुना रुजकारकान् चन्द्रहास शस्त्रेण छेदय छेदय भेदय भेदय उरु उरु छरु
छरु स्फुट स्फुट घे घे आं क्रौं क्षीं क्षं क्षें क्षौं क्ष: ज्वालामालिनी (अमुकस्य)
सौख्यं कुरु कुरु निरुजं कुरु कुरु अभिलषित कामनां देहि देहि ज्वाला मालिनीं विज्ञापयते
स्वाहा ।
इति: वराहमिहिर कृत कालज्ञान मंत्र ॥
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