Slide show
Ad Code
JSON Variables
Total Pageviews
Blog Archive
-
▼
2024
(491)
-
▼
February
(30)
- बगला कवच स्तोत्र
- अग्निपुराण अध्याय ९४
- अग्निपुराण अध्याय ९३
- धूमावती नामाष्टक स्तोत्र
- छिन्नमस्ता कवच
- अद्भुत रामायण सर्ग ११
- पंचांग भाग २
- अग्निपुराण अध्याय ९२
- अग्निपुराण अध्याय ९१
- अद्भुत रामायण सर्ग १०
- संकटा सहस्रनाम स्तोत्र
- दशपदी स्तुति
- सप्तशतीसहस्रम्
- अद्भुत रामायण सर्ग ९
- यक्षिणी साधना
- भैरवी
- अग्निपुराण अध्याय ९०
- अग्निपुराण अध्याय ८९
- अग्निपुराण अध्याय ८८
- भैरवी स्तोत्र
- अग्निपुराण अध्याय ८७
- अग्निपुराण अध्याय ८६
- अग्निपुराण अध्याय ८५
- पातकदहन भुवनेश्वरी कवच
- महाविद्या कवच
- तारा कवच
- अग्निपुराण अध्याय ८४
- अद्भुत रामायण सर्ग ८
- मनुस्मृति अध्याय ४
- अद्भुत रामायण सर्ग ७
-
▼
February
(30)
Search This Blog
Fashion
Menu Footer Widget
Text Widget
Bonjour & Welcome
About Me
Labels
- Astrology
- D P karmakand डी पी कर्मकाण्ड
- Hymn collection
- Worship Method
- अष्टक
- उपनिषद
- कथायें
- कवच
- कीलक
- गणेश
- गायत्री
- गीतगोविन्द
- गीता
- चालीसा
- ज्योतिष
- ज्योतिषशास्त्र
- तंत्र
- दशकम
- दसमहाविद्या
- देवी
- नामस्तोत्र
- नीतिशास्त्र
- पञ्चकम
- पञ्जर
- पूजन विधि
- पूजन सामाग्री
- मनुस्मृति
- मन्त्रमहोदधि
- मुहूर्त
- रघुवंश
- रहस्यम्
- रामायण
- रुद्रयामल तंत्र
- लक्ष्मी
- वनस्पतिशास्त्र
- वास्तुशास्त्र
- विष्णु
- वेद-पुराण
- व्याकरण
- व्रत
- शाबर मंत्र
- शिव
- श्राद्ध-प्रकरण
- श्रीकृष्ण
- श्रीराधा
- श्रीराम
- सप्तशती
- साधना
- सूक्त
- सूत्रम्
- स्तवन
- स्तोत्र संग्रह
- स्तोत्र संग्रह
- हृदयस्तोत्र
Tags
Contact Form
Contact Form
Followers
Ticker
Slider
Labels Cloud
Translate
Pages
Popular Posts
-
मूल शांति पूजन विधि कहा गया है कि यदि भोजन बिगड़ गया तो शरीर बिगड़ गया और यदि संस्कार बिगड़ गया तो जीवन बिगड़ गया । प्राचीन काल से परंपरा रही कि...
-
रघुवंशम् द्वितीय सर्ग Raghuvansham dvitiya sarg महाकवि कालिदास जी की महाकाव्य रघुवंशम् प्रथम सर्ग में आपने पढ़ा कि-महाराज दिलीप व उनकी प...
-
रूद्र सूक्त Rudra suktam ' रुद्र ' शब्द की निरुक्ति के अनुसार भगवान् रुद्र दुःखनाशक , पापनाशक एवं ज्ञानदाता हैं। रुद्र सूक्त में भ...
Popular Posts
अगहन बृहस्पति व्रत व कथा
मार्तण्ड भैरव स्तोत्रम्
यक्षिणी साधना
कामरत्न नामक तन्त्र-ग्रन्थ में
यक्षिणी-साधना की विधियों का वर्णन उल्लिखित है। यहाँ उन्ही में से कुछ को दिया
जाता है।
यक्षिणी साधना भाग १
Yakshini sadhana
यक्षिणी क्या है ?
हिन्दू धर्मशास्त्रों में मनुष्येतर
जिन प्राणि-जातियों का उल्लेख हुआ है, उनमें
देव, गन्धर्व, यक्ष, किन्नर, नाग, राक्षस, पिशाच आदि प्रमुख हैं। इन जातियों के स्थान जिन्हें 'लोक' कहा जाता है-भी मनुष्य जाति के प्राणियों से
भिन्न पृथ्वी से कहीं अन्यत्र अवस्थित हैं ।
इनमें से कुछ जातियों का निवास आकाश
में और कुछ का पाताल में माना जाता है । इन जातियों का मुख्य गुण इनकी सार्वभौमिक
सम्पन्नता है, अर्थात् इनके लिए किसी वस्तु को
प्राप्त कर लेना अथवा प्रदान कर देना सामान्य बात है। ये जातियाँ स्वयं विविध
सम्पत्तियों की स्वामिनी हैं। मनुष्य जाति का जो प्राणी इनमें से किसी भी जाति के किसी
प्राणी की साधना करता है अर्थात् उसे जप, होम, पूजन आदि द्वारा अपने ऊपर अनुरक्त कर लेता है, उसे
ये मनुष्येतर जाति के प्राणी उसकी अभिलाषित वस्तु प्रदान करने में समर्थ होते हैं
। इन्हें अपने ऊपर प्रसन्न करने एवं उस प्रसन्नता द्वारा अभिलषित वस्तु प्राप्त
करने की दृष्टि से ही इनका विविध मन्त्रोपचार आदि के द्वारा साधन किया जाता है
जिसे प्रचलित भाषा में 'सिद्धि' कह कर
पुकारा जाता है। यक्षिणियाँ भी मनुष्येतर जाति की प्राणी हैं। ये यक्ष जाति के
पुरुषों की पत्नियाँ हैं और इनमें विविध प्रकार की शक्तियाँ सन्निहित मानी जाती
हैं। विभिन्न नामधारिणी यक्षिणियाँ विभिन्न शक्तियों से सम्पन्न हैं- ऐसी
तान्त्रिकों की मान्यता है। अतः विभिन्न कार्यों की सिद्धि एवं विभिन्न अभिलाषाओं
की पूर्ति के लिए तंत्रशास्त्रियों द्वारा विभिन्न यक्षिणियों के साधन की क्रियाओं
का आविष्कार किया गया है । यक्ष जाति चूँकि चिरंजीवी होती है, अतः यक्षिणियाँ भी प्रारम्भिक काल से अब तक विद्यमान हैं और वे जिस साधक
पर प्रसन्न हो जाती हैं, उसे अभिलषित वर अथवा वस्तु प्रदान
करती हैं ।
अब से कुछ सौ वर्षं भारतवर्ष में
यक्ष-पूजा का अत्यधिक प्रचलन था । अब भी उत्तर भारत के कुछ भागों में 'जखैया' के नाम से यक्ष- पूजा प्रचलित है ।
पुरातत्त्व विभाग द्वारा प्राचीन काल में निर्मित यक्षों की अनेक प्रस्तर
मूर्तियों की खोज की जा चुकी है। देश के विभिन्न पुरातत्त्व संग्रहालयों में यक्ष
तथा यक्षिणियों की विभिन्न प्राचीन मूर्तियाँ भी देखने को मिल सकती हैं।
कुछ लोग यक्ष तथा यक्षिणियों को
देवता तथा देवियों की ही एक उपजाति के रूप में मानते हैं और उसी प्रकार उनका पूजन
तथा आराधनादि भी करते है। इनकी संख्या सहस्रों में हैं।
कामरत्नोक्त यक्षिणी साधना विधि
उक्त ग्रन्थ में लिखा है कि साधन-काल में तथा उसके पश्चात् साधक को चाहिए कि वह मांस, मदिरा एवं ताम्बूल (पान) का परित्याग कर दे और किसी का स्पर्श न करे । साधनकाल में प्रतिदिन प्रातःकाल नित्यकर्म से निवृत्त हो, स्नान करके, किसी एकान्त स्थान में मृगचर्म पर बैठकर मन्त्र का तब तक जप करे जब तक कि सिद्धि प्राप्त न हो। जिस यक्षिणी के साधन में जिस विधि का उल्लेख किया गया हैं उसी के अनुसार आचरण करना चाहिए । यक्षिणी का ध्यान करते समय उसका माता, भगिनी, पुत्री अथवा मित्र के रूप में चिन्तन करना चाहिए ।
यक्षिणी साधना
विभ्रमा यक्षिणी साधना
मन्त्रः--
'ॐ ह्रीं विभ्रमरूपे
विभ्रमं कुरु कुरु ऐह्ये हि भगवती स्वाहा । "
साधन विधि - श्मशान में बैठकर,
मौन धारण कर, इस मन्त्र का तब तक जप करे,
जव तक मनवांछित फल को देने वाली विभ्रमा यक्षिणी प्रकट न हो । साधक
को चाहिए कि वह साधनकाल में एकाग्रमन से साधन करे तथा निश्चिन्त रहे। डरे नहीं।
गूगल और घी का दशांश हवन करे। इस विधि से साधन करने पर 'विभ्रमा'
यक्षिणी प्रसन्न होकर साधक को अभीप्सित फल प्रदान करती है ।
रतिप्रिया यक्षिणी साधना
मन्त्रः-
“ॐ ह्रीं रतिप्रिये
स्वाहा ।"
साधन विधि - भोजपत्र पर कुंकुम
द्वारा एक ऐसी देवी का चित्र बनाए जो गौर वर्णं, आभूषणों से सुसज्जित एवं कमलपुष्पों से अलंकृत हो । श्वेत कागज पर भी यह
चित्र बनाया जा सकता है। तदुपरान्त उस चित्र का चमेली के फूलों से पूजन करे तथा
उक्त मन्त्र का एक सहस्र जप करे। इस क्रिया को सात दिन तक, तीनों
समय करना चाहिए । अर्थात् प्रतिदिन ३००० मंत्र का जप और तीन बार पूजनादि की क्रिया
करनी चाहिये। साधन पूरा होने पर अर्द्धरात्रि के समय 'रतिप्रिया
यक्षिणी' प्रसन्न होकर साधक को पच्चीस स्वर्ण मुद्रा प्रदान
करती है—ऐसा तंत्रशास्त्र का कथन है ।
सुरसुन्दरी यक्षिणी साधना
मन्त्रः-
“ॐ ह्रीं आगच्छ आगच्छ
सुन्दरि स्वाहा ।"
साधन विधि - दिन में तीन बार एकलिंग
महादेव का पूजन करे तथा उक्त मंत्र को तीनों काल में तीन-तीन हजार जपे । एक मास तक
इस प्रकार साधन करने से 'सुरसुन्दरी यक्षिणी'
प्रसन्न होकर साधक के समीप आती है। जब यक्षिणी प्रकट हो, उस समय साधक को चाहिये कि वह उसे अर्घ्य देकर प्रणाम करे। जब यक्षिणी यह
प्रश्न करे -"तूने मुझे कैसे स्मरण किया?" उस समय
साधक यह कहे - "हे कल्याणी ! मैं दरिद्रता से दग्ध हूँ । आप मेरे दोष को दूर
करें।" यह सुनकर यक्षिणी प्रसन्न होकर साधक को दीर्घायु एवं धन प्रदान करती
है।
अनुरागिणी यक्षिणी साधना
मन्त्रः---
"ॐ ह्रीं अनुरागिणि
मैथुनप्रिये स्वाहा ।"
साधन विधि - इस मन्त्र को भोजपत्र
के ऊपर कुकुम से लिखकर, किसी भी प्रतिपदा
से पूजन आरम्भ करे । त्रिकाल में तीन सहस्र मंत्र का जप करे। एक महीने तक इस जप के
करने के बाद रात्रि में करे तो अर्द्धरात्रि के समय यक्षिणी साधक पर प्रसन्न होकर,उसे एक सहस्र स्वर्ण- मुद्रा प्रदान करती है-ऐसा तन्त्र शास्त्रों का कथन
है ।
जलवासिनी यक्षिणी साधना
मन्त्रः--
“ॐ भगवन् समुद्रदेहि
रत्नानिजलवासो ह्रीं नमस्तुते स्वाहा ।"
साधन विधि- समुद्र तट पर बैठकर,
इस मन्त्र का एक लाख जप करने से 'जलवासिनी'
यक्षिणी प्रसन्न होकर साधक को उत्तम रत्न प्रदान करती हैं, ऐसा तन्त्रशास्त्रों में लिखा है ।
वटवासिनी यक्षिणी साधना
मन्त्रः---
ॐ ह्रीं विटपवासिनि यक्षकुलप्रसूते
वटयक्षिणि ऐह्ये हि स्वाहा ।"
साधन विधि-त्रिराहे पर जहाँ वटवृक्ष
हो,
वहाँ पवित्र होकर, बैठकर, इस मन्त्र को तीन लाख जप करे तो 'वटवासिनी यक्षिणी'
प्रसन्न होकर साधक को वस्त्र, अलंकार और
दिव्यांजन प्रदान करती है - ऐसा तंत्रशास्त्रों का कथन है ।
चण्डवेगा यक्षिणी साधना
मन्त्रः-
(१) “ॐ नमश्चन्द्राद्यावा कर्णकारण स्वाहा ।"
(२) "ॐ नमो भगवते रुद्राय
चण्डवेगिने स्वाहा । "
साधन विधि - वटवृक्ष के ऊपर चढ़कर
मौन धारण करके, उक्त दोनों में से किसी भी एक
मंत्र को एक लाख बार जपे । तदुपरान्त सात बार मंत्र पढ़कर कांजी से अपने मुख का
प्रक्षालन करे। रात्रि के समय में तीन महीने तक इस विधि से जप करने पर 'चण्डवेगा यक्षिणी' प्रसन्न होकर साधक को दिव्य रसायन
प्रदान करती है । तन्त्रशास्त्र के अनुसार ये दोनों मंत्र भगवान् शंकर ने स्वयं
कहे हैं।
विशाला यक्षिणी साधना
मंत्र:-
“ॐ ऐं विशाले क्रीं
ह्रीं श्रीं क्लीं कीं स्वाहा ।"
साधन विधि-चिरमिटी के वृक्ष के नीचे
पवित्र होकर इस मंत्र का एक लाख जप करे तथा सौंफ के फूलों को घी में मिलाकर हवन करे
तो 'विशाला यक्षिणी' प्रसन्न होकर साधक को दिव्य रसायन
भेंट करती है।
महाभया यक्षिणी साधना
मन्त्र :-
"ॐ क्रीं महाभये क्लीं स्वाहा
।"
साधन विधि - साधक मनुष्य की
हड्डियों की माला बनाकर कण्ठ में, दोनों हाथों
में तथा दोनों कानों में धारण करे, तत्पश्चात् निर्भय और पवित्र
होकर एक लाख मंत्र का जप करे तो 'महाभया यक्षिणी' प्रसन्न होकर साधक को एक रसायन देती है, जिसे खाने
से सब प्रकार के रत्न हस्तगत होते हैं।
चन्द्रिका यक्षिणी साधना
मन्त्रः
"ॐ ह्रीं चन्द्रिके हंसः क्रीं
क्लीं स्वाहा ।"
साधन विधि - इस मंत्र को शुक्ल पक्ष
की प्रतिपदा से प्रारम्भ कर, पूर्णिमा तक 8
लाख की संख्या में तब तक जपे, जब तक कि चन्द्रमा दीखता रहे ।
साधन पूरा होने पर 'चन्द्रिका यक्षिणी' प्रसन्न होकर साधक को अमृत प्रदान करती है जिसे पीकर साधक चिरजीवी होता
है।
रक्तकम्बला यक्षिणी साधना
मन्त्रः--
“ॐ ह्रीं रक्त कम्बले
महादेवि मृतकमुत्थापय प्रतिमां चालय पर्वतान् कम्पय नीलयविलसत हुं हुं स्वाहा
।"
साधन विधि - इस मंत्र का तीन महीने
तक जप करने से 'रक्त- कम्बला यक्षिणी' प्रसन्न होकर मृतक को जीवित कर देती है तथा प्रतिमाओं को चलायमान कर देती
है-ऐसा तंत्रशास्त्र का कथन है ।
विद्युज्जिह्वा
यक्षिणी साधना
मंत्र:-
“ॐ कारमुखे
विद्युजिह्व ॐ हुं चेटके जय जय स्वाहा ।"
साधन विधि - इस मंत्र को १०८ बार जप
कर वटवृक्ष के नीचे थोड़े से मीठे भोजन का बलिदान करे। इस प्रकार एक मास तक
निरन्तर साधन करने से 'विद्युज्जिह्वा
यक्षिणी' स्वयं प्रकट होकर साधक के हाथ से भोजन ग्रहण करती
है तथा उसे यह वर देती है कि मैं सदैव तेरे समीप बनी रहूँगी और साधक को भूत,
भविष्यत् तथा वर्तमान तीनों काल की बात बता देती है ।
कर्णपिशाचिनी
यक्षिणी साधना
मन्त्रः--
"ॐ क्रीं समान शक्ति भगवति
कर्णे पिशाचिनी चण्डरोषिणि वद वद स्वाहा ।"
साधन विधि- पहले इस मंत्र का १००००
जप करे,
फिर ग्वार- पाठे को दोनों हाथों पर मलकर शयन करे तो शयन के समय में 'कर्ण पिशाचिनी यक्षिणी' समस्त शुभाशुभ फल को कह जाती
है ।
चामुण्डा यक्षिणी साधना
मन्त्रः-
ॐ क्रीं आगच्छ आगच्छ चामुण्डे श्रीं
स्वाहा ।"
साधन विधि-मिट्टी और गोबर से पृथ्वी
को लीपकर उस पर कुशा विछा दे, फिर पंचोपचार
एवं नैवेद्य से देवी का पूजन कर, रुद्राक्ष की माला से उक्त
मंत्र का दस लाख जप करे तो 'चामुण्डा यक्षिणी' प्रसन्न होकर सोते समय अर्द्धरात्रि में साधक को सभी शुभाशुभ फल स्वप्न
में कह देती है।
आगे जारी...........यक्षिणी साधना भाग 2
Related posts
vehicles
business
health
Featured Posts
Labels
- Astrology (7)
- D P karmakand डी पी कर्मकाण्ड (10)
- Hymn collection (38)
- Worship Method (32)
- अष्टक (54)
- उपनिषद (30)
- कथायें (127)
- कवच (61)
- कीलक (1)
- गणेश (25)
- गायत्री (1)
- गीतगोविन्द (27)
- गीता (34)
- चालीसा (7)
- ज्योतिष (32)
- ज्योतिषशास्त्र (86)
- तंत्र (182)
- दशकम (3)
- दसमहाविद्या (51)
- देवी (190)
- नामस्तोत्र (55)
- नीतिशास्त्र (21)
- पञ्चकम (10)
- पञ्जर (7)
- पूजन विधि (80)
- पूजन सामाग्री (12)
- मनुस्मृति (17)
- मन्त्रमहोदधि (26)
- मुहूर्त (6)
- रघुवंश (11)
- रहस्यम् (120)
- रामायण (48)
- रुद्रयामल तंत्र (117)
- लक्ष्मी (10)
- वनस्पतिशास्त्र (19)
- वास्तुशास्त्र (24)
- विष्णु (41)
- वेद-पुराण (691)
- व्याकरण (6)
- व्रत (23)
- शाबर मंत्र (1)
- शिव (54)
- श्राद्ध-प्रकरण (14)
- श्रीकृष्ण (22)
- श्रीराधा (2)
- श्रीराम (71)
- सप्तशती (22)
- साधना (10)
- सूक्त (30)
- सूत्रम् (4)
- स्तवन (109)
- स्तोत्र संग्रह (711)
- स्तोत्र संग्रह (6)
- हृदयस्तोत्र (10)
No comments: