अग्निपुराण अध्याय ८९

अग्निपुराण अध्याय ८९

अग्निपुराण अध्याय ८९ में एकतत्त्व – दीक्षा की विधि का वर्णन है।

अग्निपुराण अध्याय ८९

अग्निपुराणम् ऊननवतितमोऽध्यायः

Agni puran chapter 89

अग्निपुराण नवासीवाँ अध्याय

अग्नि पुराण अध्याय ८९     

अग्निपुराणम् अध्यायः ८९ एकतत्त्वदीक्षाकथनम्

अथ ऊननवतितमोऽध्यायः

ईश्वर उवाच

अथैकतात्त्विकी दीक्षा लघुत्वादुपदिश्यते ।

सूत्रबन्धादि कुर्व्वीत यथायोगं निजात्मना ।। १ ।।

कालाग्न्यादिशिवान्तानि तत्त्वानि परिभावयेत् ।

समतत्त्वे समग्राणि सूत्रे मणिगणानिव ।। २ ।।

आवाह्य शिवतत्त्वादि गर्भाधानादि पूर्ववत् ।

मूलेन किन्तु कुर्व्वीत सर्व्वशुल्कसमर्पणं ।। ३ ।।

प्रददीत ततः पूर्णां तत्त्वव्रातोपगर्भितां ।

एकयैव यया शिष्यो निर्व्वाणमधिगच्छति ।। ४ ।।

भगवान् शिव कहते हैं - स्कन्द ! अब लघु होने के कारण एकतात्त्वि की दीक्षा का उपदेश दिया जाता है। यथावसर यथोचित रीति से स्वकीय मन्त्र द्वारा सूत्रबन्ध आदि कर्म करे। तत्पश्चात् काल, अग्नि आदि से लेकर शिव- पर्यन्त समस्त तत्त्वों का प्रविभावन (चिन्तन) करे। शिवतत्त्व में अन्य सब तत्त्व धागे में मनकों की भाँति पिरोये हुए हैं। शिव- तत्त्व आदि का आवाहन करके गर्भाधान आदि संस्कारों का पूर्ववत् सम्पादन करे; किंतु मूल मन्त्र से सर्वशुल्क समर्पण करे। इसके बाद तत्त्वसमूहों से गर्भित पूर्णाहुति प्रदान करे। उस एक ही आहुति से शिष्य निर्वाण प्राप्त कर लेता है ॥ १-४ ॥

योजनायै शिवे चान्यां स्थिरत्वापादनाय च ।

दत्वा पूर्णां प्रकुर्वीत शिवकुम्भाभिषेचनं ।। ५ ।।

शिव में नियोजन तथा स्थिरता का आपादन करने के लिये दूसरी पूर्णाहुति भी देनी चाहिये । उसे देकर शिवकलश के जल से शिष्य का अभिषेक करे ॥ ५ ॥

इत्यादिमहापुराणे आग्नेये एकतत्त्वादीक्षाकथनं नाम ऊननवतितमोऽध्यायः॥ ८९ ॥

इस प्रकार आदि आग्नेय महापुराण में 'एकतत्त्व- दीक्षा विधि* का वर्णन' नामक नवासीवाँ अध्याय पूरा हुआ ॥ ८९ ॥

* सोमशम्भु की 'कर्मकाण्ड-क्रमावली' में इसके पूर्व 'त्रितत्वदीक्षा' का विस्तृत वर्णन है।

आगे जारी.......... अग्निपुराण अध्याय 90 

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