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- अग्निपुराण अध्याय ९४
- अग्निपुराण अध्याय ९३
- धूमावती नामाष्टक स्तोत्र
- छिन्नमस्ता कवच
- अद्भुत रामायण सर्ग ११
- पंचांग भाग २
- अग्निपुराण अध्याय ९२
- अग्निपुराण अध्याय ९१
- अद्भुत रामायण सर्ग १०
- संकटा सहस्रनाम स्तोत्र
- दशपदी स्तुति
- सप्तशतीसहस्रम्
- अद्भुत रामायण सर्ग ९
- यक्षिणी साधना
- भैरवी
- अग्निपुराण अध्याय ९०
- अग्निपुराण अध्याय ८९
- अग्निपुराण अध्याय ८८
- भैरवी स्तोत्र
- अग्निपुराण अध्याय ८७
- अग्निपुराण अध्याय ८६
- अग्निपुराण अध्याय ८५
- पातकदहन भुवनेश्वरी कवच
- महाविद्या कवच
- तारा कवच
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- अद्भुत रामायण सर्ग ८
- मनुस्मृति अध्याय ४
- अद्भुत रामायण सर्ग ७
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मूल शांति पूजन विधि कहा गया है कि यदि भोजन बिगड़ गया तो शरीर बिगड़ गया और यदि संस्कार बिगड़ गया तो जीवन बिगड़ गया । प्राचीन काल से परंपरा रही कि...
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रघुवंशम् द्वितीय सर्ग Raghuvansham dvitiya sarg महाकवि कालिदास जी की महाकाव्य रघुवंशम् प्रथम सर्ग में आपने पढ़ा कि-महाराज दिलीप व उनकी प...
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अगहन बृहस्पति व्रत व कथा
मार्तण्ड भैरव स्तोत्रम्
दशपदी स्तुति
माता श्रीविन्ध्यवासिनी
की इस दशपदी स्तुति से आराधना सर्वमङ्गल को देनेवाला है ।
विन्ध्यवासिनी दशपदी स्तुति
Dashapadi
दशपदी स्तोत्रम्
श्रीविन्ध्यवासिन्यै
नमः
"सौवर्णाम्बुजमध्यगां त्रिनयनां सौदामिनीसन्निभां
शङ्खं
चक्रवराभयानि दधतीमिन्दोः कलां बिभ्रतीम् ।
ग्रैवेयाङ्गदहारकुण्डलधरामाखण्डलाद्यैः
स्तुतां
ध्यायेद्
विन्ध्यनिवासिनीं शशिमुखीं पार्श्वस्थञ्चाननाम्" ।।
दशपदी
सिंहस्था
मृगराजगा च विजया दुर्गा च पद्मावती
नागाधीश्वरविष्टरा
च ललिता लक्ष्मीः सरोजस्थिता ।
मातङ्गी च
सुरत्नपीठपदवी स्तुत्याश्च सर्वाः परं
सौवर्णाम्बुजमध्यगा
विजयतेतसां हि विन्ध्येश्वरी ।।१।।
हस्तास्याङ्घ्रिदशा
परं त्रिनयना देवी महाकालिका
दुर्गा सिद्धिकरी
जया शशिधरा ध्याता त्रिनेत्रा सताम् ।
आराध्या
भुवनेश्वरी शिवशिवा युक्ता त्रिभिर्लोचनैः
सौम्या बाहुचतुष्टया
त्रिनयना विन्ध्येश्वरी शङ्करी ॥ २ ॥
नीलाश्मद्युतिकालिकां
भगवती कालाभ्रतुल्या जया
विद्युद्दामसमा
दिवाकरनिभा दुर्गा च पद्मावती ।
ध्यातव्या च सरस्वती
मतिमतां शीतांशुतुल्यप्रभा
दृश्या
विन्ध्यनिवासिनी कलियुगे सौदामिनीसन्निभा ॥ ३ ॥
खड्गादिं दधती
करैः सुविदिता श्यामाऽसतां भीषणा
मालाकुम्भकपालनीरजकरा
पद्मावती संस्तुता ।
बालानां
भुवनेश्वरी नहि तथा सौम्या सपाशाङ्कुशा
शङ्खं
चक्रवराभयानि दधती विन्ध्येश्वरी वैष्णवी ॥ ४ ॥
देवी
बद्धहिमांशुरत्नमुकुटा मूर्धेन्दुरेखा जया
मातङ्गी
शशिखण्डधा शशिधरा दुर्गा च कामेश्वरी ।
ध्यातव्यता
भुवनेश्वरीन्दुमुकुटा चन्द्रार्धपद्मावती
विन्ध्ये
काऽपि निरीक्ष्यते सहृदयैरिन्दोः कलां बिभ्रती ॥ ५ ॥
कालीसर्वविभूषणावृतवपु:
कह्लारमालाश्रिया
मातङ्गी करुणातरङ्गितदृशा
स्तुत्या भवानी सती ।
मीन
भास्वद्देहलता सुरत्ननिवहैः पद्मावती, विन्ध्यगा
ग्रैवेयाङ्गदहारकुण्डलधरा
भूषामृदुर्माधवी ।।६।।
आदौ संस्तुतवांस्तथा
कमलजो बोधाय कालीं हरे:
सिद्ध्यर्थं
सुजनैर्जया सुरवृता कन्याभिरासेविता ।
ध्यातव्या ह्यणिमादिभिश्च
किरणैः काम्यैर्भवानी वृता
विन्ध्यस्था
शरणं स्वतो भुवि परञ्चाखण्डलाद्यैः स्तुता ।।७।।
भक्तानां
वितनोति सौख्यनिकरं लक्ष्मीः प्रसन्नानना
मातुः
पालनशिक्षणं वितनुते वक्त्रारविन्दश्रिया ।
संसारे
भुवनेश्वरी स्मितमुखी स्तोतुश्च दाने सदा
विन्ध्याद्रौ
पृथुलोचना शशिमुखी तापौषधिर्दर्शनात् ।।८।।
सिंहस्कन्धगता
जया मृगपतिस्कन्धे च दुर्गा स्थिता
सर्वज्ञेश्वरभैरवाङ्कनिलया
पद्मावती सुप्रिया ।
सिंहः
पार्श्वगतः शिवोऽथ दयितः पञ्चाननो द्वावपि
प्रीतिं
विन्ध्यगतोभयीं वितनुते पार्श्वस्थपञ्चानना ।।९।।
आख्याने
प्रथमे स्तुता सुविधिना काली द्वितीये ततो
लक्ष्मीश्चापि
सरस्वती च महती सर्वा तृतीयेऽन्ततः ।
मातङ्गी
भुवनेश्वरी च विजया दुर्गा भवानी शिवा
तासां
विन्ध्यनिवासिनी सकरुणा गङ्गासखीलोचना ।। १० ।।
विन्ध्याचलनिवासिन्याः
स्थानं सर्वोत्तमोत्तमम् ।
सा
सम्मुखगतानां हि प्रीणाति विन्ध्यवासिनी ।। ११ ।।
श्रीविन्ध्यवासिनी
माता गीता दशपदीस्तुति: ।
वितनोतु सतां
मोदं सर्वमङ्गलसंयुतम् ।।१२।।
॥ इति विन्ध्यवासिनी दशपदी स्तुति: ॥
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