पंचांगुली साधना

पंचांगुली साधना

पंचांगुली मंत्र इक्कीस हजार जप करने से मंत्र सिद्ध होता है। सवा लक्ष जपने पर भविष्य सिद्धि होती है। अतः सवा लक्ष मंत्र जप साधना करना चाहिए।

पंचांगुली साधना

पंचांगुली साधना

शुभ दिन, शुद्ध समय में एकान्त स्थित साधना स्थान को स्वच्छ पानी से धो लें, कच्चा आंगन हो, तो गोबर (जो जमीन पर न गिरा हो) से लीप लें, तत्पश्चात् लकड़ी के एक समचौरस पट्टे पर श्वेत वस्त्र धोकर बिछा दें एवं उस पर चावलों से हाथ की आकृति का निर्माण करें। तत्पश्चात् उस हाथ की आकृति के मध्य में ताम्र पत्रांकित पंचांगुली यंत्र स्थापित करें, उस पर लाल वस्त्र आच्छादित नारियल रखें एवं सम्भव हो, तो पंचांगुली देवी की स्वर्ण मूर्ति अथवा रजत मूर्ति स्थापित करें। मूर्ति सवा तोला या सवा पांच तोला वजन में हो । फिर आगे बताई गई विधि से इक्कीस दिनों तक पूजन करें। साधारण समय में इक्कीस दिनों तक पूजन आवश्यक है। नवरात्रि में नौ दिन तक पूजन करें। नवरात्रि इस कार्य के लिए परम श्रेष्ठ मानी गई है। तत्पश्चात् पूजन सामग्री एकत्र कर स्वयं धुले हुए वस्त्र पहिनें। पूजन से पूर्व मल निवृत्ति एवं मुख शोधन के लिए ऐं ह्रीं ऐं ह्रीं ऐं ह्रीं मंत्र का दस बार उच्चारण करें । अब-

मंत्र चैतन्य

पंचांगुली की साधना में मंत्र चैतन्य '' है, अतः मंत्र के प्रारम्भ और अन्त में '' सम्पुट देने से मंत्र चैतन्य हो जाता है। मंत्र चैतन्य के बाद योनिमुद्रा का अनुष्ठान किया जाय। यदि योनिमुद्रा अनुष्ठान का ज्ञान न हो, तो 'भूतलिपि विधान' करना चाहिए।

भूतलिपि विधान

अनुलोम विलोम संपुटित मंत्र करने से भूतलिपि क्रम होता है। क्रम निम्नलिखित है-

ॐ अ आ इ ई उ ऊ ऋ लृ ए ऐ ओ औ क ख ग घ ङ च छ ज झ ञ ट ठ ड ढ ण त थ द ध न प फ ब भ म य र ल व श ष स ह (मूल पंचांगुली मंत्र, फिर) ह स ष श व ल र य म भ ब फ प न ध द थ त ण ढ ड ठ ट ञ भ ज छ च ङ घ ग ख क औ ओ ऐ ए लृ ऋ ऊ उ ई इ आ अ ॐ ।

भूतलिपि करने से मंत्र सिद्धप्रद एवं साधक के लिए सहायक बनता है। भूतलिपि विधान करने के अनन्तर प्राण योग ह्रीं (मूलमंत्र) इसका सात बार उच्चारण करें । अब पंचांगुली देवी की दीपनी ऐं (मंत्र) का सात बार उच्चारण करना चाहिए। तत्पश्चात्

भ्रामण पद्धति

वायु बीज 'यं' द्वारा मंत्र को ग्रंथित करें भोजपत्र पर एक मंत्र का अक्षर और एक वायु बीज लिखें, यथा-

ॐ यं म यं न यं मो यं ... आदि-आदि। इस प्रकार पूरा मंत्र शिलारस, कपूर, कुंकुम, खस और चन्दन बराबर-बराबर लेकर लिखें। फिर इस भोजपत्र को षोडशोपचार पूजन कर दूध, घी, मधु शर्करा और जल के मिश्रण में रख दें और पूरे अनुष्ठान पर्यन्त उसी में रहने दे। इस प्रकार करने से यह मंत्र सिद्ध हो जाता है।

पंचांगुली साधना

पंचांगुली ध्यान

पंचांगुली महादेवी श्री सीमन्धर शासने

अधिष्ठात्री करस्यासौ शक्तिः श्री त्रिदशेशितुः ।

पंचांगुली मंत्र

ॐ नमो पंचांगुली पंचांगुली परशरी परशरी माताय मंगल वशीकरणी लोहमय दंडमणिनी चौसठ काम विहंडनी रणमध्ये राउलमध्ये शत्रुमध्ये दीवानमध्ये भूतमध्ये प्रेतमध्ये पिशाचमध्ये झोंटिंगमध्ये डाकिनीमध्ये शंखिनीमध्ये यक्षिणीमध्ये दोषिणीमध्ये शेकनीमध्ये गुणीमध्ये गारुडीमध्ये विनारीमध्ये दोषमध्ये दोषाशरणमध्ये दुष्टमध्ये घोर कष्ट मुझ ऊपरे बुरो जो कोई करे करावे जड़े जड़ावे तत चिन्ते चिन्तावे तस माथे श्री माता श्री पंचांगुली देवी तणो वज्र निर्धार पड़े ॐ ठं ठं ठं स्वाहा ।

मंत्र स्मरण करने के उपरान्त पंचांगुली यंत्र अष्ट गंध से भोजपत्र पर लेखन करें। तथा यंत्र को कलश के सामने ताम्र पात्र या रजत पात्र में स्थापित करें।

फिर आचमन प्राणायामादि के उपरान्त संकल्प करें, तत्पश्चात् गणपति पूजन, कलश पूजन, नवग्रह पूजन, षोडष मातृका पूजन करें।

ध्यान

निम्नलिखित ध्यान करें –

पंचांगुली महादेवी श्री सीमन्धर शासने ।

अधिष्ठात्री करस्यासौ शक्तिः श्री त्रिदशेशितुः ।

फिर निम्नलिखित न्यास करें-

न्यास

ॐ परशरि मूर्तये नमः शिरसि ।

मयंगलै नमः मुखे ।

सुन्दरयै नमः हृदि ।

ऐं बीजाय नमः गुह्ये।

सौं शक्तये नमः पादयोः ।

क्लीं कीलकाय नमः नाभौ ।

विनियोगाय नमः सर्वांगे ।

करन्यास

ॐ ह्रीं अंगुष्ठाभ्यां नमः ।

ॐ श्रीं तर्जनीभ्यां नमः ।

ॐ क्रीं मध्यमाभ्यां नमः ।

ॐ आं अनामिकाभ्यां नमः ।

ॐ सौं कनिष्ठिकाभ्यां नमः ।

ॐ ह्रीं श्रीं सौं करतल कर पृष्ठाभ्यां नमः ।

हृदयादिन्यास

ॐ ह्रीं हृदयाय नमः ।

ॐ श्रीं शिरसे स्वाहा ।

ॐ क्रीं शिखायै वषट् ।

ॐ आं कवचाय हुम् ।

ॐ सौं नेत्रत्रयाय वौषट् ।

ॐ ह्रीं श्रीं सौं अस्त्राय फट् ।

इसके पश्चात् यंत्र पूजा प्रारम्भ करें।

पंचांगुली साधना

संकल्प

यंत्र पूजा से पूर्व संकल्प करें-

ॐ अस्य श्री कस्यचित् सच्चिदानंद रूपस्य ब्रह्मणोऽनिर्वाच्य मायाशक्ति विजृंभिता विद्या योगात् कालक्रम स्वभावाविर्भूत महत्त्वोदिताहंकारोद्भूत वियदादि पंच महाभूतेन्द्रिय देवता निर्मिते, अंडकटाहे, चतुर्दश लोकात्मके, लीलया तन्मध्यवर्तिनी भगवतः श्री नारायणस्य नाभि कमलोद्भूत सकल लोक पितामहस्य ब्रह्मणः सृष्टिं कुर्वतस्तदुद्धारणाय प्रजापति प्रार्थितस्य श्री सित वाराहवतारेण ध्रियमाणायां यस्यां धरित्र्याम् भुवर्लोक संहितायां सप्तद्वीप मंडितायां क्षीरोदाद्यब्धि द्विगुणद्वीप वलयिकृत लक्ष योजन विस्तीर्णे, जम्बूद्वीपे । स्वर्गस्थिता अमराद्या सा शितवतारे, गंगादि सरिद्विः प्रावितेः निखिल जन मुनिकृत निवसतिके, नैमीशारण्ये कन्या कुमारिका क्षेत्रे पुष्करारण्ये श्री मन्मार्तण्डस्य कृपापात्र कालत्रितयज्ञ गर्गवाराह ऋषय संख्यायां श्री ब्रह्मणोद्वितीय परार्द्धे, श्री श्वेत वाराह नाम्नि प्रथम कल्पे, द्वितीय यामे, तृतीय मुहूर्ते, चतुर्थे युगे, स्वायंभुवः स्वारोचित उत्तमः तामसः रैवतः चाक्षुसेति षण्मनूनां मतिक्रमोस्यात् क्रम्यमाणे संप्रति वैवस्वत मन्वन्तरे अष्टाविंशतिमे वर्षे त्रिनवे त्रिग्नेयाते कलियुगे कलि प्रथम चरणे श्री मल्लवणाब्धे उत्तरे तीरे गंगायमुनयो: पश्चिमे तटे । शालीवाहन बौद्धावतारे विक्रम भूपकृतः संवत्सरे संवत...नाम संवत्सरे ( एकोन त्रिशत्युत्तर द्विसहस्त्र में) वर्षे रविर्नारायण (उत्तरायने).... कृतौ महामांगल्यप्रद मासोत्तमेमासे शुभ मासे .... मासे....पक्षे आद्य तिथौ....वाराधिपति श्रीमद् ..... वासरे यथा नक्षत्र योग करण लग्न एवं ग्रह विशेषण विशिष्टायां अमुक राशिस्थिते सूर्ये अमुक राशिस्थिते चन्द्रे अमुक राशिस्थिते देवगुरौ शेषेसु ग्रहेषु यथा यथा राशिस्थिते सप्तसु एवं ग्रह गुण विशेष विशिष्टायां शुभपुण्यस्थिती.... गोत्रस्य श्री (यजमान का नाम) यजमानस्य शरीरे । आयु आरोग्य ऐश्वर्यवांछित फल प्राप्तये भार्यादि सर्वसम्पत्यै चिंतितार्थस्य आधि व्याधि जरा मृत्यु भय शोक निवृत्तये परमैश्वर्य संपत्यै निष्पत्यै अमुक कर्मणे पंचांगुली देवी पूजन कर्मणि सांगता सिद्ध्यर्थं मम समस्त कुटुम्बस्य सपरिवारस्य सर्वविघ्नोपशांतये भूत भविष्यत् वर्तमान त्रिविधो प ताप शांतये भूरि- भाग्याप्तये पुनः कृतस्य करिष्यमाणः साम्य गुप्त महाफला वाप्तये नित्य नूतन आत्मनः क्षीरोदिपट फुलादिवास सुरभि चन्दनः कपूरः कस्तूरी केतक्याद्यनेक शरीर भूषण समृद्ध्यर्थं । सुवर्ण रौप्य निखिल धातु प्रवाल मौक्तिक माणिक्येन्द्र नीलवज्र वैदूर्यादि नाना रत्न बहुल प्राप्तये यवः व्रीही गोधूम तिल माष मुद्गाद्यऽनेक धान्यानां संतताभि वृद्धये अश्वशाला गजशाला गौशाला सर्व चतुष्पदशाला प्रपाद्यादिशाला देवपूजास्थान, ब्राह्मण संतर्पणादि सर्वस्थानानाम् सर्वविघ्नोपशांतये मम इह जन्मनि पंचांगुली प्रीति द्वारा सर्वापद् निवृत्ति पूर्वकं अल्पायु निवृत्ति पूर्वकं जन्म लग्नात् गोचरात् चतुरस्त्र अष्ट द्वादश स्थान स्थित सूर्यादि क्रूर ग्रह तज्जनितारिष्ट निवृत्ति पूर्वकं आधि दैविक भौतिक आध्यात्मिक जनितः क्लेशः कायिक वाचिक मानसिक त्रिविधागौध निवृत्ति पूर्वकं शरीरारोग्यार्थं धर्मार्थं काम मोक्ष चतुर्विध पुरुषार्थ सिद्ध्यर्थं राजद्वारे व्यापारतश्च लाभार्थं विजयार्थं जयार्थं क्षेमार्थं गतवस्तु प्राप्त स्थिर लक्ष्मी संचितार्थं पुत्र पौत्र अविच्छिन्न धन समृद्ध्यर्थं श्री परमेश्वर प्रीत्यर्थे सद्विष्ट सिद्धयर्थं यथा संपादित सामग्रयां कलश स्थापन पंचांगुली पूजनम् अहं करिष्ये ।

तदंगत्वेन निर्विघ्नतया परिसमाप्त्यर्थं गणपति पंचोपचार वास्तु दिव्यादि चतुः षष्टी योगिनी अजरादि पंचाशत् क्षेत्रपाल सप्त चिरंजीव सप्तवसोर्द्धारा सप्तऋषि गौर्यादि षोडश मातृका वरुण कलश सूर्यादि नवग्रह तदंगभूत अधिदेवता प्रत्यधि देवता स्थापन पूजनांतर भितौ पंचांगुली आवाहनं कलशस्थापनं तस्योपरि पंचांगुली यंत्र पूजनं तदंगत्वेनादौ गणपति पूजनं अहं करिष्ये ।

पंचांगुली साधना

यंत्र पूजा

पूजा के पश्चात् यंत्र की विशेष पूजा आवरण पूजन प्रारम्भ की जाय ।

अब यंत्र जो ताम्र, स्वर्ण या चांदी का हो या मूर्ति हो, तो उसका षोडशोपचार पूजन करें, फिर निम्नलिखित मंत्र से देवी का आवाहन करें-

आवाहन

श्री अंगुष्ठ रूपे अंगुष्ठ पद पूजयामि तर्पयामि नमः ।

श्री तर्जनी रूपे तर्जनी पद पूजयामि तर्पयामि नमः।

श्री मध्यमा रूपे मध्यमा पद पूजयामि तर्पयामि नमः ।

श्री अनामिका रूपे अनामिका पद पूजयामि तर्पयामि नमः।

श्री कनिष्ठिका रूपे कनिष्ठिका पद पूजयामि तर्पयामि नमः ।

श्री पंचांगुली रूपे पंचांगुली पद पूजयामि तर्पयामि नमः ।

भूत शुद्धि

मूलाधारात्समुत्थाप्य कुण्डली पर देवताम् ।

सुषुम्ना मार्गमाश्रित्य ब्रह्मरन्ध्रगतां स्मरेत् ।

जीवं ब्रह्माणि संयोज्य हंस मंत्रेण साधकः ।

तत्पश्चात् यंत्र के मध्य सिंहासन पर विराजमान देवी की कल्पना कर उस पर निम्न मंत्र पढ़कर अक्षत छोड़ते जायें।

ॐ हंसः सोऽहम्

ज्ञलयो  ज्ञकारे

त्रलयो  त्रकारे

क्षलयो  क्षकारे

हलयो हकारे

सलयो सकारे

षलयो षकारे

शलयो शकारे

वलयो वकारे

ललयो लकारे

रलयो रकारे

यलयो यकारे

मलयो मकारे

भलयो भकारे

बलयो बकारे

फलयो फकारे

पलयो पकारे

नलयो नकारे

धलयो धकारे

दलयो दकारे

थलयो थकारे

तलयो तकारे

णलयो णकारे

ढलयो ढकारे

डलयो डकारे

ठलयो ठकारे

टलयो टकारे

ञलयो ञकारे

झलयो झकारे

जलयो जकारे

छलयो छकारे

चलयो चकारे

ङलयो ङकारे

घलयो घकारे

गलयो गकारे

खलयो खकारे

कलयो ककारे

अःलयो  अःकारे

अंलयो अंकारे

औलयो औंकारे

ओलयो ओकारे

ऐलयो ऐकारे

एलयो एकारे

लॄलयो लॄकारे

लृलयो लृकारे

ॠलयो ऋॄकारे

ऋलयो ऋकारे

ऊलयो ऊकारे

उलयो उकारे

ईलयो ईकारे

इलयो इकारे

आलयो आकारे

अलयो  अकारे

सहस्त्राम्बुजे ब्रह्मरन्धे परमात्मनि लयं गतः ।

ॐ ज्ञकारम् ज्ञकारे उपसंहरामि ।

ॐ त्रकारम् त्रकारे उपसंहरामि ।

ॐ क्षकारम् क्षकारे उपसंहरामि ।

ॐ हकारम् हकारे उपसंहरामि ।

ॐ सकारम् सकारे उपसंहरामि ।

ॐ षकारम् षकारे उपसंहरामि ।

ॐ शकारम् शकारे उपसंहरामि ।

ॐ वकारम् वकारे उपसंहरामि ।

ॐ लकारम् लकारे उपसंहरामि ।

ॐ रकारम् रकारे उपसंहरामि ।

ॐ यकारम् यकारे उपसंहरामि ।

ॐ मकारम् मकारे उपसंहरामि ।

ॐ भकारम् भकारे उपसंहरामि ।

ॐ बकारम् बकारे उपसंहरामि ।

ॐ फकारम् फकारे उपसंहरामि ।

ॐ पकारम् पकारे उपसंहरामि ।

ॐ नकारम् नकारे उपसंहरामि ।

ॐ धकारम् धकारे उपसंहरामि ।

ॐ दकारम् दकारे उपसंहरामि ।

ॐ थकारम् थकारे उपसंहरामि ।

ॐ तकारम् तकारे उपसंहरामि ।

ॐ णकारम् णकारे उपसंहरामि ।

ॐ ढकारम् ढकारे उपसंहरामि ।

ॐ डकारम् डकारे उपसंहरामि ।

ॐ ठकारम् ठकारे उपसंहरामि ।

ॐ टकारम् टकारे उपसंहरामि ।

ॐ ञकारम् ञकारे उपसंहरामि ।

ॐ झकारम् झकारे उपसंहरामि ।

ॐ जकारम् जकारे उपसंहरामि ।

ॐ छकारम् छकारे उपसंहरामि ।

ॐ चकारम् चकारे उपसंहरामि ।

ॐ ङकारम् ङकारे उपसंहरामि ।

ॐ घकारम् घकारे उपसंहरामि ।

ॐ गकारम् गकारे उपसंहरामि ।

ॐ खकारम् खकारे उपसंहरामि ।

ॐ ककारम् ककारे उपसंहरामि ।

ॐ अःकारम् अःकारे उपसंहरामि ।

ॐ अंकारम् अंकारे उपसंहरामि ।

ॐ औंकारम् औकारे उपसंहरामि ।

ॐ ओकारम् ओकारे उपसंहरामि ।

ॐ ऐकारम् ऐकारे उपसंहरामि ।

ॐ एकारम् एकारे उपसंहरामि ।

ॐ लॄकारम् लॄकारे उपसंहरामि ।

ॐ लृकारम् लृकारे उपसंहरामि ।

ॐ ॠकारम् ऋॄकारे उपसंहरामि ।

ॐ ऋकारम् ऋकारे उपसंहरामि ।

ॐ ऊकारम् ऊकारे उपसंहरामि ।

ॐ उकारम् उकारे उपसंहरामि ।

ॐ ईकारम् ईकारे उपसंहरामि ।

ॐ इकारम् इकारे उपसंहरामि ।

ॐ आकाम् आकारे उपसंहरामि ।

ॐ अकारम् अकारे उपसंहारामि ।

सहस्त्रदलम्बुजाकारे ब्रह्मरन्ध्रे लयम् ।

पंचांगुली साधना

भूतोपसंहार

यं यं (१६ बार 'यं' बोलें)

वह्नि बीजं स्मरेन्नित्यं निर्दहेत्पापपुरुषम् । रं रं (६४ बार 'रं' बोलें)

वायु बीजेन तद्रक्षां बहिर्निष्कास्ययत्नः । यं यं (३२ बार 'यं' बोले)

सुधाबीजेन देहोत्थं भस्मसप्लावयेत्सुधीः । वं वं (१६ बार 'वं' बोले)

भूबीजेन घनीकृत्वा भस्म तत्कनकाण्डवत्। लं लं (१६ बार 'लं' बोले)

विशुद्ध मुकुराकारं ब्रह्मरन्ध्रगतं स्मरेत् ।

आकाशादीनि भूतानि पुनरुत्पादयेत् ।

अखण्डं ब्रह्म तस्मात्स्यात्प्रेरक पुरुषस्तथा ।

प्रकृतेर्महदाकारस्ततोऽहं त्रिगुणात्मकः ।

तस्माकः तस्मादात्मन आकाशः सम्भूतः ।

आकाशद्वायुः वायोरग्निः ।

अग्नेराप अद्भयः पृथिवी ।

पृथिव्या ओषधयः ओषधीम्योऽन्नम् । अन्नाद्रेतः।

रेतसः पुरुषः स वाएष पुरुषोऽन्नरसमयः हंसः सोऽहम् ।

कुण्डली जीव मादाय परसन्गामयीम् ।

संस्थाप्य हृदयाम्भोजे मूलाधारं गतं स्मरेत् ।।

इसके बाद यंत्र अथवा मूर्ति में प्राण प्रतिष्ठा करें।

प्राण प्रतिष्ठा

ॐ अस्य श्री प्राण प्रतिष्ठा मंत्रस्य ब्रह्मा विष्णु महेश्वरा ऋषयः ऋग्यजु सामानि छन्दासि । क्रियामय वपुः प्राण शक्तिर्देवता। आं बीजम् । ह्रीं शक्तिः क्रौं कीलम् । प्राण प्रतिष्ठापने विनियोगः ।

न्यास

ॐ ब्रह्म विष्णु महेश्वरा ऋषिभ्यो नमः शिरसि ।

ऋग्यजुः सामच्छन्देभ्यो नमः मुखे ।

प्राणशक्तये नमः हृदये ।

आं बीजाय नमः लिंगे ।

ह्रीं शक्तये नमः पादयोः ।

क्रौं कीलकाय नमः सर्वांगेषु ।

न्यास

ॐ अं कं खं गं घं ङं आं

पृथिव्याप्तेजो वाय्वाकाशात्मने अंगुष्ठाभ्यां नमः ।

ॐ इं चं छं जं झं ञं ईं

शब्द स्पर्श रूप रस गन्धात्मने तर्जनीभ्यां नमः ।

ॐ उं टं ठं डं ढं णं ऊं

त्वक् चक्षुः श्रोत्र जिह्वाघ्राणात्मने मध्यमाभ्यां नमः ।

ॐ एं तं थं दं धं नं ऐं

वाक् पाणि पाद पाय पस्थात्मने अनामिकाभ्यां नमः ।

ॐ ओं पं फं बं भं मं औं

वचना दान गति विसर्गा नन्दात्मने कनिष्ठिकाभ्यां नमः ।

ॐ अं यं रं लं वं शं षं सं हं क्षं त्रं ज्ञं अः

मनो बुद्धयहंकार चित्त विज्ञानात्मने करतलकर पृष्ठाभ्यां नमः ।

ॐ अं कं खं गं घं ङं आं

पृथिव्याप्तेजो वाय्वाकाशात्मने हृदयाय नमः ।

ॐ इं चं छं जं झं ञं ईं

शब्द स्पर्श रूप रस गन्धात्मने शिरसे स्वाहा ।

ॐ उं टं ठं डं ढं णं ऊं

त्वक् चक्षुः श्रोत्र जिह्वाघ्राणात्मने शिखायै वषट् ।

ॐ एं तं थं दं धं नं ऐं

वाक् पाणि पाद पायूपस्थात्मने कवचाय हुं ।

ॐ ओं पं फं बं भं मं औं

वचनादान गति विसर्गानन्दात्मने नेत्रत्रयाय वौषट् ।

ॐ अं यं रं लं वं शं षं सं हं क्षं त्रं ज्ञं अः

मनो बुद्धयहंकार चित्त विज्ञानात्मने अस्त्राय फट् ।

ॐ आं इति नाभिमारभ्य पादान्तं स्पृशेत् ।

ॐ ह्रीं इति हृदयमारभ्य नाभ्यन्तं च स्पृशेत् ।

ॐ क्रौं इति मस्तकमारभ्य हृदयान्तं च स्पृशेत् ।

ध्यान

रक्ताम्भोधिस्थ पोतोल्लसदरुण सरोजाधिरूढ़ा कराब्जैः

पाशं कोदण्ड भिक्षूद्भव मथ गुणमप्यंकुशं पंच बाणान् ।

विभ्राणाऽसृक्कपालं त्रिनयन लसितापीन वक्षोरुहाढ्या

देवी बालार्क वर्णा भवतु सुचाकरी प्राणशक्तिः परा नः ।।

ॐ आं ह्रीं क्रौं यं रं लं वं शं षं सं हं सः सोऽहम् प्राणा इह प्राणः ।

ॐ आं ह्रीं क्रौं यं रं लं वं शं षं सं हं सः जीव इह स्थितः ।

ॐ आं ह्रीं क्रीं यं रं लं वं शं षं सं हं सः सर्वेन्द्रियाणि वाङ्मनस्त्वक् चक्षुः श्रोत्र जिह्वा घ्राणवाक्पाणि पाद पायूपस्थानीहैवागत्यसुखं चिरं तिष्ठन्तु स्वाहा ।

ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ

मम देहस्य पंचदश संस्काराः सम्पद्यन्ताम् इत्युक्त्वा ।

इति प्राण प्रतिष्ठा ।।

प्राण प्रतिष्ठा करने के बाद अन्तर्मातृका न्यास करें-

अन्तर्मातृका न्यास

ॐ अस्य श्रीरन्तर्मातृका मंत्रस्य ब्रह्मा ऋषि: मातृका सरस्वती देवता गायत्री छन्दः ह्रौं बीजानि स्वराः शक्तयः क्षं' कीलकं मातृकान्यास जपे विनियोगः ।

ॐ अं ब्रह्म ऋषये नमः आं शिरसि ।

इं गायत्री छन्दसे नमः ईं वदने ।

उं मातृका सरस्वती देवतायै नमः ॐ हृदये ।

एं हलभ्यो बीजेभ्यो नमः नमः ऐं गुह्ये ।

ओं स्वर शक्तिभ्यो नमः औं पादयोः ।

अं क्षं कीलकाय नमः अः सर्वांगेषु ।

करन्यास

ॐ अं कं खं गं घं ङं आं अंगुष्ठाभ्यां नमः ।

ॐ इं चं छं जं झं ञं ईं तर्जनीभ्यां नमः ।

ॐ उं टं ठं डं ढं णं ऊं मध्यमाभ्यां नमः ।

ॐ एं तं थं दं धं नं ऐं अनामिकाभ्यां नमः ।

ॐ ओं पं फं बं भं मं औं कनिष्ठिकाभ्यां नमः ।

ॐ अं यं रं लं वं शं षं सं हं अः करतल कर पृष्ठाभ्यां नमः ।

ध्यान

पचाशल्लिपिभिर्विभज्य मुखदोर्हज्पद्मवक्षः स्थलां

भास्वन्मौलिनिबद्ध चन्द्र शकलामापीन तंगस्तनीम् ।

मुद्रामक्ष गुणं सुधाढ्य कलशं विद्यां च हस्तांबुजै

विभ्राणां विशद प्रभां त्रिनयनां वाग्देवता तां श्रिये ।।

इसके बाद दाहिने हाथ की कनिष्ठिका से अंगूठे तक के सोलह पर्वों को देखें व पूजा करें-

ॐ अं आं इं ईं उं ऊं ऋं ॠं लृं लॄं एं ऐं ओं औं अं अः ।

फिर वाम हाथ की अंगूठे से कनिष्ठिका तक के सोलह पर्वो की पूजा करें-

कं खं गं घं ङं     अंगूठा बन्द करें

चं छं जं झं ञं    तर्जनी बन्द करें

टं ठं डं ढं णं      मध्यमा बन्द करें

तं थं दं धं नं     अनामिका बन्द करें

पं फं बं भं मं    कनिष्ठिका बन्द करें

यं रं लं वं        कनिष्ठिका खोलें

शं षं सं           अनामिका खोलें

हं क्षं             मध्यमा खोलें

त्रं                 तर्जनी खोलें

ज्ञं                 अंगूठा खोलें

सर्वांङ्गे

ॐ अं आं इं ईं उं ऊं ऋं ॠं लृं लॄं एं ऐं ओं औं अं अः - कंठे

ॐ कं खं गं घं ङं चं छं जं झं ञं - हृदये

ॐ टं ठं डं ढं णं तं थं दं धं नं नाभौ

ॐ पं फं बं भं मं – लिंगे

ॐ यं रं लं वं शं षं गुदे

ॐ सं हं क्षं - भ्रुवोर्मध्ये

ध्यान

आधारे लिंग नाभौ प्रकटित हृदये तालुमूले ललाटे ।

द्वे पत्रे षोडशारे द्विदश दश दले द्वादशार्द्धे चतुष्के ।

वासान्ते बालमध्ये उ-फ-क-ठ सहिते कंठ देशे स्वराणां ।

हं-क्ष-तत्वार्थ युक्तं सकल दल गतं वर्ण रूपं नमामि ।

बहिर्मातृका न्यास

ॐ अं नमः केशान्ते

ॐ आं नमः मुखे

ॐ इं नमः दक्षिण नेत्रे

ॐ ईं नमः वाम नेत्रे

ॐ उं नमः दक्षिण कर्णे

ॐ ऊं नमः वाम कर्णे

ॐ ऋं नमः दक्षिण नासा पुटे

ॐ ॠं नमः वाम नासा पुटे

ॐ लृं नमः दक्षिण गण्डे

ॐ लॄं नमः वाम गण्डे

ॐ एं नमः ऊर्ध्वोष्ठे

ॐ ऐं नमः अधरोष्ठे

ॐ ओं नमः ऊर्ध्वदन्तपंक्तौ

ॐ औं नमः अधोदन्तपंक्तौ

ॐ अं नमः मूर्ध्नि

ॐ अः नमः आस्ये

ॐ कं नमः दक्षिण बाहुमूले

ॐ खं नमः दक्षिण कर्पूरे

ॐ गं नमः दक्षिण मणिबन्धे

ॐ घं नमः दक्षिण करांगुलिमूले

ॐ ङं नमः दक्षिण कराङ्गुल्यग्रे

ॐ चं नमः वाम बाहुमूले

ॐ छं नमः वाम कर्पूरे

ॐ जं नमः वाम मणिबन्धे

ॐ झं नमः वाम करांगुलिमूले

ॐ ञं नमः वाम कराङ्गुल्यग्रे

ॐ टं नमः दक्षिण पाद मूले

ॐ ठं नमः दक्षिण जानुनि

ॐ डं नमः दक्षिण गुल्फे

ॐ ढं नमः दक्षिण पादाङ्गुलि मूले

ॐ णं नमः दक्षिण पादाङ्गुल्यग्रे

ॐ तं नमः वाम पाद मूले

ॐ थं नमः वाम जानुनि

ॐ दं नमः वाम गुल्फे

ॐ धं नमः वाम पादाङ्गुलि मूले

ॐ नं नमः वाम पादाङ्ल्यग्रे

ॐ पं नमः दक्षिण कुक्षौ

ॐ फं नमः वाम कुक्षौ

ॐ बं नमः पृष्ठे

ॐ भं नमः नाभौ

ॐ मं नमः उदरे

ॐ यं त्वगात्मने नमः हृदि

ॐ रं असृगात्मने नमः दक्षिणांसे

ॐ लं मांसात्मने नमः ककुदि

ॐ वं मेदात्मने नमः वामांसे

ॐ शं अस्थ्यात्मने नमः हृदयादि वामहस्ताग्रांतम्

ॐ षं मज्जात्मने नमः दक्षिण पादाग्रान्तम्

ॐ सं शुक्रात्मने नमः हृदयादि पादान्तम्

ॐ हं आत्मशक्त्यात्मने नमः हृदयादि जठरे

ॐ क्षं जीवात्मने नमः नाभ्यादि हृदयान्तम्

ॐ त्रं परमात्मने नमः हृदयादि मस्तकान्तम्

ॐ ज्ञं छन्दपुरुषाय नमः शिरसि

अनेन यथाशक्त्या कृतेन भूशुद्धि, भूत शुद्धि, प्राण प्रतिष्ठान्तर्मातृका बहिर्मातृका न्यासाख्य कर्मणा पंचांगुली देवी प्रीयतां न ममः ।।

इसके पश्चात् यंत्र के मध्य में स्थित बिन्दु पर महामंत्र 'काल ज्ञान मंत्र' को पढ़ते हुए एक सौ आठ पुष्प चढ़ावें ।

यंत्र पूजन के बाद पंचांगुली मंत्र साधना करें। इक्कीस हजार जप करने से मंत्र सिद्ध होता है। सवा लक्ष जपने पर भविष्य सिद्धि होती है। अतः सवा लक्ष मंत्र जप करना चाहिए।

इसके बाद शुभ दिन, शुभ मुहूर्त में यज्ञ (हवन) प्रारम्भ करना चाहिए। यदि यज्ञ करने की सामर्थ्य न हो, तो बयालीस हजार पंचांगुली मंत्र जप अतिरिक्त कर लेना चाहिए। ब्राह्मण से इतर वर्ण का कोई साधक हो, तो उसको तिरसठ (63) हजार जप करना चाहिए।

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