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कर्मकाण्ड

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पंचांगुली प्रयोग

पंचांगुली प्रयोग  

पंचांगुली साधना प्रयोग नियम व विधिपूर्वक करने पर कोई भी व्यक्ति त्रिकालदर्शी हो जाता है। वह किसी के भी भूत, भविष्य व वर्तमान को साफ-साफ चलचित्र की भांति देख सकता है। यहाँ इस साधना सहित यंत्र के अन्य प्रयोग को भी दिया जा रहा है।

पंचांगुली प्रयोग

पंचांगुली साधना प्रयोग विधि

पंचांगुली यंत्र व चित्र तथा स्फटिक माला को मंत्रों व प्राण प्रतिष्ठा से प्रतिष्ठित कर शुक्ल पक्ष की तृतीया, पंचमी, सप्तमी या पूर्णमासी को सुबह ब्रह्म मुहूर्त में शुरू की जाती है। यह सात दिन की इस साधना है। साधक  को पीले आसन पर पूर्व दिशा की ओर मुख करके पीले वस्त्र धारण करना होता है।

एक बाजोट पर पंचांगुली देवी का चित्र या यंत्र तांबे की प्लेट में स्थापित कर उस पर कुंकुंम से स्वास्तिक का चिन्ह अंकित करना चाहिए । अब गणपति का ध्यान कर षोडशोपचार विधि से विधिवत पूजन कर निम्न मंत्र का जाप प्रारम्भ करें-

पंचांगुली मंत्र

 ॐ ठं ठं ठं पंचांगुलि भूत भविष्यं दर्शय ठं ठं ठं स्वाहा

सात दिन तक एक- एक माला प्रतिदिन पूरी श्रद्धा से मंत्र जाप करें।

ब्रह्मचर्य का पालन, भूमि पर शयन, मांस- मदिरा का त्याग, अधिक से अधिक मौन रहना साधक के लिए अनिवार्य होता है। यदि हो सके तो अखण्ड दीप प्रज्जवलित करें।

साधना के बाद सारी सामग्री को नदी या कुएं में भी विसर्जित कर दें। इससे पंचांगली मंत्र और साधक सिद्ध हो जाता है।  

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पञ्चांगुली यन्त्र के अन्य प्रयोग

आकर्षण

ॐ ह्रीं पंचांगुली देवी 'देवदत्तस्य' आकर्षय आकर्षय नमः स्वाहा ।

अष्टगंध से मन्त्र लिखे देवदत्त की जगह व्यक्ति का नाम लिखकर १०८ बार जप करें। प्रयोग शुक्ल पक्ष की अष्टमी

से करें। यंत्र को बड़े बांस की भोगली के अंदर डाल देवें । ४१ दिन में आकर्षण होय ।

वशीकरण -

ॐ ह्रीं पंचांगुली देवी अमको अमुकी मम वश्यं श्रं श्रां श्रीं स्वाहा ।

इस यंत्र को वश्य वाले व्यक्ति के कपड़े पर शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को हिंगुल गौरोचन मूंग के पानी के साथ स्याही बनाकर लिखें। लालचन्दन का धूप जलावें, दीपक जलावें, इस यंत्र को मकान की छत या छप्पर में बांधे १३ दिन तक १०८ बार नित्य जप करें।

विद्वेषण -

ॐ ह्रीं क्लीं क्षां क्षं फट् स्वाहा ।

इस यन्त्र को शत्रु के वस्त्र श्मशान के कोयले से लिखें श्मशान में जाग पंख, उल्लू के पंख से हवन करें। यंत्र को

काले कपड़े व पत्थर से बांध कर कुवे में फेंक देवे । ४१ दिन तक १०८ बार मन्त्र जपें, उल्लू के पंख व मास की धूप देवे।

उच्चाटन -

ॐ ह्रीं पंचांगुली अमुकस्य उच्चाटय उच्चाटय ॐ क्षं क्लीं घे घे स्वाहा ।

इस यंत्र को धत्तूरे के रस से लिखें। पृथ्वी पर कोयले से १०८ बार यंत्र लिखें। यंत्र को पृथ्वी में गाड़ें और उस पर अग्नि जलावें तो ७ दिन में उच्चाटन हो जाता है।

इस यंत्र को अमुकस्य की जगह अमुकबाधा लिखे तथा यंत्र विष (शंखिया, नीला थोथा) से लिखें तो प्रेत डाकिनी शाकिनी बाधा दूर होवे।

मारण -

ॐ ह्रीं ष्पां ष्पीं ष्पं ष्पौं ष्पः मम शत्रून मारय मारय पंचांगुली देवी चूसय चूसय

निराघात वज्रेन पातय पातय फट् फट् घे घे ।

इस यंत्र को श्मशान के कोयले से काले कपड़े पर लिखें। नीचे शत्रु का नाम लिखें। १०८ बार जप करें भैंसा गुगल का धूप करें। रेशमी डोरे से लपेट कर एकांत में गाड़ देवे। मदिरा की धार देवे धूप गुगल जलावें पास में बैठकर १०८ बार जप करें। शत्रु के पांव की धूल भी गुगल के साथ जलावें। कृष्णपक्ष चतुर्दशी के दिन प्रयोग करें तो शत्रु पैरों में आकर गिरे।

यंत्र को निकाल कर दूध में भिगावें । ॐ ह्रीं पंचांगुली रक्ष रक्ष स्वाहा इस मंत्र से धूप करें, १२१ बार जपे तो शत्रु को शांति मिले।

पंचांगुली प्रयोग  

रक्षा मन्त्र -

ॐ ह्रीं श्रीं पंचांगुलि देवी मम शरीरे सर्व अरिष्टान् निवारणाय नमः स्वाहा ठः ठः ।

इस मन्त्र का सवालाख जप करें। धूप देवे तो सर्वकार्य सिद्ध होवे ।

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