बृहत् पाराशर होरा शास्त्र अध्याय १८

बृहत् पाराशर होरा शास्त्र अध्याय १८   

बृहत् पाराशर होरा शास्त्र अध्याय १८ में भावेशफल का वर्णन हुआ है।

बृहत् पाराशर होरा शास्त्र अध्याय १८

बृहत्पाराशर होराशास्त्र अध्याय १८      

Vrihat Parashar hora shastra chapter 18   

बृहत्पाराशरहोराशास्त्रम् अष्टादशोऽध्यायः

अथ बृहत्पाराशरहोराशास्त्रम् अट्ठारहवाँ अध्याय भाषा-टीकासहितं

बृहत् पाराशर होरा शास्त्र अध्याय १८ – भावेशफलाध्यायः

बृहत् पाराशर होरा शास्त्र अध्याय १८- अथ लग्नेशभावफलम्

लग्नेशे लग्नगे पुंसः सुखी भुजपराक्रमी ।

मनस्वी चातिचाञ्चल्यो द्विभार्यः परगोऽपि वा । । १ । ।

लग्नेश लग्न में हो तो जातक सुखी, पराक्रमी, मनस्वी, अत्यंत चंचल, दो स्त्रियों वाला और परस्त्रीगामी भी होता है।।१।।

लग्नेशे धनगे लाभे सलाभः पण्डितो नरः ।

सुशीलो धर्मविन्मानी बहुदारगुणैर्युतः । । २ । ।

लग्नेश धनस्थान में या लाभस्थान में हो तो जातक लाभ से युक्त पंडित, सुशील, धर्मात्मा, ज्ञानी और अनेक स्त्रियों से युक्त होता है ।। २ ।।

लग्नेशे सहजें षष्ठे सिंहतुल्यपराक्रमी ।

सर्वसम्पद्युतो मानी द्विभार्यो मतिमान्सुखी ॥ ३ ॥

लग्नेश तीसरे या छठे भाव में हो तो जातक सिंह के समान पराक्रमी, सभी सम्पत्ति से युक्त, मानी, दो स्त्रियों वाला और बुद्धिमान् एवं सुखी होता है ।।३।।

लग्नेशे दशमे तुर्ये पितृमातृसुखान्वितः।

बहुभ्रातृयुतः कामी गुणसौन्दर्यसंयुतः ।।४।।

लग्नेश दशम या चतुर्थ भाव में हो तो पिता-माता के सुख से युक्त, अनेक भाइयों वाला, कामी, गुण-सौंदर्य से युक्त होता है । ।४ ॥

लग्नेशे पञ्चमे दानी सुतसौख्यं च मध्यमम् ।

प्रथमापत्यनाशः स्यात्क्रोधी लोभी नृपप्रियः ।। ५ । ।

लग्नेश पाँचवें भाव में हो तो जातक दानी, मध्यम संतान सुखवाला, प्रथम संतान से हीन, क्रोधी, लोभी और राज़प्रिय होता है । ५ ॥

लग्नेशे सप्तमे यस्य भार्या तस्य न जीवति ।

विरक्तो वा प्रवासी वा दरिद्रो वा नृपोऽपि वा ।।६।।

लग्नेश सातवें भाव में हो तो स्त्री का विनाश होता है। वह व्यक्ति विरक्त हो या परदेशी हो, वा दरिद्र हो या राजा होता है ।।६।।

लग्नेशे व्ययगेऽष्टस्थे सिद्धविद्याविशारदः ।

द्यूती चौरो महाक्रोधी परनार्यतिभोगकृत् । ७॥

लग्नेश १२वें या ८वें भाव में हो तो जातक जुआ खेलने वाला, चोर, क्रोधी और परस्त्रीगामी होता है ।

लग्नेशे नवमे पुंसो भाग्यवान् जनवल्लभः ।

विष्णुभक्तः पटुर्वाग्मी पुत्रदारधनैर्युतः ।।८।।

लग्नेश नवम भाव में हो तो पुरुष भाग्यवान्, जनप्रिय, विष्णुभक्त, पंडित, वक्ता और पुत्र - स्त्री से युक्त होता है । । ८ । ।

बृहत् पाराशर होरा शास्त्र अध्याय १८- अथ धनेशभावफलम्

धनेशे च तनौ पुत्री स्वकुटुम्बस्य कण्टकः ।

धनवान्निष्ठुरः कामी परकार्येषु तत्परः ।।९।।

धनेश लग्न में हो तो जातक पुत्रवान्, अपने कुटुम्ब का कंटक, धनी, निष्ठुर, कामी और दूसरे के कार्य में तत्पर होता है । । ९ ।।

धनेशे धनगे मर्त्यः धनवान् गर्वसंयुतः ।

भार्याद्वयं त्रयं वापि पुत्रहीनः प्रजायते । । १० ।।

धनेश धनभाव में हो जातक धनी, धर्म से युक्त होता है। उसे २ या ३ स्त्रियाँ होती है और पुत्रहीन होता है।।१०।।

धने सहजे तुर्ये विक्रमी मतिमान् गुणी ।

परदाराभिमानी च लोभी वा देवनिन्दकः । । ११ । ।

धनेश तीसरे या चौथे भाव में हो तो जातक पराक्रमी, बुद्धिमान्, गुणी, परायी स्त्री का अभिमान करने वाला, लोभी या देवनिंदक होता है । । ११ ।।

धनेशे सुतभावस्थे पुत्रतो धनवान् भवेत् ।

कृपणो दुःखभाग्जातो यशस्वी पुत्रवान् भवेत् ।।१२।।

धनेश पाँचवें भाव में हो तो पुत्र से धनी, कृपण, दुःख भोगने वाला, यशस्वी और पुत्रवान् होता है । । १२ ।।

धनेशे शत्रुगे शत्रोर्धनं प्राप्नोति निश्चितम् ।

शत्रुतो वित्तनाशः स्याज्जंघोर्वोर्भवेच्च रुक् ।। १३ ।।

धनेश छठे भाव में हो तो शत्रु से धन प्राप्त करने वाला, पुत्र द्वारा धन नाश वाला और जंघा तथा उरु प्रदेश में रोग युक्त होता है ।। ११ ।।

धनेशे सप्तमे वैद्यः परजायाभिगामिनः ।

जाया तस्य भवेद्वेश्या माता च व्यभिचारिणी । । १४ । ।

धनेश सातवें भाव में हो तो जातक वैद्य होता है, परस्त्रीगामी होता है। उसकी स्त्री वेश्या और माता व्यभिचारिणी होती है । । १४ ।।

धनेशे मृत्युगेहस्थे भूमिद्रव्यं लभेद् ध्रुवम् ।

जायासौख्यं भवेत्स्वल्पं ज्येष्ठ भ्रातृसुखं न हि ।। १५ ।।

धनेश आठवें भाव में हो तो जातक को भूमिगत द्रव्य का लाभ, स्त्री का सुख अल्प और ज्येष्ठ भाई का सुख नहीं होता है । । १५।।

धनेशे नवमे लाभे धनवानुद्यमी पटुः ।

बाल्ये रोगी सुखी पश्चाद्यावदायुः समाप्यते ।।१६।।

धनेश नवम भाव वा लाभभाव में हो तो जातक धनी, उद्यमी, विद्वान् होता है । बाल्य अवस्था में रोगी और पीछे आयु पर्यंत सुखी होता है । । १६ ।।

धनेशो दशमे यस्य कामी मानी च पण्डितः ।

बहुदारधनैर्युक्तः सुतहीनो प्रजायते ।।१७।।

धनेश दशम भाव में हो तो जातक कामी, मानी, पंडित, अनेक स्त्री तथा धन से युक्त और पुत्रहीन होता है । । १७ ।।

धनेशे व्ययगे ज्ञानी साहसी धनवर्जितः ।

जीविका नृपगेहाच्च ज्येष्ठपुत्रसुखं न हि । । १८ ।।

धनेश- बारहवें भाव में हो तो जातक ज्ञानी, साहसी, धनहीन, राजगृह से जीविकावाला और ज्येष्ठ पुत्र के सुख से हीन होता है । । १८ । ।

बृहत् पाराशर होरा शास्त्र अध्याय १८- अथ सहजेशभावफलम्

तृतीयेशे तनौ लाभे स्वभुजार्जितवित्तवान् ।

मूर्खः कृशो महारोगी साहसी परसेवकः । । १९ ।।

तृतीयेश लग्न या लाभ भाव में हो तो जातक अपनी कमाई से धनी, मूर्ख, कृश, महारोगी अपितु साहसी, दूसरे का सेवक होता है । । १९ ।।

गुदाभञ्जनिकः स्थूलः परभार्याधने रुचिः ।

स्वल्पारम्भी सुखी न स्यात्तृतीयेशे धनं गते ॥ २० ॥

तृतीयेश दूसरे भाव में हो तो जातक स्त्री के स्वभाव का, स्थूल, परस्त्री के धन से कार्य आरम्भ करने वाला और सुखी नहीं होता है ।। २० ।।

तृतीयेशे तृतीयस्थे विक्रमी सुतसंयुतः ।

धनयुक्तो महाहृष्टो भुनक्ति सुखमद्भुतम् ।। २१ । ।

तृतीयेश तीसरे भाव में हो तो जातक पराक्रमी, पुत्रवान्, धनी, प्रसन्न और अद्भुत् सुख को भोगने वाला होता है ।। २१ । ।

तृतीयेशे सुखे कर्मे पञ्चमे वा सुखी सदा ।

अतिक्रूरा भवेद्भार्या धनाढ्यो मतिमान् भवेत् ।। २२ ।।

तृतीयेश चौथे, दसवें और पाँचवें भाव में हो तो जातक सदा सुखी, अतिक्रूर स्त्री से युक्त, धनी और बुद्धिमान् होता है ।। २२ ।।

तृतीयेशो रिपो यस्य भ्राता शत्रुर्महाधनी ।

मातुलानां सुखं न स्यान्मातुल्या भोगमिच्छति । । २३ ॥

तृतीयेश छठे भाव में हो तो जातक का भाई शत्रु होता है। जातक स्वयं महाधनी, मामा के सुख से हीन और मामी से संभोग की इच्छावाला होता है ।। २३ ।।

तृतीयेशेऽष्टमे द्यूने राजद्वारे मृतिर्भवेत् ।

चोरो वा परगामी वा बाल्ये कष्टं दिने दिने ।। २४ ।

तृतीयेश आठवें या सातवें भाव में हो तो जातक की मृत्यु राजद्वार में होती है, चोर, परस्त्रीगामी और बाल्य समय में कष्ट भोगने वाला होता है । । २४ । ।

तृतीयेशे व्यये भाग्ये स्त्रीभिर्भाग्योदयो भवेत् ।

पिता तस्य महाचोरः सुखेऽपि दुःखदर्शकः । । २५ ।।

तृतीयेश बारहवें या भाग्यभाव में हो तो जातक का भाग्योदय स्त्री के द्वारा होता है और उसका पिता बड़ा चोर होता है ।। २५ । ।.

बृहत् पाराशर होरा शास्त्र अध्याय १८- अथ सुखेशभावफलम्

सुखेशे लग्नगे वापि पितृपुत्रौ च स्नेहलौ ।

पितृपक्षवैरिकलितं पितृनाम्ना प्रसिद्धं च ।। २६ ।।

सुखेश लग्न में हो तो पिता-पुत्र में स्नेह होता है, चाचा आदि से वैरभाव और पिता के नाम से प्रसिद्धि होती है ।। २६ ।।

सर्वसम्पद्युतो मानी साहसी कुहकान्वितः ।

कुटुम्बसंयुतो भोगी सुखेशे च धनस्थिते । । २७ ।।

सुखेश धनभाव में हो तो जातक सभी सम्पत्तियों से युक्त, मानी, साहसी, इन्द्रजाल करने वाला, कुटुम्ब से युक्त और भोगी होता है ।। २७ ।।

सुखेशे सहजे लाभे नित्यरोगी भवेन्नरः ।

उदारो गुणवान्दाता स्वभुजार्जितवित्तवान् ।। २८ । ।

सुखेश तीसरे या ग्यारहवें भाव में हो तो जातक नित्यरोगी, उदार, गुणी, दाता और अपने परिश्रम से द्रव्य पैदा करने वाला होता है ।। २८ ।।

तुर्येशे तुर्यगे मन्त्री भवेत्सर्वधनाधिपः ।

चतुरः शीलवान् मानी धनाढ्यः स्त्रीप्रियः सुखी । । २९ ।।

सुखेश सुख भाव में हो तो मंत्री सभी प्रकार की संपत्ति से युक्त, चतुर, शीलवान्, मानी, धनी और स्त्रीप्रिय तथा सुखी होता है । । २९।।

तुर्येशे पञ्चमे भाग्ये सुखी सर्वजनप्रियः ।

विष्णुभक्तिरतो मानी स्वभुजार्जितवित्तवान् । ३० ।।

सुखेश पाँचवें वा नवम भाव में हो तो जातक सुखी, सर्वजनप्रिय, विष्णुभक्त, मानी और अपने पराक्रम से द्रव्य पैदा करने वाला होता है । । ३० ।।

सुखेशे शत्रुगेहस्थे सदा स्याद्वहुयातृकः ।

क्रोधी चौरोऽभिचारी च दुष्टचित्तो मनस्व्यपि । । ३१ ।।

सुखेश छठे भाव में हो तो जातक हर समय परदेश में रहनेवाला, क्रोधी, चोर, घात करने वाला, दुष्ट और मनस्वी होता है । । ३१ ।।

सुखेशे सप्तमे लग्ने बहुविद्यासमन्वितः ।

पित्रार्जितधनत्यागी सभायां मूकवद्भवेत् ।।३२।।

सुखेश सातवें भाव में हो तो जातक अनेक विद्याओं से युक्त, पिता के धन को त्यागने वाला, सभा में मूक होता है ।। ३२ ।।

सुखेशे व्ययरन्ध्रस्थे सुखहीनो भवेन्नरः ।·

पितृसौख्यं भवेदल्पं क्लीबो वा जारजोऽपि वा ।।३३॥

सुखेश बारहवें या ८वें स्थान में हो तो जातक सुखहीन होता है और उसे पिता का अल्पसुख नपुंसक अथवा जार से उत्पन्न हुआ होता है ।।३३।।

सुखेशे कर्मगेहस्थे राजमान्यो भवेन्नरः ।

रसायनी महाहृष्टो भुनक्ति सुखमद्भुतम्।।३४।।

सुखेश कर्मभाव में हो तो जातक राजमान्य, रसायन क्रिया को जाननेवाला, प्रसन्न और सुख को भोगने वाला होता है ।। ३४ ।।

बृहत् पाराशर होरा शास्त्र अध्याय १८- अथ सुतेशभावफलम्

सुतेशे लग्नसहजे मायावी पिंशुनो महान्।

लोष्ठं दत्तवान्नैव काचिद्द्रव्यस्य का कथा । । ३५ ।।

पंचमेश लग्न और तीसरे भाव में हो तो जातक मायावी और कृपण होता है ।। ३५ ।।

सुतेशे चायुधि धने बहुपुत्री न संशयः ।

कासश्वाससुखी न स्यात्क्रोधयुक्तो धनान्वितः ।। ३६ ।।

पंचमेश ८वें वा २ सरे भाव में हो तो जातक अनेक पुत्रों से युक्त, कांस श्वासरोगी, क्रोधी और धनी होता है । । ३६ ।।

सुतेशे मातृभवने चिरं मातृसुखं भवेत् ।

लक्ष्मीयुक्तः सुबुद्धिश्च सचिवोऽप्यथवा गुरुः ।। ३७ ।।

सुतेश ४ भाव में हो तो जातक को माता का सुख अधिक, लक्ष्मीयुक्त, बुद्धिमान्, मंत्री वा गुरु होता है। मुहूर्त को जानने वाला, टेढ़ा बोलने वाला, धनी और बुद्धिमान् होता है ।। ३७ ।।

सुतेशे पञ्चमे यस्य तस्य पुत्रो न जीवति ।

क्षणिकः क्रूरभाषी च धनिको मतिमान्भवेत् ।। ३८ ।।

सुतेश ५ वें भाव में हो तो जातक का पुत्र नहीं जीता है ।। ३८ ।।

सुतेशे षष्ठरिःफस्थे पुत्रः शत्रुत्वमाप्नुयात् ।

मृतापत्यो दत्तपुत्रो धनपुत्रोऽथवा भवेत् । । ३९ ।।

सुतेश छठे, बारहवें भाव में हो तो जातक को पुत्र से शत्रुता होती है और उसके पुत्र मर जाते हैं। उसे दत्तक पुत्र या क्रीत पुत्र होता है ।। ३९ ।।

सुतेशे कामगे मानी सर्वधर्मसमन्वितः ।

तुंगबष्टिस्तनुस्वामी भक्तियुक्तैकचेतसा ।। ४० ।।

सुते ७ वें भाव में हो तो जातक मानी, सभी धर्मों से युक्त, ऊँचे नाक वाला और भक्ति युक्तं होता है ।। ४० ।।

सुतेशे नवमे कर्मे पुत्रो भूपसमो भवेत् ।

अथवा ग्रन्थकर्ता च विख्यातः कुलदीपकः । । ४१ ।।

सुतेश ९वें या १० वें भाव में हो तो जातक का पुत्र राजा के समान होता है अथवा प्रसिद्ध ग्रंथकर्त्ता होता है । । ४१ ।।

सुतेशे लाभभवने पण्डितो जनवल्लभः ।

ग्रन्थकर्त्ता महाक्षो बहुपुत्रधनान्वितः । । ४२ ।।

सुतेश लाभभाव में हो तो जातक पंडित, जनप्रिय, ग्रंथकर्त्ता, दक्ष, अनेक पुत्र और धन से युक्त होता है ।। ४२ ।।

बृहत् पाराशर होरा शास्त्र अध्याय १८- अथ षष्ठेशभावफलम्

षष्ठेशे सप्तसे लाभे लग्ने वा कीर्त्तिमान् भवेत् ।

धनवान् गुणवान् मानी साहसी पुत्रवर्जितः । । ४३ ॥

षष्ठेश सातवें, ग्यारहवें या लग्न में हो तो जातक कीर्तिमान्, धनवान्, गुणी, मानी, साहसी और पुत्रहीन होता है ।। ४३ ।।

षष्ठेशे कर्मवित्तस्थे साहसी कुलविश्रुतः ।

परदेशे सुखी वक्ता स्वकर्मे चैकनिष्ठिकः ।।४४ ।।

षष्ठेश दशम वा दूसरे भाव में हो तो जातक साहसी, कुल में विख्यात, परदेशी, वक्ता और अपने कर्म में निष्णात होता है । । ४४॥

षष्ठेशे सहजे तुर्ये क्रोधेनारक्तलोचनः ।

मनस्वी पिशुनो द्वेषी चलचित्तोऽतिवित्तवान् ।। ४५ ।।

षष्ठेश तीसरे या चौथे भाव में हो जातक का नेत्र क्रोध से रक्तवर्ण का, मनस्वी, कृपण, द्वेष करने वाला, अस्थिरचित्त और अत्यंत धनी होता है ।। ४५ ।।

षष्ठेशे पञ्चमे यस्य चलमिन्नधनादिकम् ।

दयायुक्तः सुखी सौम्यः स्वकार्ये चतुरो महान् ।।४६ ।।

पाँचवें भाव में हो तो जातक के मित्र तथा धन चंचल होते हैं। दयावान्, सुखी, सौम्यमूर्ति और अपने कार्य में अत्यंत चतुर होता है।।४६।।

षष्ठेशे रिपुभावस्थे स्वज्ञातिः शत्रुवद्भवेत् ।

परजातिर्भवेन्मित्रं भूमौ न चलति ध्रुवम् ।।४७।।

षष्ठेश छठे भाव में हो जातक के जातिवाले ही उसके शत्रु होते हैं, परजाति के लोग मित्र होते हैं और हमेशा सवारी से चलता है ।। ४७ ।।

षष्ठेशेऽष्टमरिःफस्थे रोगी शत्रुर्मनीषिणाम् ।

परजायाभिगामी च जीवहिंसासु तत्परः ।।४८ ।।

षष्ठेश ८वें या १२वें भाव में हो तो जातक रोगी और अच्छे लोगों का शत्रु, परस्त्रीगामी और हिंसक होता है ।। ४८ ।।

षष्ठेशो नवमे यस्य काष्ठपाषाणविक्रयी ।

व्यवहारे क्वचिद्धानिः क्वचिद्वृद्धिर्भवेत्किल ।।४९ ।।

षष्ठेश नवम स्थान में हो तो जातक लकड़ी, पत्थर आदि बेचने वाला, व्यापार में कभी हानि और कभी वृद्धिवाला होता है । । ४९ ।।

बृहत् पाराशर होरा शास्त्र अध्याय १८- अथ सप्तमेशभावफलम्

सप्तमेशे तनौ चास्ते परजायासु लम्पटः ।

दुष्टो विचक्षणो धीरो वातरुक् स्थीयते हृदि । । ५० ।।

सप्तमेश लग्न या सप्तम में हो तो जातक परस्त्री में आसक्त, दुष्ट, पंडित, वातरोगी होता है । । ५० ।।

द्यूनेशे नवमे वित्ते नानास्त्रीभिः समागमः ।

आरम्भी दीर्घसूत्री च स्त्रीषु चित्तं हि केवलम् ।। ५१ । ।

सप्तमेश नवम और दूसरे भाव में हो तो अनेक स्त्रियों में आसक्त, कार्य को आरंभ करने वाला, दीर्घसूत्री और केवल स्त्री में चित्तं को लगाने वाला होता है ।। ५१ । ।

द्यूनेशे सहजे लाभे मृतपुत्रः प्रजायते ।

कदाचिज्जीवति सुता यत्नात्पुत्रोऽपि जायते ।। ५२ ।।

सप्तमेश ३रे या ११ वें भाव में हो तो जातक के संतान नहीं जीते हैं। .कदाचित् कन्या जीती है, यत्न करने से पुत्र भी जीता है ।। ५२ ।।

द्यूनेशे दशमे तुर्ये नास्य जाया पतिव्रता ।

धर्मात्मा सत्यसंयुक्तः केवलं दन्तरोगवान् ।। ५३ ।।

सप्तमेश दशम या चतुर्थ भाव में हो तो जातक की स्त्री पतिव्रता नहीं होती है। जातक सर्वगुणसम्पन्न, मानी और सर्व सम्पत्तिमान् होता. है ।। ५३ ।।

सर्वगुणयुतो मानी भवेत्सर्वधनाधिपः ।

सदैव हर्षसंयुक्तः सप्तमेशे सुते स्थिते । । ५४॥

सप्तमेश पाँचवें भाव में हो तो जातक सभी गुणों से युक्त, मानी, सभी प्रकार के धनों से युक्त, सदैव प्रसन्न रहने वाला होता है । । ५४ ।।

जायेशे चाष्टमे षष्ठे रोगिणी कामिनी लभेत् ।

क्रोधयुक्तो भवेद्वापि न सुखं लभते क्वचित् ।।५५ ।।

सप्तमेश ६ या ८ भाव में हो तो जातक की स्त्री रोगिणी होती है। जातक क्रोधी होता है और सुखी नहीं रहता है । । ५५ । । .

द्वादशस्थे सप्तमेशे दरिद्रः कृपणो महान् ।

चारुकन्या भवेद्भार्या वस्त्राज्जीवी च निर्धनी । । ५६ ॥

सप्तमेश १२वें भाव में हो तो जातक दरिद्र, अत्यंत कृपण, स्त्री सुंदरी, और वस्त्र से जीविका करने वाला निर्धन होता है ।। ५६ ।।

बृहत् पाराशर होरा शास्त्र अध्याय १८- अथाष्टमेशभावफलम्

अष्टमेशे तनौ कामे भार्यायुग्मं समादिशेत् ।

विष्णुद्रोहरतो नित्यं व्रणरोगी प्रजायते । । ५७ ।।

अष्टमेश लग्न या सातवें भाव में हो तो जातक की दो स्त्रियाँ होती हैं । सदा विष्णु का द्रोह करने वाला और व्रणरोगी होता है । । ५७ ।।

धनं तस्य भवेत्स्वल्पं गतं वित्तं न लभ्यते ।

अष्टमेशे धने बाहुबलहीनः प्रजायते । । ५८ ।।

अष्टमेश धनस्थान में हो तो जातक अल्प धन वाला, बाहुबल से हीन और नष्ट हुए द्रव्य को न पाने वाला होता है ।। ५८ ।।

अष्टमेशे तृतीये चेत् भ्रातृहीनो भवेन्नरः ।

बन्धुद्वेषी सुहृद्वेषी व्यङ्गो दुर्बलदेहभाक् ।। ५९ ।।

अष्टमेश तीसरे भाव में हो तो जातक भ्रातृहीन, बंधुओं से द्वेष करनेवाला, अंगहीन और दुर्बल शरीर का होता है । । ५९ ।।

अष्टमेशे सुखे कर्मपिशुनो बन्धुवर्जितः ।

मातापित्रोर्भवेन्मृत्युः स्वल्पकालेन भीतियुक् । । ६०॥

अष्टमेश चौथे भाव में हो तो जातक कर्महीन, बंधुहीन और थोड़ी अवस्था में ही मातृ-पितृविहीन होता है।।६०।।

अष्टमेशे सुते लाभे तस्य वृद्धिर्न जायते ।

द्रव्यं न स्थीयते गेहे स्थिरबुद्धिर्भवेज्जनः । । ६१ ।।

अष्टमेश पाँचवें या ग्यारहवें भाव में हो तो जातक बुद्धिहीन, द्रव्यहीन और मूर्ख होता है । । ६१ ।।

अष्टमेशे व्यये षष्ठे नित्यं रोगी प्रजायते ।

जलसर्पादिकाद्घातो भवेत्तस्य च शैशवे । । ६२ ।।

अष्टमेश छठे या बारहवें भाव में हो तो जातक सदा रोगी, शैशव अवस्था में जल या सर्प भय से पीड़ित होता है ।। ६२ ।।

द्यूती चौरोऽन्यथावादी गुरुनिन्दासु तत्परः ।

अष्टमेशेऽष्टमस्थाने भार्या पररता भवेत् ॥ ६३ ॥

अष्टमेश अष्टम भाव में हो तो जातक की स्त्री दूसरे में आसक्त होती है और वह जुआड़ी, चोर, असत्य बोलने वाला और गुरु की निंदा करने वाला होता है ।। ६३ ।।

अष्टमेशे तपः स्थाने महापापी च नास्तिकः ।

सुतहा यथवा वन्ध्या परभार्याधने रुचिः । । ६४ ।।

अष्टमेश नवम भाव में हो तो जातक महापापी, नास्तिक, पुत्रनाशक, वा वंध्या और परस्त्री एवं परधनलोलुप होता है ।। ६४ ।।

अष्टमेशे स्थिते माने नीचकर्मप्रवृत्तिवान् ।

प्रेष्यो च जारजो क्रूरो मातृहीनो भवेन्नरः । । ६५।।

अष्टमेश दशमभाव में हो तो जातक नीच कर्म में रत, दासकर्म करने वाला, जार से उत्पन्न, क्रूर और मातृसुख से हीन होता है । । ६५ ।।

बृहत् पाराशर होरा शास्त्र अध्याय १८- अथ भाग्येशभावफलम्

भाग्येशे च मदे कल्पे गुणवान्कीर्त्तिमान्भवेत् ।

कदाचिन्न भवेत्सिद्धं यत्कार्यं कर्त्तुमिच्छति । । ६६ ।।

भाग्येश लग्न या सप्तम भाव में हो तो जातक गुणी, कीर्त्तियुक्त होता है । उसे जिस कार्य की इच्छा होती है वह कभी सिद्ध नहीं होता है ।। ६६ ।।

भाग्येशे सहजे वित्ते सदा भाग्यानुचिन्तकः ।

धनवान् गुणवान्कामी पण्डितो जनवल्लभः ।। ६७ ।।

भाग्येश तीसरे या दूसरे भाव में हो तो जातक सदा भाग्यवान्, धनी, गुणी, कामी, पंडित और जनवल्लभ होता है । । ६७ ।।

भाग्येशे दशमे तुर्ये मन्त्री सेनापतिर्भवेत् ।

पुण्यवान्सुयशो वाग्मी साहसी क्रोधवर्जितः ।। ६८ ।।

भाग्येश दशम या चतुर्थ भाव में हो तो जातक मंत्री वा सेनापति, पुण्यवान्, यशस्वी, बुद्धिमान्, साहसी और क्रोध रहित होता है । । ६८ ।। .

भाग्येशे पञ्चमे लाभे भाग्यवान् जनवल्लभः ।

गुरुभक्तिरतो मानी धीरो धीरगुणैर्युतः । । ६९ । ।

भाग्येश पाँचवें या लाभ भाव में हो तो जातक भाग्यवान्, जनता का प्रेमी, गुरु की भक्ति में आसक्त, मानी तथा धीर होता है ।। ६९ ।।

भाग्येशे त्रिकभावे चेत्भाग्यहीनो भवेन्नरः ।

मातुलस्य सुखं न स्याज्येष्ठ भ्रातृसुखं तथा । ।७० ।।

भाग्येश ६, , १२ भावों में हो तो जातक भाग्यहीन, माता के और ज्येष्ठ भाई के सुख से हीन होता है ।। ७० ।।

बृहत् पाराशर होरा शास्त्र अध्याय १८- अथ कर्मेशभावफलम्

कर्मेशाधिपतौ लग्ने कवितागुणसंयुतः ।

बाल्ये रोगी सुखी पश्चाद्दर्थवृद्धिर्दिने दिने । । ७१ ।।

कर्मेश लग्न में हो तो जातक कविता करने वाला, बाल्यकाल में रोगी, पीछे सुखी और प्रतिदिन धन में वृद्धि वाला होता है । ।७१ ।।

धने मंदे च सहजे कर्मेशो यदि संस्थितः ।

मनस्वी गुणवान् वाग्मी सत्यधर्मसमन्वितः ।। ७२ ।।

कर्मेश २, , ७ भावों में हो तो जातक मनस्वी, गुणी, बुद्धिमान् और सत्य बोलने वाला होता है ।। ७२ ।।

दशपेशे सुखे कर्मे ज्ञानवान्सुखविक्रमी ।

गुरुदेवार्चनरतों धर्मात्मा सत्यसंयुतः ।।७३।।

कर्मेश चौथे वा दशम भाव में हो तो जातक ज्ञानी, सुखी, विक्रमी, गुरु-देवता के पूजन में रत, धर्मात्मा और सत्यवादी होता है । । ७३ ।।

दशमेशे सुते लाभे धनवान् पुत्रवान् भवेत् ।

सर्वदा हर्षसंयुक्तः सत्यवादी सुखी नरः । । ७४।

कर्मेश पाँचवें या एकादश भाव में हो तो जातक धनी, पुत्रवान्, सर्व प्रसन्नचित्त, सत्यवादी और सुखी होता है । । ७४ ।।

कर्मेोऽरिव्यये यस्य शत्रुभिः परिपीडितः ।

चातुर्यगुणसम्पन्नः क्वन्निच्च न सुखी नरः । । ७५ ।।

कर्मेश छठे या बारहवें भाव में हो तो जातक शत्रुओं से पीडित, चतुर और कभी सुखी न रहने वाला होता है ।। ७५ ।।

कर्मेश रन्ध्रगे जातो क्रूरो चौरोऽथवा धूर्त्तः ।

अल्पायुरसद्वक्तां मातृसन्तापकारकः ।।७६ ।।

कर्मेश आठवें भाव में हो तो जातक क्रूर, चोर अथवा धूर्त और झूठ बोलने वाला और माता को संताप देने वाला होता है ।। ७६ ।।

कर्मेश नवमे यस्य स भवेत्कुलपालकः ।

सद्बन्धुमित्रसंयुक्तः मातृभक्तोऽथ पूजकः ।। ७७ ।।

कर्मेश नवम भाव में हो तो जातक कुलपालक श्रेष्ठ, बन्धु-मित्र से युक्त और भातृभक्त होता है ।। ७७ ।।

बृहत् पाराशर होरा शास्त्र अध्याय १८- अथ लाभेशभावफलम्

लाभेशे संस्थिते लग्ने धनवान्सात्त्विको महान् ।

समदृष्टिर्महान्वक्ता कौतुको च भवेत्सदा । । ७८ ।।

लाभेश लग्न में हो तो जातक धनी, सात्त्विक, समदृष्टि, वक्ता और कौतुक होता है ।। ७८ ।।

लाभेशे च धने पुत्रे नानासुखसमन्वितः ।

पुत्रवान्धार्मिकश्चैव सर्वसिद्धियुतः पुमान् ।। ७९ ।।

लाभेश दूसरे या पाँचवें भाव में हो तो जातक अनेक सुखों से युक्त, पुत्रवान्, धार्मिक और सभी पदार्थों से युक्त होता है ।। ७९ ।।

लाभे सहजे तुर्ये तीर्थेषु तत्परो महान् ।

कुशलः सर्वकार्येषु केवलं शूलरोगवान् । । ८० ।।

लाभेश तीसरे या चोथे भाव में हो तो जातक तीर्थयात्रा में तत्पर, सभी कार्यों में कुशल और शूलरोग से युक्त होता है ।। ८०।।

लाभेशे षष्ठभवने नानारोगसमन्वितः ।

सर्वं सुखं भवेत्तस्य प्रवासी परसेवकः । । ८१ ।।

लाभेश छठे भाव में हो तो जातक अनेक रोगों से युक्त, प्रवासी और दूसरे का नौकर होता है । । ८१ । ।

लाभे सप्तमे रन्ध्रे भार्या तस्य न जीवति ।

उदारो गुणवान्कर्मी मूर्खो भवति निश्चितम्।। ८२ ।।

लाभेश सातवें या आठवें भाव में हो तो जातक की स्त्री नहीं होती है। वह गुणी, उदार और मूर्ख होता है । ८२ ।।

लाभे गंगने धर्मे राजपूज्यो धनाधिपः ।

चतुरः सत्यवादी च निजधर्मसमन्वितः । । ८३ ।।

लाभेश दशम या नवम भाव में हो तो जातक राजा से पूज्य, धनी, चतुर, सत्यवक्ता और अपने धर्म से युत होता है ।। ८३ ।।

लाभेशे संस्थिते लाभे स वाग्मी भवति ध्रुवम् ।

पाण्डित्यं कविता चैव वर्धते च दिने दिने ॥ ८४ ॥

लाभेश लाभ भाव में हो तो जातक बुद्धिमान्, पंडित और कवि होता है । । ८४ ।।

प्राप्तिस्थानाधिपे रि:फे म्लेच्छसंसर्गकारकः ।

कामुको बहुकान्तश्च क्षणिको लम्पटः सदा । । ८५ ।।

लाभेश बारहवें भाव में हो तो जातक नीचों से संसर्ग करने वाला, कामी, अनेक स्त्रियों वाला और लम्पट होता है ।। ८५ ।।

बृहत् पाराशर होरा शास्त्र अध्याय १८- अथ व्ययेशभावफलम्

व्ययेशे मदने लग्ने जायासौख्यं भवेत्र हि ।

दुर्बलः कफरोगी च धनविद्याविवर्जितः ॥ ८६ ॥ ।

व्ययेश सातवें या लग्न में हो तो जातक को स्त्री का सुख नहीं होता है। जातक दुर्बल, कफरोगी और धन- विद्या से हीन होता है ।। ८६ ।।

व्ययेशे च धने रन्ध्रे विष्णुभक्तिसमन्वितः ।

धार्मिकः प्रियवादी च सम्पूर्णगुणसंयुतः । । ८७ ।।

व्ययेश दूसरे. या आठवें भाव में हो तो जातक विष्णुभक्त, धार्मिक, प्रियभाषी, गुणी होता है ।। ८७ ।।

भार्याद्वेषी प्रियद्वेषी गुरुद्वेषी भवेन्नरः ।

व्ययेशे सहजे धर्मे स्वशरीरस्य पोषकः । । ८८ ।।

व्ययेश तीसरे या नवम भाव में हो तो जातक अपने शरीर का पोषक, स्त्रीद्वेषी, मित्रद्रोही और गुरुद्रोही होता है । । ८८ ।।

पुत्रहीनो महादुःखी तीर्थाटनपरो भवेत् ।

कृपणो रोगयुक्तश्च व्ययेशे च सुते सुखे । । ८९ ।।

व्ययेश पाँचवें या चौथे भाव में हो तो जातक पुत्र रहित, महादुःखी, तीर्थाटन करने वाला, कृपण और रोगी होता है । । ८९ ।।

व्ययेशेऽरिव्यये पापी मातृमृत्युविचिन्तकः ।

क्रोधी सन्तानदुःखी च परजायासु लम्पटः । । ९० ।।

व्ययेश छठें या बारहवें भाव में हो तो जातक पापी, माता के मृत्यु का कारण, क्रोधी, संतान से कष्ट और परस्त्रीगामी होता है । । ९० ।।

व्ययेशे दशमे लाभे पुत्रसौख्यं भवेत्र हि ।

मणिमाणिक्यमुक्तादि धत्ते किञ्चित्समालभेत् ।।९१।।

व्ययेश दशम या एकादश भाव में हो तो जातक पुत्रसुख से हीन, मणि- माणिक्य आदि के होते हुए भी सुखहीन होता है । । ९१ ।।

एतत्ते कथितं विप्र भावेशानां तु यत् फलम् ।

बलाबलविवेकेन सर्वेषां फलमादिशेत् । ।९२।।

जो भावेशों के फल कहे गये हैं वे ग्रहों के बल - अबल के अनुसार ही होते हैं ।। ९२ ।।

ग्रहे पूर्णबले प्राप्ते फलं पूर्णं समादिशेत् ।

अर्धमर्धबले प्राप्ते हीने पादं समादिशेत् । । ९३ ।।

भावानां द्वादशानां च सर्वेषां फलमादिशेत् ।

उक्तं भावस्थितानां च भावेशानां फलं मया ।। ९४ ।।

ग्रह पूर्णबली हो तो पूर्णबल, मध्यबली हो तो आधाबल और हीनबली हो तो चतुर्थांश फल देता है।।९३-९४।

इति पाराशरहोरायां पूर्वखण्डे सुबोधिन्यां भावेशफलाध्यायः अष्टादशः ।। १८ ।

आगे जारी............. बृहत्पाराशरहोराशास्त्र अध्याय 19

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