हस्तरेखा

हस्तरेखा

भविष्य को जानने की कई विधियां प्रचलित हैं, जिनमें फलित ज्योतिष, हस्तरेखा, मुखाकृति ज्योतिष, बांस छड़ प्रयोग, भविष्य पक्षी ज्ञान, प्रश्न ज्योतिष, नेपोलियन थ्योरी, ताश के पत्तों से भविष्य ज्ञान आदि विधियां हैं, जो भविष्य कथन में सहायक होती हैं, पर इन सब में साध्य-साधन की न्यूनाधिक आवश्यकता पड़ती ही है।

हस्तरेखा

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प्रस्तुत लेख व इसके अंतर्गत दी गई साधना परम पूज्य श्रीनिखलेश्वरानन्द जी महाराज की कृति हस्त रेखा विज्ञान और पंचांगली साधना में वर्णित है।

मात्र हस्तरेखा ही एक ऐसी भविष्यकथन पद्धति है, जिसके लिए किसी अन्य उपकरण की आवश्यकता नहीं। मात्र सामने वाले का हाथ और उसकी रेखायें ही पर्याप्त हैं, जिनके माध्यम से हम उसके भूत, वर्तमान और भविष्य के बारे में सही-सही जान सकते हैं। संसार के किन्हीं भी दो मनुष्यों के भाग्य एक से नहीं होते। इसी प्रकार संसार में किन्हीं भी दो व्यक्तियों की हथेलियों में एक सी रेखायें नहीं होतीं। हथेली में मुख्यतः तो चार या पांच ही रेखायें दिखाई देती हैं, परन्तु सूक्ष्मता से देखें, तो पता चलेगा, कि हथेली में छोटी-छोटी सैकड़ों रेखायें हैं और उन सब रेखाओं का एक-दूसरे से संबंध है।

हस्तरेखा

हस्तरेखा को समझने से पहले हाथ एवं उसकी रेखाओं के बारे में सामान्य जानकारी प्राप्त कर लेना परमावश्यक है।

हाथ : मणिबन्ध से लगाकर मध्यमा उंगली के अंतिम सिरे तक की लम्बाई और बायीं ओर से दाहिनी ओर तक की चौड़ाई को हस्तरेखा शास्त्र में हाथ की संज्ञा दी गई है, इस क्षेत्र पर पाये जाने वाले छोटे से छोटे बिन्दु और महीन से महीन रेखा का भी महत्त्व होता है।

उंगलियां : हथेली के सिरे पर चार उंगलियां और एक अंगूठा है। अंगूठे के पास वाली उंगली को 'तर्जनी', इससे आगे की उंगली को 'मध्यमा', उससे आगे की उंगली को 'अनामिका' और इसके आगे की सबसे छोटी उंगली को 'कनिष्ठिका' के नाम से पुकारते हैं।

त्वचा : हथेली की त्वचा की लचक एवं उसका रंग भी सही निर्णय पर पहुंचाने में सक्षम होता है। कठोर, रूखा और अक्खड़ हाथ जहां मजदूर, शारीरिक श्रम करने वाले एवं काम-विकारों से ग्रस्त व्यक्ति के होते हैं; वहीं नरम, लचीला एवं कोमल हाथ सहृदय, भावुक एवं बुद्धिमान व्यक्ति का बोध कराता है।

इसके अतिरिक्त कुछ हाथ इन दोनों विशेषताओं का सम्मिश्रण लिए हुए भी होते हैं, जो न अधिक कठोर होते हैं और न ही अधिक कोमल । ऐसे हाथों का धनी व्यक्ति जीवन में उचित सामंजस्य रखता है। एक प्रकार से कहा जाय, तो उसका स्वभाव समसहिष्णु होता है। उसका प्रत्येक कार्य सोच-विचार कर होता है। वह न तो उतावली में कोई निर्णय लेता है और न किसी कार्य को प्रारम्भ करने के बाद अधूरा छो ड़ता है। उसका यह समानुपातिक स्वभाव ही उसे जीवन में सर्वोच्चता एवं सर्वश्रेष्ठता प्रदान करता है।

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हथेली का रंग :

हथेली का रंग भी निर्णय तक पहुंचाने में सक्षम होता है। आप किसी भी व्यक्ति की हथेली हाथों में लेकर दबाकर छोड़ दीजिये, आप देखेंगे, कि ऐसा करने पर हथेली का स्वाभाविक रंग आपके सामने होगा।

'गुलाबी हथेली ' स्वस्थ मनोवृत्ति, उदार स्वभाव एवं सहिष्णुता की द्योतक है। 'जरूरत से ज्यादा गुलाबी' हथेली काम प्रबलता, चंचलता एवं अस्थिर मनोवृत्ति की द्योतक है। 'पीली हथेली' जीवन में निराशावादी भावना को स्पष्ट करती है। 'नीली हथेली' बीमारी, चिड़चिड़ापन एवं हताश मनोवृत्ति को उजागर करती है।

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हाथ के प्रकार :

एक अच्छे हस्तरेखाविद् के लिए यह जरूरी है, कि वह हाथ के प्रकार को भी समझे और हाथ देखने से पूर्व ही उस हाथ के प्रकार को समझ ले। मुख्यतः हाथ निम्न सात प्रकार के होते हैं-

1. सामान्य हाथ

2. दार्शनिक हाथ

3. वर्गाकार हाथ

4. कर्मठ हाथ

5. कलात्मक हाथ

6. आदर्श हाथ

7. मिश्रित हाथ

सामान्य हाथ :

सामान्यत: यह हाथ अधिकतर देखने में आता है। ऐसा हाथ खुरदरा, अगढ़ एवं बेडौल सा होता है। ऐसे हाथ में उंगलियां छोटी-छोटी और बेडौल-सी रोमयुक्त होती हैं। ऐसा व्यक्ति जीवन में असफल व्यक्ति ही कहा जाता है। शारीरिक श्रम से ये घबराते हैं तथा मानसिक श्रम ये कर नहीं सकते। जरयम पेशा, लूट-खसोट, हत्या अपराध आदि ऐसे ही व्यक्ति करते देखे गये हैं।

दार्शनिक हाथ :

दार्शनिक कहे जाने वाले हाथ मुख्यतः गठीले जोड़ों वाले एवं उभरी हड्डियों वाले होते हैं। इनके हाथों की पहिचान यही है, कि ऐसा हाथ लचीला न होते हुए भी उनकी उंगलियों की जोड़ों में एक विशेष लचक एवं कोमलता दिखाई देती हैं। ऐसे हाथ पतले, लम्बे एवं विशेष आभायुक्त होते हैं। ऐसे व्यक्ति ही समाज को दिशा-निर्देश दे सकते हैं एवं भविष्य को कुछ अमूल्य विचार देकर मानवता का कल्याण कर सकते हैं।

वर्गाकार हाथ :

वर्गाकार हाथ आसानी से पहिचाना जा सकता है, क्योंकि ऐसी हथेलियां सामान्यतः चौकोर वर्ग की होती हैं।

ऐसे व्यक्ति पूर्णत: भौतिकवादी, गहरी सूझबूझ लिए हुए एवं कठोर यथार्थ पर जीवित रहने वाले होते हैं। व्यर्थ की शान-शौकत एवं दिखावे से ये कोसों दूर रहते हैं। सामाजिक कार्यों में, उत्सवों में, समारोहों में ये बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेते हैं एवं वचन के पक्के होते हैं। एक बार जो मुंह से कह देते हैं, उसे अन्तिम क्षण तक निभाते हैं। जीवन का मूल लक्ष्य यश, मान, प्रतिष्ठा, धन और वैभव होता है।

कर्मठ हाथ :

कर्मठ हाथ चौड़ाई की अपेक्षा लम्बाई ज्यादा लिए हुए होता है। ऐसे हांथ की पहिचान यही है, कि हाथ खुरदरा, बेडौल, भारी एवं मांसल होते हुए भी कठोर सा होता है। ऐसा व्यक्ति निष्क्रिय नहीं बैठा रहता, कार्य में जुटे रहना और सतत प्रयत्नशील बने रहना इसका स्वभाव होता है। भावनाओं की अपेक्षा ये वास्तविक जगत में ज्यादा आस्था रखते हैं।

कलात्मक हाथ :

ऐसा हाथ नरम, कोमल, मृदु एवं चिकना गुदगुदा सा होता है। हथेली मांसल, सुडौल एवं ललाई लिए हुए होती है। इस हाथ की विशेषता यह होती है, कि इसकी उंगलियां पतली, नुकीली एवं सुगढ़ होती हैं। ये व्यक्ति कल्पना जगत में जीवित रहने वाले होते हैं, सौन्दर्य एवं कला के पुजारी होते हैं तथा जीवन में प्रेम की प्रधानता रहती है।

आदर्श हाथ :

आदर्श हाथ अपने आप में एक विशेषता है। इसका गठन सुडौल, गुदगुदा एवं एक कमनीय लोच लिए हुए होता है। एक प्रकार से देखा जाय, तो ये हाथ समानुपातिक होते हैं।

ऐसे हाथों के धनी ही समाज के सर्वोत्कृष्ट व्यक्ति होते हैं। तीक्ष्ण बुद्धि, उर्वर कल्पनाशक्ति एवं वास्तविकता की धरातल पर चलते हुए भी आदर्श को अपनी आंखों से ओझल नहीं होने देते।

मिश्रित हाथ :

यह सभी हाथों का मिश्रण होता है। एक प्रकार यह कहा जाय, कि उपर्युक्त वर्गों में जो हाथ न हो, उसे इस वर्ग में समझ लेना चाहिए। ऐसे हाथ की हथेली किसी एक वर्ग की होती है, तो उंगलियां किसी अन्य वर्ग की । इसीलिए इसे मिश्रित हाथ कहा गया है। इस प्रकार के व्यक्ति जीवन में असफल देखे गए हैं। नकारात्मक रुख इनका प्रधान होता है तथा जीवन को व्यर्थ की वस्तु समझ कर चुप रहते हैं। अस्थिर मनोवृत्ति के ये लोग जीवन में कुछ कर सकेंगे, इसमें संदेह ही है। हाथों का प्रकार अध्ययन करने के उपरान्त अंगूठे एवं उंगलियों का ज्ञान भी परमावश्यक है।

संसार के समस्त नर-नारियों के अंगूठों को तीन वर्गों में विभाजित कर सकते हैं -

1. अधिककोण युक्त अंगूठा

2. समकोण युक्त अंगूठा

3. न्यूनकोण युक्त अंगूठा

अधिककोण युक्त अंगूठा : ऐसे अंगूठे वे कहलाते हैं, जो तर्जनी से मिलकर अधिक कोण-सा आकार बनाते हैं। इस प्रकार के अंगूठों के धनी व्यक्ति कला प्रेमी, संगीतज्ञ एवं अपनी विशेष कला के माध्यम से पहचाने जाते हैं।

समकोण युक्त अंगूठा : जिस हाथ में अंगूठा एवं तर्जनी मिलकर समकोण का आकार धारण करते हैं, वे इसी वर्ग में आते हैं। इस प्रकार के व्यक्ति परिश्रमी, संयमी व विवेकवान होते हैं, पर कभी-कभी क्रोध की मात्रा इतनी बढ़ जाती है, कि ये स्वयं पर नियंत्रण नहीं रख पाते और असफलता की ओर विवशत: अग्रसर हो जाते हैं।

न्यूनकोण युक्त अंगूठा : तीसरे प्रकार के अंगूठे वे कहलाते हैं, जो अंगूठा व तर्जनी मिलाकर न्यूनकोण का सा रूप धारण करते हैं। ऐसे व्यक्ति जीवन में निराशावादी, अनास्थावादी एवं तामसी प्रकृति प्रधान होते हैं। जरा-जरा सी बात पर ये क्रोधित हो जाते हैं और आगा-पीछा सोचे बिना सम्बन्धों में दरार पैदा कर देते हैं।

अंगूठे के अतिरिक्त उंगलियों का ज्ञान भी जरूरी है -

तर्जनी : यह हाथ की प्रथम उंगली कहलाती है, जो कि अंगूठे के पास होती है। जहां यह उंगली हथेली से जुड़ती है, उस स्थान पर उभरे भाग को बृहस्पति या गुरु का पर्वत कहा जाता है। एक प्रकार से यह उंगली बृहस्पति ग्रह का प्रतिनिधित्व करती है।

तर्जनी का अनामिका से लम्बी होना शुभ एवं प्रसन्नता का द्योतक है। प्रशासन के क्षेत्र में ये कड़ाई से काम लेते हैं तथा अपनी प्रशंसा से खुश रहते हैं। इसके विपरीत जिन व्यक्तियों के हाथ में अनामिका से तर्जनी छोटी होती है, वे अवसरवादी, खुदगर्ज, कामलोलुप एवं चालाक होते हैं। 'कहेंगे कुछ और करेंगे कुछ' इनकी आदर्श नीति होती है।

मध्यमा : यह हथेली में सबसे बड़ी उंगली होती है। इसके मूल में शनि पर्वत माना गया है। तर्जनी के अपेक्षा यह लम्बी अवश्य होती है, पर 1/4 इंच से ज्यादा लम्बी होना दुर्भाग्य एवं दैन्य ही प्रकट करता है। उचित अनुपात में बड़ी होना व्यक्ति की बुद्धिमता, चतुराई एवं मितव्ययता को प्रकट करती है।

अनामिका : यह मध्यमा उंगली से छोटी एवं तर्जनी से कुछ छोटी होती है। तर्जनी से छोटी होना इसकी शुभता है। ऐसा व्यक्ति दयालु, उदार एवं मानवीय गुणों से सम्पन्न होता है, पर यदि यह उंगली तर्जनी से बड़ी हो, तो वह धृष्ट, कामलोलुप एवं स्वार्थी होता देखा गया है।

कनिष्ठिका : यह हथेली की सबसे छोटी उंगली होती है। इसके मूल में बुध का पर्वत माना गया है। यह उंगली तभी शुभ मानी जाती है, जबकि यह अनामिका उंगली के तीसरे पोरुए को छुए। यदि इससे भी छोटी हो तो, वह व्यक्ति अभाग्यवान ही कहलाता है। यदि कनिष्ठिका उंगली अनामिका के तीसरे पोरुए के ऊपर चढ़े तथा अंतिम सिरे के आधे भाग को छू ले, तो वह व्यक्ति निश्चय ही आइ.ए.एस. अधिकारी या उच्च प्रशासकीय अधिकारी होता ही है।

एक अच्छे हस्तरेखाविद् को चाहिए कि वह हथेली, अंगूठा एवं उंगलियों का सम्यक् एवं सावधानी के साथ अध्ययन करे तथा सही निर्णय पर पहुंचने में सक्षम बने।

आगे जारी........... पर्वत एवं रेखाएं

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