रामज्ञा प्रश्न प्रथम सर्ग

रामज्ञा प्रश्न प्रथम सर्ग

रामज्ञा प्रश्न प्रथम सर्ग Ramagya prashna sarga 1 - रामाज्ञा प्रश्न तुलसीदास की रचना है जो शुभ-अशुभ विचार के लिए रची गयी है। यह विचार उन्होंने राम-कथा की सहायता से प्रस्तुत किया है। यह रचना दोहा शैली में रचित है। सात-सात सप्तकों के सात सर्गों के लिए पुस्तक खोलने पर जो दोहा मिलता है उसके पहले राम-कथा का कोई एक प्रसंग आता है और बाद में शुभ-अशुभ फल चर्चा आती है। तुलसीदास जी की यह रचना अवधी भाषा मे लिखित एक मुक्तक काव्य है। मूलतः यह एक ज्योतिष ग्रन्थ है जिसको तुलसीदास जी ने अपने मित्र गंगाराम ज्योतिष के आग्रह पर लिखा था।

रामज्ञा प्रश्न प्रथम सर्ग

रामज्ञा प्रश्न - प्रथम सर्ग - सप्तक १

बानि बिनायकु अंब रबि गुरु हर रमा रमेस ।

सुमिरि करहु सब काज सुभ, मंगल देस बिदेस ॥१॥

भगवती सरस्वती, श्रीगणेशजी, श्रीपार्वतीजी, श्रीसूर्यभगवान, गुरुदेव, भगवान शड्कर, भगवती लक्ष्मी और भगवान् नारायण का स्मरण करके सभी शुभ कार्य करो, स्वदेश और विदेश में सब कहीं कल्याण होगा॥१॥

( शुभ-कार्य सम्बन्धी प्रश्‍न है तो सफलता मिलेगी । )

गुरु सरसइ सिंधूर बदन ससि सुरसरि सुरगाइ ।

सुमिरि चलहु मग मुदित मन, होइहि सुकृत सहाइ ॥२॥

गुरुदेव, सरस्वती देवी, गणेशजी, चन्द्रमा, गड्गाजी और कामधेनु का स्मरण करके मार्ग में प्रसन्न मन से चलो, (तुम्हारे) पुण्य सहायक होंगे ॥२॥

( यात्रासम्बन्धी प्रश्‍न हो तो यात्रा सफल होगी । )

गिरा गौरा गुरु नगप हर मंगल मंगल मूल ।

सुमित करतल सिद्धि सब, होइ ईस अनुकुल ॥३॥

श्रीसरस्वतीजी, पार्वतीजी, गुरुदेव, गणेशजी, शकरजी और मंगल के दाता मंगल ( ग्रह ) का स्मरण करने से दैव अनुकुल हो जाता है और सब सिद्धियॉं हाथ में आ जाती हैं ॥३॥

( सभी प्रकार के कार्यो में सफलता होगी । )

भरत भारती रिपु दवनु गुरु गनेस बुधवार ।

सुमिरत सुलभ सधर्म फल, बिद्या बिनय बिचार ॥४॥

श्रीभरतलाल, सरस्वती देवी, शत्रुघ्नकुमार, गुरुदेव, गणेशजी और बुधवार ( के देवता बुध ) का स्मरण करने से उत्तम धर्म का फल, विद्या, विनय तथा विचार सुलभ हो जाते हैं ॥४॥

( यदि अध्ययन, धर्मकार्य, शास्त्र-चर्चा सम्बन्ध प्रश्‍न है तो सफलता होगी । )

सुरगुरु गुरु सिय राम गन राउ गिरा उर आनि ।

जो कछु करिय सो होय सुभ, खुलहिं सुमंगल खानि ॥५॥

देवगुरु बृहस्पतिजी, गुरुदेव, श्रीजानकीजी, श्रीरामजी, गणेशजी और सरस्वती देवी का हृदय में ध्यान करके जो कुछ किया जाता है, परिणाम शुभ होता है और सुमड्गल की खानें खुल जाती हैं ( बराबर कल्याण ही होता रहता है।)॥५॥

( सभी प्रकार के प्रश्‍नों के लिये सफलता सूचित होती है । )

सुक्र सुमिरि गुरु सारदा गनपु लखनु हनुमान ।

करिय काजु सब साजु भल, निपटहिं नीक निदान ॥६॥

दैत्यगुरु शुक्र, गुरुदेव, सरस्वती देवी, गणेशजी, लक्ष्मणजी और हनुमान्‌जी का स्मरण करके सब काम करना चाहिये इससे सारी व्यवस्था ठीक हो जायगी और परिणाम भी अत्यन्त सुन्दर होगा ॥६॥

( सभी प्रकार के कायों में सफलता होगी )

तुलसी तुलसी राम सिय, सुमिरि लखनु हनुमान ।

काजु बिचारेहु सो करहु, दिनु दिनु बड़ कल्यान ॥७॥

तुलसीदासजी कहते हैं कि तुलसी (पौधे), श्रीराम, जानकीजी, श्रीलक्ष्मणजी और हनुमानजी का स्मरण करके जो कार्य सोचा है, उसे करो। दिनों दिन बड़ा कल्याण होगा ॥७॥

( सभी प्रकार के कार्यों में सफलता होगी )

रामज्ञा प्रश्न - प्रथम सर्ग - सप्तक २

दसरथ राज न ईति भय, नहिं दुख दुरित दुकाल ।

प्रमुदित प्रजा प्रसन्न सब, सब सुख सदा सुकाल ॥१॥

महाराज दशरथ के राज्य में न ईति ( अतिवृष्टि, अनावृष्टि, टिड्डी, चूहे तथा सुग्गों के उपद्रव तथा शत्रु राजाओं के आक्रमण) का भय था, न दुःख पाप या अकाल का ही भय था । सारी प्रजा प्रसन्न थी, सब प्रकार का सुख था सदा सुकाल ( सुभिक्ष ) रहता था ॥१॥

( यदि प्रश्‍न किसी भय या रोगानिवृत्ति के सम्बन्ध में है तो वह भय या रोग दूर होगा । )

कौसल्या पद नाइ सिर, सुमिरि सुमित्रा पाय ।

करहु काज मंगल कुसल, बिधि हरि संभु सहाय ॥२॥

श्रीकौसल्याजी के चरणों में मस्तक झुकाकर और सुमित्राजी के चरणों का स्मरण करके काम करो, आनन्द-मंगल होगा । ब्रह्मा, विष्णु और शंकरजी सहायक होंगे ॥२॥

( सभी कार्यों मे सफलता होगी । )

बिधिबस बन मृगया फिरत दीन्ह अन्ध मुनि साप ।

सो सुनि बिपति बिषाद बड़, प्रजहिं सोक संतोष ॥३॥

( महाराज दशरथ को ) दैववश वन में आखेट के लिये घूमते समय अन्धे मुनि ने शाप दे दिया । उसे सुनकर प्रजा को बडी़ विपत्ति का बोध हुआ, महान्‌ दुःख शोक और सन्ताप हुआ ॥३॥

( प्रश्‍न-फल अनिष्ट की सूचना देता है । )

सुतहित बिनती कीन्ह नृप, कुलगुरु कहा उपाउ ।

होइहि भल संतान सुनि प्रमुदित कोसल राउ ॥४॥

महाराज दशरथ ने पुत्रप्राप्ति के लिये प्रार्थना की, कुलगुरु वसिष्ठजी ने उसका उपाय बतलाया ( और कहा- ) 'अच्छी सन्तान उत्पन्न होगी ।' यह सुनकर महाराज दशरथ अत्यन्त प्रसन्न हुए ॥४॥

( सन्तान-प्राप्ति सम्बन्धी प्रश्न है तो सफलता होगी । )

पुत्र जागु करवाइ रिषि राजहि दीन्ह प्रसाद ।

सकल सुमंगल मूल जग भूसुर आसिरबाद ॥५॥

महर्षि वसिष्ठजी ने पुत्रेष्टि - यज्ञ कराकर महाराज को प्रसाद दिया। ब्राह्मणों का आशीर्वाद संसार में सभी श्रेष्ठ मंगलों का मूल ( देनेवाला ) है ॥५॥

( प्रश्‍न-फल उत्तम है । )

राम जनम घर घर अवध मंगल गान निसान ।

सगुन सुहावन होइ सत मंगल मोद निधान ॥६॥

श्रीराम का जन्म (अवतार) होने पर अयोध्या के प्रत्येक घर में मंगलगीत गाये जाने लगा, नौबत बजने लगी । यह शकुन शुभदायक है, कल्याण एवं प्रसन्नता का निधान पुत्र होगा ॥६॥

राम भरतु सानुज लखन दसरथ बालक चारि ।

तुलसी सुमिरत सगुन सुभ मंगल कहब पचारि ॥७॥

तुलसीदासजी कहते हैं कि महाराज दशरथ के चारों कुमार श्रीराम, भरत, शत्रुघ्न तथा लक्ष्मण का स्मरण करने से शुभ-शकुन और मंगल होता है, यह मैं घोषणा करके कह देता हूँ ॥७॥

( प्रश्‍न-फल शुभ है । )

रामज्ञा प्रश्न - प्रथम सर्ग - सप्तक ३

भूप भवन भाइन्ह सहित रघुबर बाल बिनोद ।

सुमिरत सब कल्यान जग, पग पग मंगल मोद ॥१॥

महाराज दशरथ के राजभवन में भाइयों के साथ श्रीराम बालक्रीड़ा करते हैं । इसका स्मरण करने से संसार में सब प्रकार कल्याण होता है और पद-पद पर ( सर्वदा ) मंगल एवं आनन्द होता है ॥१॥

( प्रश्‍न - फल शुभ है । )

करन बेध चूड़ा करन, श्रीरघुबर उपबीत ।

समय सकल कल्यानमय, मंजुल मंगल गीत ॥२॥

श्रीरघुनाथजी के कर्णवेध-संस्कार, मुण्डन-संस्कार और यज्ञेपवीत-संस्कार के समय समस्त कल्याणमय सुन्दर मंगलगीत गाये गये ॥२॥

( कर्ण- वेध, यज्ञोपवीतादि संस्कारों से सम्बन्धित प्रश्‍न है तो फल शुभ होगा । )

भरत सत्रुसूदन लखन सहित सुमिरि रघुनाथ ।

करहु काज सुभ साज सब, मिलहिं सुमंगल साथ ॥३॥

श्रीभरतजी, शत्रुघ्नकुमार और लक्ष्मणलाल के साथ श्रीरघुनाथजी का स्मरण करके काम करो, सभी संयोग उत्तम मिलेंगे, कल्याणकारी साथी प्राप्त होंगे ॥३॥

राम लखनु कौसिक सहित सुमिरहु करहु पयान ।

लच्छि लाभ जय जगत जसु, मंगल सगुन प्रमान ॥४॥

श्रीराम-लक्ष्मण का विश्वामित्रजी के साथ स्मरण करके यात्रा करो । संसार में सुयश, विजय तथा धन की प्राप्ति होगी । यह प्रामाणिक मंगल शकुन है ॥४॥

( प्रश्‍न - फल शुभ है । )

मुनिमखपाल कृपाल प्रभु चरनकमल उर आनु ।

तजहु सोच, संकट मिटिहि, सत्य सगुन जियँ जानु ॥५॥

मुनि विश्वामित्रजी के यज्ञ की रक्षा करनेवाले प्रभु श्रीराम के चरण-कमल को हृदय में ले आओ, चिन्ता छोड़ दो, संकट दूर हो जायगा । इस शकुन को चित्त में सत्य समझो ॥५॥

( विपत्ति के दूर होने के सम्बन्ध में प्रश्‍न है तो वह दूर होगी । )

हानि मीचु दारिद आदि अंत गत बीच ।

राम बिमुख अघ आपने गये निसाचर नीच ॥६॥

श्रीराम से विमुख होने पर आदि, अन्त और मध्य-सभी दशा में हानि, मौत, दरिद्रता तथा कष्ट है । (देख लो ) श्रीराम से विमुख नीच राक्षस अपने ही पाप से नष्ट हो गये ॥६॥

सिला साप मोचन चरन सुमिरहु तुलसीदास ।

तजहु सोच, संकट मिटहि, पूजिहि मन कै आस ॥७॥

शिलारूप अहल्या के शाप को छुडा़नेवाले ( श्रीरघुनाथजी के ) चरणों का स्मरण करो । तुलसीदासजी कहते हैं कि चिन्ता छोड़ दो, संकट दूर हो जायगा और मन की अभिलाषा पूरी होगी ॥७॥

( प्रश्‍न - फल शुभ है । )

रामज्ञा प्रश्न - प्रथम सर्ग - सप्तक ४

सीय स्वयंबर सम‍उ भल, सगुन साध सब काज ।

कीरति बिजय बिबाह विधि, सकल सुमंगल साज ॥१॥

श्रीजानकीजी के स्वयंवर का समय उत्तम है, यह शकुन सब कार्यों को सिद्ध करनेवाला है । कीर्ति, विजय तथा विवाह आदि कार्यो में सब प्रकार के मंगलमय संयोग उपस्थित होंगे ॥१॥

राजत राज समाज महँ राम भंजि भव चाप ।

सगुन सुहावन, लाभ बड़, जय पर सभा प्रताप ॥२॥

राजाओं के समाज में शंकरजी के धनुष को तोड़कर श्रीराम सुशोभित हैं । यह शकुन सुहावना है, बड़ा लाभ होगा, दुसरे की सभा में विजय तथा प्रताप की प्राप्ति होगी ॥२॥

लाभ मोद मंगल अवधि सिय रघुबीर विवाहु ।

सकल सिद्धि दायक सम‍उ सुभ सब काज उछाहु ॥३॥

श्रीसीता-रामजी का विवाह लाभ तथा आनन्द-मंगल की सीमा है। यह समय बड़ा शुभ तथा सभी सिद्धियों को देनेवाला है, सभी कार्यों में उत्साह रहेगा ॥३॥

कोसल पालक बाल उर सिय मेली जयमाल ।

सम‍उ सुहावन सगुन भल, मुद मंगल सब काज ॥४॥

श्रीअयोध्यानरेश ( महाराज दशरथ ) के कुमार ( श्रीराम ) के गले में श्रीजानकीजी ने जयमाला डाल दी । यह समय शुभ है, शकुन उत्तम है, सब कार्यों में आनन्द और भलाई होगी ॥४॥

हरषि बिबुध बरषसिं सुमन, मंगल गान निसान ।

जय जय रबिकुल कमल रबि मंगल मोद निधान ॥५॥

देवता प्रसन्न होकर पुष्प-वर्षा कर रहे है, मंगलगीत गाये जा रहे हैं, नगारे बज रहे हैं, सूर्यकुलरूपी कमल (को प्रफुल्लित करने) के लिये सूर्य के समान आनंद और मंगल के निधान श्रीरामजी की जय हो ! जय हो ! ॥५॥

( प्रश्‍न- फल उत्तम है । )

सतानंद पठये जनक दसरथ सहित समाज ।

आये तिरहुत सगुन सुभ, भये सिद्ध सब काज ॥६॥

महाराज जनकजी ने अपने कुलपुरोहित शतानन्दजी को (अयोध्या) भेजा, महाराज दशरथ बरात के साथ जनकपुर आये। (उनके) सभी कार्य सिद्ध हुए । यह शकुन शुभ है ॥६॥

दसरथ पुरन परम बिधू, उदित समय संजोग ।

जनक नगर सर कुमुदगन, तुलसी प्रमुदित लोग ॥७॥

तुलसीदास कहते हैं, कि इस (शुभ) समय (श्रीरामविवाह) का संयोग आने से (जनकपुर में) महाराज दशरथरूपी पूर्ण चंद्र का उदय हुआ है । इससे जनकपुरूपी सरोवर के कुमुदपुष्प के समान सब लोग (नगरवासी) प्रफुल्लित हो गये हैं ॥७॥

( यह प्रश्‍न-फल प्रियजन का मिलन बतलता है । )

रामज्ञा प्रश्न - प्रथम सर्ग - सप्तक ५

मन मलीन मानी महिप कोक कोकनद बृंद ।

सुहृद समाज चकोर चित प्रमुदित परमानंद ॥१॥

(श्रीराम के धनुष्य तोड़ने से) चकवा पक्षी और कमलसमूह के समान अभिमानी राजाओं का मन मलिन (म्लान) हो गया और (महाराज जनक के) प्रियजनों के समाज का चित्त चकोरों के समान अत्यंन्त आनन्द से प्रसन्न हो गया ॥१॥

( यह शकुन विपक्ष पर विजय सूचित करता है । )

तेहि अवसर रावन नगर असगुन असुभ अपार ।

होहिं हानि भय मरन दुख सूचक बारहिं बार ॥२॥

उस समय रावण के नगर (लड्का) में अशुभदायक बहुत अधिक अपशकुन हुए, जो बार-बार यह सुचित करते थे कि हानि, भय की प्राप्ति, मरण और दुःख होगा ॥२॥

( यह शकुन अनिष्ट सूचित करता है । )

मधु माधव दसरथ जनक, मिलब राज रितुराज ।

सगुन सुवन नव दल सुतरु, फुलत फलत सुकाज ॥३॥

महाराज दशरथ और महाराज जनक चैत्र-वैशाख के समान हैं, उनके मिलन ऋतुराज वसन्त है । इस समय के शकुन उत्तम वृक्ष से नवीन कोपल फूटने के समान हैं, जो शुभकार्यरूपी पुष्प और फल देते हैं ॥३॥

( शुभकार्य सम्बन्धी प्रश्‍न का फल सुखदायक है । )

बिनय पराग सुप्रेम रस, सुमन सुभग संबाद ।

कुसुमित काज रसाल तरु सगुन सुकोकिल नाद ॥४॥

उनकी ( महाराज दशरथ और जनकजी की परस्पर की विनम्रता पुष्प-पराग है, (परस्पर का) उत्तम प्रेम रस (मधु) है और उनका परस्पर संभाषण पुष्प है । इस समय का कार्य ( श्रीसीता-राम का विवाह ) ही आम के वृक्ष में पुष्प (मौर) लगना है, जिसमें शकुन कोकिल की कूक के समान होते हैं ॥४॥

( प्रश्‍न - फल उत्तम है । )

उदित भानु कुल भानु लखि लुके उलूक नरेस ।

गये गँवाई गरूर पति, धनु मिस हये महेस ॥५॥

सूर्यकुल के सूर्य (श्रीराम) को उदित देखकर उल्लुओं के समान (अभिमानी) राजा लोग अपना गर्व और सम्मान खोकर छिप गये । मानो शंकरजी ने ही (अपने) धनुष के बहाने उन्हें नष्ट कर दिया ॥५॥

( प्रश्‍न का फल पराजयसुचक तथा निकृष्ट है । )

चारि चारु दसरथ कुँवर निरखि मुदित पुर लोग ।

कोसलेस मथिलेस को सम‍उ सराहन जोग ॥६॥

महाराज दशरथ के चारों सुन्दर कुमारों को देखकर जनकपुर के लोग आनन्दित हो रहे हैं । महाराज दशरथ तथा महराज जनक का समय (सौभाग्य) प्रशंसा करने योग्य है ॥६॥

( प्रश्‍न का फल उत्तम है । )

एक बितान बिबाहि सब सुवन सुमंगल रूप ।

तुलसी सहित समाज सुख सुकृत सिंधु दो‍उ भूप ॥७॥

तुलसीदासजी कहते हैं-पुण्य के समुद्रस्वरूप दोनों नरेश (दशरथजी और जनकजी) एक ही मंडप के नीचे सुमंगल के मूर्तिमान रूप सभी (चारों) पुत्रों का विवाह करके समाज के साथ सुखी हो रहे हैं ॥७॥

( विवाहदि मंगल-कार्यसंबधी प्रश्‍न का फल उत्तम है । )

रामज्ञा प्रश्न - प्रथम सर्ग - सप्तक ६

दाइज भय‍उ अनेक बिधि, सुनि सिहाहिं दिसिपाल ।

सुख संपति संतोषमय, सगुन सुमंगल माल ॥१॥

अनेक प्रकार से (जनकजी द्वारा) दहेज दिया गया, जिसे सुनकर दिक्पाल भी सिहाते (ईर्ष्या करने लगते) हैं । यह शकुन सुख, सम्पत्ति तथा सन्तोषदायी एवं श्रेष्ठ मंगल परम्परा का सूचक है ॥१॥

बर दुलहिनि सब परसपर मुदित पाइ मनकाम ।

चारु चारि जोरी निरखि दुहूँ समाज अभिराम ॥२॥

मनकी साध पूर्ण होने से सभी वर एवं दुलहिनें परस्पर प्रसन्न हो रही हैं । इन सुन्दर चारों जोड़ियों को देखकर दोनों (अयोध्या और जनकपूर के) समाज अत्यन्त सुखी हैं ॥२॥

( प्रश्‍न - फल उत्तम है । )

चरिउ कुँवर बियाहि पुर गवने दसरथ राउ ।

भये मंजु मंगल सगुन गुर सुर संभु पसाउ ॥३॥

महाराज दशरथ चारों कुमारों का विवाह करके अपने नगर (अयोध्या) को लौट गये । गुरु वसिष्ठ, देवताओं तथा शंकरजी की कृपा से मंगलमय शकुन हुए ॥३॥

( मड्गलकार्य सम्बन्धी प्रश्‍न का फल उत्तम है । )

पंथ परसु धर आगमन समय सोच सब काहु ।

राज समाज विषाद बड़, भय बस मिटा उछाहु ॥४॥

मार्ग में परशुरामजी के आ जाने के समय सभी को चिन्ता हो गयी । राजसमाज में बड़ी उदासी छा गयी, भय के कारण उत्साह नष्ट हो गया ॥४॥

( प्रश्‍न का फल अशुभ है । )

रोष कलुष लोचन भ्रुकुटि, पानि परसु धनु बान ।

काल कराल बिलोकि मुनि सब समाज बिलखान ॥५॥

क्रोध से लाल नेत्र एवं टेढीं भौहें किये तथा हाथ में फरसा और धनुष-बाण लिये मुनि परशुरामजी को (साक्षात) भयंकर काल के समान देखकर पूरा समाज दुःखी हो गया ॥५॥

( प्रश्न फल निकृष्ट है । )

प्रभुहि सौपि सारंग मुनि दीन्ह सुआसिरबाद ।

जय मंगल सूचक सगुन राम राम संबाद ॥६॥

प्रभु श्रीराम को अपना शार्ङ्ग धनुष देकर मुनि परशुरामजी ने उन्हें आशीर्वाद दिया । श्रीराम और परशुरामजी की वार्ता का यह शकुन विजय और मंगल सूचित करनेवाला है ॥६॥

अवध अनंद बधावनो, मंगल गान निसान ।

तुलसी तोरन कलस पुर चँवर पताका बितान ॥७॥

तुलसीदासजी कहते हैं कि अयोध्या में आनन्द की बधाई बज रही है, मंगल-गीत गाये जा रहे हैं, डंकों पर चोट पड़ रहीं हैं; नगर में तोरण बँधे हैं, कलश सजे हैं; चँवर -पताका सहित मंडप सजाये गये हैं ॥७॥

( प्रश्‍न - फल शुभ है । )

रामज्ञा प्रश्न - प्रथम सर्ग - सप्तक ७

साजि सुमंगल आरती, रहस बिबस रनिवासु ।

मुदित मात परिछन चलीं उमगत हृदयँ हुलासु ॥१॥

(अयोध्या का) रनिवास आनन्दमग्न हो गया । मंगल आरती सजाकर माताएँ (वर-दुलहिन का) परिछन करने चलीं । हृदय में आनन्द की बाढ़ आ रही है ॥१॥

( प्रश्‍न - फल शुभ है । )

करहिं निछावरि आरती, उमगि उमगि अनुराग ।

बर दुलहिन अनुरूप लखि सखी सराहहिं भाग ॥२॥

सखियाँ प्रेम से बार-बार उमंग में आकर आरती करके न्योछावर करती हैं और वर तथा दुलहिनों को परस्पर देखकर (अपने) भाग्य की प्रशंसा करती हैं ॥२॥

( प्रश्न-फल उत्तम है । )

मुदित नगर नर नारि सब, सगुन सुमंगल मूल ।

जय धुनि मुनि दुंदुभी बाजहिं बरषहिं फुल ॥३॥

अयोध्या- नगरवासी सभी स्त्री- पुरुष प्रसन्न हैं । मुनिगण जयध्वनि कर रहे हैं और देवता नगारे बजाकर पुष्प- वर्षा कर रहें हैं। यह शकुन सुमंगल का मूल (मंगलदायी) है ॥३॥

आये कोसलपाल पुर, कुसल समाज समेत ।

सम‍उ सुनत सुमिरत सुखद, सकल सिद्धि सुभ देत ॥४॥

श्रीकोसलनाथ (महाराज दशरथ) बरात के साथ कुशलपूर्वक नगर में आ गये । यह अवसर सुनने से तथा स्मरण करने से सुख देनेवाले हैं और सभी शुभ सिद्धियाँ देता है ॥४॥

रूप सील बय बंस गुन, सम बिबाह भये चारि ।

मुदित राउ रानी सकल, सानुकूल त्रिपुरारि ॥५॥

रूप, शील अवस्था, वंश और गुण में चारों विवाह समान हुए इससें महाराज (दशरथ) तथा सब रानियाँ प्रसन्न हैं कि भगवान शंकर (हमारे) अनुकुल हैं ॥५॥

( प्रश्‍न फल शुभ है । )

बिधि हरि हर अनुकुल अति दशरथ राजहि आजु ।

देखि सराहत सिद्ध सुर संपति समय समाजु ॥६॥

आज महाराज दशरथ के लिये ब्रह्मा, विष्णु तथा शंकरजी अत्यन्त अनुकुल हैं । उनकी सम्पत्ति तथा सौभाग्यमय समाज को देखकर सिद्ध तथा देवता तक उनकी प्रशंसा करते हैं ॥६॥

( प्रश्न फल शुभ है । )

सगुन प्रथम उनचास सुभ, तुलसी अति अभिराम ।

सब प्रसन्न सुर भूमिसूर, गो गन गंगा राम ॥७॥

तुलसीदासजी कहते हैं कि प्रथम सर्ग का यह उनचासवाँ दोहा शुभ शकुन का सूचक, अत्यन्त सुन्दर है । देवता, ब्राह्मण, गायें, गंगाजी तथा श्रीराम-सभी प्रसन्न हैं ॥७॥

इतिश्री: रामज्ञा प्रश्न प्रथम: सर्ग: ॥

आगे जारी.......... रामज्ञा प्रश्न सर्ग 2

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