रामज्ञा प्रश्न द्वितीय सर्ग
रामज्ञा प्रश्न - द्वितीय सर्ग - सप्तक १
समय राम जुबराज कर मंगल मोद निकेतु
।
सगुन सुहावन संपदा सिद्धि सुमंगल
हेतु ॥१॥
श्रीराम के युवराज-पद पर अभिषेक का
समय आनंद मंगल का धाम है। यह शकुन सुहावना है। सम्पत्ति,
सिद्धि और मंगलों का कारण ( देनेवाला ) है ॥१॥
सुर माया बस केकई कुसमयँ किन्हि
कुचालि ।
कुटिल नारि मिस छलु अनभल आजु कि
कालि ॥२॥
देवताओं की माया के वश होकर महारानी
कैकेयी ने बुरे समय (अनवसर) में कुचाल चली । किसी दुष्टा स्त्री के बहाने छल होगा,
आज या कल में ही ( बहुत शीघ्र ) बुराई होनेवाली है ॥२॥
कुसमय कुसगुन कोटि सम,
राम सीय बन बास ।
अनरथ अनभल अवधि जग,
जानब सरबस नास ॥३॥
श्रीराम-जानकी का वनवास करोड़ों बुरे
समय तथा अपशकुनों के समान है । यह ससार में अनर्थ और बुराई की सीमा है । सर्वस्व का
विनाश ( निश्चित ) समझो ॥३॥
सोचत पुर परिजन सकल,
बिकल राउ रनिवास ।
छल मलीन मन तीय मिस बिपति बिषाद
बिनास ॥४॥
सभी नगरवासी तथा कुटुंबीजन चिन्तित
हैं,
महाराज तथा रनिवास व्याकुल हो रहा हैं, ( देवताओं
ने ) मलिन-मन की स्त्री ( मन्थरा ) के बहाने छल करके विपत्ति, शोक तथा विनाश का साज बना दिया ॥४॥
( प्रश्न -फल अशुभ है । )
लखन राम सिय बन गमनु सकल अमंगल मूल
।
सोच पोच संताप बस कुसमय संसय सूल
॥५॥
लक्ष्मणजी,
श्रीरामजी और श्रीजानकीजी का वन जाना समस्त अमड्गलों की जड़ है । शोक
एवं निम्न कोटि के सन्ताप के वश होकर बुरे समय में सन्देहवश वेदना भोगनी होगी ॥५॥
प्रथम बास सुरसरि निकट सेवा कीन्ही
निषाद ।
कहब सुभासुभ सगुन फल बिसमय हर्ष
बिषाद ॥६॥
(श्रीराम ने) प्रथम दिन गड्गजी के
समीप (श्रृंगवेरपुर) में निवास किया तथा निषादराज गुह ने उनकी सेवा की। इस शकुन का
फल में शुभ और अशुभ दोनों कहूँगा । आश्चर्य हर्ष तथा (अन्त में) शोक प्राप्त होगा
॥६॥
चले नहाइ प्रयाग प्रभु लखन सीय
रघुराय ।
तुलसी जानब सगुन फल,
होइहि साधुसमाज ॥७॥
(गंगाजी में ) स्नान करके प्रभु,
श्रीरघुनाथजी, लक्ष्मणजी और जानकी के साथ
प्रयाग को चले । तुलसीदासजी कहते हैं कि सत्पुरुषों का संग होगा, यही शकुन का फल जानना चाहिये ॥७॥
रामज्ञा प्रश्न - द्वितीय सर्ग -
सप्तक २
सीय राम लोने लखन तापस वेष अनुप ।
तप तीरथ जप जाग हित सगुन सुमंगल रूप
॥१॥
लावण्यमय श्रीराम-लक्ष्मण तथा
सीताजी का तपस्वी-वेष अनुपम है । तपस्या, तीर्थयात्रा,
जप तथा करने के लिये यह शकुन सुमंगल-स्वरूप ( मंगल-सूचक ) है ॥१॥
सीता लखन समेत प्रभु,
जमुना उतरि नहाइ ।
चले सकल संकट समन सगुन सुमंगल पाइ
॥२॥
श्रीसीताजी और लक्ष्मणजी के साथ
प्रभु यमुनाजी के पार उतरकर स्नान करके, समस्त
संकटों को नष्ट करनेवाले मंगलमय शकुन पाकर आगे चले ॥२॥
( यात्रा के लिये उत्तम फल सूचित होता
है । )
अवध सोक संताप बस बिकल सकल नर नारि
।
बाम बिधाता राम बिनु माँगत मीचु
पुकारि ॥३॥
अयोध्या में सभी नर-नारी श्रीराम के
बिना शोक-सन्ताप के कारण व्याकुल होकर प्रतिकुल हुए विधाता से पुकारकर मृत्यु
माँगते हैं ॥३॥
( प्रश्न-फल अनिष्ट है । )
लखन सीय रघुबंस मनि पथिक पाय उर आनि
।
चलहु अगम मग सुगम सुभ,
सगुन सुमंगल खानि ॥४॥
श्रीरघुनाथजी,
श्रीजानकीजी तथा लक्ष्मणजी - इन पथिकों के श्रीचरणों को हृदय में
लाकर (उनका ध्यान करके ) अगम्य (विकट) मार्ग में भी चलो तो वह सुगम और शुभ हो जायेगा
। यह शकुन कल्याण की खानि है ॥४॥
ग्राम नारि नर मुदित मन लखन राम सिय
देखि ।
होइ प्रीति पहिचान बिनु मान बिदेस
बिसेषि ॥५॥
श्रीराम-लक्ष्मण तथा जानकीजी का
दर्शन करके गाँवों के स्त्री-पुरुष मन-ही-मन आनन्दित हो रहे हैं । ( इस शकुन का फल
यह है कि ) बिना पहिचान के भी प्रेम होगा और विदेश में विशेष सम्मान प्राप्त होगा
॥५॥
बन मुनि गन रामहि मिलहिं मुदित
सुकृत फल पाइ ।
सगुन सिद्ध साधम दरस,
अभिमान होइ अघाइ ॥६॥
वन में श्रीराम से मुनिगण मिलते हैं
और अपने पुण्यों का फल ( श्रीराम - दर्शन ) पाकर प्रसन्न होते हैं । यह शकुन साधक को
सिद्ध पुरुष का दर्शन होने की सूचना देता है, मनचाहा
फल भरपूर प्राप्त होगा ॥६॥
चित्रकुट पय तीर प्रभु बसे भानु कुल
भानु ।
तुलसी तप जप जोग हित सगुन सुमंगल
जानु ॥७॥
सूर्यकुल के ( प्रकाशक ) सूर्य
प्रभु श्रीराम ने चित्रकूट में पयस्विनी नदी के किनारे निवास किया । तुलसीदासजी
कहते हैं कि तपस्या, जप तथा योगसाधना के
लिये यह शकुन मंगलप्रद समझो ॥७॥
रामज्ञा प्रश्न - द्वितीय सर्ग -
सप्तक ३
हंस बंस अवतंस जब कीन्ह बास पय पास
।
तापस साधम सिद्ध मुनि,
सब कहँ सगुन सुपास ॥१॥
सूर्यवंशावतंस ( श्रीराम ) ने जब
पयस्विनी नदी के पास निवास किया तब तपस्वी, साधक,
सिद्ध, मुनिगण-सभी को सुख-सुविधा हो गयी । ऐसे
लोगों की सुख सुविधा यह शकुन सूचित करता है ॥१॥
बिटप बेलि फुलहिं फलहिं जल थल बिमल
बिसेषि ।
मुदित किरात बिहंग मृग मंगल मूरति
देखि ॥२॥
वृक्ष और लताएँ फुलने-फलने लगीं,
जल और स्थल विशेषरूप से निर्मल हो गये । मंगल-मूर्ति श्रीराम को
देखकर (वन के) किरात, पक्षी, पशु-सभी
प्रसन्न हो गये ॥२॥
( प्रश्न - फल शुभ हैं । )
सींचति सीय सरोज कर बयें बिटप बट
बेलि ।
समय सुकाल किसान हित सगुन सुमंगल
केलि ॥३॥
अपने बोये वटवृक्ष एवं लताओं को
श्रीजानकीजी अपने करकमलों से सींचती हैं । यह शकुन किसान के लिये सुकाल एंव
आनन्दमयी क्रीडा का सूचक है ॥३॥
हय हाँके फिरी दखिन दिसि हेरि हेरि
हिहिनात ।
भये निषाद बिषाद बस अवध सुमंतहि जात
॥४॥
सुमन्त्रजी ने अयोध्या जाते समय घोड़ों
को हाँका तो वे बार बार मुड़कर दक्षिण दिशा की और देख-देखकर हिनाहिनते हैं,
इससे निषाद लोग भी शोक संतत्प हो गये ॥४॥
( प्रियवियोग तथा शोकसुचक शकुन है
। )
सचिव सोच ब्याकुल सुनत असगुन अवध
प्रबेस ।
समाचार सुनि सोक बस माँगी मीचु नरेस
॥५॥
अयोध्या में प्रवेश करते समय
(सियारों का रोना आदि) अमंगल सूचक शब्द होते सुनकर मन्त्री (सुमन्त्र) शोक से व्याकुल
हो गये । उनसे ( श्रीराम का ) समाचार सुनकर शोक विवश महाराज दशरथ ने मृत्यु माँगी
॥५॥
( प्रश्न फल अशुभ है । )
राम राम कहि राम सिय राम सरन भये
राउ ।
सुमिरहु सीताराम अब,
नाहिन आन उपाउ ॥६॥
महाराज दशरथ राम-राम सीता- राम कहकर
श्रीराम की शरण चले गये (देह त्याग दिया) अब (तुम भी) श्रीसीताराम का स्मरण करो,
(घोर संकट से बचने का) दुसरा कोई उपाय नहीं है ॥६॥
राम बिरहँ दसरथ मरनु,
मुनि मन आगम सुमीचु ।
तुलसी मंगल मरन तरु,
सुचि सनेह जल सींचु ॥७॥
श्रीराम के वियोग में महाराज दशरथ की
मृत्यु ऐसी उत्तम मृत्यु है कि (ऐसा उत्तम मृत्यु की प्राप्ति) मुनियों के मन के
लिये भी अगम्य (अचिन्त्य) है । तुलसीदासजी कहते है कि ऐसी मंगलमयी मृत्यु के वृक्ष
को प्रेम के पवित्र जल से सींचो ॥७॥
( शकुन शुभ मृत्यु उत्तम गति का
सूचक है । )
रामज्ञा प्रश्न - द्वितीय सर्ग -
सप्तक ४
धीर बीर रघुबीर प्रिय सुमिरि समीर
कुमारु ।
अगम सुगम सब काज करु,
करतल सिद्धि बिचारु ॥१॥
धैर्यशाली वीर रघुनाथजी के प्रिय
श्रीहनुमानजी का स्मरण करके कठिन या सरल - जो भी कार्य करो,
सबकी सफलता हाथ में आयी हुई समझो ॥१॥
सुमिरि सत्रु सूदन चरन सुमंगल मानि
।
परपुर बाद बिबाद जय जूझ जुआ जय जानि
॥२॥
श्रीशत्रुघ्नजी के चरणों का स्मरण
करो । यह शकुन मंगलप्रद मानो । दुसरे के नगर में, वाद विवाद में, विजय तथा युद्ध
और जुए में भी विजय समझो ॥२॥
सेवक सखा सुबंधु हित सगुन बिचारु
बिसेषि ।
भरत नाम गुनगन बिमल सुमिरि सत्य सब
लेखि ॥३॥
विशेषरूप से सेवकों,
मित्रों तथा अच्छे (अनुकूल) भाइयों के लिये इस शकुन का विचार है ।
श्रीभरतजी के नाम तथा उनके निर्मल गुणों का स्मरण करके सब ( कार्य ) सत्य ( सफल )
समझो ॥३॥
साहिब समरथ सीलनिधि सेवत सुलभ सुजान
।
राम सुमिरि सेइअ सुप्रभ,
सगुन कहब कल्यान ॥४॥
श्रीराम शक्ति-संपन्न,
शील-निधान एवं परम सयाने स्वामी हैं; उनकी
अत्यन्त सुलभ है । उन श्रीराम का स्मरण करके उत्तम स्वामी की सेवा करो । इस शकुन की
( नौकरी आदि के लिये ) हम मंगलमय कहेंगे ॥४॥
सुकृत सील सोभा अवधि सीय सुमंगल
खानि ।
सुमिरि सगुन तिय धर्म हित कहब
सुमंगल जानि ॥५॥
श्रीजानकीजी पुण्य,
शील और सौन्दर्य की सीमा तथा मंगल की खानी है; उनका स्मरण करो । इस शकुन को हम मंगलकारी जानकर स्त्रियों के पातिव्रत
धर्म के अनुकुल कहेंगे ॥५॥
ललित लखन मूरति हृदयँ आनि धरें धनु
बान ।
करहु काज सुभ सगुन सब मुद मंगल
कल्यान ॥६॥
धनुष बाण लिये लक्ष्मणजी की सुन्दर
मूर्ति हृदय में ले आकर कार्य करो । शकुन शुभ है । सब प्रकार से आनन्द मंगल एवं
कल्याण होगा ॥६॥
राम नाम पर राम ते प्रीति प्रतीति
भरोस ।
सो तुलसी सुमिरत सकल सगुन सुमंगल
कोस ॥७॥
तुलसीदासजी कहते हैं कि मेरा प्रेम,
विश्वास और भरोसा श्रीराम से अधिक राम नाम पर है । उस ( राम-नाम )
का स्मरण करने से शकुन सभी सुमड्गल का कोष हो जाता है ॥७॥
रामज्ञा प्रश्न - द्वितीय सर्ग - सप्तक ५
गुरु आयुस आये भरत निरखि नगर नर
नारि ।
सानुज सोचत पोच बिधि लोचन मोचत बारि
॥१॥
गुरु (वसिष्ठ) की आज्ञा से भरतजी
(ननिहाल से) लौट आये । अयोध्या के स्त्री पुरुषों (की दशा) को देखकर छोटे भाई
(शत्रुघ्न) के साथ वे सोचते हैं कि 'विधाता
बड़ा नीच काम करनेवाला है' और नेत्रो से आँसु बहाते हैं ॥१॥
( प्रश्न - फल अशुभ है । )
भूप मरनु प्रभु बन गवनु सब बिधि अवध
अनाथ ।
रीवत समुझि कुमात कृत्त,
मीजि हाथ धुनि माथ ॥२॥
महाराज दशरथ की मृत्यु,
प्रभु, श्रीराम का वन जाना तथा सब प्रकार से
अयोध्या का अनाथ होना-इन सबको दुष्ट हृदया माता ( कैकेयी ) की करतूत समझकर वे हाथ
मलते और सिर पीटकर रोते हैं ॥२॥
( प्रश्न फल निकृष्ट है । )
बेदबिहित पितु करम करि,
लिये संग सब लोग ।
चले चित्रकूटहि भरत ब्याकुल राम
बियोग ॥३॥
वैदिक विधि से पिता का
अन्त्येष्टि-कर्म करके भरतजी ने सब लोगों को साथ ले लिया और श्रीराम के वियोग में
व्याकुल होकर वे चित्रकूट को चल पड़े ॥३॥
राम दरस हियँ हरषु बड़ भूपति मरन
बिषादु ।
सोचत सकल समान सुनि राम भरत संबादु ॥४॥
श्रीराम के दर्शन से (सबके) हृदय में
बड़ी प्रसन्नता है, (साथ ही) महाराज
दशरथ की मृत्यु का दुःख (भी) है । अब श्रीराम तथा भरत का परस्पर वार्तालाप सुनकर
समस्त समाज चिन्ता करने लगा है ॥४॥
( प्रश्न फल असफलता तथा दुःखसूचक
है । )
सुनि सिख आसिष पाँवरी पाइ नाइ पद
माथ ।
चले अवध संताप बस बिकल लोग सब साथ
॥५॥
(प्रभु की) शिक्षा सुनकर, आशीर्वाद तथा चरण पादुका पाकर एवं उनके चरणों में मस्तक झुकाकर सन्तापवश
(दुःखित चित्त) भरत अयोध्या चले साथ के सभी लोग व्याकुल हैं ॥५॥
( प्रश्न फल अशुभ है ॥ )
भरत नेम ब्रत धरम सुभ राम चरन
अनुराग ।
सगुन समुझि साहस करिय,
सिद्ध होइ जप जाग ॥६॥
श्रीभरतजी के शुभ नियम व्रत,
धर्माचरण तथा श्रीराम के चरणों में प्रेम को उत्तम शकुन समझकर
साहसपूर्वक (कार्य प्रारम्भ) करो; इससे जप और यज्ञ सिद्ध (
सफल ) होंगे ॥६॥
चित्रकुट सब दीन बसत प्रभु सिय लखन
समेत ।
राम नाम जप जापकहि तुलसी अभिमत देत
॥७॥
प्रभु श्रीराम श्रीजानकीजी तथा
लक्ष्मणजी के साथ सर्वदा चित्रकूट में निवास करते हैं । तुलसीदासजी कहते हैं की
श्रीराम नाम का जप जापक को अभीष्ट फल देता है ॥७॥
( जप आदि साधन सफल होंगे । )
रामज्ञा प्रश्न - द्वितीय सर्ग - सप्तक ६
पय पावनि,
बन भुमि भलि सैल सुहावन पीठ ।
रागिहि सीठ बिसोषि थलु बिषय
बिरागिहि मीठ ॥१॥
पयस्विनी नदी पवित्र है,
वन भुमि उत्तम है, चित्रकुट पर्वत सुहावना तथा
देवस्थान स्वरुप है । यह स्थल संसार के भोगों में आसक्त लोगों के लिये अत्यन्त
नीरस है; परन्तु विषयों से विरक्त लोगों के लिये मधुर(प्रिय)
है ॥१॥
( संसारिक कामना है तो असफलता और
भजन पूजन सम्बन्धी प्रश्न है तो सफलता प्राप्त होगी । )
फटिक सिला मन्दाकिनी सिय रघुबीर
बिहारा ।
राम भात हित सगुन सुभ भूतल भगति
भँडार ॥२॥
मन्दाकिनी तट पर स्फटिकशिला
श्रीसीतारामजी की क्रीड़ाभूमि हैं । श्रीरामभक्तों के लिये शकुन शुभ है । पृथ्वी पर
( इसी जन्म में ) भक्ति का भण्डार ( श्रेष्ठ भक्ति ) प्राप्ति होगी ॥२॥
सगुन सकल संकट समन चित्रकूट चलि
जाहु ।
सीता राम प्रसाद सुभ लघु साधन बड़
लाहु ॥३॥
यह शकुन समस्त संकटों को दूर
करनेवाला है । चित्रकुट चले जाओ, वहाँ
श्रीसीताराम की कृपा से भला होगा, थोडे़ साधन से भी वहाँ बड़ा
लाभ होगा ॥३॥
दिए अत्रि तिय जानकिहि बसन बिभुषन
भूरि ।
राम कृपा संतोष सुख होहिं सकल दुख
दुरि ॥४॥
महर्षि अत्रि की पत्नी अनुसूयाजी ने
श्रीजानकीजी को बहुत से वस्त्र और आभुषण दिये । श्रीराम की कृपा से सन्तोष तथा सुख
प्राप्त होंगे और सब दुःख दूर हो जायेंगे ॥४॥
काक कुचालि बिराध बध देह तजी सरभंग
।
हानि मरन सूचक सगुन अनरथ असुभ
प्रसंग ॥५॥
काक ( जयन्त ) ने कुचाल चली (
श्रीजानकीजी के चरणों में चोंच मारी ), विराध
राक्षस को ( प्रभु ने ) मारा, शरभंग ऋषि ने ( प्रभु के
सम्मुख ) शरीर छोड़ा । यह शकुन हानि, मृत्यु, अनर्थ और अशुभ अवसरों के आने का सूचक है ॥५॥
राम लखन मुनि गन मिलन मंजुल मंगल
मूल ।
सत समाज तब होइ जब रमा राम अनुकुल
॥६॥
श्रीराम लक्ष्मण के साथ मुनियों का
मिलन सुन्दर कल्याण का मूल है । जब श्रीराम जानकी अनुकुल सूचक सत्पुरुषों का साथ
होता हैं ॥६॥
( सत्संग प्राप्ति का सूचक शकुन
है । )
मिले कुंभसंभव मुनिहिं लखन सीय
रघुराज ।
तुलसी साधु समाज सुख सिद्ध दरस सुभ
काज ॥७॥
श्रीलक्ष्मण तथा श्रीजानकीजी के साथ
श्रीरघुनाथजी महर्षि अगस्त्यजी से मिले । तुलसीदासजी कहते हैं कि साधुपुरुषों के
संग का सुख होगा तथा उनके दर्शन से शुभ कार्य सफल होंगे ॥७॥
रामज्ञा प्रश्न - द्वितीय सर्ग - सप्तक ७
सुनि मुनि आयसु प्रभु कियो पंचबटी
बर बास ।
भइ महि पावनि परसि पद,
भा सब भाँति सुपात ॥१॥
मुनि ( अगस्त्यजी ) की आज्ञा पाकर
प्रभु श्रीराम ने सुन्दर पञ्चवटी में निवास किया । उनके श्रीचरणों का स्पर्श करके
वह ( दण्डक वन की शापग्रस्त ) भूमि पवित्र हो गयी, सब प्रकार से वहाँ सुख सुविधा हो गयी ॥१॥
( विपत्ति दूर होकर सुख होगा )
सरित सरोबर सजल सब जलज बिपुल बहु रंग
।
समउ सुहावन सगुन सुभ राजा प्रजा
प्रसंग ॥२॥
सब नदियाँ और सरोवर जल से भरे रहने
लगे । उनमें अनेक रंगों के कमल खिल गये । बड़ा सुहावना समय हो गया । राजा-प्रजा के
सम्बन्ध में यह शकुन शुभ है ॥२॥
बिटप बेलि फुलहि फलहिं,
सीतल सुखद समीर ।
मुदित बिहँग मृग मधूप गन बन पालक दोउ
बीर ॥३॥
वृक्ष और लताएँ फुलते फलते हैं,
सुखदायी शीतल वायु चलती है; पक्षी तथा भौंरे
आनन्द में है; क्योंकि दोनों भाई ( श्रीराम लक्ष्मण ) अब वन की
रक्षा करनेवाले हैं ॥३॥
( प्रश्न फल श्रेष्ठ है । )
मोदाकर गोदावरी,
बिपिन सुखद सब काल ।
निर्भय मुनि जप तप करहिं,
पालक राम कृपाल ॥४॥
गोदावरी नदी आनन्ददायिनी है और वन
सभी समय सुखदायी है । अब कृपालु श्रीराम के रक्षक होने से वहाँ मुनिगण भयरहित होकर
जप तप करते हैं ॥४॥
( साधन भजन निर्विघ्न सफल होगा ।
)
भेंट गीध रघुराज सन,
दुहूँ दिसि हॄदयँ हुलासु ।
सेवक पाइ सुसाहिबहि,
साहिब पाइ सुदासु ॥५॥
श्रेरघुनाथजी से गीधराज जटायु की
भेंट होने पर दोनों ओर चित्त में आनन्द हुआ;
सेवक ( जटायु ) को पाकर उत्तम स्वामी ( श्रीराम ) को और स्वामी ( श्रीराम ) को
पाकर उत्तम सेवक ( जटायु ) को ॥५॥
( सेवा और भक्ति सम्बन्धी प्रश्नका
फल शुभ है । )
पढहिं पढा़वहिं मुनि तनय आगम निगम
पुरान ।
सगुन सुबिद्या लाभ हित जानब समय
समान ॥६॥
मुनि बालक परस्पर वेद,
स्मृति पुराण पढ़ते-पढ़ाते हैं । यह शकुन समय के अनुसार उत्तम विद्या की
प्राप्ति के लिये लाभप्रद समझना ॥६॥
निज कर सींचित जानकी तुलसी लाइ रसाल
।
सुभ दूती उनचाल भलि बरषा कृषी सुकाल
॥७॥
श्रीजानकीजी आम के वृक्ष लगाकर उन्हें
अपने हाथों से सींचती हैं । तुलसीदासजी कहते हैं कि दुसरे सर्ग का यह उनचासवाँ
दोहा अच्छी वर्षा, उत्तम खेती तथा
सुकाल का शुभसूचक है ॥७॥
इतिश्री: रामज्ञा प्रश्न द्वितीयः सर्ग:
॥
आगे जारी.......... रामज्ञा प्रश्न सर्ग 3
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