रामज्ञा प्रश्न षष्ठ सर्ग

रामज्ञा प्रश्न षष्ठ सर्ग

रामज्ञा प्रश्न षष्ठ सर्ग Ramagya prashna sarga 6 - रामाज्ञा प्रश्न तुलसीदास की रचना है जो शुभ-अशुभ विचार के लिए रची गयी है। यह विचार उन्होंने राम-कथा की सहायता से प्रस्तुत किया है। यह रचना दोहा शैली में रचित है। सात-सात सप्तकों के सात सर्गों के लिए पुस्तक खोलने पर जो दोहा मिलता है उसके पहले राम-कथा का कोई एक प्रसंग आता है और बाद में शुभ-अशुभ फल चर्चा आती है। तुलसीदास जी की यह रचना अवधी भाषा मे लिखित एक मुक्तक काव्य है। मूलतः यह एक ज्योतिष ग्रन्थ है जिसको तुलसीदास जी ने अपने मित्र गंगाराम ज्योतिष के आग्रह पर लिखा था।

रामज्ञा प्रश्न षष्ठ सर्ग

रामज्ञा प्रश्न - षष्ठ सर्ग - सप्तक १

रघुपति आयसु अमरपति अमिय सींचि कपि भालु ।

सकल जिआए सगुन सुभ सुमरहु राम कृपालु ॥१॥

श्रीरघुनाथजी की आज्ञा से देवराज इन्द्र ने अमृत-वर्षा करके सभी वानर-भालुओं को जीवित कर दिया । कृपालु श्रीराम का स्मरण करो, यह शकुन शुभ है ॥१॥

सादर आनी जानकी हनुमान प्रभु पास ।

प्रीति परस्पर सम‍उ सुभ सगुन सूमंगल बास ॥२॥

हनुमान्‌जी आदरपूर्वक श्रीजानकीजी को प्रभु के समीप ले आये । यह शकुन सुमंगल का निवास है-परस्पर प्रेम रहेगा, समय सुन्दर ( सुकाल ) रहेगा ॥२॥

सीता सपथ प्रसंग सुभ सीतल भय‍उ कृसानु ।

नेम प्रेम ब्रत धरम हित सगुन सुहावनु जानु ॥३॥

श्रीजानकीजी के शपथ-ग्रहण का प्रसंग शुभ है, उनके लिये अग्नि शीतल हो गया था । नियम-पालन प्रेम ( भक्ति), व्रत एवं धर्माचरण के लिये शकुन तब उत्तम समझो ॥३॥

सनमाने कपि भालु तब सादर साजि बिमानु ।

सीय सहित सानुज सदल चले भानु कुल भानु ॥४॥

सूर्यवंश के सूर्य श्रीरघुनाथजी ने सभी वानर-भालुओं का सम्मान किया, फिर आदरपुर्वक पुष्पक विमान सजाकर उसमें श्रीजानकीजी, लक्ष्मणजी तथा अपने दलसहित बैठकर ( अयोध्या को ) चले ॥४॥

( प्रश्‍न-फल शुभ है । )

हरषत सुर बरषत सुमन, सगुन सुमंगल गान ।

अवधनाथु गवने अवध, खेम कुसल कल्यान ॥५॥

देवता प्रसन्न होकर पुष्प-वर्षा कर रहे हैं और मंगलगान कर रहे हैं । ( इस प्रकार ) श्रीअयोध्यानाथ ( श्रीराम ) अयोध्या चले । यह शकुन कुशल-मंगल तथा भलाई का सूचक है ॥५॥

( विदेश गया व्यक्ति सकुशल लौटेगा । )

सिंधु सरोवर सरित गिरि कानन भूमि बिभाग ।

राम दिखावत जानकिहि उमगि उमगि अनुराग ॥६॥

श्रीराम प्रेम की उमंग में आकर जानकी को समुद्र, सरोवर, नदियाँ, पर्वत वन तथा विभिन्न भूभाग दिखला रहे हैं ॥६॥

( प्रश्‍न-फल श्रेष्ठ है । )

तुलसी मंगल सगुन सुभ कहत जोरि जुग हाथ ।

हंस बंस अवतंस जय जय जय जानकि नाथ ॥७॥

तुलसीदास दोनों हाथ जोड़कर कहते हैं-'सूर्यवंशविभुषण श्रीजानकीनाथ की जय हो ! जय हो !! जय हो !!!' यह शुभ शकुन मंगलकारी है ॥७॥

रामज्ञा प्रश्न - षष्ठ सर्ग - सप्तक २

अवध अनंदित लोग सब ब्योम बिलोकि बिमानु ।

नमहूँ कोकनद कोक मद मुदित उदित लखि भानु ॥१॥

आकाश में विमान को देखकर अयोध्या के सब लोग ऐसे आनन्दित हो रहे हैं, जैसे उदय होते सूर्य को देखकर कमल तथा चकवा पक्षियों का मन खिल उठता है ॥१॥

( प्रश्‍न-फल शुभ है, प्रिय मिलन होगा । )

मिले गुरुहि जन परिजनहि, भेंटत भरत सप्रीति ।

लखन राम सिय कुसल पुर आए रिपु रन जीति ॥२॥

शत्रु को युद्ध में जीतकर श्रीराम - जानकी और लक्ष्मण कुशलपूर्वक अयोध्या लौट आये । वहाँ गुरुदेव से, नगर के लोगों से तथा सेवक-सम्बन्धियों से मिलकर बडे़ प्रेम से ( प्रभु ) भरत से अंकमाल देकर मिले ॥२॥

( प्रश्‍न-फल श्रेष्ठ है । )

उदबस अवध अनाथ सब अंब दसा दुख देखि ।

रामु लखनु सीता सकल बिकल बिषाद बिसेषि ॥३॥

अयोध्या को अनाथ तथा उजाड़ और सभी माताओं की दुःखभरी दशा देखकर श्रीराम, लक्ष्मण और जानकीजी सभी व्याकुल हो गये; उन्हें बहुत दुःख हुआ ॥३॥

( प्रियजनों के दुःख से शोक होगा । )

मिली मातु हित गुरु सनमाने सब लोग ।

सगुन समय बिसमय हरष प्रिय संजोग बियोग ॥४॥

माताएँ ( प्रेम से ) मिलीं; (प्रभू ने) हितैषियों, मित्रों तथा गुरुदेव-सभी लोगों का सम्मान किया । यह शकुन प्रियजन के मिलन एवं वियोग से होनेवाले हर्ष एवं दुःख का सूचक है ॥४॥

अमर अनंदित मुनि मुदित मुदित भुवन दस चारि ।

घर घर अवध बधावने मुदित नगर नर नारि ॥५॥

देवता आनन्दमग्न हैं, मुनिगण प्रसन्न हैं, चौदहों भुवन हर्षयुक्त हैं । अयोध्या के घर-घर में बधाई बज रही हैं: नगर के पुरुष-स्त्री ( सब ) प्रसन्न है ॥५॥

( प्रश्‍न-फल शुभ है । )

सुदिन सोधि गुरु बेद बिधि कियो राज अभिषेक ।

सगुन सुमंगल सिद्धि सब दायक दोहा एक ॥६॥

गुरुदेव ने शुभ दिन का विचार करके ( श्रीरघुनाथजी का ) वैदिक विधि से राज्यभिषेक किया । यह एक दोहा समस्त श्रेष्ठ मंगल एवं सिद्धियों को देनेवाला शकुन है ॥६॥

भाँति भाँति उपहार लेइ मिलत जुहारत भूप ।

पहिराए सनमानि सब तुलसी सगुन अनूप ॥७॥

राजा लोग नाना प्रकार के उपहार लेकर मिलते और अभिवादन करते हैं । ( प्रभु ने ) सबका सम्मान करके उन्हें वस्त्राभूषण पहिनाये । तुलसीदासजी कहते हैं कि यह अनुपम ( मंगल ) शकुन है ॥७॥

रामज्ञा प्रश्न - षष्ठ सर्ग - सप्तक ३

जय धुनि गान निसान सुर बरषत सुरतरु फूल ।

भए राम राजा अवध, सगुन सुमंगल मूल ॥१॥

देवता जय- जयकार एवं मंगलगान करते, दुन्दुभि बजाते कल्पवृक्ष के पुष्पों की वर्षा कर रहे हैं, श्रीराम अयोध्या-नरेश हो गये । यह शकुन श्रेष्ठ मंगलों की जड़ है ॥१॥

भालु बिभीषन कीसपति पूजे सहित समाज ।

भली भाँति सनमानि सब बिदा किए रघुराज ॥२॥

श्रीरघुनाथजी ने ऋक्षराज जाम्बवन्त, विभीषण तथा वानरराज सुग्रीव का उनके समाज के साथ सत्कार किया, फिर भली-भाँति उन सबको आदरपूर्वक बिदा किया ॥२॥

( प्रश्‍न-फल शुभ है । )

राम राज संतोष सुख घर बन सकल सुपास ।

तरु सुरतरु सुरधेनु महि अभिमत भोग बिलास ॥३॥

श्रीराम के राज्य में ( सर्वत्र ) सुख-सन्तोष है, घर में तथा वन में ( सब कहीं ) सब प्रकार की सुविधा है । वृक्ष कल्पवृक्ष के समान और पृथ्वी कामधेनु के समान मन चाहा भोग-विलास देती है ॥३॥

( प्रश्‍न-फल श्रेष्ठ है । )

राम राज सब काम कहँ, नीक एकही आँक ।

सकल सगुन मंगल कुसल, होइहि बारु न बाँक ॥४॥

श्रीराम का राज्य सब कार्यों के लिये निस्सन्देहरूप से भला है । यह शकुन सब प्रकार कुशल-मंगल करनेवाले है, बाल भी बाँका नहीं होगा । ( कोई हानि नहीं होगा । ) ॥४॥

कुंभकरन रावन सरिस मेघनाद से बीर ।

ढहे समूल बिसाल तरु काल नदी के तीर ॥५॥

कुंभकर्ण, रावण तथा मेघनाद-जैसे वीर नदी-किनारे के विशाल वृक्ष के समान काल के वेग में जड़ के साथ गिर गये ॥५॥

( प्रश्‍न-फल अशुभ है । )

सकुल सदल रावन सरिस कवलित काल कराल ।

पोच सोच असगुन असुभ, जाय जीव जंजाल ॥६॥

रावण के समान वीर को कुल तथा सेना के साथ भयंकर काल ने अपना ग्रास बना लिया ( खा लिया ) । यह अपशकुन अशुभ है, हीनता प्राप्त होगा, चिन्ता होगी और संकट में पड़कर प्राण जायँगे ॥६॥

अबिचल राज बिभीषनहि दीन्ह राज रघुराज ।

अजहुँ बिराजत लंक पुर तुलसी सहित समाज ॥७॥

महाराज श्रीरघुनाथजी ने विभीषण को अविचल (सुस्थिर ) राज्य दिया । तुलसीदासजी कहते हैं कि वे अब भी अपने समाज के साथ लंकापुरी में विराजमान हैं ॥७॥

( प्रश्‍न-फल शुभ है । )

रामज्ञा प्रश्न - षष्ठ सर्ग - सप्तक ४

मंजुल मंगल मोद मय मूरति मारुत पूत ।

सकल सिद्धि कर करल तल, सुमिरत रघुबर दुत ॥१॥

श्रीपवनकुमार आनन्दमय मंगलमय मनोहर मूर्ति हैं । उन श्रीरामदुत का स्मरण करने से सब सिद्धियाँ (सफलताएँ) करकमल के नीचे ( हाथ में ) प्राप्त ही रहती हैं ॥१॥

( प्रश्‍न-फल उत्तम है । )

सगुन समय सुमिरत सुखद, भरत आचरनु चारु ।

स्वामि धरम ब्रत पेम हित, नेम निबाहनिहारु ॥२॥

श्रीभरतजी का सुन्दर आचरण स्मरण करने से सुख देनेवाला है । इस समय का यह शकुन स्वामी ( आराध्य ) चुनने, धर्माचरण, व्रत, प्रेम (भक्ति ) तथा नियम पालन को सफल करनेवाला समझो ॥२॥

ललित लखन लघु बंधु पद सुखद सगुन सब काहु ।

सुमिरत सुभ कीरति बिजय, भूमि ग्राम गृह लाहु ॥३॥

श्रीलक्ष्मणजी के छोटे भाई शत्रुघ्नजी के सुन्दर चरण स्मरण करने पर सबके लिये सुखदायी हैं । यह शकुन शुभ है; कीर्ति, विजय, भुमि, ग्राम तथा घर का लाभ होगा ॥३॥

रामचन्द्र मुख चंद्रमा चित चकोर जब होइ ।

राम राज सब काज सुभ सम‍उ सुहावन सोइ ॥४॥

चित्त जब चकोर के समान श्रीरामचन्द्रजी के मुखरूपी चन्द्रमा का ध्यान करनेवाला बन जाता है, तब वही समय सुहावना ( मंगलकारी) है । राम-राज्य तो सभी कार्यों के लिये शुभ है ही ॥४॥

( प्रश्‍न-फल श्रेष्ठ है । )

भूमि नंदिनी पद पदुम सुमिरत सुभ सब काज ।

बरषा भलि खेती सुफल प्रमुदित प्रजा सुराज ॥५॥

श्रीभूमिसुता ( जानकीजी ) के चरण-कमलों का स्मरण करने से सभी कार्य शुभ ( फलदायक ) हो जाते हैं । ( यह शकुन सूचित करता है कि ) अच्छी वर्षा होगी, खेती भली-भाँति फलेगी । ( फसल अच्छी होगी ), प्रजा सुशासन पाकर प्रसन्न रहेगी ॥५॥

सेवक सखा सुबंधु हित नाइ लखन पद माथु ।

कीजिय प्रीति प्रतीति सुभ, सगुन सुमंगल साथु ॥६॥

श्रीलक्ष्मणजी के चरणों में मस्तक झुकाकर सेवक, मित्र तथा अच्छे भाई का हित करो, प्रेम तथा विश्र्वास रहेगा । यह शुभ शकुन परम हितकरी साथी की प्राप्ति बतलाता है ॥६॥

राम नाम रति राम गति राम नाम बिस्वास ।

सुमिरत सुभ मंगल कुसल तुलसी तुलसीदास ॥७॥

श्रीरामनाम में प्रेम हो, श्रीराम का ही भरोसा हो, श्रीरामनाम में ही विश्वास हो । इनका स्मरण करने से शुभ फल एवं ( सब प्रकार से ) मंगल होता है, कुशल रहती है । इस स्मरण से ही तुलसी तुलसीदास हो गया ॥७॥

रामज्ञा प्रश्न - षष्ठ सर्ग - सप्तक ५

बिप्र एक बालक मृतक राखेउ राम दुआर ।

दंपति बिलपत सोक अति आरत करत पुकार ॥१॥

एक ब्राह्मण ( तथा उसकी स्त्री ) ने अपना मरा बालक लाकर श्रीराम के द्वार पर रख दिया । पति-पत्नी शोक से अत्यन्त दुःखी होकर विलाप करते हुए पुकार कर रहे थे ॥१॥

( प्रश्‍न-फल अशुभ है । )

राम सोच संकोच बस सचिव बिकल संताप ।

बालक मीचु अकाल भ‍इ राम राज केहि पाप ॥२॥

श्रीरामजी संकोच के कारण चिन्ता में पड़ गये, मन्त्री दुःख से व्याकुल हो गये कि श्रीराम के राज्य में किसके पाप से बालक की असमय में मृत्यु हुई ॥२॥

( प्रश्‍न-फल निकृष्ट है ।)

बिबुध बिमल बानी गगन, हेतु प्रजा अपचारु ।

राम राज परिनाम भल कीजिय बेगि बिचारु ॥३॥

( उसी समय ) आकाश से निर्मल ( स्पष्ट ) देववाणी हुई कि इसका कारण प्रजा के किसी व्यक्ति का दूषित आचरण है । शीघ्र विचार कीजिये । ' राम-राज्य में परिणाम तो उत्तम ही होगा '॥३॥

( चिन्ता दूर होगी । )

कोसल पाल कृपाल चित बालक दीन्ह जिआइ ।

सगुन कुसल कल्यान सुभ, रोगी उठै नहाइ ॥४॥

दयालुहृदय श्रीकोसलनाथ रघुनाथजी ने ( ब्राह्मण के ) बालक को जीवित कर दिया । यह शकुन शुभ है, कुशल एवं कल्याण का सूचक है । रोगी नहाकर उठ खड़ा होगा ॥४॥

बालकु जिया बिलोकि सब कहत उठा जनु सोइ ।

सोच बिमोचन सगुन सुभ, राम कृपाँ भल होइ ॥५॥

( ब्राह्मण के ) बालक को जीवित हो उठा देख सब कहने लगे - मानो यह सोकर उठा है ।' यह शुभ शकुन सोच को दूर करनेवाला है, श्रीराम की कृपा से भलाई होगी ॥५॥

सिला सुतिया भ‍इ गिरि तरे मृतक जिए जग जान ।

राम अनुग्रहँ सगुन सुभ, सुलभ सकल कल्यान ॥६॥

श्रीराम की कृपा से पत्थर ( अहल्या ) सुन्दरी स्त्री हो गयी, पर्वत ( समुद्र पर ) तैरने लगे और मृतक ( बालक ) जी उठा-यह संसार जानता है । यह शकुन शुभ है, सभी कल्याण सरलता से प्राप्त होंगे ॥६॥

केवट निसिचर बिहँग मृग किए साधु सनमानि ।

तुलसी रघुबन की कृपा सगुन सुमंमगल खानि ॥७॥

केवट ( निषादराज गूह ) राक्षस ( विभीषण ), पक्षी ( जटायु ) एवं पशुओं ( वानरों ) को श्रीरघुनाथजी ने कृपा करके आदर देकर सप्तपुरुष बना दिया । तुलसीदासजी कहते हैं कि यह शकुन उत्तम मंगलों की खान है ॥७॥

रामज्ञा प्रश्न - षष्ठ सर्ग - सप्तक ६

राम राज राजत सकल धरम निरत नर नारि ।

राग न रोष न दोष , सुलभ पदारथ चारि ॥१॥

श्रीराम के राज्य में सभी स्त्री-पुरुष धर्माचरण में लगे हुए शोभित हैं । राग ( भोगासक्ति ), क्रोध, दोष ( कामादि) और दुःख ( किसी को ) नहीं है; ( सबको ) चारों पदार्थ ( अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष) सुलभ है ॥१॥

( प्रश्‍न-फल श्रेष्ठ है । )

खग उलूक * झगरत गए अवध जहाँ रघुराउ ।

नीक सगुन बिबरिहि झगर, होइहि धरम निआउ ॥२॥

गीध पक्षी और उल्लु झगड़ा करते हुए अयोध्या में श्रीरघुनाथजी के पास गये*। यह शकुन अच्छा है, झगड़ा सुलझ जायेगा, धर्मपूर्वक न्याय होगा ॥२॥

* किसी वन में रहनेवाले गीध और उल्लु एक वृक्ष के खोड़र के लिये झगड़ पडे़ । दोनों उसे अपना घर बतलाते थे। निर्णय कराने के लिये दोनों अयोध्या आये । रघुनाथजी के पूछने पर गीध ने कहा-'सृष्टि के प्ररम्भ में पृथ्वी पर जबसे मनुष्य बसने लगे, तब से यह खोड़र मेरे अधिकार में चला आया है ।

उल्लु ने बताया-'प्रभो! पृथ्वी पर जबसे वृक्षों की उत्पत्ति हुइ तब से मैं उसमें रहता हूँ ।

दोनों की बात श्रीरघुनाथजी ने उल्लु को वह खोड़र दिला दिया । )

जती-स्नान* संबाद सुनि सगुन कहब जियँ जानि ।

हंस बंस अवतंस पुर बिलग होत पय पानि ॥३॥

यति (संन्यासी) और कुत्ते का संवाद सुनकर* अपने चित्त में समझकर शकुन बताऊँगा कि सूर्यवंशभूषण श्रीरघुनाथजी के नगर (अयोध्या) में दूध-पानी पृथक होता ( सच्चा न्याय प्राप्त होता ) है ॥३॥

( विवाद में सत्य की विजय होगी । )

* श्रीराम के दरबार में एक बार एक कुत्ता पहुँचा । उसने कहा-'मुझे सर्वाथिसिद्धि नामक ब्राह्मण ने निरपराध मारा है ।' ब्राह्मण बुलाया गया उसने अपराध स्वीकार कर लिया । वह दरिद्र था, भिक्षा न मिलने से भुखा था, क्षुधा की झुँझलाहट में उसने कुत्ते को अकारण मारा था । कुत्ते ने ही उसके लिये दण्ड चुना कि 'ब्राह्मण कालंजर के मठ का मठाधीश बना किया जाय ।' ब्राह्मण मठाधीश बना दिया गया । पूछने पर कुत्ते ने बताया-'मैं पूर्वजन्म में वहीं का मठाधीश था, अत्यन्त सावधानी से आचरण करता था; किन्तु भूल से देवांश खा लेने के कारण मेरी यह गति हुई । यह ब्राह्मण मठाधीश होकर प्रमाद करेगा तो नरक में ही जायगा ।'

राम कुचरचा करहिं सब सीतहि लाइ कलंका ।

सदा अभागी लोग जग, कहत सकोचु न संक ॥४॥

लोग श्रीजानकीजी को कलंक लगाकर श्रीराम की निन्दा करते हैं । जगत्के लोग सदा से अभागे हैं, ( ऐसी बात ) कहते उन्हें संकोच और शंका भी नहीं होती ॥४॥

(अपयश होगा )

सती सिरोमनी सीय तजि, राखि लोग रुचि राम ।

सहे दुसह दुख सगुन गत प्रिय बियोगु परिनाम ॥५॥

श्रीराम ने सती-शिरोमणि श्रीजानकीजी का त्याग करके लोगों की रुचि रखी और स्वयं असहनीय दुःख सहा । इस अपशकुन का फल परिणाम में प्रियजन का वियोग है ॥५॥

बरन धरम आश्रम धरम निरत सुखी सब लोग ।

राम राज मंगल सगुन, सुफल जाग जप जोग ॥६॥

श्रीराम के राज्य में सब लोग अपने वर्ण-धर्म और आश्रम-धर्म में लगे हुए है, अतएव सुखी हैं । यह शकुन मंगलसूचक है; यज्ञ जप और योग सफल होगा ॥६॥

बाजिमेध अगनित किए, दिए दान बहु भाँति ।

तुलसी राजा राम जग सगुन सुमंगल पाँति ॥७॥

तुलसीदासजी कहते हैं कि महाराज श्रीराम ने अगणित अश्वमेधयज्ञ किये और अनेक प्रकार से दान दिये । संसार में यह शकुन श्रेष्ठ मंगलों की परम्परा का द्योतक है ॥७॥

रामज्ञा प्रश्न - षष्ठ सर्ग - सप्तक ७

असमंजसु बड़ सगुन गत सीता राम बियोग ।

गवन बिदेस कलेस बड़ हानि पराभव रोग ॥१॥

श्रीसीता-राम का वियोग हो जाने से यह शकुन भारी असमंजस का सूचक है । विदेश जाना होगा, बड़ा कष्ट होगा, हानि पराजय तथा रोग का शिकार बनना होगा ॥१॥

मानिय सिय अपराध बिनु प्रभु परिहरि पछितात ।

रुचै समाज न राज सुख, मन मलीन कृस गात ॥२॥

ऐसा मानना ( विश्वास करना ) चाहिये कि बिना किसी अपराध के श्रीजानकीजी का त्याग करके प्रभु पश्चात्ताप कर रहे है । उन्हें समाज (में रहना) तथा राज्य का सुख अच्छा नहीं लगता, चित्त खिन्न रहता है तथा शरीर दुर्बल हो गया है॥२॥

( प्रश्‍न-फल निकृष्ट है । )

पुत्र लाभ लवकुस जनम सगुन सुहावन होइ ।

समाचार मंगल कुसल सुखद सुनाव‍इ कोइ ॥३॥

लव-कुश का जन्म पुत्र प्राप्ति का सूचक शुभ शकुन है । कोई आनन्द मंगल का सुखदायी समाचार सुनायेगा ॥३॥

राज-सभाँ लवकुस ललित किए राम गुन गान ।

राज समाज सगुन सुभ सुजस लाभ सनमान ॥४॥

लव-कुश ने राजसभा में सुन्दर ( मधुर ) स्वर में श्रीराम के गुणों का गान किया । यह शुभ शकुन राज-समाज में सुयश तथा सम्मान की प्राप्ति का सूचक है ॥४॥

बालमीकि लव कुस सहित आनी सिय सुनि राम ।

हृदयँ हरषु जानब प्रथम सगुन सोक परिनाम ॥५॥

महर्षि वाल्मीकि लव-कुश के साथ सीतजी को ले आये हैं, यह सुनकर श्रीराम के चित्त में प्रसन्नता हुई । इस शकुन का फल यह जानना चाहिये कि मन में पहिलें प्रसन्नता, पर अन्त में शोक होगा ॥५॥

अनरथ असगुन अति असुभ सीता अवनि प्रबेसु ।

समय सोक संताप भय कलह कलंक कलेसु ॥६॥

श्रीजानकीजी का पृथ्वी में प्रवेश कर जाना अनर्थ करनेवाला अत्यन्त अशुभ अपशकुन है । यह शोक, सन्ताप, भय, झगडे़ अपयश और कष्ट का समय है ॥६॥

सुभग सगुन उनचार रस राम चरित मय चारु ।

राम भगत हित सफल सब तुलसी बिमल बिचारु ॥७॥

यह उनचास दोहोंवाला छठा सर्ग रामचरितमय होने से ( बड़ा ही ) सुन्दर है । तुलसीदासजी कहते हैं कि शकुन मंगलमय है, रामभक्तों के लिये प्रत्येक निर्मल ( निष्पाप ) विचार सफल होगा ॥७॥

इतिश्री: रामज्ञा प्रश्न षष्ठ: सर्ग: ॥

आगे जारी.......... रामज्ञा प्रश्न सर्ग 7

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