अग्निपुराण अध्याय १६

अग्निपुराण अध्याय १६       

अग्निपुराण अध्याय १६ बुद्ध और कल्कि अवतारों की कथा का वर्णन है।

अग्निपुराण अध्याय १६

अग्निपुराणम् अध्यायः १६       

Agni puran chapter 16

अग्निपुराण सोलहवाँ अध्याय

अग्नि पुराण अध्याय १६       

अग्निपुराणम् अध्यायः १६- बुद्धाद्यतारकथनम्

अग्निरुवाच

वक्ष्ये बुद्धावतारञ्च पठतः श्रृण्वतोर्थदम्।

पुरा देवासुरे युद्धे देत्यैर्द्देवाः पपाजिताः ।। १ ।।

रक्ष रक्षेति शरणं वदन्तो जग्मुरीश्वरम्।

मायामोहस्वरूपोसौ शुद्धोदनसुतोऽभवत् ।। २ ।।

मोहयामास दैत्यांस्तांस्त्याजिता वेदधर्मकम्।

ते च बौद्धा बभूवुर्हि तेभ्योन्ये वेदवर्जिताः ।। ३ ।।

आर्हतः सोऽभवत् पश्चादार्हतानकरोत् परान्।

एवं पाषण्डिनो जाता वेदधर्म्मादिवर्जिताः ।। ४ ।।

नारकार्हं कर्म चक्रुर्ग्रहीष्यन्त्यधमादपि।

सर्वे कलियुगान्ते तु भविष्यन्ति च सङ्कराः ।। ५ ।।

दस्यवः शीलहीनाश्च वेदो वाजसनेयकः।

दश पञ्च च शाखा वै प्रमाणेन भविष्यति ।। ६ ।।

धर्म्मकञ्चुकसंवीता अधर्मरुचयस्तथा।

मानुपान् भक्षयिष्यन्ति म्लेच्छाः पार्थिवरूपिणः ।। ७ ।।

अग्निदेव कहते हैं- अब मैं बुद्धावतार का वर्णन करूँगा, जो पढ़ने और सुननेवालों के मनोरथ को सिद्ध करनेवाला है। पूर्वकाल में देवताओं और असुरों में घोर संग्राम हुआ। उसमें दैत्यों ने देवताओं को परास्त कर दिया। तब देवता लोग ' त्राहि-त्राहि' पुकारते हुए भगवान्‌ की शरण में गये। भगवान् मायामोहमय रूप में आकर राजा शुद्धोदन के पुत्र हुए। उन्होंने दैत्यों को मोहित किया और उनसे वैदिक धर्म का परित्याग करा दिया। वे बुद्ध के अनुयायी दैत्य 'बौद्ध' कहलाये। फिर उन्होंने दूसरे लोगों से वेद-धर्म का त्याग करवाया। इसके बाद माया-मोह ही 'आर्हत' रूप से प्रकट हुआ। उसने दूसरे लोगों को भी 'आर्हत' बनाया। इस प्रकार उनके अनुयायी वेद- धर्म से वञ्चित होकर पाखण्डी बन गये। उन्होंने नरक में ले जानेवाले कर्म करना आरम्भ कर दिया। वे सब-के-सब कलियुग के अन्त में वर्ण संकर होंगे और नीच पुरुषों से दान लेंगे। इतना ही नहीं, वे लोग डाकू और दुराचारी भी होंगे। वाजसनेय (बृहदारण्यक) - मात्र ही 'वेद' कहलायेगा। वेद की दस पाँच शाखाएँ ही प्रमाणभूत मानी जायँगी। धर्म का चोला पहने हुए सब लोग अधर्म में ही रुचि रखनेवाले होंगे। राजारूपधारी म्लेच्छ मनुष्यों का ही भक्षण करेंगे ॥ १-७॥

कल्की विष्णुयशः पुत्रो याज्ञवल्क्यपुरोहितः।

उत्सादयिष्यति म्लेच्छान् गृहीतास्त्रः कृतायुधः ।। ८ ।।

स्थापयिष्यति मर्यादां चातुर्वर्ण्ये यथोचिताम्।

आश्रमेषु च सर्वेषु प्रजाः सद्धर्म्मवर्त्मनि ।। ९ ।।

कल्किरूपं परित्यज्य हरिः स्वर्गं गमिष्यति।

ततः कृतयुगन्नाम पुरावत् सम्भविष्यति ।। १० ।।

वर्णाश्रमाश्च धर्मेषु स्वेषु स्थास्यन्ति सत्तम।

एवं सर्वेषु कल्पेषु सर्वमन्वन्तरेषु च ।। ११ ।।

अवतारा असङ्ख्याता अतीतानागतादयः।

विष्णोर्द्दशावताराख्यान्‌यः पठेत् श्रृणुयान्नरः ।। १२ ।।

सोवाप्तकामो विमलः सकुलः स्वर्गमाप्नुयात्।

धर्म्माधर्म्मव्यवस्थानमेवं वै कुरुते हरीः ।।

अवतीर्णश्च स गतः सर्गादेः कारणं हरिः ।। १३ ।।

तदनन्तर भगवान् कल्कि प्रकट होंगे। वे श्रीविष्णुयशा के पुत्ररूप से अवतीर्ण हो याज्ञवल्क्य को अपना पुरोहित बनायेंगे। उन्हें अस्त्र-शस्त्र विद्या का पूर्ण परिज्ञान होगा। वे हाथ में अस्त्र-शस्त्र लेकर म्लेच्छों का संहार कर डालेंगे तथा चारों वर्णों और समस्त आश्रमों में शास्त्रीय मर्यादा स्थापित करेंगे। समस्त प्रजा को धर्म के उत्तम मार्ग में लगायेंगे। उसके बाद श्रीहरि कल्किरूप का परित्याग करके अपने धाम में चले जायेंगे। फिर तो पूर्ववत् सत्ययुग का साम्राज्य होगा। साधुश्रेष्ठ! सभी वर्ण और आश्रम के लोग अपने-अपने धर्म में दृढ़तापूर्वक लग जायेंगे। इस प्रकार सम्पूर्ण कल्पों तथा मन्वन्तरों में श्रीहरि के अवतार होते हैं। उनमें से कुछ हो चुके हैं, कुछ आगे होनेवाले हैं; उन सबकी कोई नियत संख्या नहीं है जो मनुष्य श्रीविष्णु के अंशावतार तथा पूर्णावतारसहित दस अवतारों के चरित्रों का पाठ अथवा श्रवण करता है, वह सम्पूर्ण कामनाओं को प्राप्त कर लेता है तथा निर्मल हृदय होकर परिवारसहित स्वर्ग को जाता है। इस प्रकार अवतार लेकर श्रीहरि धर्म की व्यवस्था और अधर्म का निराकरण करते हैं। वे ही जगत्की सृष्टि आदि के कारण हैं ॥ ८-१३ ॥

इत्यदिमहापुराणे आग्नेये बुद्धकल्क्यवतारवर्णनं नाम षोडशोऽध्यायः ॥

इस प्रकार आदि आग्नेय महापुराण में 'युद्ध तथा कल्कि इन दो अवतारों का वर्णन' नामक सोलहवाँ अध्याय पूरा हुआ ॥ १६ ॥

आगे जारी.......... अग्निपुराण अध्याय 17  

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