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अग्निपुराण अध्याय २४४
अग्निपुराण
अध्याय २४४ में स्त्री के लक्षण का वर्णन है।
अग्निपुराणम् अध्यायः २४४
अग्निपुराणम् चतुश्चत्वारिंशदधिकद्विशततमोऽध्यायः
Agni puran chapter 244
अग्निपुराण दो सौ चौवालीसवाँ अध्याय
अग्निपुराणम्/अध्यायः
२४४
अग्निपुराणम् अध्यायः २४४– स्त्रीलक्षणम्
अथ चतुश्चत्वारिंशदधिकद्विशततमोऽध्यायः
समुद्र उवाच
शस्ता स्त्री
चारुसर्वाङ्गी मत्तमातङ्गगामिनी ।
गुरूरुजघना या
च मत्तपारावतेक्षणा ।। १ ।।
सुनीलकेशी
तन्वङ्गी विलोमाऱङ्गी मनोहरा ।
समभूमिस्पृशौ
पादौ संहतौ च तथा स्तनौ ।। २ ।।
नाभिः
प्रदक्षिणावर्त्ता गुह्यमश्वत्थपत्रवत् ।
गुल्फौ निगूढौ
मध्येन नाभिरङ्गुष्ठमानिका ।। ३ ।।
जठरन्न
प्रलम्बञ्च चरोमरूक्षा न शोभना ।
नर्क्षवृक्षनदीनाम्नी
न सदा कलहप्रिया ।। ४ ।।
न लोलुपा न
दुर्भाषा शुभा देवादिपूजीता ।
गण्डैर्म्मघूकपुष्पाभैर्न
शिराला न लोमशा ।। ५ ।।
न
संहतभ्रूकुटिला पतिप्राणा पतिप्रिया ।
अलक्षणापि
लक्षण्या यत्राकारस्ततो गुणाः।। ६ ।।
भुवङ्कनिष्ठिका
यस्या न स्पृशेन्मृत्युरेव सा ।। ७ ।।
समुद्र कहते
हैं- गर्गजी ! शरीर से उत्तम श्रेणी की स्त्री वह है, जिसके सम्पूर्ण अङ्ग मनोहर हों, जो मतवाले गजराज की भाँति मन्दगति से चलती हो, जिसके
ऊरु और जघन (नितम्बदेश) भारी हों तथा नेत्र उन्मत्त पारावत के समान मदभरे हों,
जिसके केश सुन्दर नीलवर्ण के, शरीर पतला और
अङ्ग लोमरहित हों, जो देखने पर मन को मोह लेनेवाली हो,
जिसके दोनों पैर समतल भूमि का पूर्णरूप से स्पर्श करते हों और दोनों
स्तन परस्पर सटे हुए हों, नाभि दक्षिणावर्त हो, योनि पीपल के पत्ते की-सी आकारवाली हो, दोनों गुल्फ
भीतर छिपे हुए हों -मांसल होने के कारण वे उभड़े हुए न दिखायी देते हों, नाभि अँगूठे के बराबर हो तथा पेट लंबा या लटकता हुआ न हो। रोमावलियों से
रुक्ष शरीरवाली रमणी अच्छी नहीं मानी गयी है। नक्षत्रों, वृक्षों
और नदियों के नाम पर जिनके नाम रखे गये हों तथा जिसे कलह सदा प्रिय लगता हो,
वह स्त्री भी अच्छी नहीं है जो लोलुप न हो, कटुवचन
न बोलती हो, वह नारी देवता आदि से पूजित 'शुभलक्षणा' कही गयी है। जिसके कपोल मधूक- पुष्पों के
समान गोरे हों, वह नारी शुभ है। जिसके शरीर की नस-नाड़ियाँ
दिखायी देती हों और जिसके अङ्ग अधिक रोमावलियों से भरे हों, वह
स्त्री अच्छी नहीं मानी गयी है। जिसकी कुटिल भौंहें परस्पर सट गयी हों, वह नारी भी अच्छी श्रेणी में नहीं गिनी जाती। जिसके प्राण पति में ही बसते
हों तथा जो पति को प्रिय हो, वह नारी लक्षणों से रहित होने पर
भी शुभलक्षणों से सम्पन्न कही गयी है। जहाँ सुन्दर आकृति है, वहाँ शुभ गुण हैं। जिसके पैर की कनिष्ठिका अँगुली धरती का स्पर्श न करे,
वह नारी मृत्युरूपा ही है ॥ १-६ ॥
इत्यादिमहापुराणे
आग्नेये स्त्रीलक्षणं नाम चतुश्चत्वारिंशदधिकद्विशततमोऽध्यायः ।।
इस प्रकार आदि
आग्रेय महापुराण में 'स्त्री के लक्षणों का वर्णन' नामक दो सौ चौवालीसवाँ
अध्याय पूरा हुआ ॥ २४४ ॥
आगे जारी.......... अग्निपुराण अध्याय 245
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