शिव स्तोत्र
नारदपञ्चरात्रान्तर्गतम् माहेश्वरतन्त्र
ज्ञानखण्ड पटल १ में वर्णित पार्वतीकृत इस शिव स्तोत्र का पाठ करने से समस्त कामनाएं
पूर्ण होती है।
शिव स्तोत्रम्
Shiv stotra
पार्वतीकृत शिव स्तोत्रम्
माहेश्वरतन्त्र
प्रथम पटल
माहेश्वरतन्त्रान्तर्गत शिवस्तोत्र
श्री पार्वत्युवाच
देवदेव महादेव करुणार्णव शङ्कर ।
हर शम्भो शिव मृड् पशुनाथ नमोऽस्तु
ते ॥ १ ॥
श्री पार्वती ने कहा- हे देवों के
देव,
हे महादेव, हे करुणा के समुद्र भगवान् शङ्कर,
हे हर, हे शम्भो हे शिव, हे सबको सुख देने वाले और हे पशुनाथ अर्थात् प्राणिजात के स्वामिन् आपको
नमस्कार है ।। १ ।।
नमस्ते सर्वदेवानां देवताय परात्मने
।
पिनाकिने नमस्तुभ्यं गङ्गाधर
नमोऽस्तु ते ॥ २ ॥
सभी देवों के देव तुम परमात्मा को
नमस्कार है; पिनाक नामक धनुष को धारण करने
वाले तुम्हें नमस्कार है; और हे गङ्गा जी को धारण करने वाले
आपको नमस्कार है ।। २ ।।
भूतिभूषितदेहाय भक्तानामभयङ्कर ।
कर्पूरविशदाभाय त्रिनेत्राय
नमोऽस्तुते ॥ ३॥
भूति अर्थात् भस्म से भूषित देह
वाले,
भक्तों को अभय प्रदान करने वाले, कर्पूर के
समान उज्वल आभा वाले एवं तीन नेत्रों वाले तुम्हें नमस्कार है ॥ ३ ॥
नमश्चन्द्रकलाधारिन् नीलकण्ठ
महेश्वर ।
महाभुजङ्गमाबद्धजटाजूट शिवप्रद ॥ ४
॥
अकिञ्चनाय शुद्धाय ह्यणिमाद्यष्टसिद्धये
।
संसारवारिधितरणे प्लवभूतपदाम्बुज ॥
५ ॥
योगीश्वराय योगाय योगिनां पतये नमः
।
योगिहृत्पद्ममार्तण्ड योगानन्दमयाय
ते ॥ ६॥
हे चन्द्रमा की कला को धारण करने
वाले,
हे नीलीगर्दन वाले, हे महेश्वर, हे बड़े सर्पों से आवद्ध, हे जटाजूट धारी, हे कल्याण के प्रदाता तुम अकिञ्चन [ निर्धन ] के लिए, शुद्ध एवं अणिमा आदि अष्ट सिद्धि सम्पन्न, संसाररूपी
समुद्र के पार लगाने के लिए चरण कमल रूप नौका वाले, योगियों
के ईश्वर तुम योगयुक्त के लिए एवं योगियों के पालक के लिए और योगियों के हृदय कमल
को खिलाने के लिए सूर्यरूप तुम योगानन्द मय के लिए नमस्कार है ।। ४-६ ।।
सृष्ट्यर्थं ब्रह्मरूपोऽसि
पालनार्थं स्वयं हरिः ।
रुद्रोऽस्यन्ताय देवेश
नमस्त्रितयरूपिणे ।। ७ ।।
आप सृष्टि के लिए ब्रह्मा रूप हैं,
और सृष्टि के पालन के लिए स्वयं आप ही हरि स्वरूप हैं, एवं आप ही सृष्टि के संहार के लिए रुद्र रूप हैं । हे देवों के ईश्वर ! [ब्रह्मा-विष्णु-महेश
रूप से] तीन रूपों वाले आपको नमस्कार है ॥ ७ ॥
नमो वेदान्तवेद्याय नित्यानन्दमयाय
ते ।
निरञ्जनाय शुद्धाय सच्चिदानन्दचेतसे
॥ ८ ॥
वेदान्त के द्वारा जानने योग्य,
नित्य आनन्द स्वरूप, निष्कलङ्क, शुद्ध, सत् चित् एवं आनन्दरूप चित्त वाले तुम्हें
नमस्कार है ॥ ८ ॥
निर्मलाय निराशाय निरीशायाखिलात्मने
।
अणोरणीयसे तुभ्यं महतोऽपि महीयसे ।।
९ ।।
निर्मल उदासीन [आशाशून्य],
स्वामी विहीन, अखिलात्मक, अणु से भी सूक्ष्म, और महान् से भी महत्तर तुम्हें
नमस्कार है ॥ ९ ॥
दिक्कालाद्यनवच्छिन्न नित्य
चिन्मात्रमूर्तये ।
नमस्ते सर्वलोकैकपालकायार्त्तिनाशिने
॥ १० ॥
[पूर्व,
पश्चिम आदि ] दिशा और [भूत, भविष्य आदि काल के
द्वारा अपरिमेय, नित्य, एवं ज्ञानमय
स्वरूप वाले एवं समस्त लोक के एकमात्र पालक और दुःखों का नाश करने वाले आपको
नमस्कार है ॥ १० ॥
ब्रह्मा त्वं हरिरुद्रोऽसि हव्यवाट्
हुतमित्युत ।
मन्त्रर्त्त्विक देवता चासि
यज्ञस्त्वं तत्फलात्मकः ।। ११ ।।
हे महेश्वर तुम ब्रह्मा,
विष्णु और रुद्र हो । हविर्द्रव्य को ले जाने वाले अग्नि और हुत भी
तुम्हीं हो। तुम मन्त्र, ऋत्विज् और [यज्ञीय] देवता हो ।
यज्ञ तुम हो और उस यज्ञ के फल भी तुम्हीं हो ॥ ११ ॥
दयां कुरु महादेव प्रसीद परमेश्वर
त्वयि प्रसन्ने लोकानां फलन्ते
कामपादपाः ।। १२ ।।
हे महादेव मेरे ऊपर दया करो,
हे परमेश्वर मुझसे प्रसन्न हों। आपके प्रसन्न होने से ही समस्त
लोकों की कामनाएं फलीभूत हो जाती हैं ।। १२ ।।
॥ इति श्रीनारदपञ्चरात्रे माहेश्वरतन्त्रे ज्ञानखण्डे शिव- पार्वतीसंवादे प्रथमं पटलम् ॥ १ ॥

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