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शार्व शिव स्तोत्र

शार्व शिव स्तोत्र

ब्रह्मा को आगे कर गरुड़ध्वज विष्णु ने अतीत, भविष्य और वर्तमान के नामों तथा विविध वैदिक ऋचाओं द्वारा भगवान् शार्व शिव के इस स्तोत्र को कहा ।

शार्व शिव स्तोत्र

शार्व शिव स्तोत्रम्

Sharva shiv stav

वायुमहापुराणांतर्गत शार्वस्तवः

शार्वस्तवं

श्रीवायुमहापुराण अध्याय २४ शार्वशिव स्तोत्र

अथ शार्वशिव स्तोत्र

नमस्तुभ्यं भगवते सुव्रतेऽनन्ततेजसे ।

नमः क्षेत्राधिपतये बीजिने शूलिने नमः ।। ९० ।।

"आप भगवान् सुव्रत और अनन्त तेज- वाले है आपको नमस्कार है । आप क्षेत्राधिपति वीजी और शूलधारी हैं, आपको नमस्कार है।

अमेढ्रायोर्द्ध्वमेढ्राय नमो वैकुण्ठरेतसे ।

नमो ज्येष्ठाय श्रेष्ठाय अपूर्वप्रथमाय च ।। ९१ ।।

आप लिङ्ग- रहित, उर्द्ध्वलिङ्ग, और वैकुण्ठरेता हैं, आपको नमस्कार है । आप ज्येष्ठ, श्रेष्ठ, अपूर्व और प्रथम है आप को नमस्कार है ।

नमो हव्याय पूज्याय सद्योजाताय वै नमः ।

गह्वराय धनेशाय हैमचीराम्बराय च ।। ९२ ।।

आप हव्य, पूज्य और सद्योजात है, आपको नमस्कार है । आप गह्वर (शङ्कर) धनेश और स्वर्ण चीराम्बरधारी है, आपको नमस्कार है ।

नमस्ते ह्यस्मदादीनां भूतानां प्रभवाय च ।

वेदकर्म्मावदानानां द्रव्याणां प्रभवे नमः ।।

ग्रहाणां प्रभवे चैन ताराणां प्रभवे नमः ।। ९३ ।।

आप हम भूतों के प्रभव और वेदकर्मा के समान शुभ द्रव्यों के प्रभु है, आपको नमस्कार है। आप ग्रहों और ताराओं के प्रभु हैं, आपको नमस्कार है ।

नमो योग्स्य प्रभवे सांख्यस्य प्रभवे नमः ।

नमो ध्रुवनिशीथानामृषीणां पतये नमः ।। ९४ ।।

आप योग के प्रभु, सांख्य के प्रभु एवं ध्रुव और निशीय आदि ऋषियों के पति हैं, आपको नमस्कार है ।  

विद्युदशनिमेघानां गर्ज्जितप्रभवे नमः।

उदधीनाञ्च प्रभवे द्वीपानां प्रभवे नमः ।। ९५ ।।

आप विद्युत् वज्र मेघ और गर्जन के जनक हैं, आपको नमस्कार है । आप समुद्र और द्वीपों के प्रभु हैं, आपको नमस्कार है ।

अद्रीणां प्रभवे चैव वर्षाणां प्रभवे नमः।

नमो नदानां प्रभवे नदीनां प्रभवे नमः ।। ९६ ।।

आप पर्वत और वर्षा के प्रभव है, आपको नमस्कार है । आप नद और नदी के उत्पत्ति- स्थान हैं, आपको नमस्कार है।

नमश्चौषधिप्रभवे वृक्षाणां प्रभवे नमः।

धर्म्माध्यक्षाय धर्म्माय स्थितीनां प्रभवे नमः ।। ९७ ।।

आप औषधि और वृक्षों के उत्पादक है। आपको नमस्कार है ! आप धर्माध्यक्ष धर्म और स्थिति के प्रभु है, आपको नमस्कार है ।

नमो रसानां प्रभवे रत्नानां प्रभवे नमः ।

नमः क्षणानां प्रभवे कलानां प्रभवे नमः ।। ९८ ।।

आप रस और सम्पूर्ण रत्नों के उत्पादक हैं, आपको नमस्कार है । आप क्षण कला के प्रभव है, आपको नमस्कार है ।

निमेषप्रभवे चैव काष्ठानां प्रभवे नमः ।

अहोरात्रार्द्धमासानां मासानां प्रभवे नमः ।। ९९ ।।

आप निमेष, काष्ठा, अहोरात्र, अर्द्धमास और मास के प्रभव है, आपको नमस्कार है ।

नम ऋतुनां प्रभवे संख्यायाः प्रभवे नमः।

प्रभवे च परार्द्धस्य परस्य प्रभवे नमः ।। १०० ।।

आप ऋतु और परा परार्द्ध आदि सख्या के सृष्टिकर्ता है, आपको नमस्कार है।

नमः पुराणप्रभवे युगस्य प्रभवे नमः।

चतुर्विधस्य सर्गस्य प्रभवेऽनन्तचक्षुषे ।। १०१ ।।

आप पुराण, युग और चतुर्विधि सर्ग के जनक है, आप अनन्तचक्षु है, आपको नमस्कार है ।

कल्पोदये निबद्धानां वार्त्तानां प्रभवे नमः।

नमो विश्वस्य प्रभवे ब्रह्मदिप्रभवे नमः ।। १०२ ।।

आप कल्पादि से संबद्ध घटनाओं के कारण है, आप विश्व और ब्रह्मादि के भी जनक है. आपको नमस्कार है।

विद्यानां प्रभवे चैव विद्यानां पतये नमः।

नमो व्रतानां पतये मन्त्राणां पतये नमः ।। १०३ ।।

आप विद्या के आदि कारण और विद्या के पति हैं, आपको नमस्कार है । आप व्रतों और मन्त्रों के पति हैं, आपको नमस्कार है ।

पितॄणां पतये चैव पशूनां पतये नमः।

वाग्वृषाय नमस्तुभ्यं पुराणवृषभाय च ।। १०४ ।।

आप पितृपति और पशुपति है, आपको नमस्कार है। आप वाग्वृष और पुराण वृषभ हैं, आपको नमस्कार है ।

सुचारुचारुकेशाय ऊर्द्ध्वचक्षुःशिराय च ।

नमः पशूनां पतये गोवृषेन्द्रध्वजाय च ।। १०५ ।।

आप सुचारु सुन्दर केशवाले, उर्द्ध्वचक्षु, उर्द्ध्वशिखावाले पशुपति और वृषभध्वज हैं, आपको नमस्कार है ।

प्रजापतीनां पतये सिद्धानां पतये नमः।

दैत्यदानवसंघानां रक्षसां पतये नमः ।।

गन्धर्वाणां च पतये यक्षाणां पतये नमः ।

गरुडोरगसर्पाणां पक्षिणां पतये नमः ।। १०६ ।।

आप प्रजापतियों के पति, सिद्धो के पति, दैत्य-दानव और राक्षसों के पति हैं, आपको नमस्कार है । आप गन्धर्वपति, यक्षपति एवं गरुड़, सर्प और पक्षियों के पति है, आपको नमस्कार है ।

गोकर्णाय च गोष्ठाय शङ्कुकर्णाय वै नमः।

वाराहायाप्रमेयाय रक्षोधिपतये नमः ।। १०७ ।।

आप गोकर्णं, गोष्ठ, शङ्कुकर्ण वराह अप्रमेय और रक्षोधिपति हैं, आपको नमस्कार है ।

नमोऽप्सराणां पतये गणानां पतये नमः।

अम्भसां पतये चैव तेजसां पतये नमः ।। १०८ ।।

आप अप्सराओ के पति, गणो के पति तथा जल और तेज के पति है, आपको नमस्कार है ।

नमोऽस्तु लक्ष्मीपतये श्रीमते ह्रीमते नमः।

बलाबलसमूहाय ह्यक्षोभ्यक्षोभणाय च ।। १०९ ।।

दीर्घश्रृङ्गैकश्रृङ्गाय वृषभाय ककुद्मिने ।

नमः स्थैर्याय वपुषे तेजसे सुप्रभाय च ।। ११० ।।

आप लक्ष्मीपति, शोभा सम्पन्न और लज्जावान् हैं, आपको नमस्कार है । आप बलाबल समूह अक्षोभ्यक्षोभण, दीर्घशृङ्गैकशृङ्ग, वृषभ और ककुद (वृषभ स्कन्ध) वाले है, आपको नमस्कार है । आप स्थिर रहने वाले वपुधारी और अति प्रभाशाली है, आपको नमस्कार है ।

भूताय च भविष्याय वर्त्तमानाय वै नमः।

सुवर्च्चसेऽथ वीराय शूराय ह्यतिगाय च ।। १११ ।।

आप भूत, भविष्यत् और वर्तमान हैं, आप तेजस्वी शूर, वीर और अनतिक्रमणीय हैं, आपको नमस्कार है ।

वरदाय वरेण्याय नमः सर्वगताय च ।

नमो भूताय भव्याय भवाय महते तथा ।। ११२ ।।

आप वरद, (श्रेष्ठ) वरेण्य और सर्वगत है, आपको नमस्कार है । आप भूत, भव्य, भव और महान् है, आपको नमस्कार है ।

सर्वाय महतेऽजाय नमः सर्वगताय च ।

जनाय च नमस्तुभ्यं तपसे वरदाय च ॥

नमो वन्द्याय मोक्षाय जनाय नरकाय च ।। ११३ ।।

आप सर्व, महान् भज और सर्वगत है, आपको नमस्कार है । आप जन, तपः और वरद है, आपको नमस्कार है । आप बन्दनीय, मोक्ष जन और नरक हैं, आपको नमस्कार है ।

भवाय भजमानाय इष्टाय याजकाय च ।

अभ्युदीर्णाय दीप्ताय तत्त्वाय निर्गुणाय च ।। ११४ ।।

नमः पाशाय हस्ताय नमः स्वाभरणाय च ।

हुताय अपहृताय प्रहुतप्राशिताय च ॥११५ ।।

आप भव, भजमान, दृष्ट याजक, आयुदीर्ण, (स्तुत ) दीप्त, तत्व, निर्गुण, पाशहस्त, स्वाभरण, हुत, अपहृत, प्रहृत प्राशित है, आपको नमस्कार है ।

नमोऽस्त्विष्टाय मूर्त्ताय ह्यग्निष्टोमर्त्विजाय च ।

नम ऋताय सत्याय भूताधिपतये नमः ।। ११६ ।।

सदस्याय नमश्चैव दक्षिणावभृथाय च ।

अहिंसायाथ लोकानां पशुमन्त्रौषधाय च ।। ११७ ।।

इष्ट, मूर्त, अष्टोमयज्ञ के ऋत्विज ऋतु, सत्य, भूताधिपति, सदस्य दक्षिणावभृथ, लोकों की अहिंसा और पशुओं के लिये मन्त्रौषधि है, आपको नमस्कार है ।

नमस्तुष्टिप्रदानाय त्र्यम्बकाय सुगन्धिने ।

नमोऽस्त्विन्द्रियपतये परिहाराय स्रग्विणे ।। ११८ ।।

आप पुष्टि के दाता, त्र्यम्बक, सुगन्धि, इन्द्रियपति परिहार और मालाधारी हैं, आपको नमस्कार है।

विश्वाय विश्वरूपाय विश्वतोऽक्षिमुखाय च ।

सर्वतः पाणिपादाय रुद्रायाप्रमिताय च ।। ११९ ।।

नमो हव्याय कव्याय हव्यकव्याय वै नमः ।

नमः सिद्धाय मेध्याय य चेष्टाय त्वव्ययाय च ।। १२० ।।

आप विश्व विश्वरूप, विश्वतोक्षिमुख, सर्वत्र पाणि-पादवाले रुद्र, अनुपमेय, हव्य, कव्य हव्यकव्य, सिद्ध, मेष्य, चेष्टा, अव्यय है, आपको नमस्कार है ।

सुवीराय सुघोराय ह्यक्षोभ्यक्षोभणाय च ।

सुमेधसे सुप्रजाय दीप्ताय भास्कराय च ।। १२१ ।।

नमो नमः सुपर्णाय तपनीयनिभाय च ।

विरूपाक्षाय त्र्यक्षाय पिङ्गलाय महौजसे ।। १२२ ।।

सुवीर, सुघोर, अक्षोभ्य क्षोभण, सुमेधा दीप्त, भास्कर, सुप्रज, सुपर्ण और तपनीय वस्तु तुल्य हैं, आपको नमस्कार है । आप विरूपाक्ष, त्र्यक्ष, पिङ्गल ओजस्वी हैं, आपको नमस्कार है ।

दृष्टिघ्नाय नमश्चैव नमः सौम्येक्षणाय च ।

नमो धूम्राय श्वेताय कृष्णाय लोहिताय च ।। १२३ ।।

दृष्टिनाशक, और शुभदर्शन वाले है, आपको नमस्कार है । आप धूम्र, श्वेत, कृष्ण, लोहित हैं आपको नमस्कार है ।

पिशिताय पिशङ्गाय पीताय च निषङ्गिणे ।

नमस्ते सविशेषाय निर्विशेषाय वै नमः ।।

नमः इज्याय पूज्याय चोपजीव्याय वै नमः ।

नमः क्षेम्याय वृद्धाय वत्सलाय नमो नमः ॥

नम कृताय सत्याय सत्यासत्याय वै नमः ॥१२४ ।।

पिशित, पीत और निषङ्गी हैं, आपको नमस्कार है। आप सविशेष, निर्विशेष, इन्य, पूज्य, उपजीव्य, क्षेम्य, वृद्ध और वत्सल हैं, आप कृत, सत्य, सत्यासत्य हैं आपको नमस्कार है ।

नमो वै पझवर्णाय मृत्युघ्नाय च मृत्यवे ।

नमः श्यामाय गौराय कद्रवे रोहिताय च ।। १२५ ।।

नमः कान्ताय सन्ध्याभ्रवर्णाय बहुरूपिणे ।

नमः कपालहस्ताय दिग्वस्त्राय कपर्द्दिने ।। १२६ ।।

पद्मवर्ण, मृत्युघ्न, मृत्यु, श्याम, गौर, कद्रु, रोहित, कान्त सन्ध्या, मेघवर्ण, बहुरूपी, कपालहस्त, दिग्वस्त्र कपर्दी हैं आपको नमस्कार है ।

अप्रमेयाय शर्वाय ह्यवध्याय वराय च ।

पुरस्तात् पृष्ठतश्चैव बिभ्राणाय कृशानवे ।। १२७ ।।

दुर्गाय महते चैव रोधाय कपिलाय च ।

अर्कप्रभशरीराय बलिने रंहसाय च ।। १२८ ।।

अप्रमेय, शर्व, अवध्य, वर, पुरोभाग या पृष्ठ भाग से विभ्रान्त कृष्णनु, महादुर्ग, रोध, कपिल, सूर्य की प्रभा की तरह शरीर वाले, वली, वेगवान हैं आपको नमस्कार है ।  

पिनाकिने प्रसिद्धाय स्फीताय प्रसृताय च ।

सुमेधसेऽक्षमालाय दिग्वासाय शिखण्डिने ।। १२९ ।।

चित्राय चित्रवर्णाय विचित्राय धराय च ।

चेकितानाय तुष्टाय नमस्त्वनिहिताय च ।। १३० ।।

पिनाकी, प्रसिद्ध, स्फीत, प्रसृत, (विस्तृत) सुमेधा, अक्षमाली, दिग्वस्र, शिखण्डी, चित्र, चित्रवर्णं विभिन्न धर, चेकितान, तुष्ट और अनिहित हैं आपको नमस्कार है ।

नमः क्षान्ताय शान्ताय वज्रसंहननाय च ।

रक्षोघ्नाय मखघ्नाय शितिकण्ठोर्द्ध्वरेतसे ।। १३१ ।।

अरिहाय कृतान्ताय तिग्मायुधधराय च ।

समोदाय प्रमोदाय इरिणायैव ते नमः ।। १३२ ।।

आप क्षान्त, शान्त, वज्रप्रहारी, राक्षसविनाशी, यज्ञविनाशी, शितिकण्ठ, ऊर्ध्वरेता. शत्रुनाशी, कृतान्त, तीक्ष्ण आयुधधारी, संमोद, प्रमोद और दूरिण्य ( शून्य ) है, आपको नमस्कार है ।

प्रणवप्रणवेशाय भक्तानां शर्मदाय च ।

मृगव्याधाय दक्षाय दक्षयज्ञहराय च ।। १३३ ।।

सर्वभूताय भूताय सर्वेशातिशयाय च ।

पुरभेत्रे च शान्ताय सुगन्धाय वरेषवे ।। १३४ ।।

पूष्णो दन्तविनाशाय भगनेत्रान्तकाय च ।

कणादाय वरिष्ठाय कामाङ्गदहनाय च ।। १३५ ।।

रवेः करालचक्राय नागेन्द्रदमनाय च ।

दैत्यानामन्तकायाथो दिव्याक्रन्दकराय च ।। १३६ ।।

श्मशानरतिनित्याय नमस्त्र्यम्बकधारिणे ।

नमस्ते प्राणपालाय धवमालाधराय च ।। १३७ ।।

आप प्रणव, प्रणवेश, भक्तों के सुखदाता, मृगयाशील, दक्ष, दक्षयज्ञविनाशी, सर्वभूत, भूत सबसे अधिक पराक्रमी, पुर दैत्य को मारने वाले, शान्त सुगन्ध, वर्गाभिलाषी, पूषा के दाँत को तोड़नेवाले, सूर्य के नेत्र को फोड़नेवाले, कणाद, वरिष्ठ, मदन दहन, सूर्य के कराल नामक चक्र, नागेन्द्रदमनकर्ता, दैत्यों के विनाशी, दिव्य घोष करनेवाले, श्मशान में नित्य रमण करने वाले, त्रिनेत्र, आप प्राण पालक और धवलमालाधारी है, आपको नमस्कार है।

प्रहीणशोकैर्विविधैर्भूतैः परिष्टुताय च ।

नरनारीशरीराय देव्याः प्रियकराय च ।। १३८ ।।

जटिने दण्डिने तुभ्यं व्यालयज्ञोपवीतिने ।

नमोऽस्तु नृत्यशीलाय वाद्यनृत्यप्रियाय च ।। १३९ ।।

शोकविहीन विविध जीवो से स्तुत, नरनारी उभय शरीर वाले, देवी पार्वती के प्रियकारक, जटाधारी दण्डधारी, साँप का यज्ञीपवीत धारण करने वाले, नाचने वाले, नृत्य-वाद्य के प्रेमी, यज्ञस्वरूप है, आपको नमस्कार है।

मन्यवे गतिशीलाय सुगीति गायते नमः ।

कटककराय भीमाय चोग्ररूपधराय च ।। १४० ।।

विभीषणाय भीमाय भगप्रमथनाय च ।

सिद्धसङ्घातगीताय महाभागाय वै नमः ।। १४१ ।।

गायक, सुगीति, गीतशील, कटककर, भयङ्कर उग्र रूपधारी, विभीषण, भीम, भग ( देवता ) मन्थनकर्ता, सिद्धसमूह द्वारा प्रशंसित, महाभाग हैं, आपको नमस्कार है ।

नमो मुक्ताट्टहासाय क्ष्वेडितास्फोटिताय च ।

नदते कूर्दते चैव नमः प्रमुदिताय च ।। १४२ ।।

अट्टहासकर्ता, (सिंहनाद) करने वाले, कूदने वाले और प्रमुदित हैं, आपको नमस्कार है ।

नमोऽद्भुताय स्वपते धावते प्रस्थिताय च ।

ध्यायते जृम्भते चैव तुदते द्रवते नमः ।। १४३ ।।

चलते क्रीडते चैव लम्बोदरशरीरिणे ।

नमः कृताय कम्पाय मुण्डाय विकराय च ।। १४४ ।।

आप अद्भुत शयनशील, धावमान, प्रस्थित, ध्याता, जम्हाई लेने वाले, पीड़क, पलायनकर्ता, चलमान, क्रीडारत, लम्बोदार, नमस्कृत, कम्प, मुण्ड, विकट हैं, आपको नमस्कार है ।  

नम उन्मत्तवेषाय किङ्किणीकाय वै नमः।

नमो विकृतवेषाय क्रूरोग्रामर्षणाय च ।। १४५ ।।

अप्रमेयाय दीप्ताय दीप्तये निर्गुणाय च ।

नमः प्रियाय वादाय मुद्रामणिधराय च ।। १४६ ।।

उन्मत्तवेष, क्रूर, उग्र, अमर्षण (असहनशील), अप्रमेय, किंकिणीधारी, विकृतनेत्र, विकृत-वेशधारी दीप्ति, निर्गुण, प्रिय वाद नगवाली अंगूठी पहने हुये हैं, आपको नमस्कार है ।

नमस्तोकाय तनवे गुणैरप्रतिमाय च ।

नमो गणाय गुह्याय गम्याय गमनाय च ।। १४७ ।।

स्तोक, तनु, अनुपम गुण वाले, गण, गुह्य, गम्य, गमन हैं, आपको नमस्कार है ।

लोक धात्री त्वियं भूमिः पादौ सज्जनसेवितौ ।

सर्व्वेषां सिद्धयोगानामधिष्ठानन्तवोदरम् ।। १४८ ।।

मध्येऽन्तरिक्षं विस्तीर्णन्तारागणविभूषितम् ।

तारापथ इवा भाति श्रीमान् हारस्तवोरसि ।। १४९ ।।

दिशा दश भुजास्ते वै केयूराङ्गदभूषिताः।

विस्तीर्णपरिणाहश्च नीलाम्बुदचयोपमः ।। १५० ।।

कण्ठस्ते शोभते श्रीमान् हेमसूत्रविभूषितः ।

हे भगवन् ! यह लोकधात्री पृथ्वी, आपका सज्जन- सेवित पदयुगल है और नारायण से विभूषित जो विस्तीर्ण अन्तरिक्षमध्य है, वही आपका उदर है, जो सम्पूर्ण सिद्ध योगियों का अधिष्ठा है। आपकी छाती का हार तारापथ (आकाश गंगा) की तरह शोभायमान है । दसो दिशायें आपकी भुजाये हैं, जो केयूर और अङ्गद से विभूषित हैं । विशाल और विस्तीर्ण नील मेघों का समूह आपका कण्ठ है, जो विद्युल्लता रूपी हेमसूत्र से विभूषित है ।

दंष्ट्राकरालदुर्द्धर्षमनौपम्यं मुखं तव ।। १५१ ।।

पद्ममालाकृतोष्णीषं शीर्षण्यं शोभते कथम् ।

दीप्तिः सूर्ये वपुश्चन्द्रे स्थैर्ये भूर्ह्यनिलो बले ।। १५२ ।।

तैक्ष्ण्यमग्नौ प्रभा चन्द्रे खे शब्दः शैत्यमप्सु च ।

अक्षरोत्तमनिष्पन्दान् गुणानेतान्विदुर्बुधाः ।। २४.१५३ ।।

आपका अनुपम मुख दन्तपंक्ति से कराल एवं दुर्द्धर्ष है । पद्ममाला से मण्डित आपके शिर पर पगड़ी की शोभा ऐसी हो रही है मानो सूर्यमण्डल मे दीप्ति, चन्द्रमा मे वायु, पृथ्वी मे स्थैर्य, वायु में बल, अग्नि मे तीक्ष्णता, चन्द्रमा में प्रभा, आकाश मे शब्द और जल मे शीतलता हो । ये सब अविनाशी, उत्तम और स्थिर जितने गुण हैं, वे आपके ही है, विद्वान् लोग ऐसा ही कहते है ।

जपो जप्यो महायोगी महादेवो महेश्वरः।

पुरेशयो गुहावासी खेचरो रजनीचरः ।। १५४ ।।

तपोनिधिर्गुहगुरुर्नन्दनो नन्दिवर्द्धनः।

हयशीर्षो धराधाता विधाता भूतिवाहनः ।। १५५ ।।

बोद्धव्यो बोधनो नेता धूर्वहो दुष्प्रकम्पकः।

बृहद्रथो भीमकर्मा बृहत्कीर्तिर्धनञ्जयः ।। १५६ ।।

घण्टाप्रियो ध्वजीछत्री पताकाध्वजिनीपतिः।

कवची पट्टिशी शङ्खी पाशहस्तः परश्वभृत् ।। १५७ ।।

अगमस्त्वनघः शूरो देवराजारिमर्दनः।

त्वां प्रसाद्य पुराऽस्माभिर्द्विषन्तो निहता युधि ।। १५८ ।।

माप जप, जप्य, महायोगी, महादेव, महेश्वर, पुरेशय गुहावासी खेचर, रजनीचर, तपोनिधि, गुहगुरु नन्दन, नन्दिवर्धन, हयशीष, धराधाता विधाता, भूतिवाहन, बोधव्य वोधन, नेता, धूर्व, दुष्प्रकम्पक, वृहद्रथ, भीमकर्मा, वृहत्कीर्ति, घनञ्जय, घण्टाप्रिय, ध्वजी, छत्री, पताका रथपति, कच्ची, पट्टिशी, शङ्खी, पाशहस्त, परश्वभृत् अग, मनध, शूर और इन्द्रशत्रु विनाशक है। आपको प्रसन्न करके हम लोगो ने पूर्वकाल में युद्ध मे शत्रुओं को मारा है ।

अग्निस्त्वं चार्णवान् सर्वान् पिभन्नैव न तृप्यसे ।

क्रोधागारः प्रसन्नात्मा कामहा कामदः प्रियः ।। १५९ ।।

ब्रह्मण्यो ब्रह्मचारी च गोघ्नस्त्वं शिष्टपूजितः।

वेदानामव्ययः कोशस्त्वया यज्ञः प्रकल्पितः ।। १६० ।।

हव्यञ्च वेदं वहति वेदोक्तं हव्यवाहनः।

प्रीते त्वयि महादेव वयं प्रीता भवामहे ।। १६१ ।।

आप अग्नि है । सब समुद्रो को पीकर भी आप तृप्त नहीं हुये हैं । आप क्रोधागार प्रसन्नात्मा, काम को मारमेवाले काम को देनेवाले, प्रियं ब्रह्मण्य ब्रह्मचारी गोधन, शिष्टपूजित वेदों का अविनाशी कोष, प्रकल्पित यज्ञ और हव्यवाहन हैं। आप वेदोक्त हव्य को धारण करते है । आपके प्रसन्न होने से ही हम सब प्रसन्न होते है ।

भवानीशो नादिमान् धामराशिर्ब्रह्मम

लोकानान्त्वं कर्त्ता त्वादिसर्गः।

साङ्ख्याः प्रकृतिभ्यः परमं त्वां विदित्वा

क्षीणध्यानास्ते न मृत्युं विशन्ति ।। १६२ ।।

आप ईश, अनादि, तेजोराशि, लोककर्ता और लोकसृष्टि-कारक हैं । सांख्यज्ञाता योगिगण आपकी प्रकृति से श्रेष्ठ ज्ञान लाभ कर मृत्यु मुख से बचकर अमर हो जाते हैं ।

योगेन त्वान्ध्यानिनो नित्ययुक्ताः

ज्ञात्वा भोगान् सन्त्यजन्ते पुनस्तान् ।

येऽन्ये मर्त्त्यास्त्वां प्रपन्ना विशुद्धास्ते

कर्मभिर्दिव्यभोगान् भजन्ते ।। १६३ ।।

नित्ययुक्त योगिगण योगबल से आपको जानकर भोगों का परित्याग कर देते हैं । जो मर्त्य आपका साक्षात्कार करके विशुद्ध होते हैं, वे अपने कर्मफल के अनुसार दिव्य भोगों का उपभोग करते हैं ।

अप्रमेयस्य तत्त्वस्य यथा विझः स्वशक्तितः।

कीर्तितं तव माहात्म्यमपारं परमात्मनः।

शिवो नो भव सर्वत्र योऽसि सोऽसि नमोऽस्तु ते ।। १६४ ।।

आप अप्रमेय तत्त्व है । अपनी शक्ति से जैसे हमने आपको समझा वैसा ही आपके अपार माहात्म्य का कीर्तन किया। आप हमारे लिये सर्वत्र कल्याण-कारक हों। आप जो हैं, वही है अर्थात् आप अज्ञेय और अप्राप्य हैं आपको नमस्कार है" ।

इति श्रीमहापुराणे वायुप्रोक्ते शार्वस्तवं नाम चतुर्विंशोऽध्यायः ।। २४ ।।

श्री वायुमहापुराण का शार्वस्तव नामक चोबीसवाँ अध्याय समाप्त ॥ २४ ॥

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