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अभिलाषाष्टक स्तोत्र
त्रैलोक्यविजय श्रीकृष्ण कवच
विष्णु नाम स्तोत्र
श्रीनरसिंहपुराण अध्याय ४० में
वर्णित भगवान् महादेवकृत इस श्रीविष्णु का नाममय स्तोत्र का जो नित्य स्तवन करता
है उनका सारे मनोरथ पूर्ण हो जाता है ।
विष्णोर्नामस्तोत्रम्
Vishnu naam stotra
श्रीविष्णु १०८ नाम स्तोत्र
विष्णु नाम
स्तोत्र
विष्णोर्नामस्तोत्रं
श्रीमहादेव उवाच
विष्णुर्जिष्णुर्विभुर्देवो यज्ञेशो
यज्ञपालकः ।
प्रभविष्णुर्ग्रसिष्णुश्च लोकात्मा
लोकपालकः ॥३६॥
केशवः केशिहा कल्पः सर्वकारणकारणम्
।
कर्मकृद वामनाधीशो वासुदेवः
पुरुष्टुतः ॥३७॥
आदिकर्ता वराहश्च माधवो मधुसूदनः ।
नारायणो नरो हंसो विष्णुसेनो
हुताशनः ॥३८॥
ज्योतिष्मान् द्युतिमान्
श्रीमानायुष्मान् पुरुषोत्तम् ।
वैकुण्ठः पुण्डरीकाक्षः कृष्णः
सूर्यः सुरार्चितः ॥३९॥
नरसिंहो महाभीमो वज्रदंष्ट्रो
नखायुधः ।
आदिदेवो जगत्कर्ता योगेशो गरुडध्वजः
॥४०॥
गोविन्दो गोपतिर्गोप्ता
भूपतिर्भुवनेश्वरः ।
पद्मनाभो हषीकेशो विभुर्दामोदरो
हरिः ॥४१॥
त्रिविक्रमस्त्रिलोकेशो ब्रह्मेशः
प्रीतिवर्धनः ।
वामनो दुष्टमनो गोविन्द्रो
गोपवल्लभः ॥४२॥
भक्तिप्रियोऽच्युतः सत्यः
सत्यकीर्तिर्ध्रुवः शुचिः ।
कारुण्यः करुणो व्यासः पापहा
शान्तिवर्धनः ॥४३॥
संन्यासी शास्त्रतत्त्वज्ञो
मन्दारगिरिकेतनः ।
बदरीनिलयः शान्ततत्त्वज्ञो
वैद्युतप्रभः ॥४४॥
भुतावासो गुहावासः श्रीनिवासः
श्रियः पतिः ।
तपोवासो दमो वासः सत्यवासः सनातनः
॥४५॥
पुरुषः पुष्कलः पुण्यः पुष्कराक्षो
महेश्वरः ।
पूर्णः पूर्तिः पुराणज्ञः पुण्यज्ञः
पुण्यवर्द्धनः ॥४६॥
शङ्खी चक्री गदी शार्ङ्गी लाङ्गली
मुशली हली ।
किरीटी कुण्डली हारी मेखली कवची
ध्वजी ॥४७॥
जिष्णुर्जेता महावीरः शत्रुघ्नः
शत्रुतापनः ।
शान्तः शान्तिकरः शास्ता शङ्करः
शंतनुस्तुतः ॥४८॥
सारथिः सात्त्विकः स्वामी
सामवेदप्रियः समः ।
सावनः साहसी सत्त्वः सम्पूर्णांशः समृद्धिमान्
॥४९॥
स्वर्गदः कामदः श्रीदः कीर्तिदः
कीर्तिनाशनः ।
मोक्षदः पुण्डरीकाक्षः
क्षीराब्धिकृतकेतनः ॥५०॥
स्तुतः सुरासुरैरीश प्रेरकः
पापनाशनः ।
त्वं यज्ञस्त्वं
वषटकारस्त्वमोंकारस्त्वमग्नयः ॥५१॥
त्वं स्वाहा त्वं स्वधा देव त्वं
सुधा पुरुषोत्तम ।
नमो देवादिदेवाय विष्णवे शाश्वताय च
॥५२॥
अनन्तायाप्रमेयाय नमस्ते गरुडध्वज ।
श्रीमहादेवजी बोले - विष्णु, जिष्णु, विभु, देव, यज्ञेश, यज्ञपालक, प्रभविष्णु, ग्रसिष्णु, लोकात्मा, लोकपालक, केशव, केशिहा, कल्प, सर्वकारणकारण, कर्मकृत्, वामनाधीश, वासुदेव, पुरुष्टुत, आदिकर्ता, वराह, माधव, मधुसूदन, नारायण, नर, हंस, विष्णुसेन, हुताशन, ज्योतिष्मान्, द्युतिमान् , श्रीमान् , आयुष्मान् , पुरुषोत्तम, वैकुण्ठ, पुण्डरीकाक्ष, कृष्ण, सूर्य, सुरार्चित, नरसिंह, महाभीम, वज्रदंष्ट, नखायुध, आदिदेव, जगत्कर्ता, योगेश, गरुडध्वज, गोविन्द, गोपति, गोप्ता, भूपति, भुवनेश्वर, पद्मनाभ, हषीकेश, विभु, दामोदर, हरि, त्रिविक्रम, त्रिलोकेश, ब्रह्मेश, प्रीतिवर्धन, वामन, दुष्टदमन, गोविन्द, गोपवल्लभ, भक्तिप्रिय, अच्युत, सत्य, सत्यकीर्ति, ध्रुव, शुचि, कारुण्य, करुण, व्यास, पापहा, शान्तिवर्धन, संन्यासी, शास्त्रतत्त्वज्ञ, मन्दारगिरिकेतन, बदरीनिलय, शान्त, तपस्वी, वैद्युतप्रभ, भूतावास, गुहावास, श्रीनिवास, श्रियः पति, तपोवास, दम, वास, सत्यवास, सनातन पुरुष, पुष्कल, पुण्य, पुष्कराक्ष, महेश्वर, पूर्ण, पूर्ति, पुराणज्ञ, पुण्यज्ञ, पुण्यवर्द्धन, शङ्खी, चक्री, गदी, शाङ्गी, लाङ्गली, मुशली, हली, किरीटी, कुण्डली, हारी, मेखली, कवची, ध्वजी, जिष्णु, जेता, महावीर, शत्रुघ्न, शत्रुतापन, शान्त, शान्तिकर, शास्ता, शंकर, शंतनुस्तुत, सारथि, सात्त्विक, स्वामी, सामवेदप्रिय, सम, सावन, साहसी, सत्त्व, सम्पूर्णांश, समृद्धिमान्, स्वर्गद, कामद, श्रीद, कीर्तिद, कीर्तिनाशन, मोक्षद, पुण्डरीकाक्ष, क्षीराब्धिकृतकेतन, सुरासुरैः स्तुत, प्रेरक और पापनाशन आदि नामोंसे कहे जानेवाले परमेश्वर ! आप ही यज्ञ, वषटकार, ॐकार तथा आहवनीयादि अग्निरुप हैं । पुरुषोत्तम ! देव ! आप ही स्वाहा, स्वधा और सुधा है, आप सनातन देवदेव भगवान् विष्णुको नमस्कार है । गरुडध्वज ! आप प्रमाणों के अविषय तथा अनन्त हैं ॥३६- ५२अ॥
इति श्रीनरसिंहपुराणे विष्णोर्नामस्तोत्रं नाम चत्वारिंशोऽध्यायः ॥
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