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कर्मकाण्ड

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विष्णु स्तवराज

विष्णु स्तवराज

श्रीनरसिंहपुराण अध्याय १६ में वर्णित महादेवजी के द्वारा कथित भगवान् विष्णु के इस पावन स्तोत्र श्रीविष्णु स्तवराज का जो प्रतिदिन प्रातः काल स्नान करके नित्य पाठ करता है, उसका सौ जन्मों में किया हुआ पाप भी नष्ट हो जाता है । वह अमृतपद (मोक्ष) को प्राप्त कर लेता है, वे परम उत्तम वैष्णवी सिद्धि (विष्णु- सायुज्य) प्राप्त कर लेते हैं ।

विष्णु स्तवराज

श्रीविष्णुस्तवराज स्तोत्रम्

Vishnu stavaraj

श्रीविष्णुस्तवराज

विष्णु स्तव

महादेवप्रोक्तं श्रीविष्णु स्तवराज

महेश्वर उवाच

यस्तं विश्वमनाद्यन्तमाद्यं स्वात्मनि संस्थितम् ।

सर्वज्ञममलं विष्णुं सदा ध्यायन् विमुच्यते ॥१७॥

श्रीमहेश्वर ने कहा - जो सदा उन विश्वस्वरुप, आदि- अन्त से रहित, सबके आदिकारण, आत्मनिष्ठ, अमल एवं सर्वज्ञ भगवान् विष्णु का ध्यान करता है, वह मुक्त हो जाता है ।

निर्विकल्पं निराकाशं निष्प्रपञ्चं निरामयम् ।

वासुदेवमजं विष्णुं सदा ध्यायन् विमुच्यते ॥१८॥

जो विकल्प से रहित, अवकाशशून्य, प्रपञ्च से परे, रोग- शोक से हीन एवं अजन्मा हैं, उन वासुदेव (सर्वव्यापी भगवान् ) विष्णु का सदा ध्यान करनेवाला पुरुष संसार- बन्धन से मुक्त हो जाता है ।

निरञ्जनं परं शान्तमच्युतं भूतभावनम् ।

देवगर्भं विभुं विष्णुं सदा ध्यायन् विमुच्यते ॥१९॥

जो सब दोषों से रहित, परम शान्त, अच्युत, प्राणियों की सृष्टि करनेवाले तथा देवताओं के भी उत्पत्ति स्थान हैं, उन भगवान् विष्णु का सदा ध्यान करनेवाला पुरुष जन्म- मृत्यु के बन्धन से छुटकारा पा जाता है ।

सर्वपापविनिर्मुक्तमप्रमेयमलक्षणम् ।

निर्वाणमनघं विष्णुं सदा ध्यायन् विमुच्यते ॥२०॥

जो सम्पूर्ण पापों से शून्य, प्रमाणरहित, लक्षणहीन, शान्त तथा निष्पाप हैं, उन भगवान् विष्णु का सदा चिन्तन करनेवाला मनुष्य कर्मों के बन्धन से मुक्त हो जाता है ।

अमृतं परमानन्दं सर्वपापविवर्जितम् ।

ब्रह्मण्यं शंकरं विष्णुं सदा संकीर्त्य मुच्यते ॥२१॥

जो अमृतमय, परमानन्दस्वरुप, सब पापों से रहित, ब्राह्मणप्रिय तथा सबका कल्याण करनेवाले हैं, उन भगवान् विष्णु का निरन्तर नामकीर्तन करने से मनुष्य संसार- बन्धन से मुक्त हो जाता है ।

योगेश्वरं पुराणाख्यमशरीरं गुहाशयम् ।

अमात्रमव्ययं विष्णुं सदा ध्यायन् विमुच्यते ॥२२॥

जो योगों के ईश्वर, पुराण, प्राकृत देहहीन, बुद्धिरुप गुहा में शयन करनेवाले, विषयों के सम्पर्क से शून्य और अविनाशी हैं, उन भगवान् विष्णु का सदा ध्यान करनेवाला पुरुष जन्म- मृत्यु के बन्धन से छुटकारा पा जाता है।

शुभाशुभविनिर्मुक्तमूर्षिषटकपरं विभुम् ।

अचिन्त्यममलं विष्णुं सदा ध्यायन् विमुच्यते ॥२३॥

जो शुभ और अशुभ के बन्धन से रहित, छः ऊर्मियों से परे, सर्वव्यापी, अचिन्तनीय तथा निर्मल हैं, उन भगवान् विष्णु का सदा ध्यान करनेवाला मनुष्य संसार से मुक्त हो जाता है ।

सर्वद्वन्द्वविनिर्मुक्तं सर्वदुःखविवर्जितम् ।

अप्रतर्क्यमजं विष्णुं सदा ध्यायन् विमुच्यते ॥२४॥

जो समस्त द्वन्द्वों से मुक्त और सब दुःखों से रहित हैं, उन तर्क के अविषय, अजन्मा भगवान् विष्णु का सदा ध्यान करता हुआ पुरुष मुक्त हो जाता है ।

अनामगोत्रमद्वैतं चतुर्थं परमं पदम् ।

तं सर्वहद्रतं विष्णुं सदा ध्यायन् विमुच्यते ॥२५॥

जो नामगोत्र से शून्य, अद्वितीय और जाग्रत आदि तीनों अवस्थाओं से परे तुरीय परमपद हैं, समस्त भूतों के हदय – मन्दिर में विद्यमान उन भगवान् विष्णु का सदा ध्यान करनेवाला पुरुष मुक्त हो जाता है ।

अरुपं सत्यसंकल्पं शुद्धमाकाशवत्परम् ।

एकाग्रमनसा विष्णुं सदा ध्यायन् विमुच्यते ॥२६॥

जो रुपरहित, सत्यसंकल्प और आकाश के समान परम शुद्ध हैं, उन भगवान् विष्णु का सदा एकाग्रचित्त से चिन्तन करनेवाला मनुष्य मुक्ति प्राप्त कर लेता है ।

सर्वात्मकं स्वभावस्थमात्मचैतन्यरुपकम् ।

शुभ्रमेकाक्षरं विष्णुं सदा ध्यायन् विमुच्यते ॥२७॥

जो सर्वरुप, स्वभावनिष्ठ और आत्मचैतन्यरुप हैं, उन प्रकाशमान एकाक्षर (प्रणवमय) भगवान् विष्णु का सदा ध्यान करनेवाला मनुष्य मुक्त हो जाता है ।

अनिर्वाच्यमविज्ञेयमक्षरादिमसम्भवम् ।

एकं नूत्नं सदा विष्णूं सदा ध्यायन् विमुच्यते ॥२८॥

जो अनिर्वचनीय, ज्ञानातीत, प्रणवस्वरूप और जन्म- रहित हैं, उन एकमात्र नित्यनूतन भगवान् विष्णु का सदा ध्यान करनेवाला मनुष्य मुक्त हो जाता है।

विश्वाद्यं विश्वगोप्तारं विश्वादं सर्वकामदम् ।

स्थानत्रयातिगं विष्णुं सदा ध्यायन् विमुच्यते ॥२९॥

जो विश्व के आदिकारण, विश्व के रक्षक, विश्व का भक्षण (संहार) करनेवाले तथा सम्पूर्ण काम्य वस्तुओं के दाता हैं, तीनों अवस्थाओं से अतीत उन भगवान् विष्णु का सदा ध्यान करनेवाला मनुष्य मुक्त हो जाता है ।

सर्वदुःखक्षयकरं सर्वशान्तिकरं हरिम् ।

सर्वपापहरं विष्णुं सदा ध्यायन् विमुच्यते ॥३०॥

समस्त दुःखों के नाशक, सबको शान्ति प्रदान करनेवाले और सम्पूर्ण पापों को हर लेनेवाले भगवान् विष्णु का सदा ध्यान करनेवाला मनुष्य संसार- बन्धन से मुक्त हो जाता है ।

ब्रह्मादिदेवगन्धर्वैर्मुनिभिः सिद्धचारणैः ।

योगिभिः सेवितं विष्णुं सदा ध्यायन् विमुच्यते ॥३१॥

ब्रह्मा आदि देवता, गन्धर्व, मुनि, सिद्ध, चारण और योगियों द्वारा सेवित भगवान् विष्णु का सदा ध्यान करनेवाला पुरुष पाप- ताप से मुक्त हो जाता है ।

विष्णौ प्रतिष्ठितं विश्वं विष्णुर्विश्वे प्रतिष्ठितः ।

विश्वेश्वरमजं विष्णुं कीर्तयन्नेव मुच्यते ॥३२॥

यह विश्व भगवान् विष्णु में स्थित है और भगवान् विष्णु इस विश्व में प्रतिष्ठित हैं । सम्पूर्ण विश्व के स्वामी, अजन्मा भगवान् विष्णु का कीर्तन करनेमात्र से मनुष्य मुक्त हो जाता है ।

संसारबन्धनान्मुक्तिमिच्छन् काममशेषतः ।

भक्त्यैव वरदं विष्णुं सदा ध्यायन् विमुच्यते ॥३३॥

जो संसार- बन्धन से मुक्ति तथा सम्पूर्ण कामनाओं की पूर्ति चाहता है, वह यदि भक्तिपूर्वक वरदायक भगवान् विष्णु का ध्यान करे तो सफल मनोरथ होकर संसार- बन्धन से मुक्त हो जाता है ।

इति श्रीनरसिंहपुराणे विष्णोः स्तवराजनिरुपणे षोडशोऽध्यायः ॥

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