आद्या स्तोत्र

आद्या स्तोत्र

ब्रह्मयामल के ब्रह्मा नारद संवाद अंतर्गत् वर्णित यह आद्या स्तोत्र 20 संस्कृत श्लोकों का संयोजन है। इसका नित्य पाठ सर्वसिद्धिप्रद व सर्वदुःख भंजन करनेवाला है।

आद्या स्तोत्र

आद्या स्तोत्रं

आद्या पीठ कोलकाता के सबसे प्रतिष्ठित मंदिरों में से एक है। दक्षिणेश्वर (दक्षिणेश्वर काली मंदिर से भ्रमित न हों) में स्थित इस मंदिर की स्थापना 1928 में संत अन्नादठाकुर ने की थी और समय के साथ इसका विस्तार होता गया। अन्नादठाकुर को स्वयं रामकृष्ण परमहंस ने स्वप्न में आकर देवी आद्या मां को खोजने और मंदिर का निर्माण करने का आदेश दिया था। आद्या पीठ, आद्या माँ और आद्या स्तोत्र बंगाल क्षेत्र में बहुत लोकप्रिय है।

आद्या स्तोत्रम्  

Aadyaa Stotram

आद्या स्तोत्र अर्थ सहित

ॐ नमः आद्यायै ।

शृणु वत्स प्रवक्ष्यामि आद्या स्तोत्रं महाफलम् ।

यः पठेत् सततं भक्त्या स स्व विष्णुवल्लभः ॥१॥

ब्रह्माजी नारद से कहते हैं कि- हे वत्स! मैं तुम्हें महान फल को देने वाले आद्य स्तोत्र को कहता हूँ। जिसका नित्य भक्तिपूर्वक पाठ करने से भगवान् विष्णु का प्रिय हो जाता है।

मृत्युर्व्याधिभयं तस्य नास्ति किञ्चित कलौ युगे ।

अपुत्रा लभते पुत्रं त्रिपक्षं श्रवणं यदि ॥२॥

विशेषकर कलियुग में इस स्तोत्र का पाठ रोग और मृत्यु का भय दूर करनेवाला है तथा कोई पुत्रहीन भी यदि तीनपक्ष तक (लगातार) इस स्तोत्र को सुनती है तो उसे पुत्र की प्राप्ति होती है।

द्वौ मासौ बन्धनान्मुक्ति विप्रवक्तात् श्रुतं यदि ।

मृतवत्सा जीववत्सा षण्मासं श्रवणं यदि ॥३॥

बन्धन में पड़ा मनुष्य भी यदि दो महीने किसी विप्र (वक्ता) से इस स्तोत्र को सुनता है तो वह बंधन मुक्त हो जाता है। छह माह तक इस स्तोत्र का श्रवण करने से मृतवत्सा (जिस माता शिशु जन्मते ही मर जाता है) भी  स्वस्थ संतान की माता बन जाती है।

नौकायां सङ्कटे युद्धे पठनाज्जयमाप्नुयात् ।

लिखित्वा स्थापयेद्गेहे नाग्निचौरभयं क्कचित् ॥४॥

इस आद्य स्तोत्रम् का पाठ करने से नौकायन (जलयात्रा करते समय), संकट तथा युद्ध में अर्थात् जीवन के कठिन परिस्थितियों में विजय प्राप्त करता है, जिस घर में यह स्तोत्र लिखकर स्थापित किया जाता है वहां अग्नि व चोरों (लूट) का भय नहीं रहता है।

राजस्थाने जयी नित्यं प्रसन्नाः सर्वदेवता ।

ॐ ह्रीं ब्रह्माणी ब्रह्मलोके च वैकुण्ठे सर्वमङ्गला ॥५॥

राजाओं के यहाँ इस आद्या स्तोत्र को स्थापित करने से उसे सदैव जय की प्रप्ति होती है अथवा राजभय नहीं होता है और सभी देवता उनसे सदा प्रसन्न रहते हैं। ओम ह्रीं (हे आद्या देवी), आप ब्रह्मलोक (ब्रह्मा का निवास) में देवी ब्रह्माणी हैं, और वैकुंठ (विष्णु का निवास) में देवी सर्वमंगला हैं।

इन्द्राणी अमरावत्यामंबिका वरुणालये ।

यमालये कालरूपा कुबेरभवने शुभा ॥६॥

आप अमरावती (इंद्र का निवास) में इंद्राणी, वरुणालय (वरुण का निवास) में अंबिका, यमालय (यम का निवास) में काल (मृत्यु) के रूप और कुबेर भवन में देवी शुभा (शुभ) के रूप में हैं।

महानन्दाग्निकोने च वायव्यां मृगवाहिनी ।

नैऋत्यां रक्तदन्ता च ऐशाण्यां शूलधारिणी ॥७॥

आग्नेय में महानंदा, वायव्य में मृगवाहिनी हैं, नैर्ऋत्य में रक्तदन्ता और ईशानकोण में आप देवी शूलधारिणी हैं।

पाताले वैष्णवीरूपा सिंहले देवमोहिनी ।

सुरसा च मणीद्विपे लङ्कायां भद्रकालिका ॥८॥

आप पाताल लोक में वैष्णवी, सिंघलदेश में देवमोहिनी मणिद्वीप में सुरसा और लंका में आप देवी भद्रकालिका हैं।

रामेश्वरी सेतुबन्धे विमला पुरुषोत्तमे ।

विरजा औड्रदेशे च कामाक्ष्या नीलपर्वते ॥९॥

सेतुबंध (रामेश्वरम) में देवी रामेश्वरी, पुरूषोत्तम क्षेत्र में विमला, औद्रदेश (उड़ीसा) में देवी विराजा हैं और नीलांचल पर्वत (असम) में आप देवी कामाख्या हैं।

कालिका वङ्गदेशे च अयोध्यायां महेश्वरी ।

वाराणस्यामन्नपूर्णा गयाक्षेत्रे गयेश्वरी ॥१०॥

बंगदेश (बंगाल) में कालिका, अयोध्या में महेश्वरी, वाराणसी में अन्नपूर्णा और गया में आप देवी गयेश्वरी हैं।

कुरुक्षेत्रे भद्रकाली व्रजे कात्यायनी परा ।

द्वारकायां महामाया मथुरायां माहेश्वरी ॥११॥

कुरूक्षेत्र में भद्रकाली, व्रज में कात्यायनी, द्वारका में महामाया और आप मथुरा में देवी महेश्वरी हैं।

क्षुधा त्वं सर्वभूतानां वेला त्वं सागरस्य च ।

नवमी शुक्लपक्षस्य कृष्णस्यैकादशी परा ॥१२॥

सभी जीवित प्राणियों में आप भूख के रूप में निवास करती हैं और आप (संसार के सभी प्राणियों का अंतिम लक्ष्य) महासागर का किनारा हैं। आप शुक्ल पक्ष की नवमी तथा कृष्ण पक्ष की एकादशी हैं।

दक्षसा दुहिता देवी दक्षयज्ञ विनाशिनी ।

रामस्य जानकी त्वं हि रावणध्वंसकारिणी ॥१३॥

हे देवी आप दक्ष की कन्या हैं जो दक्ष यज्ञ का विनाश करनेवाली हैं, आप ही श्रीराम की (प्रिय) देवी जानकी हैं; जो रावण के संहार का कारण बनी।

चण्डमुण्डवधे देवी रक्तबीजविनाशिनी ।

निशुम्भशुम्भमथिनी मधुकैटभघातिनी ॥१४॥

हे देवी आपने ही चण्ड-मुण्ड वध और रक्तबीज का विनाश किया (मार डाला), आप ही शुंभ-निशुंभ को मथने वाली (अर्थात् मारनेवाली) और मधु-कैटभ (राक्षसों) का नाश करनेवाली हैं।   

विष्णुभक्तिप्रदा दुर्गा सुखदा मोक्षदा सदा ।

आद्यास्तवमिमं पुण्यं यः पठेत् सततं नरः ॥१५॥

आप ही सदा सुख और (अंततः) मुक्ति प्रदान करनेवाली विष्णु की भक्ति प्रदान करनेवाली देवी दुर्गा हैं। इस आद्या स्तोत्र का नित्य पाठ करने से शुभ पुण्यफल की प्राप्ति होती है।

सर्वज्वरभयं न स्यात् सर्वव्याधिविनाशनम् ।

कोटितीर्थफलं तस्य लभते नात्र संशय ॥१६॥

उसे किसी भी प्रकार के ज्वर (बुखार या बीमारी) का भय नहीं होता है और उसके सभी आधि-व्याधि का नाश होता है। इस स्तोत्र का पाठ करने से करोड़ों तीर्थयात्राओं का फल प्राप्त होता है, इसमें कोई संदेह नहीं है।

जया मे चाग्रतः पातु विजया पातु पृष्ठतः ।

नारायणी शीर्षदेशे सर्वाङ्गे सिंहवाहिनी ॥१७॥

जया सामने से और विजया पीछे से मेरी रक्षा करे, नारायणी मेरे सिर के क्षेत्र की और सिंहवाहिनी मेरे पूरे शरीर की रक्षा करें।

शिवदूती उग्रचण्डा प्रत्यङ्गे परमेश्वरी ।

विशालाक्षी महामाया कौमारी सङ्खिनी शिवा ॥१८॥

चक्रिणी जयधात्री च रणमत्ता रणप्रिया ।

दुर्गा जयन्ती काली च भद्रकाली महोदरी ॥१९॥

नारसिंही च वाराही सिद्धिदात्री सुखप्रदा ।

भयङ्करी महारौद्री महाभयविनाशिनी ॥२०॥

इस आद्य स्तोत्रम् का पाठ करने से शिवदूती, उग्रचण्डा, प्रत्यङ्गा, परमेश्वरी, विशालाक्षी, महामाया, कौमारी, सङ्खिनी, शिवा, चक्रिणी, जयधात्री, रणमत्ता, राणप्रिया, दुर्गा, जयंती, काली और भद्रकाली, महोदरी, नारसिंही, वाराही और सिद्धिदात्री खुशी (सुखप्रदा) प्रदान करती हैं, भयङ्करी. महारौद्री बड़े-से बड़े भय का नाश करने वाली है।

इति ब्रह्मयामले ब्रह्मानारदसंवादे आद्या स्तोत्रं समाप्त ॥

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