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कर्मकाण्ड

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वेणीमाधव स्तोत्र

वेणीमाधव स्तोत्र

श्रीनरसिंहपुराण के अध्याय १० श्लोक २१-२८ में वर्णित इस वेणीमाधव स्तोत्र का नित्य पाठ करने से तीर्थस्नान का सम्पूर्ण फल प्राप्त हो जाता है।

वेणीमाधव स्तोत्र

वेणीमाधव स्तोत्रम्

Veni madhav stotra

वेणी माधव स्तोत्रं

वेणीमाधव स्तवन

वेणीमाधव स्तोत्र

वागुवाच

जय जय देवदेव जय माधव केशव ।

जय पद्मपलाशाक्ष जय गोविन्द गोपते ॥२१॥

आकाशवाणी ने कहा - देवदेव ! माधव ! केशव ! आपकी जय हो, जय हो ! आपके नेत्र प्रफुल्ल कमलदले समान शोभा पाते हैं । गोविन्द ! गोपते ! आपकी जय हो, जय हो ।

जय जय पद्मनाभ जय वैकुण्ठ वामन ।

जय पद्म हषीकेश जय दामोदराच्युत ॥२२॥

पद्मनाभ ! वैकुण्ठ ! वामन ! आपकी जय हो, जय हो, जय हो । पद्मस्वरुप हषीकेश ! आपकी जय हो ! दामोदर ! अच्युत ! आपकी जय हो ।

जय पद्मेश्वरानन्त जय लोकगुरो जय ।

जय शङ्खगदापाणे जय भूधरसूकर ॥२३॥

लक्ष्मीपते ! अनन्त ! आपकी जय हो । लोकगुरो ! आपकी जय हो, जय हो ! शङ्ख और गदा धारण करनेवाले तथा पृथ्वी को उठानेवाले भगवान् वाराह ! आपकी जय हो, जय हो ।

जय यज्ञेश वाराह जय भूधर भूमिप ।

जय योगेश योगज्ञ जय योगप्रवर्त्तक ॥२४॥

यज्ञेश्वर ! पृथ्वी का धारण तथा पोषण करनेवाले वाराह ! आपकी जय हो, जय हो ! योग के ईश्वर, ज्ञाता और प्रवर्तक! आपकी जय हो, जय हो।

जय योगप्रवर्तक जय धर्मप्रवर्त्तक ।

कृतप्रिय जय जय यज्ञेश यज्ञाङ्ग जय ॥२५॥

योग और धर्म के प्रवर्तक! आपकी जय हो, जय हो। कर्मप्रिय ! यज्ञेश्वर! यज्ञाङ्ग! आपकी जय हो, जय हो, जय हो।

जय वन्दितसदद्विज जय नारदसिद्धिद ।

जय पुण्यवतां गेह जय वैदिकभाजन ॥२६॥

उत्तम ब्राह्मणों की वन्दना करने- उन्हें सम्मान देनेवाले देवता ! आपकी जय हो और नारदजी को सिद्धि देनेवाले परमेश्वर ! आपकी जय हो । पुण्यवानों के आश्रय, वैदिक वाणी के चरम तात्पर्यभूत एवं वेदोक्त कर्मों के परम आश्रय नारायण ! आपकी जय हो, जय हो।

जय जय चतुर्भुज ( श्री ) जयदेव जय दैत्यभयावह ।

जय सर्वज्ञ सर्वात्मन् जय शंकर शाश्वत ॥२७॥

चतुर्भुज ! आपकी जय हो । दैत्यो को भय देनेवाले श्रीजयदेव ! आपकी जय हो, जय हो । सर्वज्ञ ! सर्वात्मन् आपकी जय हो ! सनातदेव ! कल्याणकारी भगवान् ! आपकी जय हो, जय हो ।

जय विष्णो महादेव जय नित्यमधोक्षज ।

प्रसादं कुरु देवेश दर्शयाद्य स्वकां तनुम् ॥२८॥

महादेव ! विष्णो ! अधोक्षज ! देवेश्वर ! आप मुझ पर प्रसन्न होइये और आज मुझे अपने स्वरुप का प्रत्यक्ष दर्शन कराइये ॥२१ - २८॥

इति श्रीनरसिंहपुराणे वेणीमाधव स्तोत्रम् दशमोऽध्यायः ॥

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