Slide show
Ad Code
JSON Variables
Total Pageviews
Blog Archive
-
▼
2024
(491)
-
▼
December
(38)
- भिक्षुगीता
- माहेश्वरतन्त्र पटल २
- अग्निपुराण अध्याय २४८
- अग्निपुराण अध्याय २४७
- अग्निपुराण अध्याय २४६
- तन्त्र
- अग्निपुराण अध्याय २४५
- गणेश गीता अध्याय ११
- गणेशगीता अध्याय १०
- गणेशगीता अध्याय ९
- गणेशगीता अध्याय ८
- गणेशगीता अध्याय ७
- गणेशगीता अध्याय ६
- माहेश्वरतन्त्र पटल १
- शिव स्तोत्र
- गणेशगीता अध्याय ५
- गणेशगीता अध्याय ४
- गणेशगीता अध्याय ३
- गणेशगीता अध्याय २
- गणेशगीता
- अग्निपुराण अध्याय २४४
- अग्निपुराण अध्याय २४३
- लक्ष्मी सूक्त
- संकष्टनामाष्टक
- नर्मदा स्तुति
- श्रीयमुनाष्टक
- यमुनाष्टक
- गंगा स्तुति
- गंगा दशहरा स्तोत्र
- मणिकर्णिकाष्टक
- गायत्री स्तुति
- काशी स्तुति
- श्रीराधा अष्टक
- शार्व शिव स्तोत्र
- रामगीता
- जीवन्मुक्त गीता
- गीता सार
- अग्निपुराण अध्याय ३८३
-
▼
December
(38)
Search This Blog
Fashion
Menu Footer Widget
Text Widget
Bonjour & Welcome
About Me
Labels
- Astrology
- D P karmakand डी पी कर्मकाण्ड
- Hymn collection
- Worship Method
- अष्टक
- उपनिषद
- कथायें
- कवच
- कीलक
- गणेश
- गायत्री
- गीतगोविन्द
- गीता
- चालीसा
- ज्योतिष
- ज्योतिषशास्त्र
- तंत्र
- दशकम
- दसमहाविद्या
- देवी
- नामस्तोत्र
- नीतिशास्त्र
- पञ्चकम
- पञ्जर
- पूजन विधि
- पूजन सामाग्री
- मनुस्मृति
- मन्त्रमहोदधि
- मुहूर्त
- रघुवंश
- रहस्यम्
- रामायण
- रुद्रयामल तंत्र
- लक्ष्मी
- वनस्पतिशास्त्र
- वास्तुशास्त्र
- विष्णु
- वेद-पुराण
- व्याकरण
- व्रत
- शाबर मंत्र
- शिव
- श्राद्ध-प्रकरण
- श्रीकृष्ण
- श्रीराधा
- श्रीराम
- सप्तशती
- साधना
- सूक्त
- सूत्रम्
- स्तवन
- स्तोत्र संग्रह
- स्तोत्र संग्रह
- हृदयस्तोत्र
Tags
Contact Form
Contact Form
Followers
Ticker
Slider
Labels Cloud
Translate
Pages
Popular Posts
-
मूल शांति पूजन विधि कहा गया है कि यदि भोजन बिगड़ गया तो शरीर बिगड़ गया और यदि संस्कार बिगड़ गया तो जीवन बिगड़ गया । प्राचीन काल से परंपरा रही कि...
-
रघुवंशम् द्वितीय सर्ग Raghuvansham dvitiya sarg महाकवि कालिदास जी की महाकाव्य रघुवंशम् प्रथम सर्ग में आपने पढ़ा कि-महाराज दिलीप व उनकी प...
-
रूद्र सूक्त Rudra suktam ' रुद्र ' शब्द की निरुक्ति के अनुसार भगवान् रुद्र दुःखनाशक , पापनाशक एवं ज्ञानदाता हैं। रुद्र सूक्त में भ...
Popular Posts
अगहन बृहस्पति व्रत व कथा
मार्तण्ड भैरव स्तोत्रम्
यमुनाष्टक
श्रीमद् शङ्कराचार्य विरचित इस यमुनाष्टक
स्तोत्र का नित्य पाठ करने से सभी दुखों का नाश होता है और सभी कामनाओं की पूर्ति
होता है।
श्रीयमुनाष्टकम्
Yamunashtakam
यमुना अष्टकम्
श्रीयमुनाष्टकम्
यमुना अष्टक स्तोत्र
कृपापारावारां तपनतनयां तापशमनीं
मुरारिप्रेयस्कां भवभयदवां
भक्तवरदाम् ।
वियज्जालान्मुक्तां श्रियमपि
सुखाप्तेः प्रतिदिनं
सदा धीरो नूनं भजति यमुनां
नित्यफलदाम् ॥१॥
जो कृपा की समुद्र,
सूर्यकुमारी, ताप को शान्त करनेवाली, श्रीकृष्णचन्द्र का प्रेमिका, संसारभीति के लिये
दावानलस्वरूप, भक्तों को वर देनेवाली और आकाशजाल से मुक्त
लक्ष्मीस्वरूपा हैं, उन नित्यफलदायनी यमुनाजी का धीर पुरुष
सुखप्राप्ति के लिये निश्चयपूर्वक निरन्तर प्रतिदिन भजन करता है॥१॥
मधुवनचारिणि भास्करवाहिनि
जाह्रविसङ्गिनि सिन्धुसुते
मधुरिपुभूषिणि माधवतोषिणि
गोकुलभीतिविनाशकृते ।
जगदघमोचिनि मानसदायिनि
केशवकेलिनिदानगते
जय यमुने जय भीति निवारिणि
सङ्कटनाशिनि पावय माम् ॥२॥
हे मधुवन में विहार करनेवाली ! हे
भास्करवाहिनि ! हे गङ्गाजी की सहचरी ! हे सिन्धुसुते ! हे श्रीमधुसूदनविभूषिणि !
हे माधवतृप्तिकारिणि ! हे गोकुल का भय दूर करनेवाली ! हे जगत्पापविनाशिनि ! हे
वाञ्छितफलदायिनि ! हे कृष्णकेलि की आश्रयभूता सकलभयनिवारिणी संकटनाशिनी यमुने !
तुम्हारी जय हो ! जय हो ! तुम मुझे पवित्र करो॥२॥
अयि मधुरे मधुमोदविलासिनि
शैलविहारिणि वेगभरे
परिजनपालिनि दुष्टनिषूदिनि
वाञ्छितकामविलासधरे ।
व्रजपुरवासिजनार्जितपातकहारिणि
विश्वजनोद्धरिके
जय यमुने जय भीति निवारिणि
सङ्कटनाशिनि पावय माम् ॥३॥
अयि मधुरे ! अयि मधुगन्धविलासिनि !
हे पर्वतों में विहार करनेवाली ! परम वेगवती अपने तीरवर्ती भक्तजनों का पालन
करनेवाली,
दुष्टों का संहार करनेवाली, इच्छित कामनाओं की
विलासभूमि, व्रजभूमिनिवासियों के अर्जित पापों को हरण
करनेवाली तथा सम्पूर्ण जीवों का उद्धार करनेवाली, सकलभयनिवारिणी
संकटनाशिनी यमुने ! तुम्हारी जय हो ! जय हो ! तुम मुझे पवित्र करो ॥ ३ ॥
अतिविपदम्बुधिमग्नजनं
भवतापशताकुलमानसकं
गतिमतिहीनमशेषभयाकुलमागतपादसरोजयुगम्
।
ऋणभयभीतिमनिष्कृतिपातककोटिशतायुतपुञ्जतरं
जय यमुने जय भीति निवारिणि
सङ्कटनाशिनि पावय माम् ॥४॥
जो महान् विपत्तिसागर में निमग्न है,
सैकड़ों सांसारिक संतापों से जिसका मन व्याकुल है, जो गति (आश्रय) और मति (विचार) से शून्य तथा सब प्रकार के भयों से व्याकुल
है, जो ऋण और भय से दबा हुआ तथा सैकड़ों-हजारों-करोड़ों
प्रतिकारशून्य पापों का पुतला है, तुम्हारे चरणकमलयुगल में
प्राप्त हुए ऐसे मुझको, हे सकलभयनिवारिणी संकटनाशिनी यमुने !
तुम्हारी जय हो ! जय हो ! तुम मुझे पवित्र करो ॥ ४॥
नवजलदद्युतिकोटिलसत्तनुहेममयाभररञ्जितके
तडिदवहेलिपदाञ्चलचञ्चलशोभितपीतसुचैलधरे
।
मणिमयभूषणचित्रपटासनरञ्जितगञ्जितभानुकरे
जय यमुने जय भीति निवारिणि
सङ्कटनाशिनि पावय माम् ॥५॥
तुम्हारा शरीर करोड़ों नवीन मेघों
की कान्ति से सुशोभित तथा सुवर्णमय आभूषणों से विभूषित है,
जिसका चञ्चल अञ्चल चपला की भी अवहेलना करता है, ऐसे पीत दुकूल को धारण करके तुम परम शोभायमान हो रही हो तथा मणिमय आभूषण
और चित्र-विचित्र वस्त्र एवं आसन से रञ्जित होकर तुमने सूर्य की किरणों को भी
कण्ठित कर दिया है; है। सकलभयनिवारिणी संकटहारिणी यमुने!
तुम्हारी जय हो, जय हो! तुम मुझ पवित्र करो॥ ५॥
शुभपुलिने
मधुमत्तयदूद्भवरासमहोत्सवकेलिभरे
उच्चकुलाचलराजितमौक्तिकहारमयाभररोदसिके
।
नवमणिकोटिकभास्करकञ्चुकिशोभिततारकहारयुते
जय यमुने जय भीति निवारिणि
सङ्कटनाशिनि पावय माम् ॥६॥
हे सुन्दर तटोंवाली ! हे
मधुमत्त-यदुकुलोत्पन्न श्रीकृष्ण और बलराम के रास महोत्सव की क्रीडाभूमि ! हे
ऊँचे-ऊँचे कुलपर्वतों की श्रेणियों पर शोभायमान मुक्तावलीरूप आभूषणों से पृथ्वी और
आकाश को विभूषित करनेवाली, हे करोड़ों
भास्करों के समान नवीन मणियों की कञ्चुकी से सुशोभित तथा तारावलीरूप हार से युक्त,
सकलभयनिवारिणी सङ्कटहारिणी यमुने! तुम्हारी जय हो, जय हो ! तुम मुझे पवित्र करो॥ ६॥
करिवरमौक्तिकनासिकभूषणवातचमत्कृतचञ्चलके
मुखकमलामलसौरभचञ्चलमत्तमधुव्रतलोचनिके
।
मणिगणकुण्डललोलपरिस्फुरदाकुलगण्डयुगामलके
जय यमुने जय भीति निवारिणि
सङ्कटनाशिनि पावय माम् ॥७॥
तुम्हारी नासिका की भूषणरूप
गजमुक्ता वायु से चञ्चल होकर झिलमिला रही है, तुम्हारे
नेत्ररूप मतवाले भौरे मानो मुखकमल की सुवास से चञ्चल हो रहे हैं तथा दोनों अमल
कपोल हिलते हुए मणिमय कुण्डलों की झलक से झिलमिला रहे हैं, हे
सकलभयनिवारिणी सङ्कटहारिणी यमुने ! तुम्हारी जय हो, जय हो !
तुम मुझे पवित्र करो ।। ७ ।।
कलरवनूपुरहेममयाचितपादसरोरुहसारुणिके
धिमिधिमिधिमिधिमितालविनोदितमानसमञ्जुलपादगते
।
तव
पदपङ्कजमाश्रितमानवचित्तसदाखिलतापहरे
जय यमुने जय भीति निवारिणि
सङ्कटनाशिनि पावय माम् ॥८॥
तुम्हारे अरुण चरणकमल सुवर्णमय
नूपुरों के कलरव से युक्त हैं, तुम मन को
प्रसन्न करनेवाली 'धिमि धिमि' स्वरमयी
मनोहर गति से गमन करती हो, जो मनुष्य तुम्हारे चरणकमलों में
चित्त लगाता है, तुम उसके सम्पूर्ण ताप हर लेती हो; हे सकलभयनिवारिणी संकटहारिणी यमुने ! तुम्हारी जय हो ! जय हो ! तुम मुझे
पवित्र करो॥ ८ ॥
यमुनाष्टकम् फलश्रुति
भवोत्तापाम्भोधौ निपतितजनो
दुर्गतियुतो
यदि स्तौति प्रातः
प्रतिदिनमनन्याश्रयतया ।
हयाहृषैः कामं करकुसुमपुरैरविरतं
सदा भोक्ता भोगान्मरणसमये याति
हरिताम् ॥९॥
जो मनुष्य संसार के सन्तापसमुद्र
में डूबकर अत्यन्त दुर्गतिग्रस्त हो रहा है, वह
यदि प्रतिदिन प्रातःकाल अनन्य चित्त से (इस स्तोत्र द्वारा श्रीयमुनाजी की) स्तुति
करेगा, वह (यावज्जीवन) घोड़ों की हिनहिनाहट तथा हाथों में
पुष्पपुञ्ज से सुशोभित होकर, निरन्तर सम्पूर्ण भोगों को
भोगेगा और मरने के समय भगवद्रूप हो जायगा ॥ ९ ॥
इति श्रीमच्छङ्कराचार्यविरचितं यमुनाष्टकं सम्पूर्णम् ।
Related posts
vehicles
business
health
Featured Posts
Labels
- Astrology (7)
- D P karmakand डी पी कर्मकाण्ड (10)
- Hymn collection (38)
- Worship Method (32)
- अष्टक (54)
- उपनिषद (30)
- कथायें (127)
- कवच (61)
- कीलक (1)
- गणेश (25)
- गायत्री (1)
- गीतगोविन्द (27)
- गीता (34)
- चालीसा (7)
- ज्योतिष (32)
- ज्योतिषशास्त्र (86)
- तंत्र (182)
- दशकम (3)
- दसमहाविद्या (51)
- देवी (190)
- नामस्तोत्र (55)
- नीतिशास्त्र (21)
- पञ्चकम (10)
- पञ्जर (7)
- पूजन विधि (80)
- पूजन सामाग्री (12)
- मनुस्मृति (17)
- मन्त्रमहोदधि (26)
- मुहूर्त (6)
- रघुवंश (11)
- रहस्यम् (120)
- रामायण (48)
- रुद्रयामल तंत्र (117)
- लक्ष्मी (10)
- वनस्पतिशास्त्र (19)
- वास्तुशास्त्र (24)
- विष्णु (41)
- वेद-पुराण (691)
- व्याकरण (6)
- व्रत (23)
- शाबर मंत्र (1)
- शिव (54)
- श्राद्ध-प्रकरण (14)
- श्रीकृष्ण (22)
- श्रीराधा (2)
- श्रीराम (71)
- सप्तशती (22)
- साधना (10)
- सूक्त (30)
- सूत्रम् (4)
- स्तवन (109)
- स्तोत्र संग्रह (711)
- स्तोत्र संग्रह (6)
- हृदयस्तोत्र (10)
No comments: