यमुना अष्टक
डी०पी०कर्मकाण्ड के स्तोत्र श्रृंखला में कलिन्द-कन्या श्रीयमुनाजी के इस अष्टक का नित्य पाठ करने से माँ यमुना उनका सभी पापों को कट देती है और उनकी कामनाओं को पूर्ण करती है।
श्रीयमुनाष्टकम्
Shri Yamuna Ashtakam
यमुना अष्टकम्
यमुनाअष्टक
श्रीयमुनाष्टकम्
मुरारिकायकालिमाललामवारिधारिणी
तणीकृतत्रिविष्टपा त्रिलोकशोकहारिणी
।
मनोऽनकलकलकुञ्जपुञ्जधूतदुर्मदा
धुनोतु मे मनोमलं कलिन्दनन्दिनी सदा
॥१॥
जो भगवान् कृष्णचन्द्र के अङ्गों की
नीलिमा लिये हुए मनोहर जलौघ धारण करती है, त्रिभुवन
का शोक हरनेवाली होने के कारण स्वर्गलोक को तृण के समान सारहीन समझती है, जिसके मनोरम तट पर निकुञ्जों का पुञ्ज वर्तमान है, जो
लोगों का दुर्मद दूर कर देती है; वह कालिन्दी यमुना सदा
हमारे आन्तरिक मल को धोवे॥१॥
मलापहारिवारिपूरभूरिमण्डितामृता
भृशं
प्रपातकप्रवञ्चनातिपण्डितानिशम् ।
सुनन्दनन्दनाङ्गसङ्गरागरञ्जिता हिता
धुनोतु मे मनोमलं कलिन्दनन्दिनी सदा
॥२॥
जो मलापहारी सलिलसमूह से अत्यन्त
सुशोभित है, मुक्तिदायक है, सदा ही बड़े-बड़े पातकों को लूट लेने में अत्यन्त प्रवीण है, सुन्दर नन्द-नन्दन के अङ्गस्पर्शजनित राग से रञ्जित है, सबकी हितकारिणी है, वह कालिन्दी यमुना सदा ही हमारे
मानसिक मल को धोवे ॥२॥
लसत्तरङ्गसङ्गधूतभूतजातपातका
नवीनमाधुरीधुरीणभक्तिजातचातका ।
तटान्तवासदासहंससंसृता हि कामदा
धुनोतु मे मनोमलं कलिन्दनन्दिनी सदा
॥३॥
जो अपनी सुहावनी तरङ्गों के सम्पर्क
से समस्त प्राणियों के पापों को धो डालती है, जिसके
तट पर नूतन मधुरिमा से भरे भक्तिरस के अनेकों चातक रहा करते हैं, तट के समीप वास करनेवाले भक्तरूपी हंसों से जो सेवित रहती है और उनकी
कामनाओं को पूर्ण करनेवाली है; वह कलिन्द-कन्या यमुना सदा
हमारे मानसिक मल को मिटावे ॥३॥
विहाररासखेदभेदधीरतीरमारुता
गता गिरामगोचरे यदीयनीरचारुता ।
प्रवाहसाहचर्यपूतमेदिनीनदीनदा
धुनोतु मे मनोमलं कलिन्दनन्दिनी सदा
॥ ४ ॥
जिसके तट पर विहार और रास-विलास के
खेद को मिटा देनेवाली मन्द-मन्द वायु चल रही है, जिसके नीर की सुन्दरता का वाणी द्वारा वर्णन नहीं हो सकता, जो अपने प्रवाह के सहयोग से पृथ्वी, नदी और नदों को
पावन बनाती है; वह कलिन्दनन्दिनी यमुना सदा हमारे मानसिक मल
को दूर करे ॥४॥
तरङ्गसङ्गसैकताञ्चितान्तरा सदासिता
शरन्निशाकरांशुम मञ्जरीसभाजिता ।
भवार्चनाय चारुणाम्बुनाधुना विशारदा
धुनोतु मे मनोमलं कलिन्दनन्दिनी सदा
॥ ५॥
लहरों से सम्पर्कित वालुकामय तट से
जिसका मध्यभाग सुशोभित है, जिसका वर्ण सदा ही
श्यामल रहता है, जो शरद् ऋतु के चन्द्रमा की किरणमयी मनोहर
मञ्जरी से अलङ्कृत होती है और सुन्दर सलिल से संसार को सन्तोष देने में जो कुशल है,
वह कलिन्द-कन्या यमुना सदा हमारे मानसिक मल को नष्ट करे ॥ ५॥
जलान्तकेलिकारिचारुराधिकाङ्गरागिणी
स्वभर्तुरन्यदुर्लभाङ्गसङ्गतांशभागिनी
।
स्वदत्तसुप्तसप्तसिन्धुभेदनातिकोविदा
धुनोतु मे मनोमलं कलिन्दनन्दिनी सदा
॥६॥
जो जल के भीतर क्रीडा करनेवाली
सुन्दरी राधा के अङ्गराग से युक्त है, अपने
स्वामी श्रीकृष्ण के अङ्गस्पर्शसुख का, जो अन्य किसी के लिये
दुर्लभ है, उपभोग करती है, जो अपने
प्रवाह से प्रशान्त सप्तसमुद्रों में हलचल पैदा करने में अत्यन्त कुशल है; वह कालिन्दी यमुना सदा हमारे आन्तरिक मल को धोवे ॥६॥
जलच्युताच्युताङ्गरागलम्पटालिशालिनी
विलोलराधिकाकचान्तचम्पकालिमालिनी ।
सदावगाहनावतीर्णभर्तृभृत्यनारदा
धुनोतु मे मनोमलं कलिन्दनन्दिनी सदा
॥७॥
जल में धुलकर गिरे हुए श्रीकृष्ण के
अङ्गराग से अपना अङ्गस्नान करती हुई सखियों से जिसकी शोभा बढ़ रही है,
जो राधा की चञ्चल अलकों में गुंथी हुई चम्पक-माला से मालाधारिणी हो
गयी है, स्वामी श्रीकृष्ण के भृत्य नारद आदि जिसमें सदा ही
स्नान करने के लिये आया करते हैं; वह कलिन्द-कन्या यमुना
हमारे आन्तरिक मल को धो डाले ॥७॥
सदैव नन्दनन्दकेलिशालिकुञ्जमञ्जुला
तटोत्थफुल्लमल्लिकाकदम्बरेणुसूज्ज्वला
।
जलावगाहिनां नृणां
भवाब्धिसिन्धुपारदा
धुनोतु मे मनोमलं कलिन्दनन्दिनी सदा
॥ ८॥
जिसके तटवर्ती मञ्जुल निकुञ्ज सदा
ही नन्दनन्दन श्रीकृष्ण की लीलाओं से सुशोभित होते हैं;
किनारे पर बढ़कर खिली हुई मल्लिका और कदम्ब के पुष्प-पराग से जिसका
वर्ण उज्ज्वल हो रहा है, जो अपने जल में डुबकी लगानेवाले
मनुष्यों को भवसागर से पार कर देती है, वह कलिन्द-कन्या
यमुना सदा ही हमारे मानसिक मल को दूर बहावे ॥८॥
इति श्रीमच्छङ्कराचार्यविरचितं श्रीयमुनाष्टकं सम्पूर्णम्।

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