कौपीन पंचक

कौपीन पंचक  

डी०पी०कर्मकाण्ड के स्तोत्र श्रृंखला में शङ्कराचार्य ने कौपीन पंचक अथवा कौपीनपञ्चक अथवा यतिपञ्चक में कौपीन धारण करनेवाले यति या सन्यासी को भाग्यवान् कहा है।

कौपीनपञ्चकं स्तोत्रम्

कौपीनपञ्चकं स्तोत्रम्

यतिपञ्चक स्तोत्रम्

वेदान्तवाक्येषु सदा रमन्तो भिक्षान्नमात्रेण च तुष्टिमन्तः ।

अशोकवन्तः करुणैकवन्तः कौपीनवन्तः खलु भाग्यवन्तः ॥ १॥

सदैव उपनिषद्-वाक्यों में रमते हुए, भिक्षा के अन्नमात्र में ही सन्तोष रखते हुए, शोकरहित तथा दयावान्, कौपीन धारण करनेवाले ही भाग्यवान् हैं ।। १॥

मूलं तरोः केवलमाश्रयन्तः पाणिद्वये भोक्तुममत्रयन्तः ।

कन्थामपि स्त्रीमिव कुत्सयन्तः कौपीनवन्तः खलु भाग्यवन्तः ॥२॥

केवल वृक्षतलों में रहनेवाले, दोनों हाथों को ही भोजनपात्र बनानेवाले, गुदड़ी को भी स्त्री की भाँति तुच्छ बुद्धि से देखनेवाले कौपीनधारी ही भाग्यवान् हैं ॥ २ ॥

देहाभिमानं परिहत्य दूरादात्मानमात्मन्यवलोकयन्तः ।

अहर्निशं ब्रह्मणि ये रमन्तः कौपीनवन्तः खलु भाग्यवन्तः ॥३॥

देहाभिमान को दूर से ही छोड़कर, अपनी आत्मा को अपने में ही देखते हए रात-दिन ब्रह्म में रमण करनेवाले कौपीनधारी ही भाग्यवान् हैं ॥३॥

स्वानन्दभावे परितुष्टिमन्तः स्वशान्तसर्वेन्द्रियवृत्तिमन्तः ।

नान्तं न मध्यं न बहिः स्मरन्तः कौपीनवन्तः खलु भाग्यवन्तः ॥४॥

आत्मानन्द में ही सन्तुष्ट रहनेवाले, अपने भीतर ही सारी इन्द्रियों की वृत्तियाँ शान्त कर लेनेवाले, अन्त, मध्य और बाहर की स्मृति से शून्य रहनेवाले कौपीनधारी ही भाग्यवान् हैं ।। ४ ।।

पञ्चाक्षरं पावनमुच्चरन्तः पतिं पशूनां हृदि भावयन्तः ।

भिक्षाशना दिक्ष परिभ्रमन्तः कौपीनवन्तः खलु भाग्यवन्तः ॥ ५॥

पवित्र पञ्चाक्षरमन्त्र (नमः शिवाय) का जप करते हुए, हृदय में परमेश्वर की भावना करते तथा भिक्षा का भोजन करते हुए सब दिशाओं में विचरनेवाले कौपीनधारी ही भाग्यवान् है ॥ ५॥

इति श्रीमच्छङ्कराचार्यविरचितं कौपीनपञ्चकं (यतिपञ्चकं) सम्पूर्णम् ।

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