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- रुद्रयामल तंत्र पटल २८
- अष्ट पदि ३ माधव उत्सव कमलाकर
- कमला स्तोत्र
- मायातन्त्र पटल ४
- योनितन्त्र पटल ८
- लक्ष्मीस्तोत्र
- रुद्रयामल तंत्र पटल २७
- मायातन्त्र पटल ३
- दुर्गा वज्र पंजर कवच
- दुर्गा स्तोत्र
- योनितन्त्र पटल ७
- गायत्री होम
- लक्ष्मी स्तोत्र
- गायत्री पुरश्चरण
- योनितन्त्र पटल ६
- चतुःश्लोकी भागवत
- भूतडामरतन्त्रम्
- भूतडामर तन्त्र पटल १६
- गौरीशाष्टक स्तोत्र
- योनितन्त्र पटल ५
- भूतडामर तन्त्र पटल १५
- द्वादश पञ्जरिका स्तोत्र
- गायत्री शापविमोचन
- योनितन्त्र पटल ४
- रुद्रयामल तंत्र पटल २६
- मायातन्त्र पटल २
- भूतडामर तन्त्र पटल १४
- गायत्री वर्ण के ऋषि छन्द देवता
- भूतडामर तन्त्र पटल १३
- परापूजा
- कौपीन पंचक
- ब्रह्मगायत्री पुरश्चरण विधान
- भूतडामर तन्त्र पटल १२
- धन्याष्टक
- रुद्रयामल तंत्र पटल २५
- भूतडामर तन्त्र पटल ११
- योनितन्त्र पटल ३
- साधनपंचक
- भूतडामर तन्त्र पटल १०
- कैवल्याष्टक
- माया तन्त्र पटल १
- भूतडामर तन्त्र पटल ९
- यमुना अष्टक
- रुद्रयामल तंत्र पटल २४
- भूतडामर तन्त्र पटल ८
- योनितन्त्र पटल २
- भूतडामर तन्त्र पटल ७
- आपूपिकेश्वर स्तोत्र
- भूतडामर तन्त्र पटल ६
- रुद्रयामल तंत्र पटल २३
- भूतडामर तन्त्र पटल ५
- अवधूत अभिवादन स्तोत्र
- भूतडामर तन्त्र पटल ४
- श्रीपरशुराम स्तोत्र
- भूतडामर तन्त्र पटल ३
- महागुरु श्रीकृष्ण स्तोत्र
- रुद्रयामल तंत्र पटल २२
- गायत्री सहस्रनाम
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मूल शांति पूजन विधि
मार्तण्ड भैरव स्तोत्रम्
गायत्री सहस्रनाम
श्रीगायत्रीदेवी का सहस्रनामसंज्ञक
स्तोत्र श्रेष्ठ फल प्रदान करनेवाला, महान्
उन्नति की प्राप्ति करानेवाला तथा महान् भाग्योदय करनेवाला है ।
श्रीगायत्रीसहस्रनामस्तोत्रम् देवी भागवतांतर्गतम्
नारद उवाच -
भगवन्सर्वधर्मज्ञ सर्वशास्त्रविशारद
।
श्रुतिस्मृतिपुराणानां रहस्यं
त्वन्मुखाच्छ्रुतम् ॥ १॥
सर्वपापहरं देव येन विद्या
प्रवर्तते ।
केन वा ब्रह्मविज्ञानं किं नु वा
मोक्षसाधनम् ॥ २॥
ब्राह्मणानां गतिः केन केन वा
मृत्यु नाशनम् ।
ऐहिकामुष्मिकफलं केन वा पद्मलोचन ॥
३॥
वक्तुमर्हस्यशेषेण सर्वं
निखिलमादितः ।
नारद जी बोले-सभी धर्मों के जानने
वाले तथा सभी शास्त्रों में निष्णात हे भगवन्! मैंने आपके मुख से
श्रुतियों,स्मृतियों तथा पुराणों से सम्बद्ध सभी प्रकार के पापों का नाश करने वाला
वह रहस्य सुन लिया, जिससे विद्या की प्राप्ति होती है। हे देव! किसके द्वारा
ब्रह्मज्ञान प्राप्त होता है और मोक्ष का साधन क्या है ?
हे कमलनयन ! किस साधन से ब्राह्मणों को उत्तम गति मिलती है, किससे मृत्यु का नाश होता है ? और किसके आश्रय से
मनुष्य को इहलोक तथा परलोक में उत्तम फल प्राप्त होता है ? इस
सम्बन्ध में प्रारम्भ से लेकर सम्पूर्ण बातें विस्तारपूर्वक बताने की कृपा कीजिये।
श्रीनारायण उवाच -
साधु साधु महाप्राज्ञ सम्यक् पृष्टं
त्वयाऽनघ ॥ ४॥
श्रृणु वक्ष्यामि यत्नेन
गायत्र्यष्टसहस्रकम् ।
नाम्नां शुभानां दिव्यानां
सर्वपापविनाशनम् ॥ ५॥
श्रीनारायण बोले- हे महाप्राज्ञ !
हे अनघ ! आपको साधुवाद है, जो आपने इतनी उत्तम
बात पूछी है। सुनिये, मैं प्रयत्नपूर्वक गायत्री के दिव्य
तथा मंगलकारी एक हजार आठ नामोंवाले सर्वपापहारीस्तोत्र का वर्णन करता हूँ।
सृष्ट्यादौ यद्भगवता पूर्वं
प्रोक्तं ब्रवीमि ते ।
अष्टोत्तरसहस्रस्य ऋषिर्ब्रह्मा
प्रकीर्तितः ॥ ६॥
छन्दोऽनुष्टुप्तथा देवी गायत्री
देवता स्मृता ।
हलो बीजानि तस्यैव स्वराः शक्तय
ईरिताः ॥ ७॥
अङ्गन्यासकरन्यासावुच्येते
मातृकाक्षरैः ।
अथ ध्यानं प्रवक्ष्यामि साधकानां
हिताय वै ॥ ८॥
पूर्वकाल में सृष्टि के आदि में भगवान्ने जिसे कहा था, वही मैं आपको बता रहा हूँ। इस एक हजार आठ नामवाले स्तोत्र के ऋषि ब्रह्माजी कहे गये हैं । अनुष्टुप् इसका छन्द है तथा भगवती गायत्री इसकी देवता कही गयी हैं । हल् (व्यंजन) वर्ण इसके बीज और स्वर इसकी शक्तियाँ कही गयी हैं। मातृकामन्त्र के छः अक्षर ही इसके छ: अंगन्यास और करन्यास कहे जाते हैं। अब साधकों के कल्याण के लिये देवी का ध्यान बताता हूँ।
श्रीगायत्रीसहस्रनामस्तोत्रम्
ध्यानम् -
रक्तश्वेतहिरण्यनीलधवलैर्युक्तां
त्रिनेत्रोज्ज्वलां
रक्तां रक्तनवस्रजं मणिगणैर्युक्तां
कुमारीमिमाम् ।
गायत्रीं कमलासनां करतलव्यानद्धकुण्डाम्बुजां
पद्माक्षीं च वरस्रजं च दधतीं हंसाधिरूढां
भजे ॥ ९॥
रक्त - श्वेत-पीत - नील एवं धवलवर्ण ( - वाले मुखों) - से सम्पन्न, तीन नेत्रों से देदीप्यमान विग्रहवाली, रक्तवर्णवाली, नवीन रक्तपुष्पों की माला धारण करनेवाली, अनेक मणिसमूहों से युक्त, कमल के आसन पर विराजमान अपने दो हाथों में कमल और कुण्डिका एवं अन्य दो हाथों में वर तथा अक्षमाला धारण करनेवाली, कमल के समान नेत्रोंवाली, हंस पर विराजमान रहनेवाली तथा कुमारी अवस्था से सम्पन्न भगवती गायत्री की मैं उपासना करता हूँ ।
[देवीके सहस्रनाम इस प्रकार हैं- ]
श्रीगायत्री सहस्रनाम स्तोत्रम्
ॐ
अचिन्त्यलक्षणाव्यक्ताप्यर्थमातृमहेश्वरी ।
अमृतार्णवमध्यस्थाप्यजिता चापराजिता
॥ १०॥
अणिमादिगुणाधाराप्यर्कमण्डलसंस्थिता
।
अजराजापराधर्मा अक्षसूत्रधराधरा ॥
११॥
अकारादिक्षकारान्ताप्यरिषड्वर्गभेदिनी
।
अञ्जनाद्रिप्रतीकाशाप्यञ्जनाद्रिनिवासिनी
॥ १२॥
अदितिश्चाजपाविद्याप्यरविन्दनिभेक्षणा
।
अन्तर्बहिःस्थिताविद्याध्वंसिनी
चान्तरात्मिका ॥ १३॥
अजा चाजमुखावासाप्यरविन्दनिभानना ।
अर्धमात्रार्थदानज्ञाप्यरिमण्डलमर्दिनी
॥ १४॥
असुरघ्नी
ह्यमावास्याप्यलक्ष्मीघ्न्यन्त्यजार्चिता ।
आदिलक्ष्मीश्चादिशक्तिराकृतिश्चायतानना
॥ १५॥
आदित्यपदवीचाराप्यादित्यपरिसेविता ।
आचार्यावर्तनाचाराप्यादिमूर्तिनिवासिनी
॥ १६॥
आग्नेयी चामरी चाद्या चाराध्या
चासनस्थिता ।
आधारनिलयाधारा चाकाशान्तनिवासिनी ॥
१७॥
आद्याक्षरसमायुक्ता
चान्तराकाशरूपिणी ।
आदित्यमण्डलगता चान्तरध्वान्तनाशिनी
॥ १८॥
इन्दिरा चेष्टदा चेष्टा
चेन्दीवरनिभेक्षणा ।
इरावती चेन्द्रपदा चेन्द्राणी
चेन्दुरूपिणी ॥ १९॥
इक्षुकोदण्डसंयुक्ता
चेषुसंधानकारिणी ।
इन्द्रनीलसमाकारा चेडापिङ्गलरूपिणी
॥ २०॥
इन्द्राक्षी चेश्वरी देवी
चेहात्रयविवर्जिता ।
उमा चोषा ह्युडुनिभा उर्वारुकफलानना
॥ २१॥
उडुप्रभा चोडुमती ह्युडुपा
ह्युडुमध्यगा ।
ऊर्ध्वा चाप्यूर्ध्वकेशी
चाप्यूर्ध्वाधोगतिभेदिनी ॥ २२॥
ऊर्ध्वबाहुप्रिया
चोर्मिमालावाग्ग्रन्थदायिनी ।
ऋतं चर्षिरृतुमती ऋषिदेवनमस्कृता ॥
२३॥
ऋग्वेदा ऋणहर्त्री च ऋषिमण्डलचारिणी
।
ऋद्धिदा ऋजुमार्गस्था ऋजुधर्मा
ऋतुप्रदा ॥ २४॥
ऋग्वेदनिलया ऋज्वी
लुप्तधर्मप्रवर्तिनी ।
लूतारिवरसम्भूता लूतादिविषहारिणी ॥
२५॥
एकाक्षरा चैकमात्रा चैका
चैकैकनिष्ठिता ।
ऐन्द्री ह्यैरावतारूढा
चैहिकामुष्मिकप्रदा ॥ २६॥
ओंकारा ह्योषधी चोता
चोतप्रोतनिवासिनी ।
और्वा ह्यौषधसम्पन्ना औपासनफलप्रदा
॥ २७॥
अण्डमध्यस्थिता देवी
चाःकारमनुरूपिणी ।
कात्यायनी कालरात्रिः कामाक्षी
कामसुन्दरी ॥ २८॥
कमला कामिनी कान्ता कामदा
कालकण्ठिनी ।
करिकुम्भस्तनभरा करवीरसुवासिनी ॥
२९॥
कल्याणी कुण्डलवती
कुरुक्षेत्रनिवासिनी ।
कुरुविन्ददलाकारा कुण्डली कुमुदालया
॥ ३०॥
कालजिह्वा करालास्या कालिका
कालरूपिणी ।
कमनीयगुणा कान्तिः कलाधारा
कुमुद्वती ॥ ३१॥
कौशिकी कमलाकारा कामचारप्रभञ्जिनी ।
कौमारी करुणापाङ्गी ककुबन्ता
करिप्रिया ॥ ३२॥
केसरी केशवनुता कदम्बकुसुमप्रिया ।
कालिन्दी कालिका काञ्ची
कलशोद्भवसंस्तुता ॥ ३३॥
काममाता क्रतुमती कामरूपा कृपावती ।
कुमारी कुण्डनिलया किराती कीरवाहना
॥ ३४॥
कैकेयी कोकिलालापा केतकी
कुसुमप्रिया ।
कमण्डलुधरा काली कर्मनिर्मूलकारिणी
॥ ३५॥
कलहंसगतिः कक्षा कृतकौतुकमङ्गला ।
कस्तूरीतिलका कम्रा करीन्द्रगमना
कुहूः ॥ ३६॥
कर्पूरलेपना कृष्णा कपिला कुहराश्रया
।
कूटस्था कुधरा कम्रा
कुक्षिस्थाखिलविष्टपा ॥ ३७॥
खड्गखेटकरा खर्वा खेचरी खगवाहना ।
खट्वाङ्गधारिणी ख्याता
खगराजोपरिस्थिता ॥ ३८॥
खलघ्नी खण्डितजरा
खण्डाख्यानप्रदायिनी ।
खण्डेन्दुतिलका गङ्गा गणेशगुहपूजिता
॥ ३९॥
गायत्री गोमती गीता गान्धारी
गानलोलुपा ।
गौतमी गामिनी गाधा
गन्धर्वाप्सरसेविता ॥ ४०॥
गोविन्दचरणाक्रान्ता
गुणत्रयविभाविता ।
गन्धर्वी गह्वरी गोत्रा गिरीशा गहना
गमी ॥ ४१॥
गुहावासा गुणवती गुरुपापप्रणाशिनी ।
गुर्वी गुणवती गुह्या गोप्तव्या
गुणदायिनी ॥ ४२॥
गिरिजा गुह्यमातङ्गी गरुडध्वजवल्लभा
।
गर्वापहारिणी गोदा गोकुलस्था गदाधरा
॥ ४३॥
गोकर्णनिलयासक्ता गुह्यमण्डलवर्तिनी
।
घर्मदा घनदा घण्टा घोरदानवमर्दिनी ॥
४४॥
घृणिमन्त्रमयी घोषा घनसम्पातदायिनी
।
घण्टारवप्रिया घ्राणा
घृणिसंतुष्टकारिणी ॥ ४५॥
घनारिमण्डला घूर्णा घृताची घनवेगिनी
।
ज्ञानधातुमयी चर्चा चर्चिता चारुहासिनी
॥ ४६॥
चटुला चण्डिका चित्रा
चित्रमाल्यविभूषिता ।
चतुर्भुजा चारुदन्ता चातुरी
चरितप्रदा ॥ ४७॥
चूलिका चित्रवस्त्रान्ता
चन्द्रमःकर्णकुण्डला ।
चन्द्रहासा चारुदात्री चकोरी
चन्द्रहासिनी ॥ ४८॥
चन्द्रिका चन्द्रधात्री च चौरी चौरा
च चण्डिका ।
चञ्चद्वाग्वादिनी चन्द्रचूडा
चोरविनाशिनी ॥ ४९॥
चारुचन्दनलिप्ताङ्गी
चञ्चच्चामरवीजिता ।
चारुमध्या चारुगतिश्चन्दिला
चन्द्ररूपिणी ॥ ५०॥
चारुहोमप्रिया चार्वाचरिता
चक्रबाहुका ।
चन्द्रमण्डलमध्यस्था
चन्द्रमण्डलदर्पणा ॥ ५१॥
चक्रवाकस्तनी चेष्टा चित्रा
चारुविलासिनी ।
चित्स्वरूपा चन्द्रवती
चन्द्रमाश्चन्दनप्रिया ॥ ५२॥
चोदयित्री चिरप्रज्ञा चातका
चारुहेतुकी ।
छत्रयाता छत्रधरा छाया
छन्दःपरिच्छदा ॥ ५३॥
छायादेवी छिद्रनखा
छन्नेन्द्रियविसर्पिणी ।
छन्दोऽनुष्टुप्प्रतिष्ठान्ता
छिद्रोपद्रवभेदिनी ॥ ५४॥
छेदा छत्रेश्वरी छिन्ना छुरिका
छेदनप्रिया ।
जननी जन्मरहिता जातवेदा जगन्मयी ॥
५५॥
जाह्नवी जटिला जेत्री जरामरणवर्जिता
।
जम्बूद्वीपवती ज्वाला जयन्ती
जलशालिनी ॥ ५६॥
जितेन्द्रिया जितक्रोधा जितामित्रा
जगत्प्रिया ।
जातरूपमयी जिह्वा जानकी जगती जरा ॥
५७॥
जनित्री जह्नुतनया जगत्त्रयहितैषिणी
।
ज्वालामुखी जपवती ज्वरघ्नी
जितविष्टपा ॥ ५८॥
जिताक्रान्तमयी ज्वाला जाग्रती
ज्वरदेवता ।
ज्वलन्ती जलदा ज्येष्ठा
ज्याघोषास्फोटदिङ्मुखी ॥ ५९॥
जम्भिनी जृम्भणा जृम्भा
ज्वलन्माणिक्यकुण्डला ।
झिंझिका झणनिर्घोषा झंझामारुतवेगिनी
॥ ६०॥
झल्लरीवाद्यकुशला ञरूपा ञभुजा
स्मृता ।
टङ्कबाणसमायुक्ता टङ्किनी
टङ्कभेदिनी ॥ ६१॥
टङ्कीगणकृताघोषा टङ्कनीयमहोरसा ।
टङ्कारकारिणी देवी ठठशब्दनिनादिनी ॥
६२॥
डामरी डाकिनी डिम्भा
डुण्डुमारैकनिर्जिता ।
डामरीतन्त्रमार्गस्था
डमड्डमरुनादिनी ॥ ६३॥
डिण्डीरवसहा डिम्भलसत्क्रीडापरायणा
।
ढुण्ढिविघ्नेशजननी ढक्काहस्ता ढिलिव्रजा
॥ ६४॥
नित्यज्ञाना निरुपमा निर्गुणा
नर्मदा नदी ।
त्रिगुणा त्रिपदा तन्त्री तुलसी
तरुणा तरुः ॥ ६५॥
त्रिविक्रमपदाक्रान्ता
तुरीयपदगामिनी ।
तरुणादित्यसंकाशा तामसी तुहिना तुरा
॥ ६६॥
त्रिकालज्ञानसम्पन्ना त्रिवली
(त्रिवेणी) च त्रिलोचना ।
त्रिशक्तिस्त्रिपुरा तुङ्गा
तुरङ्गवदना तथा ॥ ६७॥
तिमिङ्गिलगिला तीव्रा त्रिस्रोता
तामसादिनी ।
तन्त्रमन्त्रविशेषज्ञा तनुमध्या
त्रिविष्टपा ॥ ६८॥
त्रिसन्ध्या त्रिस्तनी तोषासंस्था
तालप्रतापिनी ।
ताटङ्किनी तुषाराभा तुहिनाचलवासिनी
॥ ६९॥
तन्तुजालसमायुक्ता तारहारावलिप्रिया
।
तिलहोमप्रिया तीर्था
तमालकुसुमाकृतिः ॥ ७०॥
तारका त्रियुता तन्वी
त्रिशङ्कुपरिवारिता ।
तलोदरी तिलाभूषा ताटङ्कप्रियवाहिनी
॥ ७१॥
त्रिजटा तित्तिरी तृष्णा त्रिविधा
तरुणाकृतिः ।
तप्तकाञ्चनसंकाशा तप्तकाञ्चनभूषणा ॥
७२॥
त्रैयम्बका त्रिवर्गा च
त्रिकालज्ञानदायिनी ।
तर्पणा तृप्तिदा तृप्ता तामसी
तुम्बुरुस्तुता ॥ ७३॥
तार्क्ष्यस्था त्रिगुणाकारा
त्रिभङ्गी तनुवल्लरिः ।
थात्कारी थारवा थान्ता दोहिनी
दीनवत्सला ॥ ७४॥
दानवान्तकरी दुर्गा
दुर्गासुरनिबर्हिणी ।
देवरीतिर्दिवारात्रिर्द्रौपदी
दुन्दुभिस्वना ॥ ७५॥
देवयानी दुरावासा
दारिद्र्योद्भेदिनी दिवा ।
दामोदरप्रिया दीप्ता दिग्वासा
दिग्विमोहिनी ॥ ७६॥
दण्डकारण्यनिलया दण्डिनी देवपूजिता
।
देववन्द्या दिविषदा द्वेषिणी
दानवाकृतिः ॥ ७७॥
दीनानाथस्तुता दीक्षा
दैवतादिस्वरूपिणी ।
धात्री धनुर्धरा धेनुर्धारिणी
धर्मचारिणी ॥ ७८॥
धरन्धरा धराधारा धनदा धान्यदोहिनी ।
धर्मशीला धनाध्यक्षा
धनुर्वेदविशारदा ॥ ७९॥
धृतिर्धन्या धृतपदा धर्मराजप्रिया
ध्रुवा ।
धूमावती धूमकेशी
धर्मशास्त्रप्रकाशिनी ॥ ८०॥
नन्दा नन्दप्रिया निद्रा नृनुता
नन्दनात्मिका ।
नर्मदा नलिनी नीला नीलकण्ठसमाश्रया
॥ ८१॥
नारायणप्रिया नित्या निर्मला
निर्गुणा निधिः ।
निराधारा निरुपमा नित्यशुद्धा
निरञ्जना ॥ ८२॥
नादबिन्दुकलातीता
नादबिन्दुकलात्मिका ।
नृसिंहिनी नगधरा नृपनागविभूषिता ॥
८३॥
नरकक्लेशशमनी नारायणपदोद्भवा ।
निरवद्या निराकारा नारदप्रियकारिणी
॥ ८४॥
नानाज्योतिःसमाख्याता निधिदा
निर्मलात्मिका ।
नवसूत्रधरा नीतिर्निरुपद्रवकारिणी ॥
८५॥
नन्दजा नवरत्नाढ्या
नैमिषारण्यवासिनी ।
नवनीतप्रिया नारी नीलजीमूतनिस्वना ॥
८६॥
निमेषिणी नदीरूपा नीलग्रीवा
निशीश्वरी ।
नामावलिर्निशुम्भघ्नी
नागलोकनिवासिनी ॥ ८७॥
नवजाम्बूनदप्रख्या नागलोकाधिदेवता ।
नूपुराक्रान्तचरणा नरचित्तप्रमोदिनी
॥ ८८॥
निमग्नारक्तनयना निर्घातसमनिस्वना ।
नन्दनोद्याननिलया
निर्व्यूहोपरिचारिणी ॥ ८९॥
पार्वती परमोदारा परब्रह्मात्मिका
परा ।
पञ्चकोशविनिर्मुक्ता पञ्चपातकनाशिनी
॥ ९०॥
परचित्तविधानज्ञा पञ्चिका
पञ्चरूपिणी ।
पूर्णिमा परमा प्रीतिः परतेजः
प्रकाशिनी ॥ ९१॥
पुराणी पौरुषी पुण्या
पुण्डरीकनिभेक्षणा ।
पातालतलनिर्मग्ना प्रीता
प्रीतिविवर्धिनी ॥ ९२॥
पावनी पादसहिता पेशला पवनाशिनी ।
प्रजापतिः परिश्रान्ता
पर्वतस्तनमण्डला ॥ ९३॥
पद्मप्रिया पद्मसंस्था पद्माक्षी
पद्मसम्भवा ।
पद्मपत्रा पद्मपदा पद्मिनी
प्रियभाषिणी ॥ ९४॥
पशुपाशविनिर्मुक्ता पुरन्ध्री
पुरवासिनी ।
पुष्कला पुरुषा पर्वा
पारिजातसुमप्रिया ॥ ९५॥
पतिव्रता पवित्राङ्गी
पुष्पहासपरायणा ।
प्रज्ञावतीसुता पौत्री पुत्रपूज्या
पयस्विनी ॥ ९६॥ (प्रजावतीसुता)
पट्टिपाशधरा पङ्क्तिः
पितृलोकप्रदायिनी ।
पुराणी पुण्यशीला च प्रणतार्तिविनाशिनी
॥ ९७॥
प्रद्युम्नजननी पुष्टा
पितामहपरिग्रहा ।
पुण्डरीकपुरावासा पुण्डरीकसमानना ॥
९८॥
पृथुजङ्घा पृथुभुजा पृथुपादा
पृथूदरी ।
प्रवालशोभा पिङ्गाक्षी पीतवासाः
प्रचापला ॥ ९९॥
प्रसवा पुष्टिदा पुण्या प्रतिष्ठा
प्रणवागतिः ।
पञ्चवर्णा पञ्चवाणी पञ्चिका
पञ्जरस्थिता ॥ १००॥
परमाया परज्योतिः परप्रीतिः परागतिः
।
पराकाष्ठा परेशानी पाविनी
पावकद्युतिः ॥ १०१॥
पुण्यभद्रा परिच्छेद्या पुष्पहासा
पृथूदरी ।
पीताङ्गी पीतवसना पीतशय्या पिशाचिनी
॥ १०२॥
पीतक्रिया पिशाचघ्नी पाटलाक्षी
पटुक्रिया ।
पञ्चभक्षप्रियाचारा पूतनाप्राणघातिनी
॥ १०३॥
पुन्नागवनमध्यस्था
पुण्यतीर्थनिषेविता ।
पञ्चाङ्गी च पराशक्तिः
परमाह्लादकारिणी ॥ १०४॥
पुष्पकाण्डस्थिता पूषा
पोषिताखिलविष्टपा ।
पानप्रिया पञ्चशिखा पन्नगोपरिशायिनी
॥ १०५॥
पञ्चमात्रात्मिका पृथ्वी पथिका
पृथुदोहिनी ।
पुराणन्यायमीमांसा पाटली पुष्पगन्धिनी
॥ १०६॥
पुण्यप्रजा पारदात्री
परमार्गैकगोचरा ।
प्रवालशोभा पूर्णाशा प्रणवा
पल्लवोदरी ॥ १०७॥
फलिनी फलदा फल्गुः फूत्कारी
फलकाकृतिः ।
फणीन्द्रभोगशयना फणिमण्डलमण्डिता ॥
१०८॥
बालबाला बहुमता बालातपनिभांशुका ।
बलभद्रप्रिया वन्द्या वडवा
बुद्धिसंस्तुता ॥ १०९॥
बन्दीदेवी बिलवती बडिशघ्नी
बलिप्रिया ।
बान्धवी बोधिता
बुद्धिर्बन्धूककुसुमप्रिया ॥ ११०॥
बालभानुप्रभाकारा ब्राह्मी
ब्राह्मणदेवता ।
बृहस्पतिस्तुता वृन्दा
वृन्दावनविहारिणी ॥ १११॥
बालाकिनी बिलाहारा बिलवासा बहूदका ।
बहुनेत्रा बहुपदा बहुकर्णावतंसिका ॥
११२॥
बहुबाहुयुता बीजरूपिणी बहुरूपिणी ।
बिन्दुनादकलातीता
बिन्दुनादस्वरूपिणी ॥ ११३॥
बद्धगोधाङ्गुलित्राणा
बदर्याश्रमवासिनी ।
बृन्दारका बृहत्स्कन्धा बृहती
बाणपातिनी ॥ ११४॥
वृन्दाध्यक्षा बहुनुता वनिता
बहुविक्रमा ।
बद्धपद्मासनासीना बिल्वपत्रतलस्थिता
॥ ११५॥
बोधिद्रुमनिजावासा बडिस्था
बिन्दुदर्पणा ।
बाला बाणासनवती वडवानलवेगिनी ॥ ११६॥
ब्रह्माण्डबहिरन्तःस्था
ब्रह्मकङ्कणसूत्रिणी ।
भवानी भीषणवती भाविनी भयहारिणी ॥
११७॥
भद्रकाली भुजङ्गाक्षी भारती
भारताशया ।
भैरवी भीषणाकारा भूतिदा भूतिमालिनी
॥ ११८॥
भामिनी भोगनिरता भद्रदा भूरिविक्रमा
।
भूतवासा भृगुलता भार्गवी
भूसुरार्चिता ॥ ११९॥
भागीरथी भोगवती भवनस्था भिषग्वरा ।
भामिनी भोगिनी भाषा भवानी
भूरिदक्षिणा ॥ १२०॥
भर्गात्मिका भीमवती भवबन्धविमोचिनी
।
भजनीया भूतधात्रीरञ्जिता भुवनेश्वरी
॥ १२१॥
भुजङ्गवलया भीमा भेरुण्डा भागधेयिनी
।
माता माया मधुमती मधुजिह्वा
मधुप्रिया ॥ १२२॥
महादेवी महाभागा मालिनी मीनलोचना ।
मायातीता मधुमती मधुमांसा मधुद्रवा
॥ १२३॥
मानवी मधुसम्भूता मिथिलापुरवासिनी ।
मधुकैटभसंहर्त्री मेदिनी मेघमालिनी
॥ १२४॥
मन्दोदरी महामाया मैथिली मसृणप्रिया
।
महालक्ष्मीर्महाकाली महाकन्या
महेश्वरी ॥ १२५॥
माहेन्द्री मेरुतनया
मन्दारकुसुमार्चिता ।
मञ्जुमञ्जीरचरणा मोक्षदा
मञ्जुभाषिणी ॥ १२६॥
मधुरद्राविणी मुद्रा मलया
मलयान्विता ।
मेधा मरकतश्यामा मागधी मेनकात्मजा ॥
१२७॥
महामारी महावीरा महाश्यामा
मनुस्तुता ।
मातृका मिहिराभासा मुकुन्दपदविक्रमा
॥ १२८॥
मूलाधारस्थिता मुग्धा मणिपूरकवासिनी
।
मृगाक्षी महिषारूढा महिषासुरमर्दिनी
॥ १२९॥
योगासना योगगम्या योगा यौवनकाश्रया
।
यौवनी युद्धमध्यस्था यमुना
युगधारिणी ॥ १३०॥
यक्षिणी योगयुक्ता च
यक्षराजप्रसूतिनी ।
यात्रा यानविधानज्ञा यदुवंशसमुद्भवा
॥ १३१॥
यकारादिहकारान्ता याजुषी यज्ञरूपिणी
।
यामिनी योगनिरता यातुधानभयङ्करी ॥
१३२॥
रुक्मिणी रमणी रामा रेवती रेणुका
रतिः ।
रौद्री रौद्रप्रियाकारा राममाता
रतिप्रिया ॥ १३३॥
रोहिणी राज्यदा रेवा रमा राजीवलोचना
।
राकेशी रूपसम्पन्ना
रत्नसिंहासनस्थिता ॥ १३४॥
रक्तमाल्याम्बरधरा रक्तगन्धानुलेपना
।
राजहंससमारूढा रम्भा रक्तबलिप्रिया
॥ १३५॥
रमणीययुगाधारा राजिताखिलभूतला ।
रुरुचर्मपरीधाना रथिनी रत्नमालिका ॥
१३६॥
रोगेशी रोगशमनी राविणी रोमहर्षिणी ।
रामचन्द्रपदाक्रान्ता
रावणच्छेदकारिणी ॥ १३७॥
रत्नवस्त्रपरिच्छन्ना रथस्था
रुक्मभूषणा ।
लज्जाधिदेवता लोला ललिता लिङ्गधारिणी
॥ १३८॥
लक्ष्मीर्लोला लुप्तविषा लोकिनी
लोकविश्रुता ।
लज्जा लम्बोदरी देवी ललना लोकधारिणी
॥ १३९॥
वरदा वन्दिता विद्या वैष्णवी
विमलाकृतिः ।
वाराही विरजा वर्षा
वरलक्ष्मीर्विलासिनी ॥ १४०॥
विनता व्योममध्यस्था
वारिजासनसंस्थिता ।
वारुणी वेणुसम्भूता वीतिहोत्रा
विरूपिणी ॥ १४१॥
वायुमण्डलमध्यस्था विष्णुरूपा
विधिप्रिया ।
विष्णुपत्नी विष्णुमती विशालाक्षी
वसुन्धरा ॥ १४२॥
वामदेवप्रिया वेला वज्रिणी
वसुदोहिनी ।
वेदाक्षरपरीताङ्गी वाजपेयफलप्रदा ॥
१४३॥
वासवी वामजननी वैकुण्ठनिलया वरा ।
व्यासप्रिया वर्मधरा वाल्मीकिपरिसेविता
॥ १४४॥
शाकम्भरी शिवा शान्ता शारदा
शरणागतिः ।
शातोदरी शुभाचारा
शुम्भासुरविमर्दिनी ॥ १४५॥
शोभावती शिवाकारा शंकरार्धशरीरिणी ।
शोणा शुभाशया शुभ्रा
शिरःसन्धानकारिणी ॥ १४६॥
शरावती शरानन्दा शरज्ज्योत्स्ना
शुभानना ।
शरभा शूलिनी शुद्धा शबरी शुकवाहना ॥
१४७॥
श्रीमती श्रीधरानन्दा
श्रवणानन्ददायिनी ।
शर्वाणी शर्वरीवन्द्या षड्भाषा
षडृतुप्रिया ॥ १४८॥
षडाधारस्थिता देवी
षण्मुखप्रियकारिणी ।
षडङ्गरूपसुमतिसुरासुरनमस्कृता ॥
१४९॥
सरस्वती सदाधारा सर्वमङ्गलकारिणी ।
सामगानप्रिया सूक्ष्मा सावित्री
सामसम्भवा ॥ १५०॥
सर्वावासा सदानन्दा सुस्तनी
सागराम्बरा ।
सर्वैश्वर्यप्रिया सिद्धिः
साधुबन्धुपराक्रमा ॥ १५१॥
सप्तर्षिमण्डलगता सोममण्डलवासिनी ।
सर्वज्ञा सान्द्रकरुणा
समानाधिकवर्जिता ॥ १५२॥
सर्वोत्तुङ्गा सङ्गहीना सद्गुणा
सकलेष्टदा ।
सरघा सूर्यतनया सुकेशी सोमसंहतिः ॥
१५३॥
हिरण्यवर्णा हरिणी ह्रींकारी
हंसवाहिनी ।
क्षौमवस्त्रपरीताङ्गी
क्षीराब्धितनया क्षमा ॥ १५४॥
गायत्री चैव सावित्री पार्वती च
सरस्वती ।
वेदगर्भा वरारोहा श्रीगायत्री
पराम्बिका ॥ १५५॥
श्रीगायत्री सहस्र नाम स्तोत्र फलश्रुति
इति साहस्रकं नाम्नां
गायत्र्याश्चैव नारद ।
पुण्यदं सर्वपापघ्नं
महासम्पत्तिदायकम् ॥ १५६॥
हे नारद! भगवती गायत्री का यह
सहस्रनाम है। यह अत्यन्त पुण्यदायक, सभी
पापों का नाश करनेवाला तथा विपुल सम्पदाओं को प्रदान करनेवाला है।
एवं नामानि
गायत्र्यास्तोषोत्पत्तिकराणि हि ।
अष्टम्यां च विशेषेण पठितव्यं
द्विजैः सह ॥ १५७॥
जपं कृत्वा होमपूजाध्यानं कृत्वा
विशेषतः ।
यस्मै कस्मै न दातव्यं
गायत्र्यास्तु विशेषतः ॥ १५८॥
सुभक्ताय सुशिष्याय वक्तव्यं
भूसुराय वै ।
भ्रष्टेभ्यः साधकेभ्यश्च
बान्धवेभ्यो न दर्शयेत् ॥ १५९॥
इस प्रकार कहे गये ये नाम गायत्री को
सन्तुष्टि प्रदान करनेवाले हैं। ब्राह्मणों के साथ विशेष करके अष्टमी तिथि को इस
सहस्रनाम का पाठ करना चाहिये । भली-भाँति जप, होम,
पूजा और ध्यान करके इसका पाठ करना चाहिये। जिस किसी को भी इस
गायत्रीसहस्रनाम का उपदेश नहीं करना चाहिये; अपितु योग्य
भक्त, उत्तम शिष्य तथा ब्राह्मण को ही इसे बताना चाहिये ।
पथभ्रष्ट साधकों अथवा ऐसे अपने बन्धुओं के भी समक्ष इसे प्रदर्शित नहीं करना
चाहिये।
यद्गृहे लिखितं शास्त्रं भयं तस्य न
कस्यचित् ।
चञ्चलापि स्थिरा भूत्वा कमला तत्र
तिष्ठति ॥ १६०॥
जिस व्यक्ति घर में यह
गायत्रीसम्बन्धी शास्त्र लिखा होता है, उसे
किसी का भी भय नहीं रहता और अत्यन्त चपल लक्ष्मी भी उस घर में स्थिर होकर
विराजमान रहती हैं ।
इदं रहस्यं परमं गुह्याद्गुह्यतरं
महत् ।
पुण्यप्रदं मनुष्याणां दरिद्राणां
निधिप्रदम् ॥ १६१॥
मोक्षप्रदं मुमुक्षूणां कामिनां
सर्वकामदम् ।
रोगाद्वै मुच्यते रोगी बद्धो मुच्येत
बन्धनात् ॥ १६२॥
ब्रह्महत्यासुरापानसुवर्णस्तेयिनो
नराः ।
गुरुतल्पगतो वापि पातकान्मुच्यते
सकृत् ॥ १६३॥
यह परम रहस्य गुह्य से भी अत्यन्त
गुह्य है। यह मनुष्यों को पुण्य प्रदान करानेवाला, दरिद्रों को सम्पत्ति सुलभ करानेवाला, मोक्ष की
अभिलाषा रखनेवालों को मोक्षप्राप्ति करानेवाला तथा सकाम पुरुषों को समस्त अभीष्ट
फल प्रदान करनेवाला है। इस सहस्रनाम के प्रभाव से रोगी रोगमुक्त हो जाता है तथा
बन्धन में पड़ा हुआ मनुष्य बन्धन से छूट जाता है । ब्रह्महत्या, सुरापान, स्वर्ण की चोरी तथा गुरुपत्नीगमनसदृश महान्
पाप करनेवाले भी इसके एक बार के पाठ से पापमुक्त हो जाते हैं ।
असत्प्रतिग्रहाच्चैवाऽभक्ष्यभक्षाद्विशेषतः
।
पाखण्डानृत्यमुख्येभ्यः पाठनादेव
मुच्यते ॥ १६४॥
इदं रहस्यममलं मयोक्तं पद्मजोद्भव ।
ब्रह्मसायुज्यदं नॄणां सत्यं
सन्त्यं न संशय ॥ १६५॥
इसका पाठ करने से मनुष्य निन्दनीय
दान लेने,
अभक्ष्यभक्षण करने, पाखण्डपूर्ण व्यवहार करने
और मिथ्याभाषण करने आदि प्रमुख पापों से मुक्त हो जाता है । हे ब्रह्मापुत्र नारद!
मेरे द्वारा कहा गया यह परम पवित्र रहस्य मनुष्यों को ब्रह्मसायुज्य प्रदान
करनेवाला है । यह बात सत्य है, सत्य है; इसमें सन्देह नहीं है ।
इति श्रीमद्देवीभागवते महापुराणेऽष्टादशसाहस्त्र्यां संहितायां द्वादशस्कन्धे गायत्रीसहस्त्रनामस्तोत्रवर्णनं नाम षष्ठोऽध्यायः ॥ ६ ॥
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