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- धूमावती सहस्रनाम स्तोत्र
- छिन्नमस्ता सहस्रनाम स्तोत्र
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रघुवंशम् द्वितीय सर्ग Raghuvansham dvitiya sarg महाकवि कालिदास जी की महाकाव्य रघुवंशम् प्रथम सर्ग में आपने पढ़ा कि-महाराज दिलीप व उनकी प...
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अगहन बृहस्पति व्रत व कथा
मार्तण्ड भैरव स्तोत्रम्
ब्रह्मा स्तुति श्रीरामकृत
श्रीरघुनाथजी के आज्ञानुसार सुग्रीव
विमान से उतरकर जब पृथ्वी पर आये तो क्या देखते हैं कि देवताओं,
सिद्धों और ब्रह्मर्षियों के समुदाय के साथ चारों वेदों से युक्त
भगवान् ब्रह्माजी विराजमान हैं। यह देख वे विमान पर जाकर श्रीरामचन्द्रजी से बोले-'भगवन् ! यहाँ समस्त लोकों के पितामह ब्रह्माजी लोकपालों, वसुओं, आदित्यों और मरुद्गणों के साथ विराजमान हैं।
इसीलिये पुष्पक विमान उन्हें लाँधकर नहीं जा रहा है। तब श्रीरामचन्द्रजी
सुवर्णभूषित पुष्पक विमान से उतरे और देवी गायत्री के साथ बैठे हुए भगवान् ब्रह्मा
को साष्टाङ्ग प्रणाम किया।उसके बाद रामजी प्रणतभाव से ब्रह्माजी की स्तुति करने
लगा-
ब्रह्मा स्तुति श्रीरामकृतं
राम उवाच
नमामि लोककर्तारं
प्रजापतिसुरार्चितम् ।
देवनाथं लोकनाथं प्रजानाथं
जगत्पतिम् ।।
नमस्ते देवदेवेश सुरासुरनमस्कृत ।
भूतभव्यभवन्नाथ हरिपिंगललोचन ।।
बालस्त्वं वृद्धरूपी च
मृगचर्मासनांबरः।
तारणश्चासि देवस्त्वं
त्रैलोक्यप्रभुरीश्वरः।।
हिरण्यगर्भः पद्मगर्भः वेदगर्भः
स्मृतिप्रदः ।
महासिद्धो महापद्मी महादंडी च मेखली
।।
कालश्च कालरूपी च नीलग्रीवो
विदांवरः ।
वेदकर्तार्भको नित्यः पशूनां
पतिरव्ययः ।।
दर्भपाणिर्हंसकेतुः कर्ता हर्ता हरो
हरिः ।
जटी मुंडी शिखी दंडी लगुडी च
महायशाः ।।
भूतेश्वरः सुराध्यक्षः सर्वात्मा
सर्वभावनः ।
सर्वगः सर्वहारी च स्रष्टा च
गुरुरव्ययः ।।
कमंडलुधरो देवः
स्रुक्स्रुवादिधरस्तथा ।
हवनीयोऽर्चनीयश्च ॐकारो
ज्येष्ठसामगः ।।
मृत्युश्चैवामृतश्चैव पारियात्रश्च
सुव्रतः ।
ब्रह्मचारी व्रतधरो गुहावासी सुपङ्कजः
।।
अमरो दर्शनीयश्च बालसूर्यनिभस्तथा ।
दक्षिणे वामतश्चापि
पत्नीभ्यामुपसेवितः ।।
भिक्षुश्च भिक्षुरूपश्च त्रिजटी
लब्धनिश्चयः ।
चित्तवृत्तिकरः कामो
मधुर्मधुकरस्तथा ।।
वानप्रस्थो वनगत आश्रमी पूजितस्तथा ।
जगद्धाता च कर्त्ता च पुरुषः
शाश्वतो ध्रुवः ।।
धर्माध्यक्षो विरूपाक्षस्त्रिधर्मो
भूतभावनः ।
त्रिवेदो बहुरूपश्च
सूर्यायुतसमप्रभः ।।
मोहकोवंधकश्चैवदानवानांविशेषतः ।
देवदेवश्च
पद्माङ्कस्त्रिनेत्रोऽब्जजटस्तथा ।।
हरिश्मश्रुर्धनुर्धारी भीमो
धर्मपराक्रमः ।
एवं स्तुतस्तु रामेण ब्रह्मा
ब्रह्मविदांवरः ।।
श्रीरामकृत ब्रह्मा स्तुति भावार्थ
श्रीरामचन्द्रजी ने कहा-मैं
प्रजापतियों और देवताओं से पूजित लोककर्ता ब्रह्माजी को नमस्कार करता हूँ। समस्त
देवताओं,
लोकों एवं प्रजाओं के स्वामी जगदीश्वर को प्रणाम करता हूँ।
देवदेवेश्वर ! आपको नमस्कार है । देवता और असुर दोनों ही आपकी वन्दना करते हैं। आप
भूत, भविष्य और वर्तमान-तीनों कालों के स्वामी हैं। आप ही
संहारकारी रुद्र हैं। आपके नेत्र भूरे रंग के हैं। आप ही बालक और आप ही वृद्ध है।
गले में नीला चिह्न धारण करनेवाले महादेवजी तथा लम्बे उदरवाले गणेशजी भी आपके ही
स्वरूप है। आप वेदों के कर्ता, नित्य, पशुपति
(जीवों के स्वामी), अविनाशी, हाथों में
कुश धारण करनेवाले, हंस से चिह्नित ध्वजावाले, भोक्ता, रक्षक, शंकर, विष्णु, जटाधारी, मुण्डित,
शिखाधारी एवं दण्ड धारण करनेवाले, महान्
यशस्वी, भूतों के ईश्वर, देवताओं के
अधिपति, सबके आत्मा, सबको उत्पन्न
करनेवाले, सर्वव्यापक, सबका संहार
करनेवाले, सृष्टिकर्ता, जगद्गुरु,
अविकारी, कमण्डलु धारण करनेवाले देवता,
सुक्-सुवा आदि धारण करनेवाले, मृत्यु एवं
अमृतस्वरूप, पारियात्र पर्वतरूप, उत्तम
व्रत का पालन करनेवाले, ब्रह्मचारी, व्रतधारी,
हृदय-गुहा में निवास करनेवाले, उत्तम कमल धारण
करनेवाले, अमर, दर्शनीय, बालसूर्य के समान अरुण कान्तिवाले, कमल पर वास
करनेवाले, षड्विध ऐश्वर्य से परिपूर्ण, सावित्री के पति, अच्युत, दानवों
को वर देनेवाले, विष्णु से वरदान प्राप्त करनेवाले, कर्मकर्ता, पापहारी, हाथ में
अभय-मुद्रा धारण करनेवाले, अग्निरूप मुखवाले, अग्निमय ध्वजा धारण करनेवाले, मुनिस्वरूप, दिशाओं के अधिपति, आनन्दरूप, वेदों
की सृष्टि करनेवाले, धर्मादि चारों पुरुषार्थो के स्वामी,
वानप्रस्थ, वनवासी, आश्रमों
द्वारा पूजित, जगत्को धारण करनेवाले, कर्ता,
पुरुष, शाश्वत, ध्रुव,
धर्माध्यक्ष, विरूपाक्ष, मनुष्यों के गन्तव्य मार्ग, भूतभावन, ऋक्, साम और यजुः-इन तीनों वेदों को धारण करनेवाले,
अनेक रूपों वाले, हजारों सूर्यो के समान
तेजस्वी, अज्ञानियों को विशेषतः दानवों को मोह और बन्धन में
डालनेवाले, देवताओं के भी आराध्यदेय, देवताओं
से बढ़े-चढ़े, कमल से चिह्नित जटा धारण करनेवाले, धनुर्धर, भीमरूप और धर्म के लिये पराक्रम करनेवाले
हैं। ब्रह्मवेत्ताओं में श्रेष्ठ ब्रह्माजी की श्रीरामचन्द्रजी ने इस प्रकार
स्तुति की ।
इस प्रकार श्रीपद्मपुराण के प्रथम सृष्टिखंड में श्रीरामकृत ब्रह्मा स्तुति सम्पूर्ण हुआ ३८।।
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