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- मातङ्गी शतनाम स्तोत्र
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- मातङ्गी सहस्रनाम स्तोत्र
- मातङ्गीसुमुखीकवच
- मातङ्गी कवच
- मन्त्रमहोदधि तरङ्ग ७
- मातङ्गी हृदय स्तोत्र
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- शीतलाष्टक
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- छिन्नमस्ताष्टोत्तरशतनामस्तोत्र
- धूमावती अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र
- छिन्नमस्ता स्तोत्र
- धूमावती सहस्रनाम स्तोत्र
- छिन्नमस्ता सहस्रनाम स्तोत्र
- धूमावती अष्टक स्तोत्र
- छिन्नमस्ता हृदय स्तोत्र
- धूमावती कवच
- धूमावती हृदय स्तोत्र
- छिन्नमस्ता स्तोत्र
- मन्त्रमहोदधि तरङ्ग ६
- नारदसंहिता अध्याय ११
- छिन्नमस्ता कवच
- श्रीनायिका कवचम्
- मन्त्रमहोदधि पञ्चम तरङ्ग
- नारदसंहिता अध्याय १०
- नारदसंहिता अध्याय ९
- नारदसंहिता अध्याय ८
- नारदसंहिता अध्याय ७
- नारदसंहिता अध्याय ६
- नारदसंहिता अध्याय ५
- मन्त्रमहोदधि चतुर्थ तरङ्ग
- मन्त्रमहोदधि तृतीय तरङ्ग
- मन्त्रमहोदधि द्वितीय तरङ्ग
- मन्त्रमहोदधि - प्रथम तरड्ग
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- ग्रहलाघव पञ्चतारास्पष्टीकरणाधिकार
- ग्रहलाघव - रविचन्द्रस्पष्टीकरण पञ्चाङ्गानयनाधिकार
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- श्रीरामेश्वरम स्तुति
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- शिवमहापुराण – रुद्रसंहिता सृष्टिखण्ड – अध्याय 19
- शिवमहापुराण – रुद्रसंहिता सृष्टिखण्ड – अध्याय 18
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अगहन बृहस्पति व्रत व कथा
मार्तण्ड भैरव स्तोत्रम्
श्रीरामेश्वरम स्तुति
समुद्र के समीप आकर श्रीरामचन्द्रजी
द्वारा बनाये हुए श्रीरामेश्वर महादेवजी का जो मनुष्य मेरा दर्शन और श्रीरामचन्द्रजीकृत
श्रीरामेश्वरम् स्तुति करता है, वे यदि महापापी होंगे तो भी उनके सारे पाप नष्ट हो
जायेंगे। ब्रह्महत्या आदि जो कोई भी घोर पाप हैं, वे दर्शनमात्र से नष्ट हो जाते हैं-इसमें अन्यथा विचार करने की आवश्यकता
नहीं है।
वेलावन (वर्तमान रामेश्वर क्षेत्र)
में पहुँचकर श्रीरामचन्द्रजी ने श्रीरामेश्वर के नाम से देवाधिदेव महादेवजी की
स्थापना की तथा उनका विधिवत् पूजन किया और इस प्रकार स्तुति करने लगे-
श्रीरामेश्वरम् स्तुति:
राम उवाच
नमस्ते देवदेवेश भक्तानामभयंकर ।
गौरीकांत नमस्तुभ्यं दक्षयज्ञविनाशन
॥ १॥
नमो भवाय शर्वाय रुद्राय वरदाय च ।
पशूनांपतये नित्यं चोग्राय च
कपर्दिने ॥ २ ॥
महादेवाय भीमाय त्र्यंबकाय दिशांपते
।
ईशानाय भगघ्नाय नमोस्त्वंधकघातिने ॥
३॥
नीलग्रीवाय
घोराय वेधसे वेधसा स्तुत ।
कुमारशत्रुनिघ्नाय कुमारजननाय च ॥ ४॥
विलोहिताय धूम्राय शिवाय क्रथनाय च ।
नमो नीलशिखंडाय शूलिने दैत्यनाशिने ॥
५ ॥
उग्राय च त्रिनेत्राय
हिरण्यवसुरेतसे ।
अनिंद्यायांबिकाभर्त्रे
सर्वदेवस्तुताय च ॥ ६ ॥
अभिगम्याय काम्याय सद्योजाताय वै
नमः ।
वृषध्वजाय मुंडाय जटिने
ब्रह्मचारिणे ॥ ७ ॥
तप्यमानाय तप्याय ब्रह्मण्याय जयाय
च ।
विश्वात्मने विश्वसृजे विश्वमावृत्य
तिष्ठते ॥ ८ ॥
नमो नमोस्तु दिव्याय
प्रपन्नार्तिहराय च ।
भक्तानुकंपिने
देव विश्वतेजो मनोगते ॥ ९ ॥
इति
श्रीपाद्मपुराणे प्रथमे सृष्टिखंडे श्रीरामेश्वरम् स्तुति:
वामनप्रतिष्ठानामाष्टत्रिंशोऽध्यायः॥३८॥
श्रीरामेश्वरम् स्तुति: भावार्थ सहित
राम उवाच
नमस्ते देवदेवेश भक्तानामभयंकर ।
गौरीकांत नमस्तुभ्यं दक्षयज्ञविनाशन
॥ १॥
श्रीराम ने कहा-भक्तों को अभय
करनेवाले देवदेवेश्वर! आपको नमस्कार है-दक्ष-यज्ञ का विध्वंस करनेवाले गौरीपते !
आपको नमस्कार है।
नमो भवाय शर्वाय रुद्राय वरदाय च ।
पशूनांपतये नित्यं चोग्राय च
कपर्दिने ॥ २ ॥
आप ही शर्व(प्रलय-कालमें संसारका
संहार करनेवाले), रुद्र(जगत्को
रुलानेवाले), भव(संसारकी उत्पत्तिके कारण) और वरद(वर
देनेवाले) आदि नामों से प्रसिद्ध हैं। आपको नमस्कार है। आप पशुओं (जीवों) के
स्वामी, नित्य उग्रस्वरूप तथा जटाजूट धारण करनेवाले है;
आपको नमस्कार है।
महादेवाय भीमाय त्र्यंबकाय दिशांपते
।
ईशानाय भगघ्नाय नमोस्त्वंधकघातिने ॥
३॥
आप ही महादेव,
भीम(भयंकर रूप धारण करनेवाले) और त्र्यम्बक (त्रिनेत्रधारी) कहलाते
हैं, आपको नमस्कार है। प्रजापालक, सबके
ईश्वर, भग देवता के नेत्र फोड़नेवाले तथा अन्धकासुर का वध
करनेवाले भी आप ही हैं; आपको नमस्कार है।
नीलग्रीवाय
घोराय वेधसे वेधसा स्तुत ।
कुमारशत्रुनिघ्नाय कुमारजननाय च ॥ ४॥
विलोहिताय धूम्राय शिवाय क्रथनाय च ।
नमो नीलशिखंडाय शूलिने दैत्यनाशिने ॥
५ ॥
उग्राय च त्रिनेत्राय
हिरण्यवसुरेतसे ।
अनिंद्यायांबिकाभर्त्रे
सर्वदेवस्तुताय च ॥ ६ ॥
आप नीलकण्ठ,
भीम, वेधा (विधाता), ब्रह्माजी
के द्वारा स्तुत, कुमार कार्तिकेय के शत्रु का विनाश
करनेवाले, कुमार को जन्म देनेवाले, विलोहित(लाल
रंगवाले ), धूम्र(धुएं के समान रंगवाले), शिव(कल्याणस्वरूप), क्रथन(मारनेवाले), नीलशिखण्ड(नीले रंग का जटाजूट धारण करनेवाले), शूली
(त्रिशूलधारी), दिव्यशायी(दिव्यरूप से शयन करनेवाले),
उग्र और त्रिनेत्र आदि नामों से प्रसिद्ध है। सोना और धन आपका वीर्य
है। आपका स्वरूप किसी के चिन्तन में नहीं आ सकता। आप देवी पार्वती के स्वामी हैं।
सम्पूर्ण देवता आपकी स्तुति करते हैं।
अभिगम्याय काम्याय सद्योजाताय वै
नमः ।
वृषध्वजाय मुंडाय जटिने
ब्रह्मचारिणे ॥ ७ ॥
तप्यमानाय तप्याय ब्रह्मण्याय जयाय
च ।
विश्वात्मने विश्वसृजे विश्वमावृत्य
तिष्ठते ॥ ८ ॥
आप शरण लेने योग्य,
कामना करने योग्य और सद्योजात नाम से प्रसिद्ध है, आपको नमस्कार है। आपकी ध्वजा में वृषभ का चिह्न है। आप मुण्डित भी हैं और
जटाधारी भी। आप ब्रह्मचर्यव्रत का पालन करनेवाले, तपस्वी,
शान्त, ब्राह्मणभक्त, जयस्वरूप, विश्व के आत्मा, संसार की सृष्टि करनेवाले तथा
सम्पूर्ण विश्व को व्याप्त करके स्थित हैं; आपको नमस्कार है।
नमो नमोस्तु दिव्याय
प्रपन्नार्तिहराय च ।
भक्तानुकंपिने देव विश्वतेजो मनोगते
॥ ९ ॥
आप दिव्यस्वरूप,
शरणागत का कष्ट दूर करनेवाले, भक्तों पर सदा
ही दया रखनेवाले तथा विश्व के तेज और मन में व्याप्त रहनेवाले हैं। आपको बारम्बार
नमस्कार है।
इस प्रकार श्रीरामचन्द्रजीकृत श्रीरामेश्वरम् स्तुति सम्पूर्ण हुआ ॥
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