शिवरामाष्टकम्

शिवरामाष्टकम्

इस शिवरामाष्टकम् का पाठ करने से जीवन के हर क्षेत्र में विजय की प्राप्ति होती है साथ ही भगवान् श्रीरामशिवजी की कृपा भी सहज ही प्राप्त हो जाता है। रामायण में भगवान् राम के कथन अनुसार शिव और राम में अंतर जानने वाला कभी भी भगवान् शिव का या भगवान् राम का प्रिय नहीं हो सकता।  

शिवरामाष्टकम्

श्रीशिवरामाष्टकस्तोत्रम्

शिव हरे शिव राम सखे प्रभो त्रिविधतापनिवारण हे विभो ।

अज जनेश्वर यादव पाहि मां शिव हरे विजयं कुरु मे वरम् ॥१॥

हे शिव ! हे हरे, हे शिव, हे राम, हे सखे ! हे प्रभो, हे त्रिविध तापनिवारण विभो ! हे अज, हे जगन्नाथ, हे यादव ! मेरी रक्षा करो; हे शिव ! हे हरे! मेरी कल्याणमय विजय करो ॥ १॥

कमललोचन राम दयानिधे हर गुरो गजरक्षक गोपते ।

शिवतनो भव शङ्कर पाहि मां शिव हरे विजयं कुरु मे वरम् ॥२॥

हे कमललोचन दयानिधे राम ! हे हर ! हे गुरो ! हे गजरक्षक ! हे गोपते ! हे कल्याणरूपधारी भव ! हे शङ्कर ! मेरी रक्षा करो; हे शिव ! हे हरे ! मेरा उत्तम विजयसाधन करो॥२॥

सुजनरञ्जन मङ्गलमन्दिरं भजति ते पुरुषः परमं पदम् ।

भवति तस्य सुखं परमद्भुतं शिव हरे विजयं कुरु मे वरम् ॥३॥

हे सज्जन-मनरञ्जन ! जो पुरुष तुम्हारे मङ्गलमन्दिर (शिव और विष्णुरूप) परमपद का आश्रय लेते हैं, उन्हें परम दिव्य सुख प्राप्त होता है; अतएव हे शिव ! हे हरे ! मेरा वर विजय-साधन करो ॥३॥

जय युधिष्ठिरवल्लभ भूपते जय जयार्जितपुण्यपयोनिधे ।

जय कृपामय कृष्ण नमोऽस्तु ते शिव हरे विजयं कुरु मे वरम् ॥४॥

हे युधिष्ठिर के प्रियतम ! हे भूपते ! आप विजयी हों । हे पुण्यमहासागर के उपार्जन करनेवाले ! आपकी जय हो, जय हो; हे दयामय कृष्ण ! आपकी जय हो, आपको नमस्कार है; हे शिव ! हे हरे ! आप मेरी कल्याणमय विजय करें॥४॥

भवविमोचन माधव मापते सुकविमानसहंस शिवारते ।

जनकजारत राघव रक्ष मां शिव हरे विजयं कुरु मे वरम् ॥ ५॥

हे भवभयहारी माधव ! हे लक्ष्मीपते ! हे सुकवि-मानस-हंस ! हे पार्वतीप्रिय ! हे जानकीजीवन राघव ! मेरी रक्षा करो, हे शिव ! हे हरे ! मेरा वर विजयसम्पादन करो ।। ५॥

अवनिमण्डलमङ्गल मापते जलदसुन्दर राम रमापते ।

निगमकीर्तिगुणार्णव गोपते शिव हरे विजयं कुरु मे वरम् ॥६॥

हे भूमिमण्डल के मङ्गलस्वरूप! हे श्रीपते ! हे घनश्याम सुन्दर ! हे राम! हे रमापते ! हे वेदवर्णित गुण-सागर! हे गोपते ! हे शिव ! हे हरे ! मेरी कल्याणमय विजय करो ॥६॥

पतितपावन नाममयी लता तव यशो विमलं परिगीयते ।

तदपि माधव मां किमुपेक्षसे शिव हरे विजयं कुरु मे वरम् ॥ ७॥

हे पतितपावन ! तुम्हारा नाम कल्पलता है, तुम्हारा यश नित्य सर्वत्र गाया जाता है तथापि हे माधव ! तुम मेरी उपेक्षा क्यों कर रहे हो? हे शिव ! हे हरे ! मेरा शुभ विजय-साधन करो ॥ ७॥

अमरतापरदेव रमापते विजयतस्तव नामधनोपमा ।

मयि कथं करुणार्णव जायते शिवहरे विजयं कुरुमेवरम् ॥ ८ ॥

हे देवों में श्रेष्ठ देव ! हे दयासागर रमापते ! सर्वत्र विजय पानेवाले तुझ परमेश्वर के नामरूपी धन का आदर्श कोष मेरे पास किस प्रकार सञ्चित हो जायगा? हे शिव ! हे हरे ! मेरा परम विजय-साधन करो॥ ८॥

हनुमतः प्रिय चापकर प्रभो सुरसरिद्धृतशेखर हे गुरो ।

मम विभो किमु विस्मरणं कृतं शिव हरे विजयं कुरुमेवरम् ॥ ९ ॥

हे हनुमत्प्रिय ! हे चापधारी प्रभो ! हे शीश पर गङ्गाजी को धारण करनेवाले गुरुदेव ! हे विभो ! तुम क्यों मुझे भूल गये? हे शिव ! हे हरे ! मेरा परम जय-साधन करो ॥९॥

अहरहर्जनरञ्जनसुन्दरं पठति यः शिवरामकृतं स्तवम् ।

विशति रामरमाचरणाम्बुजे शिव हरे विजयं कुरु मे वरम् ॥ १०॥

जो मनुष्य इस लोकप्रिय सन्दर रामानन्द स्वामी के विरचित शिवराम-स्तव का पाठ करता है, वह राम-रमा के चरण-कमलों में प्रवेश करने में समर्थ होता है। हे शिव! हे शिव ! हे हरे! मेरा श्रेष्ठ विजय-साधन करो॥ १०॥

प्रातरुत्थाय यो भक्त्या पठेदेकाग्रमानसः ।

विजयो जायते तस्य विष्णुमाराध्यमाप्नुयात् ॥११॥

जो प्रातःकाल उठकर एकाग्रचित्त से इस शिवरामस्तोत्र का पाठ करता है, उसकी सर्वत्र जय होती है और वह अपने आराध्यदेव विष्णु को प्राप्त होता है।॥११॥

इति श्रीरामानन्दस्वामिना विरचितं श्रीशिवरामाष्टकं सम्पूर्णम् ।

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