Slide show
Ad Code
JSON Variables
Total Pageviews
Blog Archive
-
▼
2022
(523)
-
▼
November
(32)
- भूतडामर तन्त्र पटल २
- त्रिगुणेश्वर शिव स्तोत्र
- श्रीराधा सप्तशती अध्याय ७ भाग २
- श्रीराधा सप्तशती अध्याय ७
- बालकृष्ण दशक
- भूतडामरतन्त्र पटल १
- श्रीरामाश्वघाटी चतुष्टय
- अष्ट पदि २- मंगलगीतम्
- देवी स्तोत्र
- योनितन्त्र पटल १
- सप्तपदी हृदयम्
- श्रीराधा सप्तशती अध्याय ६ भाग २
- श्रीराधा सप्तशती अध्याय ६
- पवननन्दनाष्टकम्
- श्रीपर शिवाष्टकम्
- श्रीराधा सप्तशती अध्याय ५
- रुद्रयामल तंत्र पटल २१
- ऐतरेय उपनिषद तृतीय अध्याय
- ऐतरेयोपनिषत् द्वितीय अध्याय
- ऐतरेयोपनिषद
- अमृतनाद उपनिषद
- श्रीराधा कृपाकटाक्ष स्तोत्र
- हंसगुह्य स्तोत्र
- श्रीराम रहस्य उपनिषद अध्याय ५
- श्रीरामरहस्योपनिषत् अध्याय ४
- रामरहस्योपनिषद् अध्याय ३
- श्रीरामरहस्योपनिषद् अध्याय २
- श्रीहनुमदुपनिषद्
- रुद्रयामल तंत्र पटल २०
- नीलकंठ अघोरास्त्र स्तोत्र
- मुण्डमाला तन्त्र
- मुण्डमालातन्त्र पटल १७
-
▼
November
(32)
Search This Blog
Fashion
Menu Footer Widget
Text Widget
Bonjour & Welcome
About Me
Labels
- Astrology
- D P karmakand डी पी कर्मकाण्ड
- Hymn collection
- Worship Method
- अष्टक
- उपनिषद
- कथायें
- कवच
- कीलक
- गणेश
- गायत्री
- गीतगोविन्द
- गीता
- चालीसा
- ज्योतिष
- ज्योतिषशास्त्र
- तंत्र
- दशकम
- दसमहाविद्या
- देवी
- नामस्तोत्र
- नीतिशास्त्र
- पञ्चकम
- पञ्जर
- पूजन विधि
- पूजन सामाग्री
- मनुस्मृति
- मन्त्रमहोदधि
- मुहूर्त
- रघुवंश
- रहस्यम्
- रामायण
- रुद्रयामल तंत्र
- लक्ष्मी
- वनस्पतिशास्त्र
- वास्तुशास्त्र
- विष्णु
- वेद-पुराण
- व्याकरण
- व्रत
- शाबर मंत्र
- शिव
- श्राद्ध-प्रकरण
- श्रीकृष्ण
- श्रीराधा
- श्रीराम
- सप्तशती
- साधना
- सूक्त
- सूत्रम्
- स्तवन
- स्तोत्र संग्रह
- स्तोत्र संग्रह
- हृदयस्तोत्र
Tags
Contact Form
Contact Form
Followers
Ticker
Slider
Labels Cloud
Translate
Pages
Popular Posts
-
मूल शांति पूजन विधि कहा गया है कि यदि भोजन बिगड़ गया तो शरीर बिगड़ गया और यदि संस्कार बिगड़ गया तो जीवन बिगड़ गया । प्राचीन काल से परंपरा रही कि...
-
रघुवंशम् द्वितीय सर्ग Raghuvansham dvitiya sarg महाकवि कालिदास जी की महाकाव्य रघुवंशम् प्रथम सर्ग में आपने पढ़ा कि-महाराज दिलीप व उनकी प...
-
रूद्र सूक्त Rudra suktam ' रुद्र ' शब्द की निरुक्ति के अनुसार भगवान् रुद्र दुःखनाशक , पापनाशक एवं ज्ञानदाता हैं। रुद्र सूक्त में भ...
Popular Posts
मूल शांति पूजन विधि
मार्तण्ड भैरव स्तोत्रम्
बालकृष्ण दशक
श्री बालकृष्ण दशकम्
Shri Bal Krishna dashakam
अधिकदम्ब-कदम्बक-सङ्कुल
बहु-विहङ्गम-सङ्ग-मनोहरे ।
तरणिजा-तट-मञ्जुल-कानने ।
मम विराजति मानसदैवतम् ॥ १ ॥
बहुत से पक्षियों के संगम से मनोहर
बने हुए यमुना नदी के तट वाले सुन्दर वन में बहुतेरे कदम्ब वृक्षों के
समूहों के झुरमुट के भीतर मेरे हृदय के देवता भगवान् श्रीकृष्ण
विराजमान हैं।
नव-पयोधर-मण्डल-मञ्जुलं
कनक-मञ्जुल-पीत-पटोज्ज्वलम् ।
चतुर वल्लव-यौवत-बल्लभं
मम विराजति मानस दैवतम् ॥ २ ॥
नए बादलों के मण्डल के समान मनोहर
(श्यामवर्ण वाले), सोने के समान
सुन्दर पीले वस्त्र से देदीप्यमान और ग्वालों की चतुर युवतियों के समूह के प्रियतम
मेरे हृदय के देवता श्रीबाल कृष्ण खूब शोभा पा रहे हैं।
अधि-पयो-दधि-मन्थन-मन्दिरं
सुनवनीत-लसन्मुख-चन्दिरम् ।
कुटिल-कुन्तल-पाशक- सुन्दरं
मम विराजति मानस दैवतम् ॥ ३ ॥
दूध दही का मन्थन करने के भवन के
भीतर माखन के खूब लेप से शोभायमान मुख से (देखने वालों को) अह्लाद देने वाले और
घुंघराले केशपाशों से सुन्दर बने हुए मेरे हृदय के देवता श्री गोपालकृष्ण
खूब शोभा पा रहे हैं।
नव-शिखावल-बर्ह-विभूषितं
नव-सरोरुह-पल्लव- लोचनम् ।
हरिण-नाभि-मदाङ्कित भालक
मम विराजति मानस दैवतम् ॥ ४ ॥
मयूर के नए पंखों के शेखर से
विभूषित,
ताजा कमल-पत्र जैसे नेत्रों वाले और कस्तूरी के तिलक से चिन्हित
माथे वाले मेरे हृदय के देवता श्री बाल गोपालकृष्ण खूब शोभा पा रहे हैं।
अधिशिरोऽधि-समुज्ज्वल-कौस्तुभा-
भरण- चारु-मयूख- विभिन्नया ।
विघृतयोज्ज्वलया वनमालया
मम विराजति मानस-दैवतम् ॥ ५ ॥
सिर के ऊपर पहने हुए,
बहुत अधिक चमकीले कौस्तुभ-मणि रूप अलंकार की सुन्दर किरणें जिसमें
बीच बीच में प्रविष्ट हुई हैं, इस प्रकार की तथा खूब चमकीली
बनी हुई, (गले में) पहनी हुई वनमाला से मेरे हृदय देवता श्री
बालकृष्ण खूब शोभा पा रहे हैं।
दलित-शीतकरोज्ज्वल-कान्तिमन्
मणिगणाञ्चित-हेम-किरीटकम् ।
रुचिर-कङ्कण-शोभि-कर-द्वयं
मम विराजति मानस दैवतम् ॥ ६ ॥
चन्द्रमा को
भी जिसने परास्त किया है, ऐसी खूब चमकीली
कान्ति वाले रत्नों की एक श्रेणी से जिनका सोने का मुकुट अलंकृत हुआ है तथा जिनके
दोनों हाथ अतीव सुन्दर कंकणों (कड़ों) से सुशोभित हो रहे हैं, ऐसे मेरे हृदय के देवता श्री बालगोपालकृष्ण खूब शोभा पा रहे हैं।
सुमुरली-रणना-तरली-कृत-
व्रज-वधूजन-मानस मण्डलम् ।
मणि-गणाञ्चित-काञ्चन-कुण्डलं
मम विराजति मानस-दैवतम् ॥ ७ ॥
मनोहर मुरली की गूंज से जिन्होंने
ब्रज गोकुल की युवती कुलस्त्रियों के हृदय मण्डलों में उथल पुथल मचा दी है
तथा जिनके कानों के कुण्डल रत्नों की श्रेणियों से अलंकृत हैं, ऐसे मेरे हृदय
देवता बाल गोपालकृष्ण खूब शोभा पा रहे हैं।
निज-मित-स्मित-मञ्जुल-माधुरी-
विदलितामृत-शीकर-वर्षणम् ।
मुनि-मनो-नयन-श्रुति-हर्षणं
मम विराजति मानस-दैवतम् ॥ ८ ॥
अपनी मन्द मन्द मुस्कराहट की
सुमनोहर मधुरिमा के द्वारा जिन्होंने अमृत के छींटों की वृष्टि को भी मात कर दिया
है और जो मुनियों के भी मन को, नेत्रों को और
कानों को आह्लादित करने वाले हैं, ऐसे मेरे हृदय के देवता बाल
गोपाल कृष्ण खूब शोभा पा रहे हैं।
निज-मनोहर भाषण चातुरी-
परवशीकृत-नन्द- हृदम्बुजम् ।
निज-नमज्जन-कामित-पूरणं
मम विराजति मानस-दैवतम् ॥ ९ ॥
बातें करने में अपनी मनोहर चतुराई
के द्वारा जिन्होंने नंद बाबा के हृदय रूपी कमल को परवश कर दिया है तथा जो अपने को
नमस्कार करने वाले भक्त जनों की कामनाओं को पूरा करने वाले हैं,
वे मेरे हृदय के देवता बाल गोपालकृष्ण खूब शोभा पा रहे हैं।
विकलया वृषभानुजया सह
व्रज-निकुञ्ज-विलास-परायणम् ।
सुतृण-चारण-पोषित गोकुलं
मम विराजति मानस-दैवतम् ॥ १० ॥
विरह से व्याकुल बनी हुई वृषभानु की
कन्या (राधिका) के साथ व्रज के कुञ्जों के भीतर प्रेमकला के विलास में लगे
रहते हुए और हरी हरी कोमल घास के चराने से गायों के समूहों को खूब पुष्ट बनाने
वाले मेरे हृदय के देवता बाल गोपाल कृष्ण खूब शोभा पा रहे हैं ।
श्री बालकृष्ण दशकम् लेखक परिचय
श्रीमद्विक्रम-भूपतेरथ गते
सिंहाधिपे वत्सरे
द्वादश्यां रवि-वासरे सित-दले
चैत्रे कुलोल्लासिना ।
काश्मीरान्तरनन्तनाग-सविधे ग्रामे
वराहाभिधे
विप्रेण ग्रथितां पठन् स्तुतिमिमां
पुष्णात्वभीष्टं जनः ॥११॥
श्री विक्रम संवत् १९८७ में,
चैत्र के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को, रविवार
के दिन, अपने वंश को उल्लास में लाने वाले तथा कुण्डलिनी
के सभी चक्रों की श्रेणी को उल्लास में लाने वाले, शास्त्रज्ञ
ब्राह्मण के द्वारा कश्मीर देश में अनन्त नाग के समीप वराह (व्राह) नामक ग्राम में
बनाई हुई इस स्तुति का पाठ करते हुए भक्तजन इससे अपने अभीष्ट प्रयोजनों को पुष्ट
करते रहें ।
अमृतवाग्भव-सूरि-विनिर्मिता
द्रुतविलम्बित वृत्त मनोहरा ।
पृथुक-कृष्ण-नुतिः पठतां नणां
प्रियमियं परिपूरयतां द्रुतम् ॥ १२
॥
अमृतवाग्भव नामक विद्वान् के द्वारा
'द्रुतविलम्बित' नामक छन्द में रची हुई, बालक श्रीकृष्ण की यह मनोहर स्तुति इसका पाठ करने वाले भक्तजनों के
अभीष्ट फल को अतिशीघ्र पूरा करती रहे ।
आचार्यामृतवाग्भव-विप्र-ग्रथितं
शुभप्रदं स्तोत्रम् ।
श्री बालकृष्ण दशकाभिधं पठन्नेतु
लोकः शम् ॥ १३ ॥
आचार्यामृतवाग्भव नामक शास्त्रज्ञ
ब्राह्मण के द्वारा रची गई इस "श्री बालकृष्ण दशक" नामक शुभप्रद स्तुति
का पाठ करते हुए लोग कल्याण को प्राप्त करते रहें ।
कृतिरियमाचार्यामृतवाग्भवस्य ।
यह बालकृष्ण दशक स्तोत्र आचार्य अमृतवाग्भव की रचना है ।
Related posts
vehicles
business
health
Featured Posts
Labels
- Astrology (7)
- D P karmakand डी पी कर्मकाण्ड (10)
- Hymn collection (38)
- Worship Method (32)
- अष्टक (55)
- उपनिषद (30)
- कथायें (127)
- कवच (61)
- कीलक (1)
- गणेश (25)
- गायत्री (1)
- गीतगोविन्द (27)
- गीता (34)
- चालीसा (7)
- ज्योतिष (32)
- ज्योतिषशास्त्र (86)
- तंत्र (182)
- दशकम (3)
- दसमहाविद्या (51)
- देवी (190)
- नामस्तोत्र (55)
- नीतिशास्त्र (21)
- पञ्चकम (10)
- पञ्जर (7)
- पूजन विधि (79)
- पूजन सामाग्री (12)
- मनुस्मृति (17)
- मन्त्रमहोदधि (26)
- मुहूर्त (6)
- रघुवंश (11)
- रहस्यम् (120)
- रामायण (48)
- रुद्रयामल तंत्र (117)
- लक्ष्मी (10)
- वनस्पतिशास्त्र (19)
- वास्तुशास्त्र (24)
- विष्णु (41)
- वेद-पुराण (691)
- व्याकरण (6)
- व्रत (23)
- शाबर मंत्र (1)
- शिव (55)
- श्राद्ध-प्रकरण (14)
- श्रीकृष्ण (22)
- श्रीराधा (2)
- श्रीराम (71)
- सप्तशती (22)
- साधना (10)
- सूक्त (30)
- सूत्रम् (4)
- स्तवन (109)
- स्तोत्र संग्रह (711)
- स्तोत्र संग्रह (6)
- हृदयस्तोत्र (10)
No comments: