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अगहन बृहस्पति व्रत व कथा
मार्तण्ड भैरव स्तोत्रम्
बगला कवच स्तोत्र
माँ बगलामुखी के इस बगला कवच और
स्तोत्र का जो पाठ करता है, उसकी सभी कामनाऐ होती
है।
बगला कवच स्तोत्रम्
बगला - मंत्र
ॐ ह्रीं बगलामुखि सर्व्वदुष्टानां
वाचं मुखं स्तम्भय जिह्वां कीलय कीलय बुद्धि नाशय ह्रीं ॐ स्वाहा ॥
इस षट्त्रिंशदक्षर मंत्र से
बगलामुखी की आराधना करे ।
बगलामुखी - ध्यान
मध्ये सुधाब्धिमणिमण्डयरत्न वेदी-
सिंहासनोपरिगतां परिपीतवर्णाम् ।
पीताम्बराभरणमाल्यविभूषिताङ्गीं
देवीं स्मरामि धृतमुद्गरवैरिजिह्वाम्
॥
जिह्वाग्रमादाय करेण देवीं वामेन
शत्रून् परिपीडयतीम् ।
गदाभिघातेन च दक्षिणेन
पीताम्बर।ढ्यां द्विभुजां नमामि ॥
सुधासागर में मणिमय मण्डप है,
उसमें रत्ननिर्मित वेदी के ऊपर सिंहासन है, बगलामुखी
देवी उसी सिंहासन पर विराजमान हैं । यह पीतवर्ण और पीले वस्त्र पहिरे हुई हैं,
पीतवर्ण के ही गहने और पीत- वर्ण की ही माला से विभूषित हैं,
इनके एक हाथ में मुद्गर और दूसरे हाथ में वैरी की जीभ है, यह बायें हाथ में शत्रु की जीभ का अग्रभाग धारण करके दहिने हाथ के गदाघात से
शत्रु को पीड़ित कर रही हैं। बगलामुखी देवी पीतवस्त्र से आवृत और दो भुजावाली हैं
।
बगला कवच स्तोत्र
बगलामुखी - यन्त्र
त्र्यस्त्रं षडस्त्रं
वृत्तमष्टदलपद्मभूपुरान्वितम् ।
प्रथम त्रिकोण और उसके बाहर षट्कोण
अंकित करके वृत्त और अष्टदल पद्म अंकित करें। उसके बहिर्भाग में भूपुर अंकित करके
यंत्र प्रस्तुत करे ।
बगलामुखी मन्त्र का जप होम
पीले वस्त्र पहिरे,
हल्दी की ग्रन्थि से निर्मित अर्थात् हल्दी की गांठें लगी माला से
नित्य एक लाख जप करें। और पीलेवर्ण के पुष्पों से उसका दशांश होम करें ।
बगला कवच स्तोत्रम्
बगला दशनामात्मक स्तोत्र
बगला सिद्धविद्या च
दुष्टनिग्रहकारिणी ।
स्तम्भिन्याकर्षिणी चैव
तथोच्चाटनकारिणी ॥
भैरवी भीमनयना महेशगृहिणी शुभा ।
दशानामात्मकं स्तोत्रं पठेद्वा
पाठयेद्यदि ॥
स भवेत् मंत्रसिद्धश्च देवीपुत्र इव
क्षितौ ॥
१ बगला,
२ सिद्धविद्या, ३ दुष्टनिग्रहकारिणी, ४ स्तम्भिनी, ५ आकर्षिणी, ६ उच्चाटनकारिणी,
७ भैरवी, ८ भीमनयना, ९ महेशगृहिणी
तथा १० शुभा । यह दशनामात्मक देवी स्तोत्र जो पुरुष पाठ करता है, अथवा दूसरे से पाठ कराता है, वह मन्त्रसिद्ध होकर
पार्वती के पुत्र की समान पृथ्वी में विचरण करता है ।
बगला कवच स्तोत्रम्
बगला कवच
ॐ ह्रीं मे हृदयं पातु पादौ
श्रीबगलामुखी ।
ललाटे सततं पातु दुष्टनिग्रहकारिणी
॥
ॐ ह्रीं'
यह बीज मेरे हृदय, श्रीबगलामुखी दोनों पैर और
दुष्टनिग्रहकारिणी सदा मेरे ललाट की रक्षा करें ।
रसनां पातु कौमारी भैरवी
चक्षुषोर्म्मम ।
कटौ पृष्टे महेशानी कर्णौ
शङ्करभामिनी ॥
कोमारी मेरी जीभ की,
भैरवी नेत्रों की महेशानी कमर तथा पीठ और महेशभामिनी कानों की रक्षा
करें ।
र्वाज्जितानि तु स्थानानि यानि च
कवचेन हि ।
तानि सर्व्वाणि में देवी सततं पातु
स्तम्भिनी ॥
जो जो स्थान कवच में नहीं कहे गये,
स्तम्भिनी देवी मेरे उन उन सब स्थानों की सदा रक्षा करें ।
अज्ञात्वा कवचं देवि यो
भजेद्बगलामुखीम् ।
शस्त्राघातमवाप्नोति सत्यं सत्यं न संशयः
॥
हे देवि ! इस कवच को बिना जाने जो
पुरुष बगलामुखी की उपासना करता है, उसकी
शस्त्राघात से मृत्यु होती है। इसमें संशय नहीं ।
इति: बगला कवच स्तोत्रम् ॥
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