भूतडामर तन्त्र पटल ८
डी०पी०कर्मकाण्ड के तन्त्र श्रृंखला
में आगमतन्त्र से भूतडामर महातन्त्र अथवा भूतडामरतन्त्र के पटल ७ में देवतामारण- प्रकार,
भैरवमारण-प्रकार, महाकालमारण-प्रकार को दिया गया, अब पटल ८ में चेटिकासाधन-विधि
वीरगणसिद्धि का वर्णन हुआ है।
भूतडामरतन्त्रम् अष्टम: पटल:
Bhoot Damar tantra patal 8
भूतडामर तन्त्र पटल ८
भूतडामरतन्त्र आठवां पटल
भूतडामर महातन्त्र
अथ अष्टमं पटलम्
उन्मत्त भैरव्युवाच
प्रमथेश ! महादेव ! वह्नीन्द्वर्कत्रिलोचन ! ।
यदि तुष्टोऽसि देवेश ! चेटिकासाधनं
वद ॥ १॥
उन्मत्तभैरवी कहती हैं-
हे प्रमथेश ! महादेव ! आपके तीन नेत्रों में क्रमशः चन्द्र,
सूर्य एवं अग्नि विराजमान हैं।
यदि आप मुझ पर प्रसन्न हैं, तब चेटिकासाधन का उपदेश
कीजिए । १॥
उन्मत्तभैरव उवाच
अथातः सम्प्रवक्ष्यामि
चेटिकासिद्धिसाधनम् ।
मनुष्याणां हितार्थाय क्रोधभूपेन
भाषितम् ।
आलस्यपापयुक्तानामाचार्य
गुरुघातिनाम् ।
धातुकं भवेद्राज्यं येन
क्रोधप्रसादतः ।
भूतिनी यक्षिणी नागकन्यका
गणभञ्जिकाः ।
भूत्वा चेट्योऽवतिष्ठन्ति
क्रोधमन्त्रस्य जापिनः ।
मन्त्रजापेन सिध्यन्ति नान्यथा यदि
चेटिकाः ।
क्रोधसम्पुटितो जप्तो मनुरासाश्च
सिध्यति ॥ २ ॥
उन्मत्त भैरव कहते हैं—अब मैं चेटिका साधन कहता हूँ। इसे क्रोधराज ने मानव के हितार्थं कहा है।
इस साधन में आलसी, पापकर्मरत तथा आचार्यघाती एवं गुरुघाती
आदि पापी भी त्रैलोक्य के अधिपति हो जाते हैं। क्रोधराज का मन्त्र जप करने से
भूतिनी, यक्षिणी, नागकन्याएँ तथा
गणभंजिकाएँ भी दासी होकर सदा साधक के पास रहती हैं। यदि केवल मन्त्रजप से सिद्धि न
मिले तब मन्त्र को क्रोधमन्त्र से सम्पुटित करके जप करने से तत्क्षण सिद्धि मिल
जाती है ॥ २ ॥
हालाहलं समुद्धृत्य रौद्रबीजमतः
परम् ।
कालबीजं त्रिधा कटुद्वयं हालाहलं
पुनः ।
अमुकच त्रिधा क्रोधबीजं तारं
कलान्वितम् ।
अनेन सहितं मन्त्र जपेदष्टसहस्रकम्
।
भूतिन्यो दास्यतां यान्ति
शीघ्रमागत्य नान्यथा ।
अक्ष्णि मूनि स्फुटत्याशु कुर्वन्ति
यदि नान्यथा ।
नाशयेत् सकलान् गोत्रान्
क्रोधराजस्य जापतः ॥ ३ ॥
ॐ ह्रौं क्रं क्रं क्रं कटु कटु ॐ
अमुकं( यहाँ उस व्यक्ति के नाम का
उच्चारण करे ) क्रं क्रं क्रं ॐ अ:" इसका ८००० जप करने से समस्त
भूतिनियाँ शीघ्र आकर दासी बन जाती हैं। आगमन न करने से भूतिनीगण के नेत्र तथा
मस्तक फूट जाते हैं। क्रोधराज का मन्त्र जप करने से समस्त शत्रुकुल विनष्ट हो जाते
हैं ।। ३ ।।
गोरोचनेन संलिख्य भूतिनीप्रतिमां
शुभाम् ।
आक्रम्य वामपादेन जपेदष्टसहस्रकम् ।
हा हा ही ही महाशब्देनागत्यापि
ब्रवीति च ।
भो भोः किमाज्ञापयसि चेटी त्वं भव
साधकः ।
चेटीकर्म करोत्येवं यावदायुश्च
भूतिनी ॥ ४ ॥
भूतिनी की प्रतिच्छवि को गोरोचन से
अंकित करके उसे बायें पैर से दबाकर आठ हजार मन्त्र का जप करे। इससे भूतिनी हा हा
ही ही रूपी महा- शब्द करती हुई आती हैं और साधक से पूछती हैं क्या कार्य है ?
आज्ञा करो । तब साधक कहे कि तुम मेरी दासी बनकर जीवनपर्यन्त रहो ॥ ४
॥
गोरोचनेन संलिख्य भूतिनीप्रतिमामिमाम्
।
आक्रम्य वामपादेन जपेदष्टसहस्रकम् ।
क्षणादेव समायाति यदि नायाति
सम्मुखे ।
सर्षपैस्ताडये
दुच्चैर्मन्त्रमेनमुदीरयेत् ।
तारं भूतेश्वरीबीजं क्रोधबीजत्रयं
ततः ।
मम शत्रू नितिपदं मारयद्वयमीरयेत् ।
बीजं प्राथमिकं कूर्च बीजमादाय
संयुतम् ।
एवमुच्चारिते तीव्रजवेनाक्रमिता सती
।
म्रियते भूतिनी
जीवेन्मृताक्षौद्राभिषेचनात् ।
एवं सा जीविता
दद्याद्वस्त्रालङ्कारभोजनम् ।
दासीकर्म करोत्येवं
वज्रपाणिप्रसादतः ॥ ५ ॥
भूतिनी की छवि गोरोचन से अंकित करके
उसे बायें पैर से आक्रान्त करते हुए ८००० मन्त्र का जप करे। जपान्त तत्क्षण भूतिनी
आती हैं । यदि वे न आये तब 'ॐ ह्रीं कं कं
कं मम शत्रून् मारय मारय ह्रीं हूं अः' मन्त्र से सफेद सरसों से भूतिनी की प्रतिमा का ताड़न करे। इससे भूतिनी
जल्दी से आ जाती हैं। यदि उक्त ताड़ना से भूतिनी की मृत्यु हो जाये तब मधु द्वारा उसके
अंगों का सिंचन करे। भूतिनी जीवित होकर वस्त्र, अलंकार,
भोजन देती हैं और साधक की दासी बन जाती है ॥ ५ ॥
विहारद्वारमागत्य जपेदष्टसहस्रकम् ।
यामिन्यां कुञ्जरवती भूतिन्यायाति
तोषिता ।
बलिदानैर्वदेद् वत्स ! किमाज्ञापयसि
स्फुटम् ।
साधकेनापि वक्तव्यं मातृवत् परिपालय
।
अनौपम्यानि वस्त्राणि भोज्यानि
भूषणानि च ।
ददाति कुञ्जरवती म्रियते
शुष्यतेऽन्यथा ॥ ६ ॥
विहार गृह के द्वार पर बैठकर ८०००
मन्त्र का जप करे। उस समय भूतिनी हाथी पर बैठकर आती हैं। तब साधक उन्हें बलि पूजा
आदि प्रदान करे। भूतिनी प्रसन्न होकर कहती हैं- "तुम्हारा क्या कार्य करूँ ?
स्पष्ट कहो" । साधक कहे- 'आप माता के
समान मेरा पालन करें' । भूतिनी साधक को अनुपम कपड़े, नाना व्यंजन, नाना आभूषणादि देती है। यदि ऐसा न करे
तब भूतिनी मर जाती है या उसकी देह सूख जाती है ॥ ६ ॥
इति भूतडामरमहातन्त्रे चेटिकासाधनविधिरष्टमं
पटलम् ।
भूतडामर महातन्त्र का आठवां पटल
समाप्त ।
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