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कर्मकाण्ड

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भूतडामर तन्त्र पटल ९

भूतडामर तन्त्र पटल ९       

डी०पी०कर्मकाण्ड के तन्त्र श्रृंखला में आगमतन्त्र से भूतडामर महातन्त्र अथवा  भूतडामरतन्त्र के पटल ८ में चेटिकासाधन-विधि वीरगणसिद्धि को दिया गया, अब पटल ९ में भूतिनी साधन का वर्णन हुआ है।

भूतडामर तन्त्र पटल ९

भूतडामरतन्त्रम् नवम: पटल:

Bhoot Damar tantra patal 9

भूतडामर तन्त्र पटल ९        

भूतडामरतन्त्र नौवां पटल 

भूतडामर महातन्त्र

अथ नवमं पलम्

उन्मत्तभैरव्युवाच

व्योमवक्त्र ! महाकाय ! सृष्टिस्थितिलयात्मक ! ।

भूतिनीसाधनं ब्रूहि कृपा ते यदि वर्त्तते ॥ १ ॥

उन्मत्त भैरवी भैरव से जिज्ञासा करती हैं- हे व्योमवक्त्र ! हे महाकाय ! हे सृष्टिस्थितिलयकारक ! यदि आपकी कृपा मुझ पर है तब मुझसे भूतनी- साधन कहें ॥ १ ॥

उन्मत्तभैरव उवाच

भूतिनीसाधनं वक्ष्ये क्रोधराजेन भाषितम् ।

दरिद्राणां हितार्थाय संसारार्णवतारकम् ।। २ ।।

उन्मत्तभैरव कहते हैंहे भैरवी! दरिद्रों के हितार्थ मैं क्रोधराज द्वारा कहा गया भूतिनी-साधन कहता हूँ, तुम सुनो। यह भूतिनी साधन संसार- सागर से छुटकारा दिलाने वाला है ।। २ ।।

सा भूतिनी कुण्डलधारिणी च सिन्दूरिणी चाप्यथ हारिणी च ।

नटी तथा चातिनी च चेटिका कामेश्वरी चापि कुमारिका च ॥

भार्यामातृभगिन्यश्च स्वेच्छयैव भवन्ति हि ॥ ३ ॥

'भूतिनीदेवी कुण्डलधारिणी, सिन्दूरिणी, हारिणी, नटी, अतिनटी, चेटिका, कामेश्वरी तथा कुमारिका आदि नाना रूप धारण करके साधक की इच्छा के अनुसार भार्या, माता, बहन आदि रूप से साधक की अभिलाषाओं को पूर्ण पूर्ण करती हैं ।। ३ ।।

चम्पावृक्षतले रात्रौ जपेदष्टसहस्रकम् ।

दिनानि त्रीणि जपान्त उदारार्चनमाचरेत् ।

धूपश्च गुग्गुलुं दत्वा पुनारात्री जपेन्मनुम् ।

अर्धरात्रिगते देवी समागच्छति भूतिनी ।

दद्याद्गन्धोदकेनायं तुष्टा मात्रादिका भवेत् ।

मातेत्यष्टशतानाश्च वस्त्रालङ्कारभोजनम् ।

भगिनी चेत्तदा नारीं दूरादाकृष्य सुन्दरीम् ।

रसं रसाञ्जनं दिव्यं विधानश्च प्रयच्छति ।

भार्या च पृष्ठमारोप्य स्वर्गं नयति कामिता ।

दीनाराणां सहस्राणि नित्यं रसरसायनम् ।

भोजनं कामितं देवी साधकाय प्रयच्छति ॥ ४ ॥

रात्रि में चम्पावृक्ष के नीचे भूतिनी मन्त्र का ८००० जप करना चाहिए । ३ दिन जप करके महापूजा करे। तदनन्तर गुग्गुलु की धूप देकर पुनः मन्त्र जपे । तब अर्धरात्रि में भूतिनी देवी आती हैं। उन्हें चन्दन के पानी का अर्ध्य देना चाहिए। भूतिनी देवी प्रसन्न होकर साधक की इच्छा से माता, पत्नी या बहन बन जाती हैं। माता होने पर ८०० वस्त्र, अलंकार तथा भोजन देती हैं। भगिनी की स्थिति में सुन्दर स्त्री, नाना रसायन तथा भोज्य वस्तु देती हैं। भार्या की स्थिति में साधक को पीठ पर बैठाकर स्वर्ग ले जाती हैं और नित्य १००० स्वर्णमुद्रा तथा नानाविध रस, रसायन तथा भोजन द्रव्य भी देती हैं ॥ ४ ॥

रात्रौ गत्वा श्मशाने च जपेदष्टसहस्रकम् ।

जपान्ते कुण्डलवती समागच्छति सन्निधिम् ।

रुधिरार्येण सन्तुष्टा मातृवत् पालयत्यपि ।

पञ्चविंशतिदीनारं ददाति म्रियतेऽन्यथा ।। ५ ।।

रात्रि के समय श्मशान में जाकर ८००० जप करे। जपान्त में कुण्डल धारण की हुई भूतिनी साधक के पास आती है। उन्हें रक्त का अर्घ्य देना चाहिए। इससे देवी प्रसन्न होकर साधक का माता के समान पालन करती हैं और २५ स्वर्णमुद्राओं को उसे अर्पित करती हैं। ऐसा न करने पर भूतिनी की मृत्यु हो जाती है ॥ ५ ॥

शून्ये देवालये रात्री जपेदष्टसहस्रकम् ।

सिन्दूरिणी समायाति भार्याकर्म करोति च ।

वस्त्रादिभोजनं तुष्टा द्वादशेऽह्नि प्रयच्छति ।

पञ्चविंशतिदीनारं भोज्यश्वापि रसायनम् ॥ ६ ॥

शून्य देवालय में बैठकर रात्रि में ८००० जप करे। इससे सिन्दूरिणी देवी आकर उपासक के साथ भार्या का व्यवहार करती हैं। १२ दिनों में प्रसन्न होकर वस्त्र, भोजन आदि पदार्थ, २५ सुवर्णमुद्राएँ तथा रसायन भी देती हैं ।। ६ ।।

गत्वेकलिङ्गं यामिन्यां जपेदष्टायुतं ततः ।

हारिणी शीघ्रमागत्य ब्रवीति किं करोमि च ।

साधकेनापि वक्तव्यं भार्या भव सुशोभने ! ।

कामिताष्टी दीनाराणि भोज्यं यच्छति कामिनी ॥ ७ ॥

एक शिवलिंग के समीप जाकर रात्रि में ८०००० जप करे उससे हारिणी देवी शीघ्र आकर पूछती हैं कि मैं क्या करूँ ? साधक को कहना चाहिए कि आप मेरी भार्या बनें। भूतिनी सन्तुष्ट होकर ८ स्वर्णमुद्राएँ तथा भोज्यवस्तु उसे अर्पित करती हैं ॥ ७ ॥

वज्रपाणिगृहं गत्वा सन्निधौ प्रतिमां लिखेत् ।

करवीरसुमं दत्त्वा जपेदष्टसहस्रकम् ।

नट्यार्द्धरात्र आयाति साधकस्यान्तिके वशात् ।

सरक्तचन्दनेनायं दत्त्वाऽऽज्ञापयसीति किम् ।

वक्तव्यं साधकेनापि किङ्करी मे भवेति च ।

वस्त्रालङ्करणं भोज्यमन्वहं प्रतियच्छति ।

व्ययं सर्वं प्रकर्त्तव्यं न किश्विद्धारयेद् गृहे ॥ ८ ॥

वज्रपाणि के मन्दिर में जाकर एक प्रतिमा बनाये। उसकी अर्चना कनेर के पुष्पों द्वारा करके ८००० जप करे। इस प्रकार जप करने पर अर्धरात्रि में नटी देवी आती हैं। उन्हें रक्तचन्दन- मिश्रित जल का अर्घ्य प्रदान करना चाहिए। इससे देवी प्रसन्न होकर साधक से कार्य पूछती हैं। तब साधक कहे — 'हे देवी! तुम मेरी दासी हो जाओ'। देवी साधक की दासी बनकर प्रतिदिन वस्त्र, अलंकार तथा भोजन आदि पदार्थ देती है। इसको उसी दिन खर्च कर देना चाहिए, बचाकर नहीं रखना चाहिए ।। ८ ।।

नीचगासङ्गमं गत्वा जपेदष्टसहस्रकम् ।

सप्तदिनावसानेषु पूजां कुर्यादनुत्तमाम् ।

तिरोभावं गते सूर्ये धूपयेच्चन्दनेन च ।

जपेद् यावदर्द्धरात्रं समायाति महानटी ।

आगता सा भवेद् भार्या नित्यं स्वर्णपल शतम् ।

प्रभाते याति सन्त्यज्य सर्वशेषं व्ययेद् बुधः ।

तद्द्व्ययाभावतो भूयो न ददाति प्रकुप्यति ।। ९ ॥

नदी के संगमस्थल पर जाकर ८००० मूल मन्त्र जपे । ऐसा ७ दिन तक करे और जपान्त में विविध उपचारों से देवी का पूजन करे। सूर्य अस्त होने पर चन्दन की धूप जलाये । तदनन्तर अर्धरात्रि तक जप करने से महानटी आती हैं। वे भार्या होकर साधक को नित्य १०० पल ( ४०० तोला ) स्वर्ण प्रदान करती हैं। प्रभात होते ही वे लौट जाती हैं। साधक को प्रतिदिन स्वर्ण को खर्च कर देना चाहिए, अन्यथा महानटी कुपित होकर स्वर्ण देना बन्द कर देती हैं ॥ ९ ॥

यामिन्यां स्वगृहद्वारे जपेदष्टसहस्रकम् ।

त्र्यहं यावज्जपान्तेऽसौ समायात्यन्तिके पुनः ।

चेटीकर्म करोत्येवं गृहसंस्कारकर्म च ।

करोति क्षेत्रजं कर्म वज्रपाणिप्रसादतः ॥ १० ॥

रात्रि में अपने घर के द्वार पर बैठकर ८००० जप करे। ३ दिन ऐसा करने पर भूतिनी साधक के पास आकर घर की सफाई आदि सम्पूर्ण दासीकर्म करती है ॥ १० ॥

गत्वा मातृगृहं रात्री मत्स्यमांसं प्रदापयेत् ।

सहस्रन्तु जपेत् कामेश्वरीं सप्तदिनावधि ।

आगता यदि चेद्भक्त्याऽर्येण सन्तोषिता सती ।

वदेत् किमाज्ञापयसि भव भार्या प्रिया मम ।

आशाश्च पूरयत्येवं राज्यं यच्छति कामिता ॥ ११ ॥

रात्रि में मातृगृह ( देवी के मन्दिर ) में जाकर मांस-मछली देकर सात दिनों तक ) १००० जप करे। इससे कामेश्वरी देवी आती हैं। उनके आने पर साधक भक्तियुक्त हो अर्घ्य प्रदान करे। इससे देवी सन्तुष्ट होकर कार्य पूछती हैं, तब साधक कहे कि आप मेरी भार्या बनें। इससे देवी प्रसन्न होकर साधक की समस्त आकांक्षाएं पूर्ण करती हैं और कामना करने पर राज्य भी देती हैं ॥। ११ ॥

रात्रौ देवगृहं गत्वा शुभां शय्यां प्रकल्पयेत् ।

जातीपुष्पेण वस्त्रेण सितगन्धेन पूजयेत् ।

धूपञ्च गुग्गुलुं दत्त्वा जपेदष्टसहस्रकम् ।

जपान्ते शीघ्रमायाति चुम्बत्यालिङ्गयत्यपि ।

सर्वालङ्कारसंयुक्ता सम्भोगादिसमन्विता ।

यच्छत्यष्टौ दीनाराणि भार्या भवति कामिता ।

वाससी भोजनं दिव्यं कामितश्च रसायनम् ।

कुबेरस्य गृहादेव द्रव्यमाकृष्य यच्छति ।

इत्याह भगवान् क्रोधभूपतिः स्वयमेव हि ॥ १२ ॥

वहीं रात्रि के समय किसी देवालय में जाकर उत्तम शय्या बनाकर चमेली, वस्त्र तथा सफेद चन्दन से पूजन करे। तदनन्तर गुग्गुलु से धूपित करके ८००० जप करे । जपान्त में देवी आकर साधक का चुम्बन, आलिंगन लेती हैं। नाना अलंकार से सुशोभना होकर भार्या रूप से सम्भोगादि के पश्चात् साधक को ८ स्वर्णमुद्रा, दो वस्त्र, मनोहर भोजन तथा कुबेर के खजाने से धन को लाकर देती हैं। भगवान् क्रोधराज ने स्वयं यह साधना प्रकार कहा है ।। १२ ।।

इति भूतडामरमहातन्त्रे भूतिनीसाधनं नाम नवमं पटलम् ।

भूतडामर महातन्त्र का भूतिनीसाधन नामक नवम पटल समाप्त ।।

आगे पढ़ें.................. भूतडामरतन्त्र पटल 10   

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