कुबेर मंत्र – चालीसा - आरती
मानव जीवन जीने के लिए धन की आवाश्यकता होती है। धन प्राप्ति के लिए मानव विभिन्न प्रकार से धन की अधिष्ठात्री माँ लक्ष्मी का पुजा, जप, हवन आदि करते या कराते हैं और माँ लक्ष्मी प्रसन्न होकर उन्हे धन देती है, परंतु माता लक्ष्मी से प्राप्त धन स्थिर नहीं होता है, इसलिए वह चंचला भी कही जाती हैं। जबकि कुबेर से प्राप्त धन स्थिर होता है, इसलिए धनतेरस को इनकी पूजा करने से घर धन-धान्य से परिपूर्ण रहता है। कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को धनतेरस या धन त्रयोदशी कहा जाता है। भगवान शिव से कुबेर को धनपति होने का वरदान प्राप्त है और वे भगवान शिव के परम सेवक भी हैं। भगवान शिव से वरदान प्राप्त होने के कारण पृथ्वी की संपूर्ण धन और संपदा के मालिक हैं। इस कारण से धन त्रयोदशी के दिन विधि विधान से पूजा करके कुबेर को प्रसन्न किया जाता है। अतः अपने धन को स्थायित्व देने के लिए माँ लक्ष्मी के साथ ही कुबेर की की भी आराधना अवश्य करें। कुबेर की प्रसन्नता के लिए कुबेर मंत्र, कुबेर चालीसा, कुबेर आरती आदि करें।
कुबेर -
कुबरे रावण के
सौतेले भाई थे। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार, कुबेर का दूसरा नाम वैश्रवण है। वह महर्षि विश्रवा और
महामुनि भरद्वाज की पुत्री इड़विड़ा के बेटे थे। विश्रवा की दूसरी पत्नी कैकसी से
रावण, कुंभकर्ण व विभीषण का जन्म हुआ था। ऐसी मान्यता है कि कुबेर
कुरूप हैं। उनके ३(तीन) पैर और ८(आठ) दांत हैं। बेडौल और मोटी काया के कारण इनको
राक्षस भी कहा गया है। इनको यक्ष भी कहा जाता है। यक्ष धन का रक्षक माना जाता है,
इसलिए खजानों
या मंदिरों के बाहर कुबेर की प्रतिमाएं लगाई हुई मिलती हैं।
धनतेरस या
अन्य दिवस के दिन शुभ मुहूर्त में पूजा स्थान पर कुबरे की मूर्ति या तस्वीर
स्थापित करें। यदि ऐसा संभव न हो तो अपनी तिजोरी को कुबेर मानकर पूजा करें। कुबेर
खजाने के प्रतीक माने जाते हैं। फिर कुबेर मंत्र का जाप करें और अंत में विधि
पूर्वक आरती करें।
कुबेर मंत्र-
ओम श्रीं, ओम ह्रीं श्रीं, ओम ह्रीं श्रीं क्लीं वित्तेश्वराय: नम:।
श्री कुबेर चालीसा
॥ दोहा ॥
जैसे अटल
हिमालय और जैसे अडिग सुमेर ।
ऐसे ही स्वर्ग
द्वार पै, अविचल खड़े कुबेर ॥
विघ्न हरण
मंगल करण, सुनो शरणागत की टेर ।
भक्त हेतु
वितरण करो, धन माया के ढ़ेर ॥
॥ चौपाई ॥
जै जै जै श्री
कुबेर भण्डारी ।
धन माया के
तुम अधिकारी ॥
तप तेज पुंज
निर्भय भय हारी ।
पवन वेग सम सम
तनु बलधारी ॥
स्वर्ग द्वार
की करें पहरे दारी ।
सेवक इंद्र
देव के आज्ञाकारी ॥
यक्ष यक्षणी
की है सेना भारी ।
सेनापति बने
युद्ध में धनुधारी ॥
महा योद्धा बन
शस्त्र धारैं ।
युद्ध करैं
शत्रु को मारैं ॥
सदा विजयी कभी
ना हारैं ।
भगत जनों के
संकट टारैं ॥
प्रपितामह हैं
स्वयं विधाता ।
पुलिस्ता वंश
के जन्म विख्याता ॥
विश्रवा पिता
इडविडा जी माता ।
विभीषण भगत
आपके भ्राता ॥
शिव चरणों में
जब ध्यान लगाया ।
घोर तपस्या
करी तन को सुखाया ॥
शिव वरदान
मिले देवत्य पाया ।
अमृत पान करी
अमर हुई काया ॥
धर्म ध्वजा
सदा लिए हाथ में ।
देवी देवता सब
फिरैं साथ में ॥
पीताम्बर
वस्त्र पहने गात में ।
बल शक्ति पूरी
यक्ष जात में ॥
स्वर्ण
सिंहासन आप विराजैं ।
त्रिशूल गदा
हाथ में साजैं ॥
शंख मृदंग
नगारे बाजैं ।
गंधर्व राग
मधुर स्वर गाजैं ॥
चौंसठ योगनी
मंगल गावैं ।
ऋद्धि सिद्धि
नित भोग लगावैं ॥
दास दासनी सिर
छत्र फिरावैं ।
यक्ष यक्षणी
मिल चंवर ढूलावैं ॥
ऋषियों में
जैसे परशुराम बली हैं ।
देवन्ह में
जैसे हनुमान बली हैं ॥
पुरुषोंमें
जैसे भीम बली हैं ।
यक्षों में
ऐसे ही कुबेर बली हैं ॥
भगतों में
जैसे प्रहलाद बड़े हैं ।
पक्षियों में
जैसे गरुड़ बड़े हैं ॥
नागों में
जैसे शेष बड़े हैं ।
वैसे ही भगत
कुबेर बड़े हैं ॥
कांधे धनुष
हाथ में भाला ।
गले फूलों की
पहनी माला ॥
स्वर्ण मुकुट
अरु देह विशाला ।
दूर दूर तक
होए उजाला ॥
कुबेर देव को
जो मन में धारे ।
सदा विजय हो
कभी न हारे ।
बिगड़े काम बन
जाएं सारे ।
अन्न धन के
रहें भरे भण्डारे ॥
कुबेर गरीब को
आप उभारैं ।
कुबेर कर्ज को
शीघ्र उतारैं ॥
कुबेर भगत के
संकट टारैं ।
कुबेर शत्रु
को क्षण में मारैं ॥
शीघ्र धनी जो
होना चाहे ।
क्युं नहीं
यक्ष कुबेर मनाएं ॥
यह पाठ जो
पढ़े पढ़ाएं ।
दिन दुगना
व्यापार बढ़ाएं ॥
भूत प्रेत को
कुबेर भगावैं ।
अड़े काम को
कुबेर बनावैं ॥
रोग शोक को
कुबेर नशावैं ।
कलंक कोढ़ को
कुबेर हटावैं ॥
कुबेर चढ़े को
और चढ़ादे ।
कुबेर गिरे को
पुन: उठा दे ॥
कुबेर भाग्य
को तुरंत जगा दे ।
कुबेर भूले को
राह बता दे ॥
प्यासे की
प्यास कुबेर बुझा दे ।
भूखे की भूख
कुबेर मिटा दे ॥
रोगी का रोग
कुबेर घटा दे ।
दुखिया का दुख
कुबेर छुटा दे ॥
बांझ की गोद
कुबेर भरा दे ।
कारोबार को
कुबेर बढ़ा दे ॥
कारागार से
कुबेर छुड़ा दे ।
चोर ठगों से
कुबेर बचा दे ॥
कोर्ट केस में
कुबेर जितावै ।
जो कुबेर को
मन में ध्यावै ॥
चुनाव में जीत
कुबेर करावैं ।
मंत्री पद पर
कुबेर बिठावैं ॥
पाठ करे जो
नित मन लाई ।
उसकी कला हो
सदा सवाई ॥
जिसपे प्रसन्न
कुबेर की माई ।
उसका जीवन चले
सुखदाई ॥
जो कुबेर का
पाठ करावै ।
उसका बेड़ा
पार लगावै ॥
उजड़े घर को
पुन: बसावै ।
शत्रु को भी
मित्र बनावै ॥
सहस्त्र
पुस्तक जो दान कराई ।
सब सुख भोद
पदार्थ पाई ॥
प्राण त्याग
कर स्वर्ग में जाई ।
मानस परिवार
कुबेर कीर्ति गाई ॥
॥ दोहा ॥
शिव भक्तों
में अग्रणी, श्री यक्षराज कुबेर ।
हृदय में
ज्ञान प्रकाश भर, कर दो दूर अंधेर ॥
कर दो दूर
अंधेर अब, जरा करो ना देर ।
शरण पड़ा हूं
आपकी, दया की दृष्टि फेर ।
॥ इति श्री कुबेर चालीसा समाप्त ॥
श्री कुबेर आरती
ऊँ जै यक्ष
कुबेर हरे ,
स्वामी जै
यक्ष जै यक्ष कुबेर हरे।
शरण पड़े
भगतों के,
भण्डार कुबेर
भरे।
॥ ऊँ जै यक्ष
कुबेर हरे…॥
शिव भक्तों
में भक्त कुबेर बड़े,
स्वामी भक्त
कुबेर बड़े ।
दैत्य दानव मानव
से,
कई-कई युद्ध
लड़े ॥
॥ ऊँ जै यक्ष
कुबेर हरे…॥
स्वर्ण
सिंहासन बैठे,
सिर पर छत्र
फिरे,
स्वामी सिर पर
छत्र फिरे ।
योगिनी मंगल
गावैं,
सब जय जय कार
करैं॥
॥ऊँ जै यक्ष
कुबेर हरे…॥
गदा त्रिशूल
हाथ में,
शस्त्र बहुत
धरे,
स्वामी शस्त्र
बहुत धरे ।
दुख भय संकट मोचन,
धनुष टंकार
करें॥
॥ऊँ जै यक्ष
कुबेर हरे…॥
भांति भांति
के व्यंजन बहुत बने,
स्वामी व्यंजन
बहुत बने।
मोहन भोग
लगावैं,
साथ में उड़द
चने॥
॥ऊँ जै यक्ष
कुबेर हरे…॥
बल बुद्धि
विद्या दाता,
हम तेरी शरण
पड़े,
स्वामी हम
तेरी शरण पड़े अपने भक्त जनों के ,
सारे काम संवारे॥
॥ऊँ जै यक्ष
कुबेर हरे…॥
मुकुट मणी की
शोभा,
मोतियन हार
गले,
स्वामी मोतियन
हार गले।
अगर कपूर की
बाती,
घी की जोत
जले॥
॥ऊँ जै यक्ष
कुबेर हरे…॥
यक्ष कुबेर जी
की आरती ,
जो कोई नर
गावे,
स्वामी जो कोई
नर गावे ।
कहत प्रेमपाल
स्वामी,
मनवांछित फल
पावे।
॥ इति श्री
कुबेर आरती समाप्त ॥
इति श्री
कुबेर मंत्र, कुबेर चालीसा, कुबेर आरती समाप्त
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