Slide show
Ad Code
JSON Variables
Total Pageviews
Blog Archive
-
▼
2022
(523)
-
▼
December
(58)
- रुद्रयामल तंत्र पटल २८
- अष्ट पदि ३ माधव उत्सव कमलाकर
- कमला स्तोत्र
- मायातन्त्र पटल ४
- योनितन्त्र पटल ८
- लक्ष्मीस्तोत्र
- रुद्रयामल तंत्र पटल २७
- मायातन्त्र पटल ३
- दुर्गा वज्र पंजर कवच
- दुर्गा स्तोत्र
- योनितन्त्र पटल ७
- गायत्री होम
- लक्ष्मी स्तोत्र
- गायत्री पुरश्चरण
- योनितन्त्र पटल ६
- चतुःश्लोकी भागवत
- भूतडामरतन्त्रम्
- भूतडामर तन्त्र पटल १६
- गौरीशाष्टक स्तोत्र
- योनितन्त्र पटल ५
- भूतडामर तन्त्र पटल १५
- द्वादश पञ्जरिका स्तोत्र
- गायत्री शापविमोचन
- योनितन्त्र पटल ४
- रुद्रयामल तंत्र पटल २६
- मायातन्त्र पटल २
- भूतडामर तन्त्र पटल १४
- गायत्री वर्ण के ऋषि छन्द देवता
- भूतडामर तन्त्र पटल १३
- परापूजा
- कौपीन पंचक
- ब्रह्मगायत्री पुरश्चरण विधान
- भूतडामर तन्त्र पटल १२
- धन्याष्टक
- रुद्रयामल तंत्र पटल २५
- भूतडामर तन्त्र पटल ११
- योनितन्त्र पटल ३
- साधनपंचक
- भूतडामर तन्त्र पटल १०
- कैवल्याष्टक
- माया तन्त्र पटल १
- भूतडामर तन्त्र पटल ९
- यमुना अष्टक
- रुद्रयामल तंत्र पटल २४
- भूतडामर तन्त्र पटल ८
- योनितन्त्र पटल २
- भूतडामर तन्त्र पटल ७
- आपूपिकेश्वर स्तोत्र
- भूतडामर तन्त्र पटल ६
- रुद्रयामल तंत्र पटल २३
- भूतडामर तन्त्र पटल ५
- अवधूत अभिवादन स्तोत्र
- भूतडामर तन्त्र पटल ४
- श्रीपरशुराम स्तोत्र
- भूतडामर तन्त्र पटल ३
- महागुरु श्रीकृष्ण स्तोत्र
- रुद्रयामल तंत्र पटल २२
- गायत्री सहस्रनाम
-
▼
December
(58)
Search This Blog
Fashion
Menu Footer Widget
Text Widget
Bonjour & Welcome
About Me
Labels
- Astrology
- D P karmakand डी पी कर्मकाण्ड
- Hymn collection
- Worship Method
- अष्टक
- उपनिषद
- कथायें
- कवच
- कीलक
- गणेश
- गायत्री
- गीतगोविन्द
- गीता
- चालीसा
- ज्योतिष
- ज्योतिषशास्त्र
- तंत्र
- दशकम
- दसमहाविद्या
- देवी
- नामस्तोत्र
- नीतिशास्त्र
- पञ्चकम
- पञ्जर
- पूजन विधि
- पूजन सामाग्री
- मनुस्मृति
- मन्त्रमहोदधि
- मुहूर्त
- रघुवंश
- रहस्यम्
- रामायण
- रुद्रयामल तंत्र
- लक्ष्मी
- वनस्पतिशास्त्र
- वास्तुशास्त्र
- विष्णु
- वेद-पुराण
- व्याकरण
- व्रत
- शाबर मंत्र
- शिव
- श्राद्ध-प्रकरण
- श्रीकृष्ण
- श्रीराधा
- श्रीराम
- सप्तशती
- साधना
- सूक्त
- सूत्रम्
- स्तवन
- स्तोत्र संग्रह
- स्तोत्र संग्रह
- हृदयस्तोत्र
Tags
Contact Form
Contact Form
Followers
Ticker
Slider
Labels Cloud
Translate
Pages
Popular Posts
-
मूल शांति पूजन विधि कहा गया है कि यदि भोजन बिगड़ गया तो शरीर बिगड़ गया और यदि संस्कार बिगड़ गया तो जीवन बिगड़ गया । प्राचीन काल से परंपरा रही कि...
-
रघुवंशम् द्वितीय सर्ग Raghuvansham dvitiya sarg महाकवि कालिदास जी की महाकाव्य रघुवंशम् प्रथम सर्ग में आपने पढ़ा कि-महाराज दिलीप व उनकी प...
-
रूद्र सूक्त Rudra suktam ' रुद्र ' शब्द की निरुक्ति के अनुसार भगवान् रुद्र दुःखनाशक , पापनाशक एवं ज्ञानदाता हैं। रुद्र सूक्त में भ...
Popular Posts
मूल शांति पूजन विधि
मार्तण्ड भैरव स्तोत्रम्
कैवल्याष्टक
डी०पी०कर्मकाण्ड के स्तोत्र श्रृंखला में इस कैवल्याष्टक में जगत् में केवल हरि का नाम ही सार है, सत्य है। इसके अलावा कुछ भी सत्य नहीं है। बांकि सब झूठा है, को बतलाया गया है।
कैवल्याष्टकम्
मधुरं मधुरेभ्योऽपि मङ्गलेभ्योऽपि
मङ्गलम् ।
पावनं पावनेभ्योऽपि हरे मैव केवलम्
॥१॥
केवल हरि का नाम ही मधुर से
भी मधुर,
मङ्गलमय से भी मङ्गलमय और पवित्र से भी पवित्र है ॥ १ ॥
आब्रह्मस्तम्बपर्यन्तं सर्वं
मायामयं जगत् ।
सत्यं सत्यं पुनः सत्यं हरेर्नामैव
केवलम् ॥२॥
ब्रह्मा
से लेकर स्तम्बपर्यन्त सारा संसार मायामय है, केवल
एक हरि का नाम ही सत्य है; नाम ही सत्य है, फिर भी [कहता हूँ कि] नाम ही सत्य है ॥२॥
स गुरुः स पिता चापि सा माता
बान्धवोऽपि सः ।
शिक्षयेच्चेत्सदा स्मर्तु
हरेर्नामैव केवलम् ॥३॥
जो सर्वदा केवल हरिनाम स्मरण करना
ही सिखलाता है, वही गुरु है, वही पिता है, वही माता है और बन्धु भी वही है ॥३॥
निःश्वासे न हि विश्वासः कदा रुद्धो
भविष्यति ।
कीर्तनीयमतो बाल्याद्धरे पैव केवलम्
॥४॥
श्वास का कुछ विश्वास नहीं,
न मालूम कब रुक जायगा, इसलिये बाल्यावस्था से
ही केवल हरिनाम का ही कीर्तन करना चाहिये ॥४॥
हरिः सदा वसेत्तत्र यत्र भागवता
जनाः ।
गायन्ति भक्तिभावेन हरेर्नामैव
केवलम् ॥५॥
जहाँ भक्तजन भक्तिभाव से केवल
हरिनाम का ही गान करते हैं, वहाँ सर्वदा भगवान्
विराजते हैं ॥ ५॥
अहो दुःखं महादुःखं दुःखाद् दुःखतरं
यतः ।
काचार्थ विस्मृतं रत्नं हरेर्नामैव
केवलम् ॥६॥
अहो ! महान् दुःख है ! भयङ्कर कष्ट
है !! सबसे बढ़कर शोक है !!! जो विषयरूपी काच के लिये हरिनामरूपी रत्न को बिसार
दिया ॥ ६॥
दीयतां दीयतां कर्णो नीयतां नीयतां
वचः ।
गीयतां गीयतां नित्यं हरे मैव
केवलम् ॥७॥
केवल एक हरिनाम के ही श्रवण में कान
लगाओ,
वाणी से बोलो और उसी का निरन्तर गान करो॥७॥
तृणीकृत्य जगत्सर्वं राजते सकलोपरि ।
चिदानन्दमयं शुद्धं हरेर्नामैव
केवलम् ॥ ८॥
सम्पूर्ण जगत को तृणतुल्य करके,
सबके ऊपर केवल एक हरि का शुद्ध सच्चिदानन्दघन नाम ही विराजता है ॥
८॥
इति श्रीकैवल्याष्टकं सम्पूर्णम्।
Related posts
vehicles
business
health
Featured Posts
Labels
- Astrology (7)
- D P karmakand डी पी कर्मकाण्ड (10)
- Hymn collection (38)
- Worship Method (32)
- अष्टक (54)
- उपनिषद (30)
- कथायें (127)
- कवच (61)
- कीलक (1)
- गणेश (25)
- गायत्री (1)
- गीतगोविन्द (27)
- गीता (34)
- चालीसा (7)
- ज्योतिष (32)
- ज्योतिषशास्त्र (86)
- तंत्र (182)
- दशकम (3)
- दसमहाविद्या (51)
- देवी (190)
- नामस्तोत्र (55)
- नीतिशास्त्र (21)
- पञ्चकम (10)
- पञ्जर (7)
- पूजन विधि (80)
- पूजन सामाग्री (12)
- मनुस्मृति (17)
- मन्त्रमहोदधि (26)
- मुहूर्त (6)
- रघुवंश (11)
- रहस्यम् (120)
- रामायण (48)
- रुद्रयामल तंत्र (117)
- लक्ष्मी (10)
- वनस्पतिशास्त्र (19)
- वास्तुशास्त्र (24)
- विष्णु (41)
- वेद-पुराण (691)
- व्याकरण (6)
- व्रत (23)
- शाबर मंत्र (1)
- शिव (54)
- श्राद्ध-प्रकरण (14)
- श्रीकृष्ण (22)
- श्रीराधा (2)
- श्रीराम (71)
- सप्तशती (22)
- साधना (10)
- सूक्त (30)
- सूत्रम् (4)
- स्तवन (109)
- स्तोत्र संग्रह (711)
- स्तोत्र संग्रह (6)
- हृदयस्तोत्र (10)
No comments: