पूजन विधि, ज्योतिष, स्तोत्र संग्रह, व्रत कथाएँ, मुहूर्त, पुजन सामाग्री आदि

कैवल्याष्टक

कैवल्याष्टक

डी०पी०कर्मकाण्ड के स्तोत्र श्रृंखला में इस कैवल्याष्टक में जगत् में केवल हरि का नाम ही सार है, सत्य है। इसके अलावा कुछ भी सत्य नहीं है। बांकि सब झूठा है, को बतलाया गया है। 

कैवल्याष्टकम्

कैवल्याष्टकम्

मधुरं मधुरेभ्योऽपि मङ्गलेभ्योऽपि मङ्गलम् ।

पावनं पावनेभ्योऽपि हरे मैव केवलम् ॥१॥

केवल हरि का नाम ही मधुर से भी मधुर, मङ्गलमय से भी मङ्गलमय और पवित्र से भी पवित्र है ॥ १ ॥

आब्रह्मस्तम्बपर्यन्तं सर्वं मायामयं जगत् ।

सत्यं सत्यं पुनः सत्यं हरेर्नामैव केवलम् ॥२॥

ब्रह्मा से लेकर स्तम्बपर्यन्त सारा संसार मायामय है, केवल एक हरि का नाम ही सत्य है; नाम ही सत्य है, फिर भी [कहता हूँ कि] नाम ही सत्य है ॥२॥

स गुरुः स पिता चापि सा माता बान्धवोऽपि सः ।

शिक्षयेच्चेत्सदा स्मर्तु हरेर्नामैव केवलम् ॥३॥

जो सर्वदा केवल हरिनाम स्मरण करना ही सिखलाता है, वही गुरु है, वही पिता है, वही माता है और बन्धु भी वही है ॥३॥

निःश्वासे न हि विश्वासः कदा रुद्धो भविष्यति ।

कीर्तनीयमतो बाल्याद्धरे पैव केवलम् ॥४॥

श्वास का कुछ विश्वास नहीं, न मालूम कब रुक जायगा, इसलिये बाल्यावस्था से ही केवल हरिनाम का ही कीर्तन करना चाहिये ॥४॥

हरिः सदा वसेत्तत्र यत्र भागवता जनाः ।

गायन्ति भक्तिभावेन हरेर्नामैव केवलम् ॥५॥

जहाँ भक्तजन भक्तिभाव से केवल हरिनाम का ही गान करते हैं, वहाँ सर्वदा भगवान् विराजते हैं ॥ ५॥

अहो दुःखं महादुःखं दुःखाद् दुःखतरं यतः ।

काचार्थ विस्मृतं रत्नं हरेर्नामैव केवलम् ॥६॥

अहो ! महान् दुःख है ! भयङ्कर कष्ट है !! सबसे बढ़कर शोक है !!! जो विषयरूपी काच के लिये हरिनामरूपी रत्न को बिसार दिया ॥ ६॥

दीयतां दीयतां कर्णो नीयतां नीयतां वचः ।

गीयतां गीयतां नित्यं हरे मैव केवलम् ॥७॥

केवल एक हरिनाम के ही श्रवण में कान लगाओ, वाणी से बोलो और उसी का निरन्तर गान करो॥७॥

तृणीकृत्य जगत्सर्वं राजते सकलोपरि ।

चिदानन्दमयं शुद्धं हरेर्नामैव केवलम् ॥ ८॥

सम्पूर्ण जगत को तृणतुल्य करके, सबके ऊपर केवल एक हरि का शुद्ध सच्चिदानन्दघन नाम ही विराजता है ॥ ८॥

इति श्रीकैवल्याष्टकं सम्पूर्णम्।

Post a Comment

Previous Post Next Post