आपूपिकेश्वर स्तोत्र
आपूपिकेश्वर स्तोत्र -
भरतपुर में वि. सं. २०२३ में हलवाइयों के संगठन ने एक धर्मशाला का निर्माण किया और
वहां शिवालय की प्रतिष्ठा के अवसर पर आचार्य महादेय ने इस स्तोत्र की रचना की । आपूपिक
हलवाई को कहते हैं। तो यह हलवाइयों के ईश्वर शिव की स्तुति है ।
आपूपिकेश्वर स्तोत्रम्
आशंसवो निजशिवं स्वसमाज मुख्या
आपूपिका भरतपूर्भुवि बुद्धिमन्तः ।
निर्माय सम्प्रति यथारुचि धर्मशालां
देवेश ते वसतयेऽत्र निमन्त्रयन्ते ॥
१ ॥
भरतपुर के हलवाइयों के समाज के
बुद्धिमान् मुखिया महानुभाव अपने समाज के कल्याण की अभिलाषा से अपनी रुचि के
अनुसार धर्मशाला का निर्माण करके, हे देवताओं के
भी ईश्वर शिव, आपको यहाँ निवास करने के लिए निमन्त्रण
दे रहे हैं ॥ १ ॥
द्वाराद् बहिश्च विपणौ
मधुराभिधानाद्
आपूपिकैविरचिते भवनेऽत्र रम्ये ।
आस्वादयन् घृतमयान् मधुरानपूपान्
आपूपिकेश्वर महेश सदा प्रसीद ॥ २ ॥
आपूपिकेश्वर भगवान शिव,
आप मथुरा द्वार (गेट) के बाहिर बाजार में हलवाइयों के द्वारा
निर्मित इस सुन्दर भवन में (उपस्थित रहते हुए) घी में बनाए हुए मजेदार मालपूड़ों
का स्वाद लेते हुए सदा उन पर प्रसन्न होते रहिए ।
आपूपिका विरचयन्तु पदार्थजातान्
लोकम्पृणान् बहुविधान् घृतपूरपूतान्
।
तुभ्यं निवेद्य परितोष्य जनान्
प्रभूतं
वित्तं महेश कृपया तव ते रमन्ताम् ॥
३ ॥
हे भगवान् महेश्वर,
हलवाई लोग घी के प्रवाहों से पवित्र हुए और लोगों को सन्तुष्ट करने
वाले बहुत प्रकार के पदार्थ समूहों को तैयार करते रहें। वे उन्हें तुझे निवेदन
करके और लोगों को सन्तुष्ट करके तुम्हारी कृपा से खूब धन पाकर उससे रमण करते रहें
।
आपूपिकेश्वर महेश्वर वासमत्र
प्रेम्णा सतामधिपुरं कृपया कुरुष्व
।
दृष्ट्वा दयाभरितया सततं
स्वदृष्ट्या
आपूपिकान् रचय सर्वसुखैः समृद्धान्
॥ ४ ॥
हे आपूपिकेश्वर भगवान् शिव,
आप सज्जनों के प्रेम से आकृष्ट होकर इस भवन में कृपा करके निवास
कीजिए । सदैव दया से भरी रहने वाली अपनी दृष्टि से देखकर हलवाइयों को सदा सभी
सुखों से समृद्ध बनाते रहिए ।
आपूपिकेश्वर स्तोत्रम् महात्म्य
विज्ञापयत्यमृतवाग्भवनामधेय
आचार्य एष भवतोऽनुभवं स्वकीयम् ।
आपूपिकेश्वरनुतिं पठतामिमां हि
पूर्ति समेति सकलापि पदार्थयाच्ञा ॥
५ ॥
यह अमृतवाग्भव नाम वाला आचार्य आप
लोगों को अपने इस अनुभव को बता रहा है कि इस आपूपिकेश्वर- स्तुति को पढ़ने वालों
की सारी वस्तु-कामना पूरी हो जाया करती है ।
'इत्याचार्य
श्रीमदमृतवाग्भव-प्रणीतम् आपूपिकेश्वरस्तोत्रम् ।
यह आचार्य श्रीमद् अमृतवाग्भव द्वारा निर्मित आपूपिकेश्वर स्तोत्र है ।
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