यमुना कवच

यमुना कवच

जो मनुष्य श्रीयमुना के इस परम अद्भुत कवच का भक्तियुक्त हो पाठ करता है, तो वह निर्धन भी हो धनवान्‌ हो जाता है, उसे सम्पूर्ण तीर्थों में स्नान का फल मिल जाता तथा अन्त में वह योगिदुर्लभ परमधाम गोलोक में चला जाता है। 

यमुना कवच

श्रीयमुना कवचम्

मान्धातोवाच -

यमुनायाः कृष्णराज्ञ्याः कवचं सर्वतोऽमलम् ।

देहि मह्यं महाभाग धारयिष्याम्यहं सदा ॥ १॥

मांधाता बोले--हे महाभाग! आप मुझे श्रीकृष्णकी पटरानी यमुना के सर्वथा निर्मल कवच का उपदेश दीजिये, मैं  उसे सदा धारण करूँगा ॥ १॥

सौभरिरुवाच -

यमुनायाश्च कवचं सर्वरक्षाकरं नृणाम् ।

चतुष्पदार्थदं साक्षाच्छृणु राजन्महामते ॥ २॥

सौभरि बोले--हे महामते नरेश ! यमुनाजी का कवच मनुष्यों की सब प्रकार से रक्षा करनेवाला तथा साक्षात्‌ चारों पदार्थों को देनेवाला है, तुम इसे सुनो--॥ २ ॥

कृष्णां चतुर्भुजां श्यामां पुण्डरीकदलेक्षणाम् ।

रथस्थां सुन्दरीं ध्यात्वा धारयेत्कवचं ततः ॥ ३॥

यमुनाजी के चार भुजाएं हैं। वे श्यामा ( श्यामवर्णा एवं षोडश वर्ष की अवस्था से युक्त ) हैं। उनके नेत्र प्रफुल्ल कमल-दल के समान सुन्दर एवं विशाल हें । वे परम सुन्दरी हैं और दिव्य रथ पर बैठी हुई हैं। इस प्रकार उनका ध्यान करके कवच धारण करे ॥ ३ ॥

स्नातः पूर्वमुखो मौनी कृतसन्ध्यः कुशासने ।

कुशैर्बद्धशिखो विप्रः पठेद्वै स्वस्तिकासनः ॥ ४॥

स्नान करके पूर्वाभिमुख हो मौनभाव से कुशासन पर बैठे और कुशों द्वारा शिखा बाँधकर संध्या-वन्दन करने के अनन्तर ब्राह्मण ( अथवा द्विजमात्र ) स्वस्तिकासन से स्थित हो कवच का पाठ करे ॥ ४ ॥

अथ श्रीयमुना कवचम्

यमुना मे शिरः पातु कृष्णा नेत्रद्वयं सदा ।

श्यामा भ्रूभङ्गदेशं च नासिकां नाकवासिनी ॥ ५॥

 यमुनामेरे मस्तक की रक्षा करें और कृष्णसदा दोनों नेत्रों की । 'श्यामा' भ्रुभंग-देश की और 'नाकवासिनी' नासिका की रक्षा करें ॥ ५॥

कपोलौ पातु मे साक्षात्परमानन्दरूपिणी ।

कृष्णवामांससम्भूता पातु कर्णद्वयं मम ॥ ६॥

 साक्षात्‌ परमानन्दरूपिणी' मेरे दोनों कपोलों की रक्षा करें । 'श्रीकृष्णवामांससम्भूता” ( श्रीकृष्ण के बायें कंधे से प्रकट हुई वे देवी ) मेरे दोनों कानों-का संरक्षण करें ॥ ६॥

अधरौ पातु कालिन्दी चिबुकं सूर्यकन्यका ।

यमस्वसा कन्धरां च हृदयं मे महानदी ॥ ७॥

'कालिन्दी' अधरों की और सूर्यकन्या” चिबुक ( ठोढ़ी ) की रक्षा करें । 'यमस्वसा' ( यमराज की बहिन ) मेरी ग्रीवा की और 'महानदी' मेरे हृदय की रक्षा करें ॥ ७॥

कृष्णप्रिया पातु पृष्ठं तटिनि मे भुजद्वयम् ।

श्रोणीतटं च सुश्रोणी कटिं मे चारुदर्शना ॥ ८॥

'कृष्णप्रिया' पृष्ठभाग का और तटिनी” मेरी दोनों भुजाओं का रक्षण करें । 'सुश्रोणी' श्रोणीतट ( नितम्ब ) की और चारुदशना' मेरे कटिप्रदेश की रक्षा करें ॥ ८॥

ऊरुद्वयं तु रम्भोरुर्जानुनी त्वङ्घ्रिभेदिनी ।

गुल्फौ रासेश्वरी पातु पादौ पापप्रहारिणी ॥ ९॥

 रम्भोरु' दोनों ऊरुओं (जाँघों) की और 'अङ्घ्रिभेदिनी' मेरे दोनों पाँवों की रक्षा करें । रासेश्वरीगुल्फों (घुटनों) का और 'पापापहारिणी' पादयुगल का त्राण करें ॥ ९ ॥

अन्तर्बहिरधश्चोर्ध्वं दिशासु विदिशासु च ।

समन्तात्पातु जगतः परिपूर्णतमप्रिया ॥ १०॥

'परिपू्णतमप्रिया' -भीतर -बाहर, नीचे-ऊपर तथा दिशाओं और विदिशाओं में सब ओर से मेरी रक्षा करें ॥ १०॥

यमुना कवच फलश्रुति  

इदं श्रीयमुनायाश्च कवचं परमाद्भुतम् ।

दशवारं पठेद्भक्त्या निर्धनो धनवान्भवेत् ॥ ११॥

यह श्रीयमुना का परम अद्भुत कवच है। जो भक्तिभाव से दस वार इसका पाठ करता है, वह निर्धन भी धनवान्‌ हो जाता है ॥ ११॥

त्रिभिर्मासैः पठेद्धीमान् ब्रह्मचारी मिताशनः ।

सर्वराज्याधिपत्यञ्च प्राप्यते नात्र संशयः ॥ १२॥

जो बुद्धिमान्‌ मनुष्य ब्रह्मचर्यं पालनपूर्वक परिमित आहार का सेवन करते हुए तीन मास तक इसका पाठ करेगा, वह सम्पूर्ण राज्यों का आधिपत्य प्राप्त कर लेगा, इसमें संशय नहीं है॥ १२॥

दशोत्तरशतं नित्यं त्रिमासावधि भक्तितः ।

यः पठेत्प्रयतो भूत्वा तस्य किं किं न जायते ॥ १३॥

जो तीन महीने की अवधित क प्रतिदिन भक्तिभाव से शुद्धचित्त होकर इसका एक सौ दस बार पाठ करेगा, उसको क्या-क्या नहीं मिल जायगा ? ॥ १३॥

यः पठेत्प्रातरुत्थाय सर्वतीर्थफलं लभेत् ।

अन्ते व्रजेत्परं धाम गोलोकं योगिदुर्लभम् ॥ १४॥

जो प्रात:काल उठकर इसका पाठ करेगा, उसे सम्पूर्ण तीर्थों में स्नान का फल मिल जायेगा तथा अन्त में वह योगिदुर्लभ परमधाम गोलोक में चला जायेगा ॥ १४॥

इति गर्गसंहितायां माधुर्यखण्डे षोडशाध्यायान्तर्गतं यमुना कवचं सम्पूर्णम् ॥ १६ ॥

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