recent

Slide show

[people][slideshow]

Ad Code

Responsive Advertisement

JSON Variables

Total Pageviews

Blog Archive

Search This Blog

Fashion

3/Fashion/grid-small

Text Widget

Bonjour & Welcome

Tags

Contact Form






Contact Form

Name

Email *

Message *

Followers

Ticker

6/recent/ticker-posts

Slider

5/random/slider

Labels Cloud

Translate

Lorem Ipsum is simply dummy text of the printing and typesetting industry. Lorem Ipsum has been the industry's.

Pages

कर्मकाण्ड

Popular Posts

गायत्री वर्ण के ऋषि छन्द देवता

गायत्री वर्ण के ऋषि छन्द देवता

डी०पी०कर्मकाण्ड के तन्त्र श्रृंखला में मन्त्रमहार्णव के गायत्रीतन्त्र के भाग-२ में गायत्री के वर्णों के ऋषि, छन्द, देवता आदि को दिया जा रहा है।

गायत्री वर्ण के ऋषि छन्द देवता

गायत्री के वर्णों के ऋषि, छन्द, देवता आदि

गायत्री तन्त्र

अथातः श्रूयतां ब्रह्मवर्णऋष्यादिकांस्तथा ।

छन्दांसि देवतास्तद्वत्कमात्तत्त्वानि चैव हि ।।१।।

वामदेवोऽत्रिर्वसिष्ठः शुक्रःकण्वःपराशरः ।

विश्वामित्रो महातेजाः कपिलः शीनको महान् ।।२।।

याज्ञवल्क्यो भरद्वाजो जमदग्निस्तपोनिधिः ।

गौतमो मुद्गलश्चैव वेदव्यासश्च लोमशः ।।३।।

अगस्त्यः कौशिको वत्सः पुलस्त्यो माण्डुकस्तथा ।

दुर्वासास्तपसां श्रेष्ठो नारदः कश्यपस्तथा ।। ४।।

इत्येते ऋषयः प्रोक्ता वर्णानां क्रमशो मुने ।

हे ब्रह्मन् ! अब गायत्री के वर्णों के ऋष्यादि, छन्द, देवता क्रम से कहते हैं, सूनोः वामदेव, अत्रि, वसिष्ठ, शुक्र, कण्व, पराशर, महातेजस्वी विश्वामित्र, कपिल, महान् शौनक, याज्ञवल्क्य, भरद्वाज, तपोनिधि जमदग्नि, गौतम, मुद्गल, वेदव्यास, लोमश, अगस्त्य, कौशिक, वत्स, पुलस्त्य, मण्डूक, दुर्वासा, नारद और कश्यप, हे मुने! ये क्रम से २४ वर्णों के चौबीस ऋषि हैं ।

गायत्र्युष्णिगनुष्टुप् च बृहती पंक्तिरेव च ।। ५॥

त्रिष्टुभं जगती चैव तथाऽतिजगती मता ।

शक्वर्यतिशक्वरी च धृतिश्चातिधृतिस्तथा ।।६।।

विराट्यस्तारपंक्तिश्च कृतिः प्रकृतिराकृतिः ।

विकृतिः संस्कृतिश्चैवाक्षरपंक्तिस्तथैव च ॥७॥

भूभुर्वः स्वरितिच्छन्दस्तथा ज्योतिष्मती स्मृतम् ।

इत्येतानि च छन्दांसि कीर्तितानि महामुने ।।८।।

अब छन्द कहते हैं : गायत्री, उष्णिक, अनुष्टुप्, बृहती, पंक्ति, त्रिष्टुप्, जगती, अतिजगती, शक्वरी, अतिशक्वरी, धृति, अतिधृति, विराट्, प्रस्तारपंक्ति, कृति, प्रकृति, आकृति, संस्कृति, अक्षरपंक्ति, भूः, भुवः, स्वः और ज्योतिष्मती ये क्रम से २४ छन्द कहे गये हैं।

दैवतानि शृणु प्राज्ञ तेषामेवानुपूर्वशः ।

आग्नेयः प्रथमं प्रोक्तं प्राजापत्यं द्वितीयकम् ।।९॥

तृतीयं च तथा सोम्यमीशानं च चतुर्थकम् ।

सावित्रं पश्चमं प्रोक्तं षष्ठमादित्यदैवतम् ॥१०॥

बार्हस्पत्यं सप्तमं तु मैत्रावरुणमष्टमम् ।

नवमं भगदैवत्यं दशमं चार्यमेश्वरम् ।। ११॥

गणेशमेकादशकं त्वाष्ट्रं द्वादशकं स्मृतम् ।

पौष्णं त्रयोदर्श प्रोक्तमैद्राग्नं च चतुर्दशम् ।। १२ ।।

वायव्यं पश्चदशकं वामदेव्यं च षोडशम् ।

मैत्रावरुणिदैवत्यं प्रोक्तं सप्तदशाक्षरम् ।।१३।।

अष्टादशं वैश्वदेवमूनविंशं तु मातृकम् ।

वैष्णवं विंशतितमं वसुदैवतमीरितम् ।।१४।।

एकविंशतिसंख्याकं द्वाविंशं रुद्रदैवतम् ।

त्रयोविंशं च कौबेरमाश्विने तत्त्वसंख्यकम् ।। १५॥

चतुर्विंशतिवर्णानां देवतानां च संग्रहः ।

कथितः परमश्रेष्ठो महापापैकशोधनः ।।१६।।

हे मुनीश्वर! अब क्रम से इनके देवता सुनो : प्रथम के अग्नि, दूसरे के प्रजापति, तीसरे के चन्द्रमा, चौथे के ईशान, पाँचवे के सविता, छठे के आदित्य, सातवें के बृहस्पति, आठवें के मित्रावरुण, नौवें के भग, दशवें के अर्यमा, ग्यारहवें के गणेश, बारहवें के त्वष्टा, तेरहवें के पूषा, चौदहवें के इन्द्र और अग्नि, पन्द्रहवें के वायु, सोलहवें के वामदेव, सत्रहवें के मैत्रावरुण, अठारहवें के विश्वेदेवा, उन्नीसवें की मातृकायें, बीसवें के विष्णु, इक्कीसवें के वसु, बाइसवें के रुद्र, तेईसवें के कुबेर, चौबीसवें के अश्विनीकुमार - ये चौबीस वर्णों के देवता कहे गये हैं, जो परमश्रेष्ठ और महापाप के शोधक हैं।

टिप्पणी: हे मुने ! जिनके श्रवण से साङ्ग जाप का फल होता उन गायत्री ब्रह्मकल्प में कहे गये भिन्न देवता भी क्रम से लिखते हैं - अग्नि, वायु, सूर्य, कुबेर, यम, वरुण, बृहस्पति, पर्जन्य, इन्द्र, गन्धर्व, प्रोष्ठ, मित्रावरुण, त्वष्टा, वासव, मरुत्, सोम, अङ्गिरा, विश्वेदेवा, अश्विनीकुमार, पूषा, रुद्र, विद्युत् ब्रह्म, अदिति-ये क्रम से देवता हैं।

वर्णानां शक्तयः काश्च ताः शृणुष्व महामुने ।

वामदेवी प्रिया सत्या विश्वा भद्रा विलासिनी ॥१॥

प्रभावती जया शान्ता कान्ता दुर्गा सरस्वती ।

विद्रुमा च विशालेशा व्यापिनी विमला तथा ॥२॥

तमोऽपहारिणी सूक्ष्मा विश्वयोनिर्जया वशा ।

पद्मालया पराशोभा भद्रा च त्रिपदा स्मृता ।।३।।

चतुर्विंशतिवर्णानां शक्तयः समुदाहृताः ।

अब वर्णों की शक्तियों को क्रम से सुनोः वामदेवी, प्रिया, सत्या, विश्वा, भद्रा, विलासिनी, प्रभावती, जया, शान्ता, कान्ता, दुर्गा, सरस्वती, विद्रुमा, विशालेशा, व्यापिनी, विमला, तमोपहारिणी, सूक्ष्मा, विश्वयोनि, जया, वशा, पद्मालया, परा, शोभा, भद्रा और त्रिपदा ये क्रम से चौबीस अक्षरों की शक्तियाँ हैं।

अतः परं वर्णवर्णाच्याहरामि यथातथम् ।।४।।

चम्पकातसीपुष्पसत्रिभं विद्रुमं तथा ।

स्फटिकाकारकं चैव पद्मपुष्पसमप्रभम् ।।५।।

तरुणादित्यसंकाशं शकुन्देन्दुसन्निभम् ।

प्रवालपद्मपत्राभं पद्मरागसमप्रभम् ।। ६ ।।

इन्द्रनीलमणिप्रख्यं मौक्तिकं कुंकुमप्रभम् ।

अञ्जनामं च रक्तं च वैदूर्यं क्षौद्रसन्निभम् ।।७।।

हारिद्रकुन्ददुग्धाभं रविकान्तिसमप्रभम् ।

शुकपुच्छनिभं तद्वच्छतपत्रनिमं तथा ॥८॥

केतकीपुष्पसंकाशं मल्लिकाकुसुमप्रभम् ।

करवीरश्च इत्येते क्रमेण परिकीर्तिताः ॥९॥

वर्णाः प्रोक्ताश्च वर्णानां महापापविशोधनाः ।

अब चौबीस वर्णों के रङ्ग कहते हैं : चम्पक तथा अलसी के फूल के समान, मूंगे के रङ्ग के समान, स्फटिक के समान, पद्मरागमणि के समान, तरुण सूर्य के समान, शङ्ख, कुन्द, इन्द्र, प्रवाल, पद्यपत्र के समान, पद्मराग के समान, इन्द्र नीलमणि के समान, मोती, कुंकुम, अंजन के समान, लाल वैडूर्य के समान, शहद के समान, हलदी, कुन्द, दूध, सूर्यकान्ति, शुकपुच्छ, शतपत्र के समान, केतकी पुष्प के समान, मल्लिका (चमेली) और कनेर के समान - इन चौबीसों को कम से रङ्ग जानने चाहिये। ये वर्णों के रङ्ग महापाप को शुद्ध करने वाले हैं।

पृथिव्यापस्तथा तेजो वायुराकाश एव च ।।१०।।

गन्धोरसश्च रूपं च शब्दः स्पर्शस्तथैव च ।

उपस्थं पायुपादं च पाणिवागपि च क्रमात् ।।११।।

प्राणं जिह्वा च चक्षुश्च त्वक् श्रोत्रं च ततः परम् ।

प्राणोऽपानस्तथा व्यानः समानश्च ततः परम् ।।१२।।

तत्त्वान्येतानि वर्णानां क्रमशः कीर्तितानि तु ।

पृथ्वी, अप (जल), तेज, वायु, आकाश, गन्ध, रस, रूप, शब्द, स्पर्श, उपस्थ, गुद, चरण, हाथ, वाणी, प्राण, (नासा), जिह्वा, चक्षु, त्वचा, श्रोत्र, प्राण, अपान, व्यान, समान, यह क्रम से सब वर्णों के तत्त्व हैं।

अतः परं प्रवक्ष्यामि वर्णमुद्राः क्रमेण तु ।।१३॥

सुमुखं सम्पुटं चैव विततं विस्तृतं तथा ।

द्विमुखं त्रिमुखं चैव चतुःपञ्चमुखं तथा ।। १४ ।।

षण्मुखाधोमुख चैव व्यापकामालकं तथा ।

शकटं यमपाशं च ग्रथितं सन्मुखोन्मुखम् ।।१५।।

विलम्बमुष्टिकं चैव मत्स्यं कूर्म वाराहकम् ।

सिंहाक्रान्तं महाक्रान्त मुद्गरं पल्लवं तथा ॥१६॥

त्रिशूलयोनी सुरभिश्चाक्षमाला च लिंगकम् ।

अम्बुजं च महामुद्रास्तुर्यरूपाः प्रकीर्तिताः ।। १७॥

इत्येताः कीर्तिता मुद्रा वर्णानां ते महामुने ।

महापापक्षयकराः कीर्तिदाः कान्तिदाः मुने ॥१८॥

अब क्रम से वर्णों की मुद्रा कहते हैं : सन्मुख, सम्पुट, वितत, विस्तृत, एकमुख, द्विमुख, त्रिमुख, चतुर्मुख, पञ्चमुख, अधोमुख, व्यापक, अञ्जली, शकट, यमपाशक, ग्रथित, सन्मुख, उन्मुख, विलम्ब, मुष्टिक, मत्स्य, कूर्म, वराह, सिंहाक्रान्त, महाक्रान्त, मुद्गर, पल्लव, त्रिशूल, योनि, सुरभि, अक्षमाला, लिंग, अम्बुज, (कमल) ये महामुद्रायें गायत्री के चतुर्थ चरणरूप कही गयी हैं। हे महामुने ! ये वर्णों की मुद्रायें कही गयीं जो महापापनाशिनी हैं तथा कीर्ति और कान्ति देती हैं।

इति: गायत्रीतंत्रे गायत्रीवर्णस्य ऋषि: छन्दश्च देव:

आगे पढ़ें............. गायत्री तन्त्र में गायत्रीशापविमोचन

No comments:

vehicles

[cars][stack]

business

[business][grids]

health

[health][btop]