श्री कृष्ण पूजन विधि ॥ Krishna pujan vidhi॥

 श्री कृष्ण पूजन विधि: Krishna pujan vidhi

श्री कृष्ण जी की पूजन  विधि में सर्वप्रथम गौरी-गणेश,कलश,पुण्याहवचन कर गोपाल जी का पूजन प्रारम्भ करें।

पूजन में सबसे पहले आचमन व प्राणायाम करें,जिससे की शरीर की आंतरिक शुद्धि हो । उसके बाद शरीर की बाह्य शुद्धि के लिए पवित्रीकरण करें। इसके पश्चात संकल्प करें कि मैं दृढ़ निश्चय पूर्वक अमुक कार्य को करने के लिए प्रतिबद्ध हूँ। अब गाय के गोबर से गौरी-गणेशबनाकर पूजन करें, गोबर पवित्र व किटाणुनाशक होती है इसी कारण पूजन स्थल को गोबर से लीप कर पवित्र किया जाता है। जब गोबर से गौरी-गणेश बनाकर पूजन करते हैं तो इस गोबर का स्पर्श हमारे हाथों से होता है जिससे की हमारे हाथों मे मौजूद किटाणु नष्ट हो जाता है अतः गोबर से ही गौरी-गणेश बनाकर पूजन करें। 

तत्पश्चात नवग्रह, जो की नौ रंगों से रंगे हुए चाँवल की कुढ़ी रख कर बना होता है। यह नौ रंग नवग्रहों का प्रतिनिधित्व करता है इन नौ रंग युक्त चाँवल की कुढ़ी के पूजन से इन रंगों को हम अपने हाथों से स्पर्श करने के कारण हमारे जीवन में आ रही नवग्रहों की समस्या दूर होती है और नवीन उल्लास का संचार होता है । अब इन नवग्रहों वाली कुढ़ी के ऊपर सुपाड़ी जो की अति पवित्र, पाचक पदार्थ व मुख शुद्धि योग्य वस्तु है रखा जाता है । इसके अलावा भी सुपाड़ी ठोस होती है जो हमारे जीवन में कमजोर नवग्रहों को बलवान बनाने का प्रतीक है । सुपाड़ी के साथ ही युग्म रूप से हल्दी रखा होता है। हल्दी जो की पीत वर्ण का होता है और पीला रंग जीवन में वैभव-विलासिता को दर्शाता है। पीला रंग लक्ष्मी-नारायण,भगवान श्री कृष्ण का भी प्रतिनिधित्व करता है अतः इनके पूजन से जीवन में धन सबंधित परेशानियाँ दूर होती है, इसके अलावा भी पीला रंग गुरु का प्रतिनिधित्व करता है जिनके पूजन से वैवाहिक जीवन में आ रही परेशानियाँ व विवाह में आ रही अड़चन दूर होता है,कमजोर गुरु बलीष्ट होकर हमें जीवन में हर सुख-सुविधा प्राप्त कराती है। 

अब कलश पूजन, कलश जो की किसी ठोस पात्र या लोटा में जल भरकर उसके ऊपर पूर्णपात्र रखा जाता है,या फिर कलश में चाँवल या कोई अनाज भरकर ऊपर नारियल रखा होता है । जो जीवन में पूर्णता का प्रतीक है। जल के पूजन से हमारे जीवन की जलीय विकार दूर होता है। इसके बाद क्रमशः पुण्याहवाचन आदि कर्म किए जाते हैं। पुण्याहवाचन में पुण्य श्लोकों द्वारा आशीर्वाद प्राप्त करना होता है। वैसे भी पुण्याहवाचन अर्थात सकारात्मक सोच का प्रतीक है, सकारात्मक सोच से ही जीवन में आगे बढ़ा जा सकता है नकारात्मक सोच से कोई भी व्यक्ति जीवन में सफल नहीं हो सकता। अतः पुण्याहवाचन करें। 

यंहा इतना कहने का तात्पर्य है की हम योगेश्वर भगवान श्री कृष्ण का पूजन करने जा रहे हैं,जो कि पूर्ण पुरुष, साक्षात परमेश्वर व जगत गुरु हैं। एक सामान्य गुरु होता है जो हमें जीवन में मार्ग बतलाता है,जिनकी संख्या अनंत हो सकता है। एक सद्गुरु होता है जो हमें सत्य का मार्ग दिखलाता है इनकी भी संख्या है। किन्तु जगत गुरु कि संज्ञा पूरे ब्रह्माण्ड में केवल भगवान श्री कृष्ण को प्राप्त है और किसी भी देव,दानव व मानव को नहीं। इनके लिए सारे वेद पुराण एक स्वर में कहते हैं- 

वसुदेव सुतं देवं, कंस चाणूर मर्धनं, देवकी परमानन्दं, कृष्णं वन्दे जगत गुरुं॥

श्री कृष्ण पूजन विधि ॥ Krishna pujan vidhi॥

अथ श्री कृष्ण पूजन विधि:

हाथ में अक्षत लेकर ध्यान करे-

ध्यान

कस्तुरी तिलकम ललाटपटले, वक्षस्थले कौस्तुभम। नासाग्रे वरमौक्तिकम करतले, वेणु करे कंकणम॥ 

सर्वांगे हरिचन्दनम सुललितम, कंठे च मुक्तावलि। गोपस्त्री परिवेश्तिथो विजयते, गोपाल चूडामणी॥ 

मूकं करोति वाचालं पंगुं लंघयते गिरिम्‌। यत्कृपा तमहं वन्दे परमानन्द माधवम्‌॥ 

ॐ श्रीकृष्णाय नमः, ध्यानं समर्पयामि ।

पुनःहाथ में अक्षत लेकर श्रीकृष्णजी का आवाहन करे ।

आवाहन

आवाहयामि देवेशं श्रीराधावल्लभं हरिम् देवकीतनयं कृष्णं श्रीकृष्णम् प्रकृते: परम्॥  

नमो विश्वस्वरूपाय विश्वस्थित्यन्तहेतवे। विश्वेश्वराय विश्वाय गोविन्दाय नमो नमः॥ 

नमो विज्ञानरूपाय परमानन्दरूपिणे। कृष्णाय गोपीनाथाय गोविन्दाय नमो नमः॥ 

ॐ  श्रीकृष्णाय नमः, आवाहनं समर्पयामि ।

अब पुष्प लेकर देवकीनंदन का स्वागत करें-

स्वागत

स्वागतं देवदेवेश मद्भाग्यात् त्वमिहाऽऽगत: प्राकृतिं त्वामहं दृष्ट्वा बालवत्परिपालय। 

धर्मार्थकामसिद्धयर्थं सर्वेषां च शुभासिनः सान्निध्यं तु सदा कृष्ण स्वार्चायां परिकल्पय॥

स्वागतं कृष्णा सुस्वागतं कृष्णा स्वागतं शरणागतं शरणागतं कृष्णा। स्वागतं कृष्णा सुस्वागतं कृष्णा॥ 

ॐ  श्रीकृष्णाय नमः, स्वागतं समर्पयामि ।(रंग-बिरंगा पुष्प चढ़ाकर गोपालजी का स्वागत करें)

भगवानजी को पुष्प या रेशमी वस्त्र का आसन प्रदान करें-

आसन

परितो वनमालाभिः ललिताभिः विराजिते। तत्र सञ्चिन्तयेच्चारु कुटिटमं सुमनोहरम् ॥ 

चतुःषष्टया मणिस्तम्भैश्वतुदिक्ष विराजितम् । तव सिंहासने ध्यायेत्कृष्णं कमललोचनम् ॥ 

ॐ श्रीकृष्णाय नमः, आसनं समर्पयामि ।

अष्टगंध युक्त जल से परमेश्वर का पैर धुलाएँ-

पाद्य

दशलीलाविहाराय सप्ततीर्थविहारिणे। विहाररसपूर्णाय नमस्तुभ्यं कृपानिधे ॥ 

विरहानलसन्तप्त भक्तचित्तोदयाय च। आविष्कृतनिजानन्दविफलीकृतमुक्तये ॥ 

त्रैलोक्यपावनस्तवं हि राधया सहितो हरे। पाद्यम् गृहाण देवेश नमो राजीवलोचन॥ 

ॐ श्रीकृष्णाय नमः, पाद्यम् समर्पयामि ।

रजत अथवा ताम्र के अर्ध्यपात्र में गङ्गाजल, चन्दन, अक्षत, पुष्प, तुलसीदल लेकर भगवान् को अर्ध्य-प्रदान करें---

अर्ध्य

द्वैताद्वैत महामोहतमःपटलपाटिने । जगदुत्पत्तिविलय साक्षिणेऽविकृताय च ॥ 

ईश्वराय निरीशाय निरस्ताखिलकर्मणे। संसारध्वान्तसूर्याय पूतनाप्राणहारिणे ॥ 

परिपूर्ण परमानंद ब्रह्मादि देवतात्मक। 

गृहाणाऽर्ध्यं मया दत्तं तीर्थवारिसमन्वितम् पयस्तंडुल चन्दन पुष्प दूर्वा कुशाग्रयुक्तजलेन अर्ध्यं समर्पयामि ।  

जल से आचमन करें-

आचमन

रासलीलाविलासोर्मिपूरिताक्षरचेतसे। स्वामिनीनयनाम्भोजभावभेदकवेदिने ॥ 

केवलानन्दरूपाय नमः कृष्णाय वेधसे । स्वामिनीहृदयानन्दकन्दलाय तदात्मने ॥ 

ॐ श्रीकृष्णाय नमः, आचमन्यं समर्पयामि ।

अब दही,घी और शहद मिलाकर मधुपर्कं बनाकर भगवान जी को अर्पित करे-

मधुपर्कं

ॐ यन्मधुनो मधव्यं परमर्ठ० रुपमन्नाद्यम् ।

तेनाहं मधुनो मधव्येन परमेण रूपेणान्नाद्येन परमो मधव्योऽन्नादोऽसानि ॥

ॐ  श्रीकृष्णाय नमः, मधुपर्कं समर्पयामि ।

शुद्ध जल से ठाकुरजी को स्नान करावें-

स्नान

ॐ तस्माद्यज्ञात्सर्व्वहुत: सम्भृतं पृषदाज्यम् । पशूँस्ताँश्चक्क्रे व्वायव्यानारण्या ग्राम्याश्च वे ॥

गङ्गासरस्वतीरेवापयोष्णीनर्मदाजलै: । स्नापितोऽसि मया देव तथा शान्तिं कुरुष्व मे ॥

ॐ  श्रीकृष्णाय नमः, स्नानीय जलं समर्पयामि ।

अब यसोदानन्दन को दूध,दही,घी,शहद,शक्कर और फिर पञ्चामृत से क्रमशः स्नान कराये तथा हर स्नान के बाद जल से  स्नान कराते जावे ।

पहले दूध से स्नान कराये-                                               

दुग्धस्नान -

ॐ पयः पृथ्वियां पय ओषधीषु पयो दिव्यन्तरिक्षे पयो धाः । पयस्वतीः प्रदिशः सन्तु मह्यम् ॥

कामधेनुसमुद्भूतं सर्वेषां जीवनं परमं । पावनं यज्ञहेतुश्च पयः स्नानार्थमर्पितम् ॥

ॐ श्रीकृष्णाय नमः । पयः स्नानं समर्पयामि ।

दूध के पश्चात दधि से स्नान कराये-

दधिस्नान -

ॐ दधिक्राव्णो अकारिषं जिष्णोरश्वस्य वाजिनः । सुरभि नो मुखाकरत्प्राण आयू ँ षि तारिषत् ॥

पयसस्तु समुद्भूतं मधुराम्लं शशिप्रभम् । दध्यानीतं मया देव स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम् ॥

ॐ श्रीकृष्णाय नमः  दधिस्नानं समर्पयामि ।

अब घृत से स्नान कराये-

घृतस्नान -

ॐ घृतं मिमिक्षे घृतमस्य योनिर्घृते श्रितो घृतम्वस्य धाम ।

अनुष्वधमा वह मादयस्व स्वाहाकृतं वृषभ वक्षि हव्यम् ॥

नवनीतसमुत्पन्नं सर्वसंतोषकारकम् । घृतं तुभ्यं प्रदास्यामि स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम् ॥

ॐ श्रीकृष्णाय नमः । घृत स्नानं समर्पयामि ।

घी के बाद मधु से स्नान कराएं-

मधु स्नान

ॐ मधु वाता ऋतायते मधु क्षरन्ति सिन्धवः । माध्वीर्नः सन्त्वोषधीः ॥ 

मधु नक्तमुतोषसो मधुमत्पार्थिव ँ रजः । मधु द्यौरस्तु नः पिता ।

पुष्परेणुसमुद्भूतं सुस्वादु मधुरं मधु । तेजः पुष्टिकरं दिव्यं स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम् ॥

ॐ श्रीकृष्णाय नमः, मधुस्नानं समर्पयामि ।

अब शक्कर  से स्नान कराये

शर्करा स्नान

ॐ अपा ँ रसमुद्वयस ँ  सूर्यै सन्त ँ समाहितम् । 

अपा ँ रसस्य यो रसस्तं वो गृह्णाम्युत्तममुपयामगृहीतोऽसीन्द्राय 

त्वा जुष्टं गृह्णाम्येष ते योनिरिन्द्राय त्वा जुष्टतमम् ॥

इक्षुरससमुद्भूतां शर्करां पुष्टिदां शुभाम् । मलापहारिकां दिव्यां स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम् ॥

ॐ श्रीकृष्णाय नमः । शर्करास्नानं समर्पयामि ।

अब पञ्चामृत से स्नान कराये

पञ्चामृतस्नान

ॐ पञ्च नद्य: सास्वतीमपियन्ति सस्रोतस: । सरस्वती तु पञ्चधा सो देशेऽभवत्सरित् ॥

पञ्चामृतं भयानीतं पयो दधि घृतं मधु । शर्करा च मया दत्तं गृहाण परमेश्वर ॥ 

त्वमाचामोपेन्द्र त्रिदशसरिदम्भोऽतिशिशिरं भजस्वेमं पञ्चामृतरचितमाप्लावमघहन् ॥

ॐ श्रीकृष्णाय नम: पञ्चामृतस्नानं समर्पयामि ।

शुद्ध जलसे केशव का अच्छे से स्नान कराये -

शुद्धोदकस्नान

ॐ शुद्धवाल: सर्व्वशुद्धवाली मणिवालस्त ऽआश्विना: ।

श्येत: श्येताक्षोऽरुणस्ते कर्ण्णा वामा ऽअवलिप्ता रौद्द्रा नभोरूपा: पार्ज्जन्या: ॥ 

ब्रह्माण्डोदरमध्यस्थं तीर्थेश्च यदुनन्दन स्नापयिष्याम्यहं भक्तया स्वकरेण जनार्दन॥  

द्युनद्याः कालिन्द्या अपि कनककुम्भस्थितमिदं जलं तेन स्नानं कुरु कुरु कुरुष्वाचमनकम् ॥ 

ॐ श्रीकृष्णाय नमः । शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि ।

सुगन्धित द्रव्य (इत्र आदि) माधव को अर्पण करे

सुगन्धिद्रव्यस्नान

ॐ अहिरिव भोगैः पर्येति बाहुं ज्याया हेतिं परिबाधमानः ।

हस्तघ्नो विश्वा वयुनानि विद्वान् पुमान् पुमा ँ सं परिपातु विश्वतः ॥

मनोहरं गन्धद्रव्यं रुदिरागुरुवासितम् । देहशोभकरं नित्यं गृहाण परमेश्वर ॥ 

ॐ श्रीकृष्णाय नमः, सुगन्धिद्रव्यं समर्पयामि ।

इसके पश्चात्  पुरुषसूक्त या नारायण सूक्त के मन्त्रों से बालमुकुंद का अभिषेक करें ।

अब गोपिजनवल्लभ जी को अक्षत चढ़ाये

 अक्षत

ॐ अक्षन्नमीमदन्त ह्यव प्रिया अधूषत ।अस्तोषत स्वभानवो विप्रा नविष्ठया मती योजान्विन्द्र ते हरी ॥

अक्षताश्च सुरश्रेष्ठ कुङ्कुम्युक्ताः सुशोभिताः । मया निवेदिता भक्त्या गृहाण परमेश्वर ॥

ॐ श्रीकृष्णाय नमःअक्षतान् समर्पयामि ।                                                                                        

इसके बाद भगवान अच्चयुत को पहनने योग्य वस्त्र समर्पित करे-

वस्त्र

ॐ तस्माद्यज्ञात् सर्व्वहुत ऽऋच: सामानि जज्ञिरे । छन्दा सि जज्ञिरे तस्माद्यजुस्तस्मादजायत ॥ 

शीतवातोष्णसंत्राणं तटिद्वर्णे वस्त्रे भज विजयकान्ताधिहरण पीताम्बरमिदं हरे। 

संगृहाण जगन्नाथ कृष्णचन्द्र नमोऽस्तुते॥ ॐ श्रीकृष्णाय नमः । वस्त्रं समर्पयामि । 

अब गोपाल जी को विविध  अलंकार से विभुषित करे-

अलंकार

किरीट हार केयूर वंशी कुण्डल मेखला: ।ग्रीवेय कौस्तुभोहार रत्नकंकण नूपुरौ॥ 

एवमादीनि सर्वाणी भूषणानि सुरोत्तम। अहं दास्यामि सद्भक्त्या संगृहाण जनार्दन॥ 

ॐ श्रीकृष्णाय नमः । अलंकरणं

समर्पयामि ।

जनार्दन भगवान को यज्ञोपवीत पहनावें-

यज्ञोपवीत

ॐ तस्मादश्वा ऽअजायन्त वे के चोभयादत: । गावो ह जज्ञिरे तस्मात्तस्माज्जाता ऽअजावय: ॥ 

प्रलम्बारिभ्रातः मृदुलमुपवीतं कुरु गले । ब्रह्मसूत्रं सोत्तरीयं गृहाण यदुनन्दन ॥

श्रीकृष्णाय नम: यज्ञापवीत समर्पयामि । यज्ञोपवीतान्तेआचमनीयं जलं समर्पयामि ।

केशर कस्तुरी अष्टगंध युक्त नानापरिमल चन्दन गोपीनाथ को लगावें-

चन्दन

ॐ तं वज्ञं बर्हिषि प्रौक्षन्पुरुषं जातमग्रत: । तेन देवा ऽअयजन्त साध्या ऋषयश्च वे ॥

कुङ्कुमागुरुकस्तूरीकर्पूरयुतचन्दनम् । भक्त्या समर्पये तुभ्यं संगृहाण श्रीकृष्णं ॥ 

ॐ त्वां गन्धर्वा अखनॅंस्त्वामिन्द्रस्त्वां बृहस्पतिः । त्वामोषधे सोमो राजा विद्वान् यक्ष्मादमुच्यत् ॥

श्रीखण्डं चंदनं दिव्यं गन्धढ्यं सुमनोहरम् । विलेपनं सुरश्रेष्ठं! चन्दनं प्रतिगृह्यताम् ॥

ॐ श्रीकृष्णाय नम: चन्दनं समर्पयामि ।

नाना प्रकार के फूलों से बालमुकुंद का श्रींगार कर पुष्पमाला समर्पित करे -

पुष्पमाला

ॐ वत्पुरुषं व्यदधु: कतिधाव्यकल्पयन्  ॐ मुखं किमस्यासीत् किं बाहू किमूरू पादा ऽउच्येते ॥

प्रत्यग्रनीलकमलै: पुष्पमाल्यैश्च माधव । भक्त्या त्वां भूषयिष्यामि गृहाण यदुनायक ॥ 

परितो वनमालाभिः ललिताभिः विराजिते । तत्र सञ्चिन्तयेच्चारु कुटिटमं सुमनोहरम् ॥ 

तुलसी कुन्द मन्दार जाति पुन्नाग चम्पकै: । कदम्ब कर वीरैश्च कुंकुमै: शतपत्रकै: ॥ 

नीलाम्बुजैर्विल्वदलै: पुष्पमाल्यैश्च केशव। पूजयिष्याम्यहं भक्त्या संगृहाण जनार्दन॥ 

ॐ श्रीकृष्णाय नमः । पुष्पं च पुष्पमालां समर्पयामि ।

भगवान जी को तुलसीदल मंजरी सहित चढ़ावे-

तुलसीदल

ॐ इदं व्विष्णुर्व्विचक्क्रमे ञ्रेधा निदधे पदम् । समूढमस्य पा सुरे स्वाहा ॥

तुलसीं हेमरूपां च रत्नरूपां च मञ्जरीम् । भवमोक्षप्रदां तुभ्यमर्पयामि हरिप्रियाम् ॥

ॐ श्रीकृष्णाय नम: तुलसीदलानि समर्पयामि ।

दूब गोवर्धनधारी को अर्पित करें-

दूर्वा

ॐ काण्डात्काण्डात्प्ररोहन्ती परुषः परुषस्परि । एवा नो दूर्वे प्र तनु सहस्रेण शतेन च ॥

दूर्वाङ्कुरान् सुहरितानमृतान् मङ्गलप्रदान् । आनीतांस्तव पूजार्थं गृहाण गणनायक ॥ 

ॐ श्रीकृष्णाय नमःदूर्वाङ्कुरान् समर्पयामि ।                                                            

अष्टगंध मिश्रित अक्षत चढ़ाते हुए जगतगुरु के सभी अंगो का स्मरण करें-

अङ्गपूजन

ॐ श्रीकृष्णाय नम: पादौ पूजयामि । ॐ दामोदराय नम:गुल्फौ पूजयामि ।ॐ माधवाय नम: जानुनी: पूजयामि । 

ॐ पद्मनाभाय नम: नाभिं पूजयामि । ॐ केशवाय नम: उदरं पूजयामि । ॐ राधावल्लभाय नम: हृदयं पूजयामि । 

ॐ श्रीकण्ठाय नम: कण्ठं पूजयामि । ॐ गोपीनाथाय नम: बाहु पूजयामि । ॐ गोविन्दाय नम: मुखं पूजयामि । 

ॐ अच्युताय नम: नेत्रे पूजयामि । ॐ वासुदेवाय नम: ललाटं पूजयामि । ॐ घनश्यामाय नम: नासिकां पूजयामि । 

ॐ नन्दनंदाय नम: श्रोत्रे पूजयामि । ॐ द्वारिकाधिशाय नम: शिखां पूजयामि । 

ॐ बालमुकुंदाय नम: शिर: पूजयामि । ॐ सर्वस्वरूपिणे नम: सर्वाङ्गं पूजयामि।                                                                              

अब श्रीनाथ जी की प्रसन्नता के लिए धूप देकर आचमन करें-

धूप

ॐ ब्राह्मणोऽस्य मुखमासीद् बाहू राजन्य: कृत: । ऊरू तदस्य वद्वैश्य: पद्भ्या, शूद्रो ऽअजायत ॥

वनस्पतिरसोद्भूतो गन्धाढय: सुमनोहर: । कृष्णचन्द्र देवरूप धूपोऽयं प्रतिगृह्यताम् ॥

ॐ श्रीकृष्णाय नम: धूपमाघ्रापयामि ।

सुगंधित धूप दीप अगरबत्ती से घनश्याम को दीप दिखाए-

दीप

ॐ चन्द्रमा मनसो जातश्चक्षो: सूर्व्वो ऽअजायत । श्रोञ्राद् वायुश्च प्प्राणश्च मुखादग्निरजायत ॥

चन्द्र-सूर्य-बह्निनेत्र सर्वज्योतिप्रवर्त्तक । गृहाण दीपकं दिव्यं त्रैलोक्यतिमिरापहम् ॥

ज्योतिषां पतये तुभ्यं नम: कृष्णाय वेधसे। गृहाण दीपकं राधावल्लभौ त्रैलोक्यतिमिरापहम् ॥

ॐ श्रीकृष्णाय नम: दीपं दर्शयामि ।

नाना प्रकार से भक्क्ष-भोज्य पदार्थ तथा माखन-मिश्री-पंजरी आदि का श्यामजी को भोग लगाए-

नैवेद्य

ॐ नाभ्या ऽआसीदन्तरिक्षर्ठ० शीर्ष्णो द्यौ: समवर्त्तत । पद्भ्यां भूमिर्द्दिश: श्रोत्रात्तथा लोकाँ२ ऽअकल्पयन् ॥ सदातृप्ताऽन्नं षड्रसवदखिलव्यञ्जनयुतं सुवर्णामत्रे गोघृतचषकयुक्ते स्थितमिदम् ।                   

यशोदासूनो तत् परमदययाऽशान सखिभिः प्रसादं वाञ्छद्भिः सह तदनु नीरं पिब विभो ॥                        

ॐ अमृतोपस्तरणमसि स्वाहा ।

ॐ प्राणाय स्वाहा । ॐ अपानाय स्वाहा । ॐ समानाय स्वाहा ।

ॐ उदानाय स्वाहा । ॐ व्यानाय स्वाहा । ॐ अमृतापिधानमसि स्वाहा ।

उदृदिव्यान्नममृतं रसैः षड्भिः समन्वितम्। श्रीकृष्ण सत्यभामेश नैवेद्यं प्रतिगृह्यताम् ॥                                      

ॐ श्रीकृष्णाय नम: नैवैद्य निवेदयामि । नैवेद्यान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि ।

करोद्वर्तन के लिये गन्ध समर्पित करे-

करोद्वर्त्तन चन्दन

ॐ अर्ठ० शुनाते ऽअर्ठ० शु: पृच्यतां परुषा परु: । गन्धस्ते सोममवतु मदाय रसो ऽअच्युत: ॥

करोद्वर्त्तनकं देव सुगन्धै: परिवासितै: । गृहीत्वा मे वरं देहि परत्र च परां गतिम् ॥

ॐ श्रीकृष्णाय नम: करोद्वर्त्तनार्थे गन्धं समर्पयामि । हस्तप्रक्शालनार्थं जलं समर्पयामि ।

केला,सेब आदि ऋतुफल व नारियल राधामाधव क चढ़ाये-

ऋतुफल

ॐ वा: फलिनीर्व्वा ऽअफला ऽअपुष्पा वाश्च पुष्पिणी: । बृहस्पतिप्प्रसूतास्ता नो मुञ्चन्त्वर्ठ०हस: ॥

नानाविधानि दिव्यानि मधुराणि फलानि वै । भक्त्यार्पितानि सर्वाणि गृहाण परमेश्वर ॥

ॐ श्रीकृष्णाय नम: ऋतुफलानि समर्पयामि ।

मुख शुद्धि के लिए भगवान जी को लौंग-इलायची-सुपाड़ी आदि मिलाकर पान चढ़ावें -

ताम्बूल

ॐ वत्पुरुषेण हविषा देवा वज्ञमतन्वत । व्वसन्तोऽस्यासीदाज्यं ग्रीष्म ऽइध्म: शरद्धवि: ॥

नागवल्लीदईदलैर्युक्तं पूगीफलसमन्वितम् । ताम्बूलं गृह्यतां देव कर्पूरैलादिसंयुतम् ॥

ॐ श्रीकृष्णाय नम: ताम्बूलं समर्पयामि ।

अब गिरधर को द्रव्य-दक्षिणा अर्पित करें-

दक्षिणा

ॐ हिरण्यगर्भ: समवर्त्तताग्रे भूतस्य जात: पतिरेक ऽआसीत् ।

स दाधार पृथिवीं द्यामुतेमां कस्मै देवाय हविषा व्विधेम ॥

हिरण्यगर्भगर्भस्थं हेमबीजं विभावसो: । अनन्तपुण्यफलदमत: शान्तिं प्रयच्छ मे ॥

ॐ श्रीकृष्णाय नम: दक्षिणाद्रव्यं समर्पयामि ।

अब कपूर आदि से सुगंधित आरती प्रेम से करें-

आरती

भगवान श्री कृष्ण जी की आरती

आरती कुंजबिहारी की श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की।

गले में बैजन्तीमाला बजावैं मुरलि मधुर बाला॥

श्रवण में कुंडल झलकाता नंद के आनंद नन्दलाला की। आरती...।

गगन सम अंगकान्ति काली राधिका चमक रही आली।

लतन में ठाढ़े बनमाली भ्रमर-सी अलक कस्तूरी तिलक।

चंद्र-सी झलक ललित छबि श्यामा प्यारी की। आरती...।

कनकमय मोर मुकुट बिलसैं देवता दरसन को तरसैं।

गगन से सुमन राशि बरसैं बजै मुरचंग मधुर मृदंग।

ग्वालिनी संग-अतुल रति गोपकुमारी की। आरती...।

जहां से प्रगट भई गंगा कलुष कलिहारिणी गंगा।

स्मरण से होत मोहभंगा बसी शिव शीश जटा के बीच।

हरै अघ-कीच चरण छवि श्री बनवारी की। आरती...।

चमकती उज्ज्वल तट रेनू बज रही बृंदावन बेनू।

चहुं दिशि गोपी ग्वालधेनु हंसत मृदुमन्द चांदनी चंद।

कटत भवफन्द टेर सुनु दीन भिखारी की। आरती...।

ॐ इदर्ठ० हवि: प्रजननं मे ऽअस्तु दशवीरर्ठ० सर्व्वगणर्ठ० स्वस्तये ।

आत्मसनि प्रजासनि पशुसनि लोकसन्यभयसनि ।

अग्नि: प्रजां बहुलां मे करोत्त्वन्नं पयो रेतो ऽअस्मासु धत्त ॥१॥

ॐ आ राञ्रि पार्थिवर्ठ० रज: पितुरप्प्रायि धामभि: ।

दिव: सा सि बृहती व्वि तिष्ठ्ठस ऽआ त्त्वेषं व्वर्त्तते तम: ॥२॥

कर्पूरगौरं करुणावतारं संसारसारं भुजगेन्द्रहारम् । सदावसन्तं हृदयारविन्दे भवं भवानीसहितं नमामि ॥

श्रीभगवते रामाय नम: आरार्तिक्यं समर्पयामि ।

प्रदक्षिणा

ॐ सप्तास्यासन्परिधयस्त्रि: सप्त समिध: कृता: । देवा वद्यज्ञं तन्वाना ऽअबध्नन्पुरुषं पशुम् ॥

यानि कानि च पापानि जन्मान्तरकृतानि च । तानि तानि प्रणश्यन्ति प्रदक्षिणपदे पदे ॥

ॐ श्रीकृष्णाय नम: प्रदक्षिणां समर्पयामि ।

मन्त्रपुष्पाञ्जलि

ॐ वज्ञेन वज्ञमयजन्त देवास्तानि धर्म्माणि प्रथमान्यासन् ।

ते ह नाकं महिमान: सचन्त वत्र पूर्व्वे साध्या: सन्ति देवा: ॥

ॐ राजाधिराजाय प्रसह्य साहिने  नमो वयं वैश्रवणाय कुर्महे । स मे कामानू कामकामाय मह्यम् कामेश्वरो वैश्रवणो ददातु ॥कुवेराय वैश्रवणाय महाराजाय नम: । ॐ स्वस्ति साम्राज्यं भौज्यं स्वाराज्यं वैराज्यं पारमेष्ठयं राज्यं महाराज्यमाधिपत्यमयं समन्तपर्यायी स्यात्, सार्वभौम: सार्वायुष आन्तादापरार्धात् पृथिव्यै समुद्रपर्यन्ताया एकराडिति तदप्येष श्लोलोऽभिगीतो मरुत: परिवेष्टारो मरुत्तस्यावसन् गृहे । आविक्षितस्य कामप्रेविश्वेदेवा: सभासद इति ॥

ॐ व्विश्वतश्चक्षुरुत व्विश्वतो मुखो व्विश्वतो बाहुरुत व्विश्वतस्पात् ।

सम्बाहुब्भ्यां धमति सम्पतत्त्रैर्द्यावाभूमी जनयन्देव ऽएक: ॥

ॐ देवकीनंदनाय विद्महे वासुदेवाय धीमहि ।तन्नो कृष्ण: प्रचोदयात् ॥

ॐ श्रीकृष्णाय नम: मन्त्रपुष्पाञ्जलि समर्पयामि ।

नमस्कार

भजे व्रजैकमण्डनं समस्तपापखण्डनं,स्वभक्तचित्तरंजनं सदैव नन्दनन्दनम्।

सुपिच्छगुच्छमस्तकं सुनादवेणुहस्तकं,अनंगरंगसागरं नमामि कृष्णनागरम्॥                               

मनोजगर्वमोचनं विशाललोललोचनं,विधूतगोपशोचनं नमामि पद्मलोचनम्।

करारविन्दभूधरं स्मितावलोकसुन्दरं,महेन्द्रमानदारणं नमामि कृष्ण वारणम्॥                               

अनर्थेऽर्थदृशं मूढां विश्वस्तां भयदस्थले ।जागृतव्ये शयानां मामुद्धरस्व दयापरः ॥

क्षमा-प्रार्थना

मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वर । यत्पूजितं मया देव परिपूर्णं तदस्तु मे ॥

आवाहनं न जानामि न जानामि तवार्चनम् । पूजां चैव न जानामि क्षमस्व परमेश्वर ॥                     

अपराधसह स्नाणि क्रियन्तेऽहनिशं मया । दासोऽयमिति मां मत्वा क्षमस्व परमेश्वर ॥                                     

अनायासेन मरणं विना दैन्येन जीवनम् । देहि मे कृपया कृष्ण त्वयि भक्तिमचञ्चलाम् ॥

मत्समो नास्ति पापिष्ठ: त्वत्समो नास्ति पापहा । इति मत्वा दयासिन्धो यथेच्छसि तथा कुरु ॥                                 

कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने नमः प्रणतः क्लेश नाशाय गोविन्दाय नमो नमः ।।

कृष्णाय वासुदेवाय देवकीनन्दनाय च। नन्दगोपकुमाराय गोविन्दाय नमो नमः।। 

केशव क्लेशहरण नारायण जनार्दन। गोविन्द परमानन्द मां समुद्धर माधव॥ 

श्री वत्साङ्गं महोरस्कं, वनमाला विराजितं, शङ्ख चक्र धरं देवं, कृष्णं वन्दे जगत गुरुं॥ 

प्रसीद परमानन्द प्रसीद परमेश्वर। आधि-व्याधि-भुजंगेन दष्ट मामुद्धर प्रभो॥ 

त्वमेव मातृपित्रादिबन्धुवर्गादयश्च ये। विद्या वित्तं कुलं शील त्वत्तो मे नास्ति किञ्चन ॥ 

त्वं माता सर्वदेवानां त्वं च यज्ञस्य कारणम्। त्वं तीर्थं सर्वतीर्थानां नमस्तेऽस्तु सदानघे।।             

अनन्तर निम्नाङ्कित वाक्य कह कर यह पूजत-कर्म भगवान् श्रीकृष्ण को समर्पित करें---                                    

अनेन यथाशक्तिकृतेन पूजनेन भगवान् श्रीकृष्ण: प्रीयतां न मम ।

पश्चात् भगवान् श्रीकृष्ण का स्मरण करें---

प्रमादात्कुर्वतां कर्म प्रच्यवेताध्वरेषु यत् । स्मरणादेव तद्विष्णो: सम्पूर्णं स्यादिति श्रुति: ॥

पस्य स्मृत्या च नामोत्त्या तपोपज्ञक्रियादिषु । न्यूतं सम्पूणेतां याति सद्या वन्दे तमच्युतम् ॥

ॐ श्रीकृष्णाय नम: ॥ ॐ विष्णवे नम: ॥ ॐ विष्णवे नम: ॥

इति: श्री कृष्ण पूजन विधि:

श्री कृष्ण जी की चरणों में प्रीति के लिए रासपंचाध्यायी का पाठ करें।

॥ जय श्री राधे ॥  

Post a Comment

0 Comments