शिव परिहार स्तुति
हिमालय ने कन्यादान करके भगवान शिव
की परिहार नामक स्तुति की। उन्होंने दोनों हाथ जोड़ माध्यन्दिन-शाखा में वर्णित
स्तोत्र को पढ़ते हुए उनका स्तवन किया। जो मनुष्य सावधान-चित्त होकर हिमालय द्वारा
किये गये स्तोत्र का पाठ करता है, उसके लिये शिव
निश्चय ही मनोवांछित वस्तु प्रदान करते हैं।
शिव परिहार स्तुति स्तोत्रम्
हिमालय उवाच ।।
प्रसीद दक्षयज्ञघ्न नरकार्णवतारक ।
सर्वात्मरूप सर्वेश परमानंदविग्रह
।। १ ।।
गुणार्णव गुणातीत गुणयुक्त गणेश्वर
।
गुणबीज महाभाग प्रसीद गुणिनां वर ।।
२ ।।
योगाधार योगरूप योगज्ञ योगकारण ।
योगीश योगिनां बीज प्रसीद योगिनां
गुरो ।। ३ ।।
प्रलयप्रलयाद्यैकभवप्रलयकारण ।
प्रलयान्ते सृष्टिबीज प्रसीद
परिपालक ।। ४ ।।
संहारकाले घोरे च सृष्टिसंहारकारण ।
दुर्निवार्य दुराराध्य चाशुतोष
प्रसीद मे ।। ५ ।।
कालस्वरूप कालेश काले च फलदायक ।
कालबीजैककालघ्न प्रसीद कालपालक ।। ६
।।
शिवस्वरूप शिवद शिवबीज शिवाश्रय ।
शिवभूत शिवप्राण प्रसीद परमाश्रय ।।
७ ।।
इत्येवं स्तवनं कृत्वा विरराम
हिमालयः ।
प्रशशंसुः सुराः सर्वे मुनयश्च
गिरीश्वरम् ।। ८ ।।
हिमालयकृतं स्तोत्रं संयतो यः
पठेन्नरः ।
प्रददाति शिवस्तस्मै वाञ्छितं
राधिके ध्रुवम् ।। ९ ।।
इति श्रीब्रह्मवैवर्ते महापुराणे
श्रीकृष्णजन्मखण्डे नारायणनारदसंवादे पार्वतीसंप्रदाने चतुश्चत्वारिंशोऽध्यायः ।।४४।।
शिव परिहार स्तुति स्तोत्र भावार्थ सहित
हिमालय उवाच ।।
प्रसीद दक्षयज्ञघ्न नरकार्णवतारक ।
सर्वात्मरूप सर्वेश परमानंदविग्रह
।।
हिमालय बोले–
सर्वेश्वर शिव! आप दक्ष यज्ञ का विध्वंस करने वाले तथा शरणागतों को
नरक के समुद्र से उबारने वाले हैं, सबके आत्मस्वरूप हैं और
आपका श्रीविग्रह परमानन्दमय है; आप मुझ पर प्रसन्न हों।
गुणार्णव गुणातीत गुणयुक्त गणेश्वर
।
गुणबीज महाभाग प्रसीद गुणिनां वर ।।
गुणवानों में श्रेष्ठ महाभाग शंकर!
आप गुणों के सागर होते हुए भी गुणातीत हैं; गुणों
से युक्त, गुणों के स्वामी और गुणों के आदि कारण हैं;
मेरे ऊपर प्रसन्न होइये।
योगाधार योगरूप योगज्ञ योगकारण ।
योगीश योगिनां बीज प्रसीद योगिनां
गुरो ।।
प्रभो! आप योग के आश्रय;
योगरूप, योग के ज्ञाता, योग
के कारण, योगीश्वर तथा योगियों के आदिकारण और गुरु हैं;
आप मेरे ऊपर कृपा करें।
प्रलयप्रलयाद्यैकभवप्रलयकारण ।
प्रलयान्ते सृष्टिबीज प्रसीद
परिपालक ।।
भव! आपमें ही सब प्राणियों का लय होता
है,
इसलिये आप ‘प्रलय’ हैं।
प्रलय के एकमात्र आदि तथा उसके कारण हैं। फिर प्रलय के अन्त में सृष्टि के बीजरूप
हैं और उस सृष्टि का पूर्णतः परिपालन करने वाले हैं; मुझ पर
प्रसन्न होवें।
संहारकाले घोरे च सृष्टिसंहारकारण ।
दुर्निवार्य दुराराध्य चाशुतोष
प्रसीद मे ।।
भयंकर संहार-काल में सृष्टि का
संहार करने वाले आप ही हैं। आपके वेग को रोकना किसी के लिये भी अत्यन्त कठिन है। आराधना
द्वारा आपको रिझा लेना भी सहज नहीं है तथापि आप भक्तों पर शीघ्र ही प्रसन्न हो
जाते हैं;
प्रभो! आप मुझ पर कृपा करें।
कालस्वरूप कालेश काले च फलदायक ।
कालबीजैककालघ्न प्रसीद कालपालक ।।
आप कालस्वरूप,
काल के स्वामी, कालानुसार फल देने वाले,
काल के एकमात्र आदि कारण तथा काल के नाशक एवं पोषक हैं; मुझ पर प्रसन्न हों।
शिवस्वरूप शिवद शिवबीज शिवाश्रय ।
शिवभूत शिवप्राण प्रसीद परमाश्रय ।।
आप कल्याण की मूर्ति,
कल्याणदाता तथा कल्याण के बीज और आश्रय हैं। आप ही कल्याणमय तथा
कल्याणस्वरूप प्राण हैं; सबके परम आश्रय शिव! मुझ पर कृपा
करें।
इत्येवं स्तवनं कृत्वा विरराम
हिमालयः ।
प्रशशंसुः सुराः सर्वे मुनयश्च
गिरीश्वरम् ।।
इस प्रकार स्तुति कर हिमालय चुप हो
गये,
उस समय समस्त देवताओं और मुनियों ने गिरिराज के सौभाग्य की सराहना
की।
हिमालयकृतं स्तोत्रं संयतो यः
पठेन्नरः ।
प्रददाति शिवस्तस्मै वाञ्छितं
राधिके ध्रुवम् ।।
राधिके! जो मनुष्य सावधान-चित्त
होकर हिमालय द्वारा किये गये स्तोत्र का पाठ करता है,
उसके लिये शिव निश्चय ही मनोवांछित वस्तु प्रदान करते हैं।
इस प्रकार श्रीब्रह्मवैवर्त महापुराण के श्रीकृष्णजन्मखण्ड में वर्णित शिव परिहार स्तुति स्तोत्र सम्पूर्ण हुआ।।४४।।
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