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कर्मकाण्ड

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तुलसी विवाह विधि

तुलसी विवाह विधि

कार्तिक शुक्ल नवमी को द्वापर युग का प्रारम्भ हुआ है। अत: वह तिथि दान और उपवास में क्रमशः पूर्वाह्नव्यापिनी तथा पराह्नव्यापिनी हो तो ग्राह्य है। इसी तिथि को (नवमी से एकादशी तक) मनुष्य शास्त्रोक्त विधि से तुलसी विवाह का उत्सव करे तो उसे कन्यादान का फल होता है । पूर्वकाल में कनक की पुत्री किशोरी ने एकादशी तिथि में सन्ध्या के समय तुलसी की वैवाहिक विधि सम्पन्न की। इससे वह किशोरी वैधव्य दोष से मुक्त हो गयी। अब मैं उसकी विधि बतलाता हूँ-

तुलसी विवाह विधि

तुलसी विवाह विधि

एक तोला सुवर्ण की भगवान् विष्णु की सुन्दर प्रतिमा तैयार करावे अथवा अपनी शक्ति के अनुसार आधे या चौथाई तोले की ही प्रतिमा बनवा ले । फिर तुलसी और भगवान् विष्णु की प्रतिमा में प्राणप्रतिष्ठा करके स्तुति आदि के द्वारा भगवान् को उठाये । पुनः पुरुषसूक्त के मन्त्रों द्वारा षोडशोपचार से पूजा करे। पहले देश-काल का स्मरण करके गणेश पूजन को, फिर पुण्याहवाचन कराकर नान्दीश्राद्ध करे । तत्पश्चात् वेदमन्त्रों के उच्चारण और बाजे आदि की ध्वनि के साथ भगवान् विष्णु की प्रतिमा को तुलसीजी के निकट लाकर रखे । प्रतिमा को वस्त्रों से आच्छादित किये रहे। उस समय भगवान्का इस प्रकार आवाहन करे-

आगच्छ भगवन् देव अर्हयिष्यामि केशव ।

तुभ्यं दास्यामि तुलसीं सर्वकामप्रदो भव ॥

भगवान् केशव ! आइये देव! मैं आपकी पूजा करूँगा। आपकी सेवा में तुलसी को समर्पित करूँगा । आप मेरे सम्पूर्ण मनोरथों को पूर्ण करें।

इस प्रकार आवाहन के पश्चात् तीन-तीन बार अर्ध्य, पाद्य और विष्टर का उच्चारण करके इन्हें बारी-बारी से भगवान्को समर्पित करे । फिर आचमनीय पद का तीन बार उच्चारण करके भगवान्को आचमन करावे । इसके बाद कांस्य के पात्र में दही, घी और मधु रखकर उसे कांस्य के पात्र से ही ढक दे तथा भगवान्को अर्पण करते हुए इस प्रकार कहे -वासुदेव ! आपको नमस्कार है, यह मधुपर्क ग्रहण कीजिये । तदनन्तर हरिद्रालेपन और अभ्यङ्ग कार्य सम्पन्न करके गोधूलि की बेला में तुलसी और श्रीविष्णु का पूजन पृथक-पृथक् करना चाहिये।

अथ तुलसी विष्णु पूजन विधि:

तुलसी के समीप श्री विष्णुजी की प्रतिमा रखकर पवित्र आसन पर बैठ कर आचमन, प्राणायाम कर ॐ अपवित्र: पवित्रो वा०इससे अपने शरीर का और पूजा सामग्री का पवित्र जल से सम्प्रोक्षण कर अपने दाहिने हाथ में अक्षत, पुष्प तथा जल लेकर इस प्रकार सङ्कल्प करे-

शुक्लाम्बरधरं विष्णुं शशिवर्णं चतुर्भुजम् ।

प्रसन्नवदनं ध्यायेत् सर्वविघ्नोपशान्तये ॥

श्रीपरमेश्वरप्रीत्यर्थं शुभे ... तिथौ तुलसी महाविष्णु प्रसादसिद्ध्यर्थं दीर्घसौमङ्गल्यप्राप्यर्थं सत्सन्तानसिद्ध्यर्थं समस्तसम्पत्प्राप्त्यर्थं सर्वाभीष्टसिद्ध्यर्थं तुलसी महाविष्णुपूजां करिष्ये ।

तत्पश्चात् तुलसी विष्णु पूजन विधि प्रारम्भ करें-

तुलसीं ध्यान

ध्यायामि तुलसीं देवीं श्यामां कमललोचनाम् ।

प्रसन्वदनाम्भोजां वरदामभयप्रदाम् ॥

महाविष्णुं ध्यान

ध्यायामि विष्णुं वरदं तुलसीप्रियवल्लभम् ।

तुलसी विष्णु आवाहन

पीताम्बरं पद्मनेत्रं वासुदेवं वरप्रदम् ॥

वासुदेव प्रिये देवि सर्वदेवस्वरूपिणि ।

आगच्छ पूजाभवने सदा सन्निहिता भव ॥

आगच्छागच्छ देवेश तेजोराशे जगत्पते ।

क्रियमाणां मया पूजां वासुदेव गृद्दाण भोः ॥

आसन

नानारत्नसमायुक्तं कार्तस्वरविभूषितम् ।

आसनं कृपया विष्णो तुलसि प्रतिगृह्यताम् ।

तुलसी विष्णुभ्यां नमः - आसनं समर्पयामि ।

पाद्य

गङ्गादिसर्वतीर्थेभ्यो वासुदेव मया हृतम् ।

तोयमेतत्सुखस्पर्शं पाद्यार्थं प्रतिगृह्यताम् ॥

नानानदीसमानीतं सुवर्णकलशस्थितम् ।

पाद्यं गृहाण तुलसि पापं मे विनिवारय ॥

अर्घ्य

नमस्ते देवदेवेश नमस्ते कमलापते ।

नमस्ते सर्वविनुत गृहाणार्घ्यं नमोऽस्तु ते ॥

अर्घ्यं गृहाण देवि त्वं अच्युतप्रियवल्लभे ।

अक्षतादिसमायुक्तं अक्षय्यफलदायिनि ॥

आचमन

कर्पूरवासितं तोयं गङ्गादिभ्यः समाहृतम् ।

आचम्यतां जगन्नाथ मया दत्तं च भक्तितः ॥

गृहाणाचमनार्थाय विष्णुवक्षः स्थलालये ।

स्वच्छं तोयमिदं देवि सर्वपापविनाशिनि ॥

मधुपर्क

दध्याज्यमधुसंयुक्तं मधुपर्कं मयाऽऽहृतम् ।

गृहाण विष्णो वरद लक्ष्मीकान्त नमोऽस्तु ते ॥

मधुपर्कं गृहाणेमं मधुसूदनवल्लभे ।

मधुदध्याज्य संयुक्तं महापापविनाशिनि ।

पञ्चामृत

मध्वाज्यशर्करायुक्तं दधिक्षीरसमन्वितम् ।

पञ्चामृतं गृहाणेदं भक्तानामिष्टदायक ॥

पञ्चामृतं गृहाणेदं पञ्चपातकनाशिनि ।

दधिक्षीरसमायुक्तं दामोदरकुटुम्बिनि ॥

स्नान

गङ्गा कृष्णा च यमुना नर्मदा च सरस्वती ।

तुङ्गा गोदावरी वेणी क्षिप्रा सिन्धुर्घटप्रभा ॥

तापी पयोष्णी सरयूस्ताभ्यः स्नानार्थमाहृतम् ।

तोयमेतत्सुखस्पर्शं स्नानीयं गृह्यतां हरे ॥

गङ्गागोदावरीकृष्णातुङ्गादिभ्यः समाहृतम् ।

सलिलं देवि तुलसि स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम् ॥

वस्त्र

सर्वभूषाधिके सौम्ये लोकलज्जानिवारणे ।

वाससी प्रतिगृह्णातु लक्ष्मीजानिरधोक्षजः ॥

पीताम्बरमिदं दिव्यं पातकव्रजनाशिनि ।

पीताम्बरप्रिये देवि परिधत्स्व परात्परे ॥

आभरण

भूषणानि वरार्हाणि गृह्णीतं तुलसीश्वर ।

किरीटहारकेयूरकटकानि हरेऽमृते ॥

गन्ध

चन्दनागरुकर्पूरकस्तूरीकुङ्कुमान्वितम् ।

गन्धं स्वीकुरुतं देवौ रमेशहरिवल्लभे ॥

पुष्प

मल्लिकाकुन्दमन्दारञ्जाजीवकुल चम्पकैः ।

शतपत्रैश्च कल्हारैःअर्चये तुलसीहरी ।

अङ्गपूजा -

वृन्दायै अच्युताय नमः - पादौ पूजयामि ।

तुलस्यै अनन्ताय नमः - गुल्फौ पूजयामि ।

जनार्दनप्रियायै तुलसीकान्ताय नमः - जङ्घे पूजयामि ।

जन्मनाशिन्यै गङ्गाधरपदाय नमः - जानुनी पूजयामि ।

उत्तमायै उत्तमाय नमः - ऊरू पूजयामि ।

कमलाक्ष्यै कमलाक्षाय नमः - कटिं पूजयामि ।

नारायण्यै नारायणाय नमः - नाभिं पूजयामि ।

उन्नतायै उन्नताय नमः - उदरं पूजयामि ।

वरदायै वरदाय नमः - वक्षः पूजयामि ।

स्तव्यायै स्तव्याय नमः - स्तनौ कौस्तुभं पूजयामि ।

चतुर्भुजायै चतुर्भुजाय नमः - भुजान् पूजयामि ।

कम्बुकण्ठ्यै वनमालिने नमः - कण्ठं पूजयामि ।

कल्मषघ्न्यै कल्मषघ्नाय नमः - कर्णौ पूजयामि ।

मुनिप्रियायै मुनिप्रियाय नमः - नेत्रे पूजयामि ।

शुभप्रदायै शुभप्रदाय नमः -शिरः पूजयामि ।

सर्वार्थदायिन्यै सवार्थदायिने नमः - सर्वाण्यङ्गानि पूजयामि ।

धूप

धूपं गृहाण वरदे दशाङ्गेन सुवासितम् ।

तुलस्यमृतसम्भूते धूतपापे नमोऽस्तु ते ॥

दशाङ्गो गुग्गुलूपेतः सुगन्धः सुमनोहरः ।

श्रीवत्साङ्क हृषीकेश धूपोऽयं प्रतिगृह्यताम् ॥

दीप

वर्तित्रय युतं दीप्तं गोघृतेन समन्वितम् ।

दीपं देवि गृहाणेमं दैत्यारिहृदयस्थिते ॥

साज्यं त्रिवर्तिसंयुक्तं दीप्तं देव जनार्दन ।

गृहाण मङ्गलं दीपं त्रैलोक्यतिमिरं हर ॥

नैवेद्य

नानाभक्ष्यैश्च भोज्यैश्च फलैः क्षीरघृतादिभिः ।

नैवेद्यं गृह्यतां युक्तं नारायणमनः प्रिये ॥

भोज्यं चतुर्विधं चोष्यभक्ष्यसूपफलैर्युतम् ।

दधिमध्वाज्यसंयुक्तं गृह्यतामम्बुजेक्षण ।

ताम्बूल

कर्पूरचूर्णताम्बूलवल्लीपूगफलैर्युतम् ।

जगतः पितरावेतत्ताम्बूलं प्रतिगृह्यताम् ।

नीराजन

नीराजनं गृहाणेदं कर्पूरैः कलितं मया ।

तुलस्यमृतसम्भूते गृहाण हरिवल्लभे ॥

चन्द्रादित्यौ च नक्षत्रं विद्युदग्निस्त्वमेव च ।

त्वमेव सर्वज्योतींषि कुर्यां नीराजनं हरे ॥ (नीराजनं )

प्रदक्षिण

प्रकृष्टपापनाशाय प्रकृष्टफलसिद्धये ।

युवां प्रदक्षिणी कुर्वे तुलसीशौ प्रसीदतम् ॥

नमस्कार

नमोऽस्तु पीयूष समुद्भवायै नमोऽस्तु पद्माक्षमनः प्रियायै ।

नमोऽस्तु जन्माप्यय भीतिहन्त्र्यै नमस्तुलस्यै जगतां जनन्यै ॥

शङ्खचक्रगदापाणे द्वारकानिलयाच्युत ।

गोविन्द पुण्डरीकाक्ष रक्ष मां शरणागतम् ॥

पुष्पाञ्जलि

पुष्पाञ्जलिं गृहाणेदं पङ्कजाक्षस्य वल्लभे ।

नमस्ते देवि तुलसि नताभीष्टफलप्रदे ।

मन्दारनीलोत्पलकुन्दजाती पुनागमल्लीकरवीरपद्मैः ।

पुष्पाञ्जलिं ते जगदेकबन्धो हरे त्वदङ्ग्रौ विनिवेशयामि ।(मन्त्रपुष्पाञ्जलिं )

प्रार्थना

आयुरारोग्यमतुलमैश्वर्यं पुत्रसम्पदः ।

देहि मे सकलान्कामान् तुलस्यमृतसम्भवे ॥

नमो नमः सुखवरपूजिताङ्ग्रये नमो नमो निरुपममङ्गलात्मने ।

नमो नमो विपुलपदैकसिद्ध्ये नमो नमः परमदयानिधे हरे ॥

नमस्ते देवि तुलसि माधवेन समन्विता ।

प्रयच्छ सकलान्कामान् द्वादश्यां पूजिता मया ॥

कायेन वाचा मनसेन्द्रियैर्वा बुध्यात्मना वा प्रकृतेः स्वभावात् ।

करोमि यद्यत्सकलं परस्मै नारायणायेति समर्पयामि ॥

ॐ तत्सत् नमस्ते देवि तुलसि नमस्ते मोक्षदायिनि ।

इदमर्घ्यं प्रदास्यामि सुप्रीता वरदा भव ॥

लक्ष्मीपते नमस्तुभ्यं तुलसीदामभूषण ।

इदमर्घ्यं प्रदास्यामि गृहाण गरुडध्वज ॥

श्री तुलस्यै महाविष्णवे च नमः - इद मर्घ्यमिद मर्घ्यमिदमर्घ्यम् ॥

इति त्रिः ॥        

अब दोनों को एक-दुसरे के सम्मुख रखकर मङ्गल-पाठ करे। जब भगवान सूर्य कुछ-कुछ दिखायी देते हो, तब कन्यादान का सङ्कल्प करे। अपने गोत्र और प्रवर का उच्चारण करके आदि की तीन पीढ़ियों का भी आयर्तन करे।

गोत्रोद्भवां ... शर्मणः प्रपौत्रीं, ...

शर्मणः पौत्रीं, शर्मणः पुत्रीं

तुलसीनाम्नीं इमां कन्यकां अजाय अनादये श्री विष्णवे वराय ददामि ।

तत्पश्चात् भगवान्से इस प्रकार कहे-

अनादिमध्यनिधन त्रैलोक्य प्रतिपालक ।

इमां गृहाण तुलसीं विवाह विधिनेश्वर ।

पार्वती बीजसंभूतां बृन्दाभस्मनि संस्थिताम् ।

अनादिमध्यनिधनां वल्लभां ते ददाम्यहम् ॥

पयोघृतैश्च सेवाभिः कन्यावद्वर्धितां मया ।

त्वत्प्रियां तुलसीं तुभ्यं ददामि त्वं गृहाण भोः ॥

'आदि, मध्य और अन्त से रहित त्रिभुवनप्रतिपालक परमेश्वर ! इस तुलसी को आप विवाह की विधि से ग्रहण करें। यह पार्वती के बीज से प्रकट हुई है, वृन्दा की भस्म में स्थित रही है तथा आदि, मध्य और अन्त से शून्य है। आपको तुलसी बहुत ही प्रिय है, अत: इसे मैं आपकी सेवा में अर्पित करता हूँ। मैंने जल के घड़ों से सींचकर और अन्य प्रकार की सेवाएँ करके अपनी पुत्री की भाँति इसे पाला, पोसा और बढ़ाया है, आपकी प्रिया तुलसी मैं आपको ही दे रहा हूँ। प्रभो ! आप इसे ग्रहण करें।

इस प्रकार तुलसी का दान करके फिर उन दोनों (तुलसी और विष्णु) की पूजा करे । विवाह का उत्सव मनाये । सवेरा होने पर पुनः तुलसी और विष्णु का पूजन करे । अग्नि की स्थापना करके उसमें द्वादशाक्षर मन्त्र से खीर, घी, मधु और तिलमिश्रित हवनीय द्रव्य की एक सौ आठ आहुति दे । फिर स्विष्टकृत होम करके पूर्णाहुति दे । आचार्य की पूजा करके होम की शेष विधि पूरी करे । उसके बाद भगवान् से इस प्रकार प्रार्थना करे-

'देव ! प्रभो !! आपकी प्रसन्नता के लिये मैंने यह व्रत किया है। जनार्दन ! इसमें जो न्यूनता हो, यह आपके प्रसाद से पूर्णता को प्राप्त हो जाय ।

यदि द्वादशी में रेवती का चौथा चरण बीत रहा हो तो उस समय पारण न करे । जो उस समय भी पारण करता है, यह अपने ब्रत को निष्फल कर देता है । भोजन के पश्चात् तुलसी के स्वतः गलकर गिरे हुए पत्तों को खाकर मनुष्य सब पापों से मुक्त हो जाता है । भोजन के अन्त में ऊख, ऑवला और बेर का फल खा लेने से उच्छिष्ट-दोष मिट जाता है।

तदनन्तर भगवान का विसर्जन करते हुए कहे-

वैकुण्ठं गच्छ भगवन् तुलस्या सहितः प्रभो ।

मत्कृतं पूजनं गृह्य सन्तुष्टो भव सर्वदा ॥

गच्छ गच्छ सुरश्रेष्ठ स्वस्थानं परमेश्वर ।

यत्र ब्रह्मादयो देवाः तत्र गच्छ जनार्दन ॥

भगवान् ! आप तुलसी के साथ वैकुण्ठधाम में पधारें। प्रभो! मेरे द्वारा की हुई पूजा ग्रहण करके आप सदा सन्तुष्ट रहें ।

इस प्रकार देवेश्वर विष्णु का विसर्जन करके मूर्ति आदि सब सामग्री आचार्य को अर्पण करे । इससे मनुष्य कृतार्थ हो जाता है।

इति तुलसी विवाह विधि

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