रामाज्ञा प्रश्न शकुन जानने की विधी

रामाज्ञा प्रश्न शकुन जानने की विधी

रामाज्ञा प्रश्न शकुन जानने की विधी इस प्रकार है-

रामाज्ञा प्रश्न शकुन जानने की विधी

इसी ग्रन्थ के सप्तम सर्ग के सातवें सप्तक में गोस्वामी तुलसीदासजी ने स्वयं प्रश्न का उत्तर निकालने की विधि दी है । वह विधि यह है -

किसी अच्छे दिन सायंकाल ग्रन्थ को निमन्त्रण देना चाहिये । अर्थात् सायंकाल अच्छे आसन पर ग्रन्थ को रखकर प्रार्थना करनी चाहिये - 'कल मैं आपसे कुछ आवश्यक बात जानने की इच्छा करुँगा । मुझ पर अनुग्रह करके सत्य फल सूचित करने की कृपा करें ।'

अष्टोत्तर सत कमल फल मुष्टी तीन प्रमान ।

सप्त सप्त तजि सेषको राखै सब बिलगान ॥

प्रथम सर्ग जो शेष रह, दूजे सप्तक होइ ।

तीजे दोहा जानिये, सगुन बिचारब सोइ ॥

दूसरे दिन प्रातःकाल स्त्रान - सन्ध्यादि नित्यकर्म करके पुस्तक की पुष्प, चन्दन, धूप - दीप आदि से पहले पूजा करनी चाहिये । फिर श्रद्धा - विश्वासपूर्वक पहले गुरुदेव, गणेशजी, शिव-पार्वती, श्रीसीता-राम, लक्ष्मण और हनुमान का स्मरण करके जो प्रश्न करना हो, वह प्रश्न करके १०८ कमलगट्टे ( कमल के पके फल ) अञ्जलि में लेकर ग्रन्थ के पास सामने रख दें । फिर उसमें से एक - एक करके तीन मुट्ठी कमलगट्टे उठायें और उनको अलग - अलग रखते जायँ । पहली बार की मुट्ठी के कमलगट्टों को गिनकर उस संख्या में सात का भाग दें । भाग देने पर जो बाकी बचे, उसे ग्रन्थ के सर्ग की संख्या समझें । यदि कुछ बाकी न बचे तो ग्रन्थ का सातवाँ सर्ग समझें । इसी प्रकार दूसरी मुट्ठी के कमलगट्टे गिनकर उनकी संख्या में सात का भाग दें और जो शेष बचे उसे पहले आये हुए सर्ग के सप्तक की संख्या समझें और कुछ शेष न बचे तो उस सर्ग का सातवाँ सप्तक समझें । अब तीसरी मुट्ठी के कमलगट्टों को गिनकर सात का भाग उस संख्या में दें । जो शेष बचे, वह उस ज्ञात सप्तक के दोहे की संख्या है । यदि कुछ न बचे तो उस सप्तक का सातवाँ दोहा समझें । अब ग्रन्थ खोलकर उस सर्ग के उस सप्तक का वह दोहा देख लें और दोहे के अनुसार अपने प्रश्न का फल समझ लें ।

उदाहरण के लिये- पहली मुट्ठी के कमलगट्टे गिने तो १७ निकले, उनमें सात का भाग देने से ३ बचा, यह ग्रन्थ के तीसरे सर्ग की सूचना हुई । दूसरी मुट्ठी के कमलगट्टे गिनने पर २५ निकले । इसमें सात का भाग देने से चार बचा, यह सप्तक की सूचना हुई । तीसरी मुट्ठी के कमलगट्टे गिनने पर २७ निकले । इस संख्या में सात का भाग दिया तो ६ शेष रहा जो दोहे की दोहा देखा तो वह दोहा निकला -

लखन ललित मूरति मधुर सुमिरहु सहित सनेह ।

सुख संपति कीरति विजय सगुन सुमंगल गेह ॥

इसका तात्पर्य है कि यदि प्रश्न सुख, सम्पत्ति, कीर्ति या विजय के सम्बन्ध में है तो लक्ष्मणजी का स्मरण करके कार्य आरम्भ करो, सफलता प्राप्त होगी ।

रामाज्ञा प्रश्न शकुन जानने की दूसरी विधि

रामाज्ञा प्रश्न शकुन जानने की विधी

ऊपर यह तीन चक्र दिए हैं, जिनमें से प्रत्येक में सात अंक हैं। तीनों चक्रों में एक एक बार अंगुली रखो। प्रथम चक्र में जिस अंक पर अंगुली पड़े वह सर्ग की संख्या है, द्वितीय चक्र में जिस अंक पर अंगुली पड़े, वह सप्तक की संख्या है और तीसरे चक्र में जिस पर अंगुली पड़े, वह दोहे की संख्या है।

उदाहरण के लिए प्रथम चक्र में ४ पर द्वितीय में ६ पर और तृतीय में ७ पर अंगुली पड़ी। अब ग्रंथ में चतुर्थ सर्ग के छठे सप्तक का सातवाँ दोहा देखा। वह दोहा है-

सनमाने आने सदन पूजे अति अनुराग ।

तुलसी मंगल सगुन सुभ भूरि भलाई भाग ॥७॥

इसका तात्पर्य है कि यदि किसी मंगल विषय में प्रश्न है तो फल शुभ होगा।

विशेष बात

एक दिन में तीन से अधिक प्रश्न नहीं करना चाहिये और एक प्रश्न केवल एक बार ही करना चाहिये । प्रश्न जिस प्रकार का है, दोहा उसी प्रकार का निकले तो कार्य में सफलता समझनी चाहिये । दोहे में अशुभ की सूचना हो तो वह कार्य सफल नहीं होगा या उससे कष्ट होगा, यह समझना चाहिये । किंतु आप जिस विषय में प्रश्न कर रहे हैं, दोहा उस विषय का न निकलकर उससे सर्वथा भिन्न विषय का निकले तो फल संदिग्ध समझना चाहिये । जैसे आपका प्रश्न तो है कि युद्ध या मुकदमे में विजय होगी या नहीं और दोहा निकलता है -

एक बितान बिबाहि सब सुवन सुमंगल रुप ।

तुलसी सहित समाज सुख सुकृत सिंधु दोउ भूप ॥

ऐसी दशा में दोहा परम मङ्गलसूचक होने पर भी प्रश्न से सम्बन्धित न होने के कारण प्रश्न का परिणाम संदिग्ध है, यह सूचना देता है ।

नोट-किस प्रकार का प्रश्न किस दिन करना चाहिए,यह बात इसी ग्रन्थ में सप्तम सर्ग के पहले और दुसरे सप्तक में देखें । 

इस प्रकार तुलसीदासकृत रामाज्ञा प्रश्न शकुन जानने की विधी सम्पूर्ण हुआ।

आगे जारी.......... रामज्ञा प्रश्न

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