रामज्ञा प्रश्न सप्तम सर्ग
रामज्ञा प्रश्न सप्तम सर्ग Ramagya prashna sarga 7 - रामाज्ञा प्रश्न तुलसीदास की रचना है जो
शुभ-अशुभ विचार के लिए रची गयी है। यह विचार उन्होंने राम-कथा की सहायता से
प्रस्तुत किया है। यह रचना दोहा शैली में रचित है। सात-सात सप्तकों के सात सर्गों
के लिए पुस्तक खोलने पर जो दोहा मिलता है उसके पहले राम-कथा का कोई एक प्रसंग आता
है और बाद में शुभ-अशुभ फल चर्चा आती है। तुलसीदास जी की यह रचना अवधी भाषा मे
लिखित एक मुक्तक काव्य है। मूलतः यह एक ज्योतिष ग्रन्थ है जिसको तुलसीदास जी ने
अपने मित्र गंगाराम ज्योतिष के आग्रह पर लिखा था।
रामज्ञा प्रश्न - सप्तम सर्ग - सप्तक १
राम लखनु सानुज भरत सुमिरत सुभ सब
काज ।
साहित प्रीति प्रतीति हित सगुन सकल
सुभ काज ॥१॥
श्रीराम,
लक्ष्मण तथा छोटे भाई शत्रुघ्नजी के साथ भरतजी का स्मरण करने से सभी
कार्य शुभ हो जाते हैं । साहित्य ( मेल-जोल ), प्रेम और
विश्वास की दृष्टि से यह शकुन सब कार्यों का शुभ ( सफल ) होना बतलाता है ॥१॥
सुख मुद मंगल कुमुद बिधु,
सगुन सरोरुह भानु ।
करहु काज सब सिद्धि प्रभु आनि हिएँ
हनुमानु ॥२॥
सुख आनन्द तथा मंगलरूपी कुमुदिनियों
के लिये चन्द्रमा के समान तथा शकुनरूपी कमलों के लिये सुर्य के समान स्वामी
श्रीहनुमानजी का हृदय में लाकर कार्य करो, सब
प्रकार की सफलता मिलेगी ॥२॥
राज काज मनि हेम हय राम रूप रबि बार
।
कहब नीक जय लाभ सुभ सगुन समय अनुहार
॥३॥
रविवार के दिन श्रीराम के स्वरूप का
ध्यान करके राजकार्य मणि, स्वर्ण एवं
घोडे़-सम्बन्धी प्रश्न करो । मैं कहूँगा
कि यह शकुन समयानुसार विजय, लाभ मंगल तथा भलाई की दृष्टि से
शुभ है ॥३॥
रस गोरस खेती सकल बिप्र काज सुभ साज
।
राम अनुग्रहँ सोम दिन प्रमुदित
प्रजा सुराज ॥४॥
रस, गोरस, खेती, ब्राह्मणों के
कार्य तथा शुभ साजवट में प्रश्न सोमवार को करे । श्रीराम की कृपा से उत्तम शासन
पाकर प्रजा आनन्दित रहेंगी ॥४॥
( प्रश्न-फल शुभ है । )
मंगल मंगल भूमि हित,
नृप हित जय संग्राम ।
सगुन बिचारब समय सुभ,
करि गुरु चरन प्रनाम ॥५॥
मंगलवार को पृथ्वी के लिये,
राजा के लिये, युद्ध ( विवाद ) में विजय के
लिये गुरुदेव के चरणों में प्रणाम करके शकुन का विचार समयानुकूल एवं शुभ है,
मंगलदायक है ॥५॥
बिपुल बनिज बिद्या बसन बुध बिसेषि
गृह काजु ।
सगुन सुमंगल कहब सुभ सुमिरि सीय
रघुराजु ॥६॥
अनेक प्रकार के व्यापार,
विद्या वस्त्र तथा विशेषत: घर के कार्यों के लिये श्रीसीता-रामजी का
स्मरण करके बुधवार को शकुन बतलाना शुभ है तथा मंगलदायी है ॥६॥
गुरु प्रसाद मंगल सकल,
राम राज सब काज ।
जज्ञ बिबाह उछाह ब्रत,
सुभ तुलसी सब साज ॥७॥
गुरुदेव ( वसिष्ठजी ) की कृपा से
श्रीराम के राज्य में सभी कार्यों में सब प्रकार मंगल होता था । तुलसीदासजी कहते
हैं कि यज्ञ, विवाह उत्सव तथा व्रत के लिये
गुरुवार को प्रश्न करना सब प्रकार शुभ करनेवाला है ॥७॥
रामज्ञा प्रश्न - सप्तम सर्ग - सप्तक २
सुक्र सुमंगल काज सब कहब सगुन सुभ
देखि ।
जंत्र मंत्र औषधी सहसा सिद्धि
बिसेषि ॥१॥
शुक्रवार को सभी मंगलकारी कार्यों के
लिये शुभ शकुन देखकर फल बताये । विशेषतः यन्त्र, मन्त्र, औषधि (सम्बन्धी कार्य ) में ( यह दिन )
अकस्मात सफलता देनेवाला है ॥१॥
राम कृपा थिर काज सुभ,
सनि बासर बिश्राम ।
लोह महिष गज बनिज भल,
सुख सुपार गृह ग्राम ॥२॥
शनिवार को सब शुभकार्य बन्द रखे और
विश्राम करे । श्रीराम की कृपा से लोहे, भैस
तथा हाथी के व्यापार में भला होगा । घर – गाँव में सुख - सुविधा रहेगी ॥२॥
राहु केतु उलटे चलहिं असुभ अमंगल
मुल ।
रुंड मुंड पाखंड प्रिय असुर अमर
प्रतिकुल ॥३॥
देवाताओं के विरोधी,
पाखण्डप्रिय ( क्रमशः ) केवल सिर और धड़ के रूप में रहनेवाले राक्षस
राहु और केतु उलटे ही चलते हैं । वे ( तथा यह शकुन ) अशुभ हैं, अमंगल की जड़ हैं ॥३॥
समउ राहु रबि गहनु मत राजहि प्रजहि
कलेस ।
सगुन सोच,
संकट बिकट, कलह कलुष दुख देस ॥४॥
यह समय सूर्यग्रहण लगने के समान
राजा - प्रजा दोनों के लिये दुःखदायी है । इस शकुन का फल यह है कि चिन्ता,
भारी विपत्ति, झगड़ा पाप और देश में दुःख होगा
।४॥
राहु सोम संगमु बिषमु,
असगुन उदधि अगाधु ।
ईति भीति खल दल प्रबल,
सीदहिं भूसुस साधु ॥५॥
राहु और चन्द्रमा का ( ग्रहण ) योग
भयंकर है,
अथाह अपशकुन का समुद्र है । अकालादि दैवी उप्तात, भय तथा दुष्टों के समूह प्रबल होंगे; ब्राह्मण और
सत्पुरुष कष्ट पायेंगे ॥५॥
सात पाँच ग्रह एक थल चलहि बाम गति
धाम ।
राज बिराजिय समउ गत,
सुभ हित सुमिरहु राम ॥६॥
सात में से पाँच ग्रह* टेढ़ी गति से अपने स्थानों से एक स्थान के लिये चले
हैं । ( इस समय ) शासन तो समयानुसार विपरीत ही चलेगा, कल्याण के लिये श्रीराम का
स्मरण करो ॥६॥
( प्रश्न-फल अशुभ है । )
* ग्रह नौ हैं, जिनमें राहु और केतु अप्रधान माने जाते है और उनका वर्णन ऊपर दोहों मे हो
भी चुका । शेष सात में से दो सूर्य और चन्द्र सीधी चाल से चलते है तथा मंगल,
बुध, गुरु, शुक्र और
शनि-ये वक्री ( टेढी़ गतिवाले ) भी होते है और उस समय अशुभ माने जाते है ।
खेती बनि बिद्या बनिज सेवा सिलिप
सुकाज ।
तुलसी सुरतरु सरिस सुफल राम कें राज
॥७॥
तुलसीदासजी कहते हैं कि रामराज्य में
खेती,
मजदुरी विद्या, वाणिज्य, सेवा, कारीगरी आदि सभी उत्तम कार्य कल्पवृक्ष के
समान ( अभीष्ट ) उत्तम फल देते थे ॥७॥
( प्रश्न-फल शुभ है । )
रामज्ञा प्रश्न - सप्तम सर्ग - सप्तक ३
सुधा साधु सुरतरु सुमन सुफल सुहावनि
बात ।
तुलसी सीतापति भगति,
सगुन सुमंगल सात ॥१॥
तुलसीदासजी कहते हैं कि अमृत,
साधु, कल्पवृक्ष, पुष्प,
अच्छे फल, सुहावनी बात और श्रीरघुनाथजी की
भक्ति ये सात मंगलदायक शकुन हैं ॥१॥
( प्रश्न फल श्रेष्ठ है । )
सिद्ध समागम संपदा सदन सरीर सुपास ।
सीतानाथ प्रसाद सुभ सगुन सुमंगल बास
॥२॥
सिद्ध पुरुषों से भेंट सम्पत्ति,
घर और शरीर ( स्वास्थ्य ) का सुख देनेवाली है । श्रीसीतानाथ की कृपा
से यह शुभ शकुन परम मंगल का निवास है ॥२॥
कौसल्या कल्यानमय मूरति करत प्रनामु
।
सगुन सुमंगल काज सुभ कृपा करहिं सिय
रामु ॥३॥
कल्याण की मूर्ति कौसल्याजी को
प्रणाम करने से श्रीसीताराम कृपा करते हैं, सभी
कार्यों में परम मंगल होता है । यह शकुन शुभ है ॥३॥
सुमिरि सुमित्रा नाम जग जे तिय
लेहिं सुनेम ।
सुवन लखन रिपुदवन से पावहिं पति पद
प्रेम ॥४॥
जो नारियाँ दृढ़ नियमपूर्वक संसार में
श्रीसुमित्राजी का नाम लेती ( जपती ) और उनका स्मरण करती हैं,
वे लक्ष्मण और शत्रुघ्न के समान पुत्र तथा पति के चरणों के प्रेम
पाती हैं ॥४॥
( शकुन स्त्रियों के लिये पुत्र
तथा पति-प्रेम की प्राप्ति का सूचक है । )
दसरथ नाम सुकामतरु फलइ सकल कल्यान
।
धरनि धाम धन धरम सुख सुत गुन रूप
निधान ॥५॥
महाराज दशरथ का नाम उत्तम कल्पवृक्ष
के समान है, समस्त कल्याणरूप फल फलता ( देता
) है । पृथ्वी, घर, धन, धर्म,सुख तथा गुण और रूप के निधान पुत्र प्राप्त
होंगे ॥५॥
कलह कपट कलि कैकई सुमिरत काज नसाइ ।
हानि मीचु दारिद दुरित असगुन असुभ
अघाइ ॥६॥
झगड़ा कपट एवं कलियुग की मूर्ति
कैकेयी का स्मरण करने से कार्य नष्ट हो जाता है । यह हानि,
मृत्यु, दरिद्रता तथा पापसुचक अत्यन्त अशुभ
अपशकुन है ॥६॥
राम बाम दिसि जानकी लखनु दाहिनी ओर
।
ध्यान सकल कल्यानमय,
सुरतरू तुलसी तोर ॥७॥
श्रीरामजी की बायीं ओर श्रीजानकीजी
और दाहिनी ओर श्रीलक्ष्मणजी हैं, इस छबि का
ध्यान सब प्रकार कल्याणमय है। तुलसीदासजी कहते हैं कि ( यह ध्यान ) तुम्हारे लिये
तो कल्पवृक्ष ( अर्थात् सभी मनोरथ पूर्ण करनेवाला) है ॥७॥
रामज्ञा प्रश्न - सप्तम सर्ग -
सप्तक ४
मध्यम दिन मध्यम दसा मध्यम सकल समाज
।
नाइ माथ रघुनाथ पद,
जानब मध्यम काज ॥१॥
दिन मध्यम है,
दशा मध्यम है, सब समाज ( योग ) मध्यम हैं,
श्रीरघुनाथजी के चरणों में मस्तक झुकाकर (प्रणाम करके) कार्य करो,
मध्यम फल ( विशेष हानि-लाभ नहीं ) होगा ॥१॥
हित पर बढ़इ बिरोधु जब,
अनहित पर अनुराग ।
राम बिमुख बिधि बामगत,
सगुन अघाइ अभाग ॥२॥
जब दूसरों की भलाई से ( अथवा हितैषी
के साथ ) विरोध बढे़ दुसरों की बुराई से ( अथवा बुरा चाहनेवाले से ) प्रेम हो तथा
मनुष्य श्रीराम से मुँह मोड़ ले तो ( इसके लिये ) विधाता ही उलटे हो गये हैं । यह
शकुन भरपुर दुर्भाग्य-से-दुर्भाग्य का सूचक है ॥२॥
कृपनु देइ पाइय परो,
बिनु साधन सिधि होइ ।
सीतापति सनमुख समुझि जो कीजिअ सुभ
होइ ॥३॥
जब कृपण कुछ दे,
कहीं पड़ा हुआ ( धन या सामान ) मिल जाय अथवा बिना किसी साधन के सफलता
प्राप्त हो तो श्रीरघुनाथजी को अनुकूल समझो जो कुछ ( इस समय ) किया जायगा, शुभ होगा ॥३॥
पहिलें हित परिनाम गत,
बीच बीच भल पोच ।
सगुन कहब अस राम गति कहबि समेत सकोच
॥४॥
( अत्यन्त ) संकोचपूर्वक मैं शकुन
का फल यह कहूँगा अथवा श्रीराम की गति ( ईच्छा ) ही ऐसी कहूँगा कि ( पूछे गये कार्य
में ) पहिले भलाई होगी, किन्तु अन्तिम फल बुरा होगा और
बीच-बीच में अच्छाई- बुराई दोनों आती रहेंगी ॥४॥
रमा रमापति गौरि हर सीता राम सनेहु
।
दंपति हित संपति सकल,
सगुन सुमंगल गेहु ॥५॥
श्रीलक्ष्मी - नारायण,
गौरी-शंकर तथा सीता-राम में प्रेम समस्त सम्पत्ति देनेवाला है ।
दम्पति के लिये यह शकुन श्रेष्ठ मंगल का घर है ॥५॥
प्रीति प्रतीत न राम पद,
बडी आस बड़ लोभ ।
नहिं सपनेहुँ संतोष सुख,
जहाँ तहाँ मन छोभ ॥६॥
श्रीराम के चरणों में प्रेम और
विश्र्वास है नहीं बड़ी-बड़ी आशाएँ हैं बड़ा लोभ है । ( फलतः ) स्वप्र में भी सन्तोष
और सुख नहीं मिलेगा, जहाँ तहाँ (
सर्वत्र ) मन में अशान्ति रहेगी ॥६॥
( प्रश्न-फल अशुभ है । )
पय नहाइ फल खाइ जपु राम नाम षट मास
।
सगुन सुमंगल सिद्धि सब करतल
तुलसीदास ॥७॥
पयस्विनी नदी में स्नान करके,
फल खाकर छः महिने राम-नाम का जप करो । तुलसीदासजी कहते हैं कि यह
शकुन ( यह साधन भी ) परम मंगलदायक हैं सभी सिद्धियाँ ( सफलताएँ ) हाथ में आयी हुई
समझो ॥७॥
रामज्ञा प्रश्न - सप्तम सर्ग -
सप्तक ५
बड़ कलेस कारज अलप,
बडी़ आस लहु लाहु ।
उदासीन सीता रमन,
समय सरिस निरबाहु ॥१॥
बड़ा कष्ट उठाने पर थोड़ा-सा कार्य
होगा,
बड़ी आशा होगी, किन्तु लाभ थोड़ा होगा ।
श्रीसीतानाथ प्रभु की ओर से उदासीनता रहेगी , समय के अनुसार
( किसी प्रकार ) निर्वाहमात्र हो जायगा ॥१॥
दस दिसि दुख दारिद दुरित,
दुसह दसा दिन दोष ।
फेरे लोचन राम अब,
सनमुख साज सरोष ॥२॥
श्रीराम के अब नेत्र फेर लेने (
उदासीन हो जाने ) से दसों दिशाओं में ( सर्वत्र ) दुःख दरिद्रता,
पाप, असहनीय दशा प्राप्त होगी । दिनों का दोष
( दुर्भाग्य ) क्रोध करके साज सजाकर सामने आ गया है ॥२॥
खेती बनिज न भीख भलि,
अफल उपाय कदंब ।
कुसमय जानब बाम बिधि,
राम नाम अवलंब ॥३॥
( इस समय ) न खेती करना अच्छा,
न व्यापार करना और न भीख माँगना । सभी उपाय असफल होंगे, अभी बुरा समय आया समझो, विधाता प्रतिकूल है ।( इस
समय ) राम-नाम ही ( एकमात्र ) सहारा है ॥३॥
पुरुषारथ स्वारथ सकल परमारथ परिनाम
।
सुलभ सिद्धि सब सगुन सुभ,
सुमिरत सीताराम ॥४॥
श्रीसीता-राम के स्मरण से स्वार्थ के
लिये किये गये मनुष्य के सभी प्रयत्न परमार्थ में परिणत हो जाते हैं तथा सभी
सिद्धियाँ सुलभ हो जाती हैं । यह शकुन शुभ है ॥४॥
भानु भाग तजि भाल थलु,
आलस ग्रसे उपाउ ।
असुभ अमंगल सगुन सुनि,
सरन रामकें आउ ॥५॥
भाग्य ललाट का स्थान छोड़कर भाग गया
है ( सौभाग्य का समय रहा नहीं ) । उपायों को आलस्य ने ग्रस्त कर लिया है । (
प्रयत्न समय पर हो नहीं सकेगा । ) अमंगलकारी यह अशुभ शकुन सुनकर ( अब ) श्रीराम की
शरण में आ जाओ ( वे ही रक्षा करने में समर्थ हैं । ) ॥५॥
गइ बरषा करषक बिकल,
सूखत सालि सुनाज ।
कुसमय कुसगुन कलह कलि,
प्रजहि कलेसु कुराज ॥६॥
वर्षा चली जाने से भली प्रकार जमा
हुआ धान सुख रह है, किसान व्याकुल हो
रहे हैं । यह अपशकुन बतलाता है कि बुरा समय रहेगा, लड़ाई-झगड़ा
होगा, बुरे शासन के कारण प्रजा को कष्ट होगा ॥६॥
तुलसी तुलसी राम सिय,
सुमिरहु लखन समेत ।
दिन दिन उदउ अनंद अब,
सगुन सुमंगल देत ॥७॥
तुलसीदासजी ( अपने आप से ) कहते
हैं- तुलसी का तथा श्रीराम-जानकी एवं लक्ष्मण का स्मरण करो । अब दिनों-दिन अभ्युदय
एवं आनन्द होगा । यह शकुन परम मंगलदायक है ॥७॥
रामज्ञा प्रश्न - सप्तम सर्ग -
सप्तक ६
उदबस अवध नरेस बिनु,
देस दुखी नर नारि ।
राज भंग कुसमाज बड़,
गत ग्रह चाल बिचारि ॥१॥
महाराज ( दशरथ ) के बिना अयोध्या
उजाड़ हो गयी है, देश के सभी स्त्री-पुरुष दुःखी
हैं । ग्रहों की गति का विचार करके ( इस शकुन का फल ) जान पड़ता है कि राज्य का नाश
होगा तथा बुरे लोगों का समूह बढे़गा ॥१॥
अवध प्रबेस अनंदु बड़,
सगुन सुमंगल माल ।
राम तिलक अवसर कहब सुख संतोष सुकाल
॥२॥
( श्रीराम का ) अयोध्या में
प्रवेश होने पर बड़ा आनन्द हुआ । श्रीराम के राजतिलक के समय को मैं सुख, सन्तोष और सुकाल ( सुभिक्ष ) का सूचक कहूँगा । यह शकुन परम मंगल की
परम्परारूप ( अत्यन्त मंगलदायी ) है ॥२॥
राम राज बाधक बिबुध,
कहब सगुन सतिभाउ ।
देखि देवकृत दोष दुख,
कीजिय उचित उपाउ ॥३॥
श्रीराम के राज्याभिषेक में देवता
बाधक हुए । इस शकुन का सच्चा भाव में यहीं कहुँगा कि देवताओं के द्वारा रचित (
आधिदैविक ) दोष और दुःख ( की प्राप्ति ) देख ( समझ ) कर उचित उपाय ( पूजा पाठ आदि
) करना चाहिये ॥३॥
मंद मंथरा मोह बस कुटिल कैकई कीन्ह
।
ब्याधि बिपति सब देवकृत समयँ सगुन
कहि दीन्ह ॥४॥
नीच मंथरा ने मोह के वश होकर रानी
कैकेयी को ( अपनी बातों से ) कुटिल बना दिया । इस शकुन ने बता दिया कि देवताओं द्वारा
रचित ( आधिदैविक ) सम्पूर्ण रोग तथा विपत्तियाँ समय पर आयेंगी ॥४॥
राम बिरहँ दसरथ दुखित,
कहति कैकई काकु ।
कुसमय जाय उपाय सब,
केवल करम बिपाकु ॥५॥
महाराज दशरथ श्रीराम के विरह में दुःखी
हैं,
( इस पर भी ) कैकेयी व्यंग वचन कहती है । बुरा समय आया है, सारे उपाय निष्फल होंगे, केवल कर्म का फल ( भाग्य से
प्राप्त कष्ट ) रहेगा ( उसे भोगना ही होगा ) ॥५॥
लखन राम सिय बसत बन,
बिरह बिकल पुर लोग ।
समय सगुन कह करम बस दुख सुख जोग
बियोग ॥६॥
श्रीराम जानकी और लक्ष्मणजी वन में
निवास करते हैं, नगर के लोग उनके वियोग में
व्याकुल हैं । इस समय यह शकुन बतलता है कि प्रारब्धानुसार दुःख सुख तथा प्रियजनों से
मिलन और वियोग प्राप्त होगा ॥६॥
तुलसी लाइ रसाल तरु निज कर सींचित
सीय ।
कृषी सफल भल सगुन सुभ समउ कहब
कमनीय ॥७॥
तुलसीदासजी कहते हैं कि आम के वृक्ष
लगाकर श्रीजानकीजी अपने हाथ से उन्हें सींचती हैं । इस पर हम यहीं कहेंगे कि यह
शकुन शुभ है - खेती अच्छी फल देगी, भलाई
होगी समय सुन्दर ( सुकाल ) होगा ॥७॥
रामज्ञा प्रश्न - सप्तम सर्ग -
सप्तक ७
सुदिन साँझ पोथी नेवति,
पूजि प्रभात सप्रेम ।
सगुन बिचारब चारु मति ,
सादर सत्य सनेम ॥१॥
( अब शकुन विचार की विधि बतला रहे
हैं- ) किसी शुभ दिन संध्या के समय पुस्तक को निमंत्रण देकर ( कि कल आप मुझे मेरे
प्रश्न का उत्तर देने की कृपा करें ) प्रातः- काल प्रेमपूर्वक उसकी पूजा करके
बुद्धिमान् पुरुष को आदरपूर्वक शकुन को सत्य मानकर ( ग्रन्थ के प्रारम्भ में
भूमिका में बताये ) नियमों के अनुसार शकुन का विचार करना चाहिये ॥१॥
( यदि प्रश्न करने पर यही दोहा
निकले तो वह प्रश्न फिर करना चाहिये । )
मुनि गनि दिन गनि धातु गनि दोहा
देखि बिचारि ।
देस करम करता बचन सगुन समय अनुहारि
॥२॥
मुनि ( सात ),
दिन ( सात ) तथा धातु ( सात ) अर्थात् सात सर्ग; प्रत्येक सर्ग के सात- सात सप्तक तथा प्रत्येक सप्तक के सात-सात दोहे
गिनकर, दोहे को देखकर फल का विचार करो । देश, कर्म तथा प्रश्नकर्ता के वचन के अनुसार उस समय शकुन होगा ॥२॥
( जैसे शब्दो में प्रश्न पूछा
गया हैं, जिस कर्म के सम्बन्ध में पूछा गया है, जिस समय और जिस स्थान में पूछा गया है, सबका प्रभाव
देखकर प्रश्न का फल कहना चाहिये । यदि यहि दोहा प्रश्न करने पर निकले तो फिर वही
प्रश्न करना तथा फल देखना चाहिये । )
सगुन सत्य ससि नयन गुन,
अवधि अधिक नयवान ।
होइ सुफल सुभ जासु जसु,
प्रीति प्रतीति प्रमान ॥३॥
चन्द्रमा ( एक ),
नेत्र ( दो ), गुण ( तीन -) नीतिमान् के लिये
सच्चे शकुन की यह अधिक-से-अधिक सीमा है । (एक दिन तीन से अधिक प्रश्न न करे ।)
जिसका जैसा प्रेम और विश्वास है, उसी के अनुसार शकुन शुभ तथा
सफल होगा ॥३॥
( प्रश्न-फल मध्यम है । )
गुरु गनेस हर गौरि सिय राम लखन
हनुमान ।
तुलसी सादर सुमिरि सब सगुन बिचार
बिधान ॥४॥
तुलसीदासजी कहते हैं- गुरुदेव,
गणेश, श्रीगौरी-शंकर, श्रीसीता-राम
तथा लक्ष्मणजी और हनुमानजी का आदरपूर्वक स्मरण करके सब प्रकार के शकुन का
विधिपूर्वक विचार करना चाहिये ॥४॥
( प्रश्न-फल शुभ है । )
हनुमान सानुज भरत राम सीय उर आनि ।
लखन सुमिरि तुलसी कहत सगुन बिचारु
बखानि ॥५॥
तुलसीदासजी कहते हैं कि ( पहिले )
श्री हनुमानजी, छोटे भाई शत्रुघ्न के साथ,
भरतजी, श्रीसीतारामजी और लक्ष्मणजी को हृदय में
ले आओः इनका स्मरण करके तब शकुन का विचार करके फल बताओ ॥५॥
( फल उत्तम है । )
जो जेहि काजहि अनुहरइ,
सो दोहा जब होइ ।
सगुन समय सब सत्य सब,
कहब राम गति जोइ ॥६॥
जो जिस कार्य के लिये प्रश्न करता
है,
वही उसी ( कार्यसम्बन्धी ) दोहा जब हो , तब उस
शकुन के समय जो पूछा गया है, वह सब पूर्ण सत्य होगा ।
श्रीरामजी की गति ( इच्छा-कॄपा ) पर भरोसा करके ( प्रश्नफल ) कहना चाहिये ॥६॥
( प्रश्न-फल सन्दिग्ध है । )
गुन बिस्वास बिचित्र मनि सगुन मनोहर
हारु ।
तुलसी रघुबर भगत उर बिलसत बिमल
बिचारु ॥७॥
तुलसीदास ने विश्वासरूपी तागे में
शकुनरूपी विचित्र मणियों की यह मनोहर माला बनायी है । श्रीरघुनाथजी के भक्तों के
हॄदय पर यह निर्मल विचार के रूप में शोभित होती है । ( श्रीरामभक्तों के हृदय में
यह शकुन-विचार विराजमान रहता है ।) ॥७॥
( प्रश्न-फल शुभ है । )
इतिश्री: रामज्ञा प्रश्न सप्तम: सर्ग:
॥
इतिश्री: रामज्ञा प्रश्न: ॥
इस प्रकार तुलसीदासकृत रामाज्ञा
प्रश्न सम्पूर्ण हुआ।
आगे जारी.......... रामज्ञा प्रश्न शकुन जानने की विधी
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