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जैमिनी ज्योतिष अध्याय ११

जैमिनी ज्योतिष अध्याय ११      

जैमिनी ज्योतिष अध्याय ११ के इस भाग में ग्रह बल का वर्णन किया गया है।

जैमिनी ज्योतिष अध्याय ११

जैमिनी ज्योतिष अध्याय ११      

Jaimini Astrology chapter 11

जैमिनी ज्योतिष ग्यारहवाँ अध्याय

जैमिनी ज्योतिष

जैमिनी ज्योतिष एकादशोऽध्यायः

अथ एकादशोऽध्यायः

जैमिनी चर दशा में राशि बल के बाद ग्रहों का बल ज्ञात किया जाता है। ग्रह बल में भी तीन प्रकार के बलों का आंकलन किया जाता है। मूल त्रिकोणादि बल, अंश बल तथा केन्द्रादि बल यह तीन प्रकार के  ग्रह बल हैं। तीनों बलों के बारे में विस्तार से बताया जाएगा।

(1) मूल त्रिकोणादि बल Mool Trokonadi Bal

कुण्डली में ग्रह उच्च राशि, मूल त्रिकोण राशि, स्वराशि, सम राशि, शत्रु राशि, नीच राशि आदि में स्थित होते हैं। इन ग्रहों की राशि में स्थिति के अनुसार इन्हें अंक प्रदान किए जाते हैं। इसके लिए एक तालिका के द्वारा आपको समझाने का प्रयास किया जा रहा है।

ग्रह का स्थान    अंक                   ग्रह का स्थान      अंक

उच्च राशि         70                  मूल त्रिकोण राशि  60 

स्वराशि           50                           मित्र राशि  40                                                             

सम राशि         30                            शत्रु राशि  20  

नीचराशि         10                     ------------------------- - 

उपरोक्त तालिका के अनुसार यदि कुण्डली में कोई ग्रह उच्च राशि में स्थित है तो उस ग्रह को 70 अंक प्राप्त होगें। मूल त्रिकोण राशि में स्थित होने पर ग्रह को 60 अंक मिलेगें। इस प्रकार सभी ग्रहों को कुण्डली में उनकी स्थिति के अनुसार अंक प्राप्त होगें।

(2) अंश बल Ansha Bal 

ग्रह बल में दूसरे प्रकार का बल अंश बल है। यह बल जैमिनी कारकों के आधार पर ग्रहों को प्राप्त होता है। इनके अंकों को सारिणि द्वारा समझा जा सकता है।

कारक           अंक                             कारक          अंक

आत्मकारक     70                            अमात्यकारक  60 

भ्रातृकारक       50                           मातृकारक      40  

पुत्रकारक        30                            ज्ञातिकारक    20

दाराकारक      10 ---------------------------------- ---- 

उपरोक्त सारिणी के अनुसार ग्रहों को उनके कारकों के अनुसार अंक दिए जाएंगें। आत्मकारक को सबसे अधिक अंक दिए गए हैं और दाराकारक को सबसे कम अंक प्रदान किए गए हैं।

(3) केन्द्रादि बल Kendradi Bal 

पराशरी पद्धति के साथ जैमिनी पद्धति में भी केन्द्रों का महत्व माना गया है। कुण्डली में केन्द्रादि बल का निर्धारण आत्मकारक से ग्रहों की स्थिति देखकर किया जाता है।

* आत्मकारक से कोई ग्रह केन्द्र(आत्मकारक से 1,4,7,10 भाव) में स्थित है तब उस ग्रह को 60 अंक मिलेगें। 

* आत्मकारक से कोई ग्रह पणफर भाव(आत्मकारक से 2,5,8,11 भाव) में स्थित है तब उस ग्रह को 40 अंक प्राप्त होगें।

* आत्मकारक से कोई ग्रह अपोक्लिम भाव(आत्मकारक से 3,6,9,12 भाव) में स्थित है तब उस ग्रह को 20 अंक प्राप्त होगें।

मूल त्रिकोणादि बल, अंश बल तथा केन्द्रादि बल का कुल योग ज्ञात करेगें।

आगे जारी- जैमिनी ज्योतिष अध्याय 12

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