पर्वत
हाथ (हस्तरेखा) के अध्ययन में पर्वत
एवं रेखाओं का सर्वाधिक महत्त्व है । उंगलियों के मूल में जो उभरा हुआ प्रदेश है,
उसे पर्वत कहते हैं।
पर्वत
इन पर्वतों के तीन भेद हैं-
1. सामान्य
जो थोड़े से उभरे हुए,
पर अविकसित प्रदेश हैं, सामान्य पर्वत कहलाते हैं।
2. विकसित
काफी ऊंचे उठे हुए,
मांसल एवं स्वस्थ प्रदेश विकसित पर्वत कहलाते हैं।
3. अविकसित
पर्वत
विकसित प्रदेश से सर्वथा विपरीत ऐसे
पर्वत होते हैं। इनका उभार स्पष्ट दिखाई नहीं देता, पर सूक्ष्मता से देखने पर ही यह पर्वत उभरा हुआ दिखाई देता है।
पर्वतों के स्थान
गुरु :
इसे बृहस्पति भी कहते हैं। इसका स्थान तर्जनी उंगली के मूल में तथा निम्न मंगल के
ऊपर होता है। गुरु पर्वत का उभरा हुआ होना देवोचित गुणों की प्रचुरता का बोध कराता
है। ऐसा व्यक्ति संयमी, साहसी, मानवोचित गुणों से भरपूर, न्यायप्रिय एवं समदर्शी
होता है।
शनि : हथेली
में मध्यमा उंगली के मूल में इसका निवास स्थान 'माना गया है। हथेली में शनि पर्वत की महत्ता सर्वोपरि है। यदि किसी की
हथेली में शनि पर्वत अविकसित हो, तो उस व्यक्ति का जीवन
अत्यन्त सामान्य ढंग का अनुल्लेखनीय होता है।
शनि पर्वत या मध्यमा उंगली भाग्य की
प्रतीक मानी गई है। यदि शनि रेखा की समाप्ति शनि पर्वत के मूल बिन्दु पर हो,
तो वह निम्नकुल में जन्म लेकर भी यशस्वी, धनी
एवं प्रतिष्ठित जीवन व्यतीत करता है।
शनि पर्वत का अत्यधिक उभार व्यक्ति
को चिड़चिड़ा, रहस्यमय, शक्की
मिजाज एवं मेहनती बना देता है।
सूर्य : अनामिका
उंगली के मूल में सूर्य पर्वत की अवस्थिति मानी गई है। इस पर्वत की उपस्थिति ही
व्यक्ति को यशस्वी जीवन दे सकती है। इस पर्वत का उभार सुन्दर और सुगठित हो,
तो जातक जीवन में ख्याति लाभ करता है, क्योंकि
सूर्य पर्वत प्रतिभा, बुद्धि, ज्ञान,
यश, सम्मान एवं कीर्ति का पर्याय है।
बुध : हथेली
की सबसे छोटी कनिष्ठिका के मूल में बुध पर्वत की अवस्थिति मानी गई है। इस पर्वत का
महत्त्व इसलिए अधिक है, कि इस पर्वत से ही
व्यक्ति के भौतिक सुखों का आकलन किया जाता है। श्रेष्ठ एवं उच्चस्तरीय व्यापारियों
व्यवसायियों के हाथ में निश्चय ही यह पर्वत उभरा हुआ एवं सुविकसित होगा ।
बुध प्रधान व्यक्ति गहरी सूझबूझ
वाला,
हिम्मती, व्यापारिक कार्यों में चतुर, आदमी को सही रूप में पहिचानने की क्षमता रखने वाला एवं दूरदर्शी होता है।
आर्थिक दृष्टि से यह पूर्णतः संतुष्ट एवं सुखी होता है।
हर्षल : हथेली
में इसकी अवस्थिति बुध पर्वत के जरा नीचे, हृदय
रेखा तथा मस्तिष्क रेखा के बीच में है। इस ग्रह का प्रभाव हृदय एवं मस्तिष्क पर
विशेष रूप से रहता है।
यदि इस पर्वत की स्थिति बुध पर्वत
के ठीक नीचे हृदय एवं मस्तिष्क रेखा के बीच में होती है,
तो व्यक्ति इंजीनियरिंग के क्षेत्र में उच्चस्तरीय कार्य करता है,
पर यदि इस पर्वत का उभार सुविकसित न हो, तो
व्यक्ति मशीनी कार्यों में दिलचस्पी लेता है एवं इस प्रकार के कार्यों से
जीवन-यापन तथा लाभ उठाता है।
नेपच्यून : इस
पर्वत का स्थान हथेली में मस्तिष्क रेखा से नीचे एवं चन्द्र क्षेत्र से ऊपर माना
गया है। नेपच्यून कलात्मक रुचियों का दाता है, अत:
नेपच्यून पर्वत का सुविकसित होना व्यक्ति को कवि, चित्रकार
एवं संगीतज्ञ बनाता है। तात्पर्यतः ऐसे व्यक्ति का झुकाव ललित कलाओं की ओर विशेष
रूप से होता है।
इस पर्वत पर ऊपर की ओर उठती हुई एक
लाइन भी किसी-किसी के हाथ में दिखाई देती है। यह रेखा 'प्रभाव रेखा' या Influence line कहलाती है। इस रेखा की उपस्थिति इस बात की सूचक है, कि
व्यक्ति निश्चय ही श्रेष्ठस्तरीय पद प्राप्त कर सकेगा एवं अपने गुणों के कारण
ख्याति लाभ कर सकेगा।
चन्द्र : पृथ्वी
का सर्वाधिक निकटस्थ ग्रह चन्द्रमा है, जिसका
सर्वाधिक प्रभाव प्राणियों पर पड़ता है। सौन्दर्य, संवेग,
भावना आदि का यह कारक ग्रह है।
नेपच्यून पर्वत से नीचे,
आयु रेखा से बायीं ओर, मणिबन्ध से ऊपर,
भाग्य रेखा से मिला हुआ जो क्षेत्र है, वही
चन्द्र पर्वत कहलाता है।
जिन व्यक्तियों के हाथों में चन्द्र
पर्वत उभरा हुआ एवं सुविकसित होता है, वे
श्रेष्ठ कवि, रसिक एवं भावुक होते हैं। ऐसे व्यक्ति में
भावुकता और प्रेम का अद्भुत मिश्रण होता है। जीवन की कठोर वास्तविकता के धरातल पर
ये टिक नहीं पाते, अपितु कल्पनालोक में ही विचरण इनके लिए
सुखद एवं अनुकूल होता है।
चन्द्र पर्वत का अभाव या अविकसित
होना व्यक्ति को कठोर, खूनी, निर्दयी एवं दुःखी सिद्ध करता है। प्रेम के क्षेत्र में ये असफल होते हैं।
शुक्र : अंगूठे
के नीचे आयु रेखा से घिरा हुआ जो प्रदेश है, वह
शुक्र पर्वत है। यह 'सौन्दर्य', 'प्रेम'
एवं 'भोग' का प्रतिनिधि ग्रह
है।
शुक्र पर्वत उभरा हुआ,
कोमल, मांसल एवं सुघड़ होना चाहिए। ऐसा पर्वत
जिस हथेली में होता है, वह जीवन में समस्त सुखों का भोग करता
है, भौतिक सुखों की न्यूनता उसके जीव में नहीं देखी जाती,
अच्छा स्वास्थ्य, प्रभावशाली व्यक्तित्व एवं
दूसर को आकर्षित करने की इनमें गजब की हिम्मत होती है। विपरीत सेक्स के प्रति इनका
रुझान स्वभावतः होता है तथा जीवन में इस प्रकार के भोगों की कमी नहीं रहती।
इसके विपरीत यदि शुक्र पर्वत अल्प
विकसित एवं कठोर सा होता है, तो वह भोगी तो
होगा ही, पर प्रेम के क्षेत्र में बार-बार वह असफल रहेगा तथा
निम्नस्तर की स्त्रियों से सम्पर्क बनाने के लिए सचेष्ट बना रहेगा।
शुक्र पर्वत की अनुपस्थिति व्यक्ति
को निर्मोही, साधु स्वभाव एवं इन्द्रिय दमनक
बना देता है। जीवन से वह घृणा करता है एवं भोग-विलास को हेय समझने लगता है।
मंगल : जीवन
रेखा के नीचे और उससे आवृत्त शुक्र पर्वत का जो भाग फैला हुआ है,
इन दोनों के बीच में जो छोटा-सा उभरा हुआ प्रदेश है, वही मंगल पर्वत कहलाता है। मंगल शूरवीरता, रक्त एवं
साहस का प्रतीक ग्रह है। स्पष्टतः जिन व्यक्तियों के हाथों में मंगल पर्वत प्रधान
होता है, वे पुलिस या फौज या ऐसे ही किसी क्षेत्र में यश
प्राप्त करते हैं, जहां वीरता ही उच्चता का मापदण्ड होता है।
मंगल पर्वत पर यदि शनि रेखा आ जाय, तो वे दुर्दान्त डाकू बन
जाते हैं, पर यदि मंगल पर्वत पर गुरु रेखा का भाग स्पर्श
होता है, तो वे या तो फौज में उच्च पद प्राप्त कर यश के भागी
होते हैं अथवा कुशल सर्जन बनते हैं।
राहु :
हथेली के बीचों-बीच मस्तिष्क रेखा से कुछ नीचे जो
भाग है,
वह राहु पर्वत या राहु क्षेत्र कहलाता है। इसके एक ओर चन्द्र पर्वत
तथा दूसरी ओर मंगल एवं शुक्र पर्वत होते हैं।
राहु पर्वत की उन्नतावस्था जीवन में
संयोगों को उभारती है। जिस हथेली में राहु पर्वत उभरा हुआ होता है,
उस व्यक्ति के जीवन में जो भी घटनायें घटित होती हैं, वे आकस्मिक रूप से घटती हैं। ऐसे ही व्यक्तियों के जीवन में लॉटरी,
आकस्मिक धन प्राप्ति आदि के विशेष योग होते हैं।
यदि राहु पर्वत से भाग्य रेखा गुजर
रही हो और वह शनि पर्वत को छू रही हो, तो
निस्सन्देह उसके जीवन में लॉटरी योग है तथा वह आकस्मिक द्रव्य लाभ से धनी होगा।
राहु पर्वत का अविकसित होना
दुर्भाग्य का सूचक है।
केतु : हस्तरेखाविदों
ने केतु का पर्वत मणिबन्ध के कुछ ऊपर, भाग्य
रेखा के आरम्भिक स्थल के पास माना है, जो कि शुक्र एवं चन्द्र
क्षेत्रों का विभाजन करता है।
केतु का उन्नतावस्था में होना
व्यक्ति को आर्थिक दृष्टि से प्रबल भाग्यवादी बनाता है। उन्नत केतु पर्वत जीवन में
धनाभाव नहीं होने देता। ऐसे बालक के जन्म पर ही पिता को आर्थिक लाभ होते देखा गया
है।
केतु पर्वत की अविकसितावस्था
व्यक्ति में हीन भावना की पुष्टि करती है।
प्लूटो : हृदय
रेखा के नीचे तथा मस्तिष्क रेखा के ऊपर का जो उभरा हुआ प्रदेश है,
वही प्लूटो पर्वत के नाम से पुकारा जाता है।
प्लूटो का सीधा सम्बन्ध जीवन के
वृद्धावस्था से होता है। यदि प्लूटो पर्वत उन्नत एवं विकसित अवस्था में हो,
तो व्यक्ति वृद्धावस्था में सुखी एवं यशस्वी जीवन व्यतीत करता है।
प्लूटो की अविकसितावस्था वृद्धावस्था की परेशानियों की ओर संकेत करती है।
आगे जारी........... रेखाएं
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