श्रीजानकीस्तुति
जानकी स्तुति के रचयिता तुलसीदास जी
हैं। इस स्तुति का पाठ करने से सभी इच्छाएं पूर्ण होती है तथा देवी सीताजी तथा श्री
राम की भी कृपा प्राप्त होती है।
तुलसीदासकृत् श्रीजानकीस्तुति
Janaki stuti
श्री जानकी स्तुति
श्रीजानकीस्तुति
तुलसीदासजी द्वारा रचित श्रीजानकी स्तुति
॥ श्रीजानकीजीकी स्तुति ॥
भई प्रगट कुमारी भूमि-विदारी जन
हितकारी भयहारी ।
अतुलित छबि भारी मुनि-मनहारी
जनकदुलारी सुकुमारी ॥
सुन्दर सिंहासन तेहिं पर आसन कोटि
हुताशन द्युतिकारी ।
सिर छत्र बिराजै सखि संग भ्राजै
निज-निज कारज करधारी ॥
सुर सिद्ध सुजाना हनै निशाना चढ़े
बिमाना समुदाई ।
बरषहिं बहुफूला मंगल मूला अनुकूला
सिय गुन गाई ॥
देखहिं सब ठाढ़े लोचन गाढ़े सुख
बाढे उर अधिकाई ।
अस्तुति मुनि करहीं आनन्द भरहीं
पायन्ह परहीं हरषाई ॥
ऋषि नारद आये नाम सुनाये सुनि सुख
पाये नृप ज्ञानी ।
सीता अस नामा पूरन कामा सब सुखधामा
गुन खानी ॥
सिय सन मुनिराई विनय सुनाई समय
सुहाई मृदुबानी ॥
लालनि तन लीजै चरित सुकीजै यह सुख
दीजै नृपरानी ॥
सुनि मुनिवर बानी सिय मुसकानी लीला
ठानी सुखदाई ।
सोवत जनु जागीं रोवन लागीं नृप
बड़भागी उर लाई ॥
दम्पति अनुरागेउ प्रेम सुपागेउ यह
सुख लायउँ मनलाई ।
अस्तुति सिय केरी प्रेमलतेरी बरनि
सुचेरी सिर नाई ॥
दोहा
निज इच्छा मखभूमि ते प्रगट भई सिय
आय ॥
चरित किये पावन परम बरधन मोद निकाय
॥
इति तुलसीकृत् श्रीजानकीस्तुति ॥
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