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कर्मकाण्ड

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जानकी स्तुति

जानकी स्तुति

जानकी द्वारा सहस्त्रमुख रावण का वध किए जाने उपरांत भी सीता को क्रोधित देखकर लोकपाल देवता और पितर तथा ब्रह्माजी ने उन्हें प्रसन्न करने के लिए देवता हाथ जोड बारंबार प्रणाम कर जानकी की इस प्रकार स्तुति करने लगे ।

जानकी स्तुति

देवकृत जानकी स्तुति:

ब्रह्माद्याः स्तोतुमारब्धाः सीतां राक्षसनाशिनीम् ॥

या सा माहेश्वरी शक्तिर्ज्ञानरूपातिलालसा ।। ३ ।।

राक्षसनाशिनी जानकी की ब्रह्मादि देवता स्तुति करने लगे, जो यह माहेश्वरी शक्ति ज्ञानरूपा अतिलालसायुक्त है।

अनन्या निष्कले तत्त्वे संस्थिता रामवल्लभा ।।

स्वाभाविकी च त्वन्मूला प्रभा भानोस्तथामला ॥ ४ ॥

यह रामवल्लभा अनन्य और निष्फल तत्त्व में स्थित है. वह स्वाभाविकी शक्ति आप ही से होती है, जैसे सूर्य की कांति निर्मल होती है ।

एका सा वैष्णवी शक्ति रणे कोपाधिवेगतः ।

परापरेण रूपेण क्रीडन्ती रामसन्निधौ ।। ५ ।।

वह एक ही वैष्णवी शक्ति रण में बडे वेग से और क्रोध से परापररूप किये राम के निकट क्रीडा करती है ।

सेव्यं करोति सकलं तस्याः कार्यमिदं जगत् ॥

न कार्यं चापि करणमीश्वरश्चेति निश्चयः ॥ ६ ॥

यही सब जगत् करके अपना कार्यं करके विहरती है कि, ईश्वर को कार्य करने की आवश्यकता नहीं है ।

चतस्रः शक्तयो देव्याः स्वरूपत्वेन संस्थिताः ।।

अधिष्ठान वशादस्या जानक्या रामयोषितः ।। ७ ।।

देवी की चार शक्ति स्वरूप से स्थित हैं अधिष्ठान के वश से जानकी राम की स्त्री हैं ।

शांतिविद्या प्रतिष्ठा च निवृत्तिश्चेति ताः स्मृताः ।

चतुर्व्यूहस्ततो देवः प्रोच्यते परमेश्वरः ॥ ८ ॥

शांति विद्या प्रतिष्ठा और निवृत्ति यह परमेश्वर देव चतुर्व्यूह रूप से कहा जाता है ।

अनया परया देवः स्वात्मानंदं समश्नुते ।

यत्त्वस्त्यनादिसंसिद्धमैश्वर्यमतुलं महत् ॥ ९ ॥

इसी पराशक्ति से देव का स्वात्मानन्द जाना जाता है, जो अनादि संसिद्ध अतुल महत् ऐश्वर्य है ।

त्वत्संबंधादवाप्तं तद्रामेण परमात्मना ॥

संषा सर्वेश्वरी देवी सर्वभूतप्रवर्तिका ॥ १० ॥

वही परमात्मा राम द्वारा तुम्हारे सम्बन्ध से प्राप्त किया जाता है, यह सर्वेश्वरी देवी सब भूतों की प्रवर्त करनेवाली है ।

त्वयेदं भ्रामयेदीशो मायावी पुरुषोत्तमः ॥

सैवा मायात्मिका शक्तिः सर्वाकारा सनातनी ॥ ११ ॥

तुम से ही यह मायावी पुरुषोत्तम भ्रमण कराये जाते हैं यह मायात्मिका शक्ति सर्वाकारा सनातनी है ।

वैश्वरूपं महेशस्य सर्वदा संप्रकाशयेत् ।।

अन्याश्च शक्तयो मुख्यास्त्वया देवि विनिर्मिता ॥ १२ ॥

यह महेश्वर का विश्वरूप सदा प्रकाशित करती है, हे देवि ! और भी मुख्य शक्ति तुमने ही निर्माण की है ।

ज्ञानशक्तिः क्रियाशक्तिः प्राणशक्तिरिति त्रयम् ॥

सर्वासामेव शक्तीनां शक्तिमन्तो विनिर्मिता ॥ १३ ॥

ज्ञानशक्ति, क्रियाशक्ति, प्राणशक्ति यह सम्पूर्णशक्ति और उनके शक्तिमान् निर्माण किये हैं ।  

एका शक्तिः शिवोप्येकः शक्तिमानुच्यते शिवः ।।

अभेदं चानुपश्यंति योगिनस्तत्त्वदर्शनः ॥१४

वास्तविक एक ही शक्ति और एक ही शक्तिमान् शिव हैं, तत्त्वदर्शी योगी इनमें भेद नहीं मानते हैं ।

शक्तयो जानकी देवी शक्तिमन्तो हि राघवः ॥

विशेषः कथ्यते चायं पुराणे तत्त्ववादिभिः ।। १५ ।।

संपूर्ण शक्तियों का स्वरूप जानकी देवी, शक्तिमान् राम हैं, तत्त्ववादियों ने पुराणों में यह विशेषता से कहा है ।

भोग्या विश्वेश्वरी देवी रघूत्तमपतिव्रता ।

प्रोच्यते भगवान्भोक्ता रघुवंशविवर्द्धनः ॥ १६ ॥

रघुराज की पतिव्रता देवी योग्या है और रघुवंश विवर्द्धन भगवान् भोक्ता कहलाते हैं ।

मंता रामो मतिः सीता मन्तव्या च विचारतः ।

एकं सर्वगतं सूक्ष्मं कूटस्थ मचलं ध्रुवम् ॥ १७ ॥

मन्ता राम हैं और मति सीता है इनको विना विचारे मानना उचित है एक ही सर्वंगत सूक्ष्म अचल और ध्रुव हैं ।

योगिनस्तत्प्रपश्यंति तव देव्याः परं पदम् ।।

अनंतमजरं ब्रह्म केवलं निष्कलं परम् ॥ १८ ॥

योगी उसको देखते हैं वही देवी का परमपद है वह अनन्त अजर ब्रह्म केवल निष्कल और परे है ।

योगिनस्तत्प्रपश्यंति तब देव्याः परं पदम् ॥

सा त्वं धात्रीव परमा यानन्दनिधिमिच्छताम् ।। १९ ।।

हे देवि ! आपके उस पद को योगी देखते हैं वह तुम ही परमधात्री हो आनंदसागर की इच्छा करनेवालों को ।

संसारतापानखिलान्हरसीश्वरसंश्रयात् ॥

नेदानीं भूतसंहारस्त्वया कार्यो महेश्वरि ॥ २० ॥

ईश्वर के संश्रय से संसार के संपूर्ण तापों को दूर करती हो, हे महेश्वरि ! इस समय तुमको प्राणियों का संहार न करना चाहिये ।

रावणो सगणं हत्वा जगतां सुखमाहितम् ।।

किं पुनर्न त्यकलया जगत्संह्रियते त्वया ॥२१॥

गण सहित रावण को मारकर जगत्‌ को सुखी किया है फिर अब नृत्य के व्याज से सब जगत्का संहार क्यों करती हो ।

इतिश्री अद्भुतरामायण देवकृत जानकी स्तुति: चतुर्विंशतितमः सर्गः ॥२४॥

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