अग्निपुराण अध्याय २३०
अग्निपुराण अध्याय २३० में अशुभ
और शुभ शकुन का वर्णन है।
अग्निपुराणम् त्रिंशदधिकद्विशततमोऽध्यायः
Agni puran chapter 230
अग्निपुराण दो सौ तीसवाँ अध्याय
अग्निपुराणम्/अध्यायः २३०
अग्निपुराणम् अध्यायः २३० – शकुनानि
अथ त्रिंशदधिकद्विशततमोऽध्यायः
पुष्कर उवाच
औषधानि च युक्तानि धान्यं
कृष्णमशोभनं ।
कार्पासं तृणशुष्कञ्च गोमयं वै
धनानि च ।। १ ।।
अङ्गारं गुडसर्जौ च मुण्डाभ्यक्तञ्च
नग्नकं ।
अयः पङ्कं चर्म्मकेशौ उन्मत्तञ्च
नपुंसकं ।। २ ।।
चण्डालश्वपचाद्यानि नरा बन्धनपालकाः
।
गर्भिणी स्त्री च विधवाः
पिण्याकादीनि वै मृतं ।। ३ ।।
तुषभस्मकपालास्थिभिन्नभाण्डमशस्तकं
।
अशस्तो वाद्यशब्दश्च भिन्न
भैरवझर्क्भरः ।। ४ ।।
एहीति पुरतः शब्दः शस्यते न तु
पृष्ठतः ।
गच्छेति पश्चाच्छब्दोऽग्र्यः
पुरस्तात्तु विगर्हितः ।। ५ ।।
क्व यासि तिष्ठ मा गच्छ किन्ते तत्र
गतस्य च ।
अनिष्टशब्दा मृत्यर्थं क्रव्यादश्च
ध्वजादिगः ।। ६ ।।
स्खलनं वाहनानाञ्च शस्त्रभङ्गस्तथैव
च ।
शिरोघातश्च चद्वाराद्यैश्छत्र
वासादिपातनं ।। ७ ।।
हरिमभ्यर्च्य संस्तुत्य स्यादमङ्गल्यनाशनं
।
द्वितीयन्तु ततो दृष्ट्वा विरुद्धं
प्रविशेद् गृहं ।। ८ ।।
श्वेताः सुमनसः श्रेष्ठाः
पूर्णकुम्भो महोत्तमः ।
पुष्कर कहते हैं- परशुरामजी ! श्वेत
वस्त्र, स्वच्छ जल, फल से भरा हुआ वृक्ष, निर्मल आकाश, खेत में लगे हुए अन्न और काला धान्य-
इनका यात्रा के समय दिखायी देना अशुभ है। रुई, तृणमिश्रित
सूखा गोबर (कंडा), धन, अङ्गार, गृह, करायल, मूँड़ मुड़ाकर तेल
लगाया हुआ नग्न साधु, लोहा, कीचड़,
चमड़ा, बाल, पागल मनुष्य,
हिंजड़ा, चाण्डाल, श्वपच
आदि बन्धन की रक्षा करनेवाले मनुष्य, गर्भिणी स्त्री,
विधवा, तिल की खली, मृत्यु,
भूसी, राख, खोपड़ी,
हड्डी और फूटा हुआ बर्तन – युद्धयात्रा के समय इनका दिखायी देना
अशुभ माना जाता है। बाजों का वह शब्द, जिसमें फूटे हुए झाँझ की
भयंकर ध्वनि सुनायी पड़ती हो, अच्छा नहीं माना गया है। 'चले आओ' - यह शब्द यदि सामने की ओर से सुनायी पड़े तो
उत्तम है, किंतु पीछे की ओर से शब्द हो तो अशुभ माना गया है।
'जाओ' - यह शब्द यदि पीछे की ओर से हो
तो उत्तम है; किंतु आगे की ओर से हो तो निन्दित होता है 'कहाँ जाते हो ? ठहरो, न जाओ;
वहाँ जाने से तुम्हें क्या लाभ है ?' - ऐसे
शब्द अनिष्ट की सूचना देनेवाले हैं। यदि ध्वजा आदि के ऊपर चील आदि मांसाहारी पक्षी
बैठ जायँ, घोड़े, हाथी आदि वाहन
लड़खड़ाकर गिर पड़ें, हथियार टूट जायँ, हार आदि के द्वारा मस्तक पर चोट लगे तथा छत्र और वस्त्र आदि को कोई गिरा
दे तो ये सब अपशकुन मृत्यु का कारण बनते हैं। भगवान् विष्णु की पूजा और स्तुति
करने से अमंगल का नाश होता है। यदि दूसरी बार इन अपशकुनों का दर्शन हो तो घर लौट
जाय ॥ १-८अ ॥
मांसं मत्स्या दूरशब्दा वृद्ध एकः
पशुस्त्वजः ।। ९ ।।
गावस्तुरङ्गमा नागा देवाश्च
ज्वलितोऽनलः ।
दूर्वार्द्रगोमयं वेश्या
स्वर्णरूप्यञ्च रत्नकं ।। १० ।।
वचासिद्धार्थकौषध्यो मुद्र आयुधखड्गकं
।
छत्रं पीठं राजलिङ्गं शवं
रुदितवर्जितं ।। ११ ।।
फलं घृतं दधि पयो
अक्षतादर्शमाक्षिकं ।
शङ्ख इक्षुः शुभं वाक्पं
भक्तवादित्रगीतकं ।। १२ ।।
गम्भीरमेघस्तनितं तडित्तुष्टिश्च
मानसी ।
एकतं सर्वलिङ्गानि मनसस्तुष्टिरेकतः
।। १३ ।।
यात्रा के समय श्वेत पुष्पों का
दर्शन श्रेष्ठ माना गया है। भरे हुए घड़े का दिखायी देना तो बहुत ही उत्तम है।
मांस,
मछली, दूर का कोलाहल, अकेला
वृद्ध पुरुष, पशुओं में बकरे, गौ,
घोड़े तथा हाथी, देवप्रतिमा, प्रज्वलित अग्नि, दूर्वा, ताजा
गोबर, वेश्या, सोना, चाँदी, रत्न, बच, सरसों आदि ओषधियाँ, मूँग, आयुधों
में तलवार, छाता, पीढ़ा, राजचिह्न, जिसके पास कोई रोता न हो ऐसा शव, फल, घी, दही, दूध, अक्षत, दर्पण, मधु, शंख, ईख, शुभसूचक वचन, भक्त पुरुषों का गाना-बजाना, मेघ की गम्भीर गर्जना, बिजली की चमक तथा मन का संतोष
– ये सब शुभ शकुन हैं। एक ओर सब प्रकार के शुभ शकुन और दूसरी
ओर मन की प्रसन्नता - ये दोनों बराबर हैं ॥ ९- १३ ॥
इत्यादिमहापुराणे आग्नेये
माङ्गल्याध्यायो नाम त्रिंशदधिकद्विशततमोऽध्यायः ।।
इस प्रकार आदि आग्नेय महापुराण में 'शकुन वर्णन' नामक दो सौ तीसवाँ अध्याय पूरा हुआ ॥
२३० ॥
आगे जारी.......... अग्निपुराण अध्याय 231
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