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मूल शांति पूजन विधि कहा गया है कि यदि भोजन बिगड़ गया तो शरीर बिगड़ गया और यदि संस्कार बिगड़ गया तो जीवन बिगड़ गया । प्राचीन काल से परंपरा रही कि...
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रघुवंशम् द्वितीय सर्ग Raghuvansham dvitiya sarg महाकवि कालिदास जी की महाकाव्य रघुवंशम् प्रथम सर्ग में आपने पढ़ा कि-महाराज दिलीप व उनकी प...
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अगहन बृहस्पति व्रत व कथा
मार्तण्ड भैरव स्तोत्रम्
चण्डिका दल स्तोत्र
माँ चण्डिका (चामुण्डा) के इस दल स्तोत्र के पाठ (जप) करने से सभी बाधा चाहे शारीरिक, मानसिक, बाहरी (तंत्र,मंत्र अथवा पारलौकिक), ग्रहबाधा,देव-दानव-मानव बाधा शीघ्र दूर हो जाता है।
चंडिका दल स्तोत्रम्
Chandika dalam
चामुण्डा दल स्तोत्रम्
चामुंडा दल स्तोत्र
चण्डिका दलम्
श्रीचण्डिका दल स्तोत्र
अथ दलम्
ओं नमो भगवति जय जय चामुण्डे चण्डि
चण्डेश्वरि, चण्डायुधे, चण्डरूपधारिणी, ताण्डवप्रिये, कुण्डलीभूत-
दिङ्नाग- मण्डलीभूत- गण्डस्थले, समस्त-जगदण्ड-संहारकारिणि,
परे, अनन्तानन्दरूपे, शिवे,
नरशिरोमालालंकृत वक्षःस्थले, मणि-मकुट-चूडाबद्धार्धचन्द्र-खंडे
(महाकपालफालोज्ज्वलन्मणिमकुट- चूडावतंसचन्द्रखण्डे), महाभीषणे,
देवि, परमेश्वरि, महामाये,
षोडशकला-परिवृतोल्लासिते, महादेवासुर-
समर-निहत- रुधिराद्री - कृतालंबित-तनु- कमलोद्भासिताकाशे, संपूर्णरुधिर-शोभित
महाकपालवक्त्र - हासिनि, दृढतर - निबद्ध्यमान- रोमराजी -
सहित - हेम-काञ्ची -दामोज्वलित- वसनारुणी, भूत-नूपुर
प्रज्वलित- महीमण्डले, महाशंभुरूपे, महाव्याघ्र
चर्मांबरधरे, महासर्प-यज्ञोपवीतिनि, महाश्मशान-
भस्मोद्धूलित सर्वांङ्गार्द्रे, कालिकालि, महाकालि, कालाग्नि- रुद्रकालि, कालसङ्कर्षिणि, कालनाशिनि, कालरात्रिसञ्चारिणि,
नभोभक्षिणि, नाना- भूत-प्रेत-पिशाचगण - सहस्र
सञ्चारिणि, नानाव्याधि - प्रशमनि, सर्वदुःखशमनि,
सर्वदारिद्र्यनाशिनि धगधगेत्यास्वादित-मांसखण्डे, गात्रविक्षेप कलकलायमान कङ्कालधारिणि, मधुमांस- रुधिरावसिक्त-विलासिनि,
सकल-सुरासुर- गन्धर्व-यक्ष-विद्याधर- किन्नर किंपुरुषादिभिः
स्तूयमानचरिते, सर्वमन्त्राधिकारिणि, सर्वशक्तिप्रधाने,
सकललोकपावनि, सकललोक भयप्रक्षालिनि, सकल लोकैकजननि, ब्रह्माणी-माहेश्वरी-कौमारी
वैष्णवी-शंखिनी- वाराहीन्द्राणी - चामुण्डा - महालक्ष्मी रूपे, महाविद्ये, योगेश्वरी, योगिनि,
चण्डिके, महायोगिनि, माये,
विश्वेशरूपिणि, सर्वाभरणभूषिते, अतल - वितल - सुतल - रसातल - तलातल-महातल- पाताल भूर्भुव:-
सुवर्महर्जनस्तपस्सत्याख्य चतुर्दशभुवनैकनाथे, महाक्रूरे (महाघोरे),
प्रसन्न रूपधारिणि, ओं नमो पितामहाय, ओं नमो नारायणाय, ओं नमः शिवायेति सकललोक - जप्यमान-
ब्रह्मविष्णु महेश्वररूपिणि, दण्ड - कमण्डलु-कुण्डलधारिणि,
सावित्रि सर्वमंगलप्रदे, सरस्वति, पद्मालये, पार्वति, सकलजगत्स्वरूपिणि,
शंख-चक्र-गदापद्मधारिणि, परशु - शूल -
पिनाक-टंकधारिणि, शर-चाप - शूलकरवाल खड्ग डमरुकांकुश गदा
परशु-तोमर-डिण्डिपाल भुशुण्डीमुद्गर मुसल- परिघायुध - दोर्दण्ड- सहस्रे, चन्द्रार्क- वह्निनयने, सुन्दरि, इन्द्राग्नि- यम-निरृति-वरुण-वायु- सोमेशान प्रधानशक्ति-हेतुभूते, सप्तद्वीप- समुद्रोपरि महाव्याप्तेश्वरि, महासचराचर
प्रपञ्च-मालालंकृत- मेदिनीनाथे, महाप्रभावे, महाकैलासपर्वतोद्यान वनविहारिणि, नदीतीर्थ-देवतायतनालंकृते,
वसिष्ठ - वामदेवादि - महामुनिगण- वन्द्यमान चरणारविन्दे, द्विचत्वारिंशद्-वर्णमाहात्म्ये, पर्याप्त-वेद-
वेदाङ्गाद्यनेक- शास्त्राद्याधारभूते, शब्दब्रह्ममयि,
लिपिदेवि, मातृकादेवि, चिरं
मां रक्ष रक्ष, मम शत्रून्-हुङ्कारेण नाशय नाशय, भूत -प्रेत-पिशाचादीन् उच्चाटयोच्चाटय समस्त ग्रहान् -वशीकुरु- वशीकुरु,
मोहय मोहय, स्तंभय स्तंभय, मोदय मोदय, उन्मादयोन्मादय, विध्वंसय
विध्वंसय, द्रावय द्रावय, श्रावय
श्रावय, स्तोभय स्तोभय, संक्रामय संक्रामय,
सकलारातीन् मूर्धनि स्फोटय स्फोटय, मम शत्रून्
शीघ्रं मारय मारय, जाग्रत् स्वप्न- सुषुप्त्यवस्थासु अस्मान्
राजचोराग्नि-जलवात- विषभूत - शत्रुमृत्यु - ज्वरादि- नानारोगेभ्यो नानाभिचारेभ्यो
नानापवादेभ्यः परकर्म मन्त्र-तन्त्र यन्त्रौषध शल्यशून्य क्षुद्रेभ्यः सम्यक्-मां
रक्ष रक्ष, ओं श्रीं ह्रीं क्ष्मौं मम सर्वशत्रु
प्राणसंहारकारिण हुं फट् स्वाहा ।।.
।। इति दलस्तोत्रम् ।।
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